• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

'मेरी बात मानी होती तो आज कलबुर्गी और गौरी लंकेश जिंदा होते'

    • पंकज खेलकर
    • Updated: 25 अगस्त, 2018 03:59 PM
  • 25 अगस्त, 2018 03:59 PM
offline
संजय साडविलकर ने बताया कि 20 अगस्त 2013 के दिन जब उसको डॉ दाभोलकर के हत्या की खबर का पता चला तो उसका दिमाग ठनका कि ये काम डॉ तावड़े ने ही करवाया है, लेकिन संजय हिम्मत नहीं जुटा पाया कि वो ये बात पुलिस को बताए.

'मेरी बात पर विश्वास कर सीबीआई ने अगर समय रहते डॉ तावड़े को गिरफ्तार किया होता तो एम.एम. कलबुर्गी और गौरी लंकेश की हत्या नहीं हुई होती'. ये बात किसी और नहीं बल्कि गिरफ्तार आरोपी डॉ तावड़े के दोस्त संजय साडविलकर ने आजतक से कही है. डॉक्टर नरेंद्र दाभोलकर हत्या मामले में सीबीआई को महत्वपूर्ण सबूत देने वाले संजय साडविलकर की कोल्हापुर जेल के सामने छोटी सी दुकान है और पास में ही रहते भी हैं.

दाभोलकर हत्या मामले के मुख्य गवाह संजय साडविलकर ने बताया के आरोपी वीरेंद्र तावडे की पहचान 2001 में हुई थी. तब डॉ तावड़े और डॉ दाभोलकर दोस्त हुआ करते थे. दोनों सातारा के रहने वाले थे इसलिए कई बार दोनों को एक साथ भी देखा था. लेकिन वैचारिक मतभेद के चलते दोनों के रास्ते अलग हो गए और डॉ तावड़े ने खुलेआम डॉ दाभोलकर का विरोध करना शुरू कर दिया था. संजय साडविलकर ने बताया कि उनके विचार डॉ तावड़े से मिलते थे इसलिए वो और उनके जैसे युवक, तावड़े के कहने पर हिन्दू राष्ट्र स्थापना के मार्ग से चलते रहे. कई समारोह में संजय साडविलकर और उसके साथी डॉ तावड़े और अन्य हिन्दू नेता के भाषण का आयोजन भी करते थे. वहीं दूसरी ओर डॉ नरेंद्र दाभोलकर ये अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के तहत लोगो में जागरूगता निर्माण करने में जुट गए थे.

20 अगस्त 2013 को डॉ.  दाभोलकर के हत्या की गई थी

संजय साडविलकर ने बताया कि 20 दिसंबर 2004 की बात है, डॉ तावड़े ने उसे और साथियों को उनके साथ आने को कहा. पता चला कि इन्हें डॉ दाभोलकर के भाषण समारोह में रुकावट पैदा करनी थी और वैसा नहीं हुआ. जिस समारोह में डॉ दाभोलकर भाषण देने वाले थे वहां डॉ तावड़े और संजय साडविलकर अपने साथियो के साथ पहुंचे. कार्यक्रम के बाद जैसे ही डॉ दाभोलकर उनकी कार की ओर रवाना हुए, तावड़े, संजय और साथियों ने दाभोलकर को रोका और गालियां दीं,...

'मेरी बात पर विश्वास कर सीबीआई ने अगर समय रहते डॉ तावड़े को गिरफ्तार किया होता तो एम.एम. कलबुर्गी और गौरी लंकेश की हत्या नहीं हुई होती'. ये बात किसी और नहीं बल्कि गिरफ्तार आरोपी डॉ तावड़े के दोस्त संजय साडविलकर ने आजतक से कही है. डॉक्टर नरेंद्र दाभोलकर हत्या मामले में सीबीआई को महत्वपूर्ण सबूत देने वाले संजय साडविलकर की कोल्हापुर जेल के सामने छोटी सी दुकान है और पास में ही रहते भी हैं.

दाभोलकर हत्या मामले के मुख्य गवाह संजय साडविलकर ने बताया के आरोपी वीरेंद्र तावडे की पहचान 2001 में हुई थी. तब डॉ तावड़े और डॉ दाभोलकर दोस्त हुआ करते थे. दोनों सातारा के रहने वाले थे इसलिए कई बार दोनों को एक साथ भी देखा था. लेकिन वैचारिक मतभेद के चलते दोनों के रास्ते अलग हो गए और डॉ तावड़े ने खुलेआम डॉ दाभोलकर का विरोध करना शुरू कर दिया था. संजय साडविलकर ने बताया कि उनके विचार डॉ तावड़े से मिलते थे इसलिए वो और उनके जैसे युवक, तावड़े के कहने पर हिन्दू राष्ट्र स्थापना के मार्ग से चलते रहे. कई समारोह में संजय साडविलकर और उसके साथी डॉ तावड़े और अन्य हिन्दू नेता के भाषण का आयोजन भी करते थे. वहीं दूसरी ओर डॉ नरेंद्र दाभोलकर ये अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के तहत लोगो में जागरूगता निर्माण करने में जुट गए थे.

