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मी-लार्ड का बंदूक के लाइसेंस के लिए यूं गिड़गिड़ाना! ये तो बहुत टेंशन की बात है

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 21 जनवरी, 2018 06:19 PM
  • 21 जनवरी, 2018 06:19 PM
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चारा घोटाले पर फैसला देकर सबको हैरत में डालने वाला जज अगर खुद न्याय की आस में दौड़े या फिर अपना काम करवाने के लिए बार-बार प्रशासन के दरवाजे पर आए और खाली हाथ वापस लौटा दिया जाए तो समझ लीजिये देश की हालत कितनी गंभीर है.

ये अपने आप में कितना शर्मनाक और दुखद है कि देश में किसी अपराधी को फैसला सुनाने वाला जज ही सुरक्षित नहीं है. शायद फैसले के बाद जज को यही भय रहता है कि अगर इस फैसले के कारण उसे कुछ हो गया तो उसके बीवी बच्चों का, उसके घर-परिवार का क्या होगा. जब इस देश के जज ही सुरक्षित नहीं हैं तो अब वो वक़्त आ गया है जब हमें और आपको अपनी सुरक्षा भगवान भरोसे छोड़ देनी चाहिए. हो सकता है इन पंक्तियों को पढ़कर आप विचलित हो गए हों या फिर आपको आश्चर्य हुआ हो और आप प्रश्न करें कि हम ऐसा क्यों कह रहे हैं तो आपको बताते चलें कि इस कथन के पीछे हमारे पास जायज वजह है. एक ऐसी वजह, जो कई मायनों में एक गंभीर संकट की तरफ इशारा करती साफ नजर आ रही है.

जी हां, हम जिस गंभीर संकट की बात रहे हैं. वो बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और चारा घोटाले के अंतर्गत उन्हें सजा सुनाने वाले सीबीआई के जज शिवपाल सिंह से जुड़ा है. खबर है कि लालू को सजा सुनाने के बाद से ही सीबीआई जज शिवपाल सिंह बेहद तनाव में हैं और उन्होंने अपनी जान की सुरक्षा के मद्देनजर शस्त्र लाइसेंस अप्लाई किया है. लाइसेंस अप्लाई करने के बाद से ही उन्हें अधिकारीयों की तरफ से भारी दुश्वारियों का सामना करना पड़ रहा है.

सब को इंसाफ देने वाला जज अगर इंसाफ के लिए दौड़े तो इससे ज्यादा शर्मनाक क्या होगा

ये चौंकाने वाली खबर इंडियन एक्सप्रेस के हवाले से है. खबर के अनुसार, चारा घोटाले के मामले में आरजेडी प्रमुख लालू यादव को बीते दिनों सजा सुनाने वाले सीबीआई जज शिवपाल सिंह ने शस्त्र लाइसेंस के लिए आवेदन किया है. बताया जा रहा है कि जज शिवपाल सिंह लालू को सजा सुनाने के बाद से ही लालू के "शुभचिंतकों" की फोन कॉल से खासे परेशान हैं. जज साहब को डर बना हुआ है कि लालू के ये शुभचिंतक कभी भी उन्हें नुकसान पहुंचा सकते...

ये अपने आप में कितना शर्मनाक और दुखद है कि देश में किसी अपराधी को फैसला सुनाने वाला जज ही सुरक्षित नहीं है. शायद फैसले के बाद जज को यही भय रहता है कि अगर इस फैसले के कारण उसे कुछ हो गया तो उसके बीवी बच्चों का, उसके घर-परिवार का क्या होगा. जब इस देश के जज ही सुरक्षित नहीं हैं तो अब वो वक़्त आ गया है जब हमें और आपको अपनी सुरक्षा भगवान भरोसे छोड़ देनी चाहिए. हो सकता है इन पंक्तियों को पढ़कर आप विचलित हो गए हों या फिर आपको आश्चर्य हुआ हो और आप प्रश्न करें कि हम ऐसा क्यों कह रहे हैं तो आपको बताते चलें कि इस कथन के पीछे हमारे पास जायज वजह है. एक ऐसी वजह, जो कई मायनों में एक गंभीर संकट की तरफ इशारा करती साफ नजर आ रही है.

जी हां, हम जिस गंभीर संकट की बात रहे हैं. वो बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और चारा घोटाले के अंतर्गत उन्हें सजा सुनाने वाले सीबीआई के जज शिवपाल सिंह से जुड़ा है. खबर है कि लालू को सजा सुनाने के बाद से ही सीबीआई जज शिवपाल सिंह बेहद तनाव में हैं और उन्होंने अपनी जान की सुरक्षा के मद्देनजर शस्त्र लाइसेंस अप्लाई किया है. लाइसेंस अप्लाई करने के बाद से ही उन्हें अधिकारीयों की तरफ से भारी दुश्वारियों का सामना करना पड़ रहा है.

