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प्रियंका-ज्योतिरादित्य को ज्ञान देना कहीं राहुल के अन्दर छुपा डर तो नहीं ?

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 09 फरवरी, 2019 06:14 PM
  • 09 फरवरी, 2019 06:05 PM
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पार्टी मुख्यालय में आयोजित AICC के महासचिवों की बैठक में राहुल गांधी का प्रियंका और ज्योतिरादित्य को बताना कि दो महीने में कोई चमत्कार नहीं होने वाला अतः वो राज्य चुनावों पर ध्यान साफ बताता है कि वो डरे हुए हैं.

लोकसभा चुनाव आने में कुछ महीने शेष हैं. चाहे संसद हो या फिर कोई जनसभा. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर मौके पर कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए नजर आ रहे हैं. बात बीते दिन की है. लोकसभा में बोलते हुए जिस जिसने भी प्रधानमंत्री मोदी को देखा उसे यही महसूस हुआ कि जैसे उन्होंने कसम खा ली है कि वो इस देश से कांग्रेस का सफाया करके ही दम लेंगे. पिछले लोकसभा चुनाव से इस लोकसभा चुनाव तक प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी की जितनी भी रैलियां हुई हैं यदि उन्हें उठाकर उनका अवलोकन किया जाए तो मिलता है कि उन्होंने कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी की बारीक से बारीक कमियों से इस देश की जनता को अवगत कराया है. उधर बात अगर राहुल गांधी की हो तो राहुल, राफेल पर अटके हैं और बेबुनियाद इल्जामों से न सिर्फ देश के प्रधानमंत्री की छवि धूमिल कर रहे हैं. बल्कि आम आदमी की नजर में भी संदेह का पात्र बन गए हैं.

पार्टी मुख्यालय पर महासचिवों और प्रभारियों संग बैठक करते राहुल गांधी

आगामी लोकसभा चुनाव और भविष्य के अन्य चुनावों में कांग्रेस अच्छा परफॉर्म कर सके इसके लिए वो लम्बे समय से पार्टी के लोगों को मोटिवेट कर रहे हैं. मगर अन्दर ही अन्दर डरे हैं. राहुल का ये डर तब दिखा जब वो पार्टी के महासचिवों से बैठक करने के लिए पार्टी मुख्यालय आए. बात विचलित कर देने वाली हो सकती है. मगर जो कुछ दिल्ली में कांग्रेस की तरफ से आयोजित रणनीतिक बैठक में हुआ उसने कांग्रेस को लेकर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.

बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी महासचिवों से राज्य स्तर पर पार्टी को मजबूत बनाने के लिए कोशिशें करने को कहा. चूंकि केंद्र की सत्ता यूपी से होकर जाती है इसलिए मीटिंग में उत्तर प्रदेश पर बल देते हुए कांग्रेस अध्यक्ष ने राज्य की प्रभारी प्रियंका गांधी और...

लोकसभा चुनाव आने में कुछ महीने शेष हैं. चाहे संसद हो या फिर कोई जनसभा. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर मौके पर कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए नजर आ रहे हैं. बात बीते दिन की है. लोकसभा में बोलते हुए जिस जिसने भी प्रधानमंत्री मोदी को देखा उसे यही महसूस हुआ कि जैसे उन्होंने कसम खा ली है कि वो इस देश से कांग्रेस का सफाया करके ही दम लेंगे. पिछले लोकसभा चुनाव से इस लोकसभा चुनाव तक प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी की जितनी भी रैलियां हुई हैं यदि उन्हें उठाकर उनका अवलोकन किया जाए तो मिलता है कि उन्होंने कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी की बारीक से बारीक कमियों से इस देश की जनता को अवगत कराया है. उधर बात अगर राहुल गांधी की हो तो राहुल, राफेल पर अटके हैं और बेबुनियाद इल्जामों से न सिर्फ देश के प्रधानमंत्री की छवि धूमिल कर रहे हैं. बल्कि आम आदमी की नजर में भी संदेह का पात्र बन गए हैं.

पार्टी मुख्यालय पर महासचिवों और प्रभारियों संग बैठक करते राहुल गांधी

आगामी लोकसभा चुनाव और भविष्य के अन्य चुनावों में कांग्रेस अच्छा परफॉर्म कर सके इसके लिए वो लम्बे समय से पार्टी के लोगों को मोटिवेट कर रहे हैं. मगर अन्दर ही अन्दर डरे हैं. राहुल का ये डर तब दिखा जब वो पार्टी के महासचिवों से बैठक करने के लिए पार्टी मुख्यालय आए. बात विचलित कर देने वाली हो सकती है. मगर जो कुछ दिल्ली में कांग्रेस की तरफ से आयोजित रणनीतिक बैठक में हुआ उसने कांग्रेस को लेकर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.

बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी महासचिवों से राज्य स्तर पर पार्टी को मजबूत बनाने के लिए कोशिशें करने को कहा. चूंकि केंद्र की सत्ता यूपी से होकर जाती है इसलिए मीटिंग में उत्तर प्रदेश पर बल देते हुए कांग्रेस अध्यक्ष ने राज्य की प्रभारी प्रियंका गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया से दो महीने में चमत्कार की उम्मीद न करने और राज्य चुनावों पर ध्यान लगाने के लिए कहा. इसके अलावा राहुल ने प्रभारियों को 'मिशन मोड' में काम करने की सलाह तो दी ही साथ ही ये भी कहा कि कांग्रेस को विभाजनकारी राजनीति और ध्रुवीकरण से लड़ना होगा.

पार्टी मुख्यालय में आयोजित AICC के महासचिवों और अलग-अलग राज्यों के प्रभारियों के साथ हुई इस बैठक में राहुल गांधी ने इस बात को बड़ी ही प्रमुखता से बल दिया कि नए चेहरों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. ध्यान रहे कि जहां एक तरफ पार्टी ने प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश में का प्रभारी महासचिव बनाया है तो वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी दी गई है. बात अगर प्रियंका गांधी की हो तो इस बैठक में प्रियंका गांधी खासी उत्साहित दिखीं. प्रियंका ने कहा कि वह तब तक आराम नहीं करेंगी जब तक राज्य में कांग्रेस की विचारधारा का झंडा बुलंद नहीं हो जाता.

बैठक में आए राहुल का अंदाज खुद ब खुद बता रहा है कि वो कहीं न कहीं प्रियंका से डरे हुए हैं

राहुल ने अपनी इस मुलाकात का ब्योरा ट्विटर पर दिया है और बताया है कि,' मैं आज शाम AICC मुख्यालय में AICC महासचिवों और राज्य प्रभारियों से मिला. हमने व्यापक विषयों पर चर्चा की. टीम मैच के लिए तैयार है और हम फ्रंट फुट पर खेलेंगे'.

राहुल के इस ट्वीट और जो बातें उन्होंने बैठक में कहीं यदि उनपर नजर डाली जाए तो मिलता है कि दोनों ही चीजों में गहरा विरोधाभास है. एक तरफ वो फ्रंट फुट पर खेलने की बात कर रहे हैं. दूसरी तरफ प्रियंका गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया से दो महीने में किसी तरह के चमत्कार की उम्मीद न करने और राज्य चुनावों पर ध्यान लगाने के लिए कह रहे हैं. सवाल उठ रहे हैं कि जब उन्होंने फ्रंट फुट पर खेलने की बात कर ही दी है तो वो इस तरह प्रियंका और ज्योतिरादित्य दोनों के मोटिवेशन का दमन क्यों  कर रहे हैं? इस सवाल का ईमानदारी भरा जवाब बस इतना है कि राहुल गांधी प्रियंका की लोकप्रियता से कहीं न कहीं डरे हुए हुए हैं.

शायद राहुल के सामने भी बड़ा सवाल यही है कि यदि प्रियंका पूर्वी उत्तर प्रदेश में उनसे आगे निकल गयीं तो फिर उनके राजनीतिक भविष्य का क्या होगा? चूंकि अपनी पहली ही बैठक में पार्टी की नवोदित महासचित नए जोश के साथ, नए विचारों से लबरेज हैं. साफ है कि वो अपना पहली बड़ी राजनीतिक पारी में जीरो पर आउट होना नहीं चाहेंगी.

जिस तरह के समीकरण बन रहे हैं इस बात में कोई शक नहीं कि आगामी लोकसभा चुनाव बेहद मजेदार होने वाला है. ये चुनाव जहां एक तरफ पीएम मोदी की साख का चुनाव है. तो वहीं इसे गांधी परिवार के दो सदस्यों के अस्तित्व का चुनाव भी कहा जा सकता है. फैसला वक़्त करेगा मगर जिस तरह का जोश प्रियंका गांधी में है और जैसे राहुल उस जोश को ठंडा कर रहे हैं, शायद उन्हें भी इस बात का एहसास हो गया है कि कांग्रेस का भविष्य प्रियंका ही है.   

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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