20 अगस्त 2013 को डॉ.  दाभोलकर के हत्या की गई थी

संजय साडविलकर ने बताया कि 20 दिसंबर 2004 की बात है, डॉ तावड़े ने उसे और साथियों को उनके साथ आने को कहा. पता चला कि इन्हें डॉ दाभोलकर के भाषण समारोह में रुकावट पैदा करनी थी और वैसा नहीं हुआ. जिस समारोह में डॉ दाभोलकर भाषण देने वाले थे वहां डॉ तावड़े और संजय साडविलकर अपने साथियो के साथ पहुंचे. कार्यक्रम के बाद जैसे ही डॉ दाभोलकर उनकी कार की ओर रवाना हुए, तावड़े, संजय और साथियों ने दाभोलकर को रोका और गालियां दीं, भला-बुरा कहा और धर्म द्रोही कहकर हाथापाई भी की. आयोजक दौड़कर आए और डॉ दाभोलकर को छुड़ाया.

संजय साडविलकर ने बताया कि 2004 के बाद 2008 तक तावड़े उससे मिलते रहे लेकिन उसके बाद तावड़े उसे कभी नहीं मिले. 2008 के बाद संजय साडविलकर भी हिंतुत्वादी संघठन के काम से दूर हो गए. लेकिन अचानक अप्रेल 2013 में डॉ तावड़े उसकी दुकान पर आए और कहा कि उन्हें एक पिस्टल का हूबहू दूसरा पिस्टल बनवाना है और ये काम संजय तुम कर सकते हो इसकी जिद्द करने लगे. संजय ने भी हां कर दी, लेकिन कुछ ही दिनों बाद डॉ तावड़े दो लोगों को उसकी दुकान पर ले आए और बोले कि इनके पास जो पिस्टल है उस जैसा एक और पिस्टल बनाओ. संजय साडविलकर ने बताया कि वो लोग सारंग अकोलकर और विनय पवार थे. और कुछ दिनों बाद डॉ तावड़े ने संजय से दो कट्टर हिन्दुत्वादी युवकों का इंतजाम करने को कहा, और बताया कि किसी का काम तमाम करना है. हर एक युवक को दस लाख रुपये दिए जाएंगे. तावड़े पिस्टल को वस्तु और गोलियों को चॉकलेट कहता था. डॉ तावड़े ने संजय को कई बार कहा था कि उसके वस्तु के लिए चॉकलेट का इंतजाम करो. तावड़े को पता था कि संजय 1985 के दौरान पिस्टल बेचने का काम किया करता था, इसीलिए उसे लगा कि संजय के लिए पिस्टल और कारतूस का इंतजाम करना आसान होगा.

डॉ तावड़े की यह बात कि किसी को दुनिया से उठाना है, संजय को गलत लगी और इसीलिए उसने डॉ तावड़े को टालना शुरू किया. और ऐसे में कुछ महीने बीत गए. तावड़े को यकीन था कि अगर संजय उनका काम नहीं करेगा तो वो किसी को उनके प्लान की बात भी नहीं बताएगा. अप्रैल से जून 2013 तक तावड़े संजय से मिलते रहे लेकिन उसके बाद नहीं मिले.

एम एम कलबुर्गी की हत्या 30 अगस्त 2015 और गौरी लंकेश की हत्या 5 सितंबर 2017 को हुई थी

संजय साडविलकर ने बताया कि 20 अगस्त 2013 के दिन जब उसको डॉ दाभोलकर के हत्या की खबर का पता चला तो उसका दिमाग ठनका कि ये काम डॉ तावड़े ने ही करवाया है, लेकिन संजय हिम्मत नहीं जुटा पाया कि वो ये बात पुलिस को बताए. समय बीत गया और 16 फरवरी 2015 की सुबह तक़रीबन 9 बजे कामरेड गोविन्द पानसरे और उनके पत्नी पर दो अज्ञात लोगों ने पिस्टल से गोलियां चलाकर जानलेवा हमला किया. ये बात जब संजय को पता चली तब उससे रहा नहीं गया और जमीर की आवाज सुनकर उसने डॉ वीरेन्द्रसिंह तावड़े की बातें एक पुलिस अधिकारी को बताईं. दूसरे दिन सीबीआई के अधिकारियों के साथ संजय साडविलकर की मीटिंग हुई, वो भी सतारा और कराड हाइवे पर. डॉ वीरेंद्र सिंह तावड़े ही दोनों हत्याओं के पीछे है ये शक संजय ने जांच अधिकारियों को जाहिर किया और उसका मन हल्का हो गया. ये सब संजय ने आजतक को बताया.

डॉ वीरेन्द्रसिंह तावड़े को सीबीआई ने 11 जून 2016 को गिरफ्तार किया, यानी संजय साडविलकर के जांच अधिकारियों को तावड़े के बारे में बताने के 17 महीनों बाद, यानी लगभग डेढ़ साल बाद. कन्नडा यूनिवर्सिटी के कुलगुरु एम एम कलबुर्गी की हत्या 30 अगस्त 2015 को की गयी थी, दो अज्ञात हमलावर उनके घर में घुस आये थे और एकदम नजदीक से कुलगुरु कलबुर्गी पर गोलियां दागी गई थीं. वरिष्ठ पत्रकार और सामाज सेवक गौरी लंकेश की हत्या 5 सितंबर 2017 को हुई थी.

ये भी पढ़ें-  

गौरी लंकेश के 3 'हत्‍यारे' सामने लाए गए, क्‍या केस को उलझाने के लिए ?

कातिल भागते-भागते गौरी लंकेश की 'अंतिम इच्‍छा' पूरी कर गए !

खून-ए-दिल में डूबो ली हैं उंगलियां मैंने


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