सब को इंसाफ देने वाला जज अगर इंसाफ के लिए दौड़े तो इससे ज्यादा शर्मनाक क्या होगा

ये चौंकाने वाली खबर इंडियन एक्सप्रेस के हवाले से है. खबर के अनुसार, चारा घोटाले के मामले में आरजेडी प्रमुख लालू यादव को बीते दिनों सजा सुनाने वाले सीबीआई जज शिवपाल सिंह ने शस्त्र लाइसेंस के लिए आवेदन किया है. बताया जा रहा है कि जज शिवपाल सिंह लालू को सजा सुनाने के बाद से ही लालू के "शुभचिंतकों" की फोन कॉल से खासे परेशान हैं. जज साहब को डर बना हुआ है कि लालू के ये शुभचिंतक कभी भी उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं. सीबीआई के विशेष जज शिवपाल सिंह  ने ये आवेदन रांची जिला प्रशासन के सामने कुछ दिन पहले ही किया है.

गौरतलब है कि 1990 में बिहार में चारा घोटाला सामने आया था जिसके कारण सियासी गलियारों में हडकंप मच गया था. कैग की रिपोर्ट में हुए इस खुलासे के बाद सीबीआई ने लालू यादव, पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा सहित 25 लोगों को आरोपी बनाया था और इनके ऊपर केस चलाने की बात की थी. ज्ञात हो कि बीते 23 दिसंबर को आरोप तय करने के बाद बीती छह जनवरी को रांची की विशेष सीबीआई अदालत ने आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव को साढ़े तीन साल की सजा सुनाई थी इसके अलावा 5 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया था.

इन दिनों जज साहब की परेशानी का सबब लालू के शुभचिंतक हैं

हो सकता है कि, व्यक्ति इस खबर को नकार दे. या फिर ये कहें कि ये एक साधारण सी खबर है और अपनी जान की सुरक्षा के लिए शस्त्र रखने में कोई बुराई नहीं है. मगर एक ऐसे वक़्त में जब पूरे देश में अराजकता अपने चरम पर हो और देश का नागरिक अपने आपको असुरक्षित महसूस कर रहा हो. इस खबर का महत्वपूर्ण बनना और बड़ा हो जाना स्वाभाविक है. ऐसा इसलिए क्यों कि ये खबर हमारी कानून व्यवस्था, सुरक्षा, और अपराध मुक्त शासन के दावे पर करारा तमाचा है.  कुल मिलकर ये खबर इसलिए भी खास है क्योंकि फैसला सुनाने के बाद एक जज का डरना और अपनी जान की सुरक्षा के मद्देनजर शस्त्र के लाइसेंस के लिए रिरियाना ये बताने के लिए काफी है कि देश में प्रशासन का काम करने का रवैया कितना लचर है.

खैर ये कोई पहली बार नहीं है कि, चारा घोटाले जैसे महत्वपूर्ण केस में फैसला सुनाने वाले जज को लाइसेंस के लिए फाइल पकड़े टेबल से टेबल घुमाया जा रहा है. इससे पहले भी इनके साथ ऐसा बहुत कुछ हो चुका है जिसको देखकर कहा जा सकता है कि सबको न्याय देने वाला जज कुछ न्याय के इन्तेजार में है और सवाल कर रहा है कि "आखिर मेरा नंबर कब आएगा?". आपको बता दें कि सीबीआई के विशेष जज शिवपाल सिंह को अपने गृहराज्य, उत्तर प्रदेश में ही न्याय की दरकार है.

एक जज के लिए इससे बुरा क्या होगा कि वो खुद इंसाफ के लिए दर-दर की ठोकर खाए

यूपी स्थित जालौन के निवासी शिवपाल सिंह पैतृक जमीन के बीच से चक रोड निकाले जाने से बेहद परेशान हैं जिसके लिए उन्होंने अधिकारीयों से मिलने के अलावा तमाम प्रयास किये और थक हारकर कोर्ट की क्षरण ली जहां इन्हें इंसाफ के नाम पर तारीख पर तारीख दी जा रही हैं. ध्यान रहे कि मूलतः जनपद जालौन के गांव शेखपुर खुर्द के निवासी जज शिवपाल सिंह.

इस मामले में कई बार गांव आकर जालौन के आला अधिकारियों के घर और दफ्तर के चक्कर लगा चुके हैं. अधिकारी उनकी परेशानी को सुन तो रहे हैं मगर उसे सिरे से नजरंदाज कर इन्हें किसी आम आदमी की तरह टरका दिया जा रहा है. बताया ये भी जा रहा है कि जज साहब अपने साथ अधिकारीयों द्वारा किये जा रहे इस बर्ताव से आहत हैं जिसके चलते न सिर्फ वो बल्कि उनका परिवार दोनों बहुत परेशान हैं.

अंत में हम ये कहते हुए अपनी बात खत्म करेंगे कि, एक जज के साथ प्रशासन का ये बर्ताव दुखद है. साथ ही ये खुद चींख-चींख कर बता रहा है कि जब इस देश में जज जैसे बड़े अधिकारी की ही नहीं सुनी जा रही तो फिर आम आदमी इंसाफ की गुहार किसके दरवाजे पर जाकर लगाए और कहां इंसाफ पाए.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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