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जेल में भी चल रहा है लालू का 'हथुआ राज'....

    • मंजीत ठाकुर
    • Updated: 09 जनवरी, 2018 05:08 PM
  • 09 जनवरी, 2018 05:08 PM
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लालू यादव के साथ उनके रसोइए और सेवक को भी जेल हुई है. अब मामला असल है या फर्जी ये तो आप खुद ही तय कर लीजिए, लेकिन कम से कम लालू के लिए जेल में घर जैसा वातावरण जरूर बन गया है.

ठंड में सिकुड़ता हुआ मैं अंग्रेजी के आठ की तरह हुआ जा रहा था. फिजा में धूप थी लेकिन देश की व्यवस्था की तरह होते हुए भी नहीं थी. बिलकुल नाकाफी किस्म की धूप. देश की पुलिस की तरह बेअसर.

मैंने देखा, गुड्डू भैया झूमते हुए अपनी देह में सरसों का तेल मल रहे हैं. उनकी तेल पिलाई लाठी बगल में रखी है. मैं भौंचक्का रह गयाः "क्या भिया, इस ठंड में मारपीट की तैयारी?"

"करना नहीं है, सिर्फ दिखाना है. वह भी हम नहीं करेंगे हमारे दोनों नौकर लड़ेंगे. "

मेरे हैरत की सीमा न रही, "काहे भिया."

गुड्डू मुस्कुराएः "पत्रकार महोदय, फ्रेंडली फाइट का नाम सुना है? चुनाव में होता है. "

मैंने हामी भरी तो गुड्डू ने कहा, कि पड़ोसी के मटर के खेत में उनकी भैंस घुस गई थी. तो अब इसके एवज़ में उनके जेल जाना पड़ रहा है.

मैं समझ गया कि गुड्डू निरे काहिल हैं और उनके जेल प्रवास के दौरान सुविधाओं के लिए अपने सेवकों की जरूरत होगी.

मैंने बस इतना पूछाः "य़ह आइडिया कहां से आया भैय्या? "

गुड्डू लंगोट कसकर योगमुद्रा में विराजमान हो चुके थेः "देखो बे ठाकुर, इस देश में आइडियों की कमी नहीं है. चुराने से लेकर उस चोरी को लॉजिक देने तक. पहले अपराध करो, फिर पकड़े जाओ तो कहो कि मैं अमुक जाति से हूं इसलिए फंसाया जा रहा है. फिर भी सज़ा-वज़ा मिल जाए, तो सेवकों को ले जाओ. यह मैंने अपने नेताओं से सीखा है. एक तर्क यह भी है कि आप दोषी साबित होने पर और दूसरे के छूट जाने पर तर्क दे सकते हैं कि पंडिज्जी को बेल हमको जेल...जैसा लालूजी ने किया. "

"लेकिन वह तो कह रहे हैं कि उनको पिछड़ी जाति का होने की वजह से परेशान किया जा रहा है"...मैंने कहा.

"लेकिन, जब सूबे के मुख्यमंत्री बने तब तो यह तर्क न दिया, जब रेल मंत्री बने और काम की तारीफ बटोरी तब तो यह तर्क न दिया"...गुड्डू...

ठंड में सिकुड़ता हुआ मैं अंग्रेजी के आठ की तरह हुआ जा रहा था. फिजा में धूप थी लेकिन देश की व्यवस्था की तरह होते हुए भी नहीं थी. बिलकुल नाकाफी किस्म की धूप. देश की पुलिस की तरह बेअसर.

मैंने देखा, गुड्डू भैया झूमते हुए अपनी देह में सरसों का तेल मल रहे हैं. उनकी तेल पिलाई लाठी बगल में रखी है. मैं भौंचक्का रह गयाः "क्या भिया, इस ठंड में मारपीट की तैयारी?"

"करना नहीं है, सिर्फ दिखाना है. वह भी हम नहीं करेंगे हमारे दोनों नौकर लड़ेंगे. "

मेरे हैरत की सीमा न रही, "काहे भिया."

गुड्डू मुस्कुराएः "पत्रकार महोदय, फ्रेंडली फाइट का नाम सुना है? चुनाव में होता है. "

मैंने हामी भरी तो गुड्डू ने कहा, कि पड़ोसी के मटर के खेत में उनकी भैंस घुस गई थी. तो अब इसके एवज़ में उनके जेल जाना पड़ रहा है.

मैं समझ गया कि गुड्डू निरे काहिल हैं और उनके जेल प्रवास के दौरान सुविधाओं के लिए अपने सेवकों की जरूरत होगी.

मैंने बस इतना पूछाः "य़ह आइडिया कहां से आया भैय्या? "

गुड्डू लंगोट कसकर योगमुद्रा में विराजमान हो चुके थेः "देखो बे ठाकुर, इस देश में आइडियों की कमी नहीं है. चुराने से लेकर उस चोरी को लॉजिक देने तक. पहले अपराध करो, फिर पकड़े जाओ तो कहो कि मैं अमुक जाति से हूं इसलिए फंसाया जा रहा है. फिर भी सज़ा-वज़ा मिल जाए, तो सेवकों को ले जाओ. यह मैंने अपने नेताओं से सीखा है. एक तर्क यह भी है कि आप दोषी साबित होने पर और दूसरे के छूट जाने पर तर्क दे सकते हैं कि पंडिज्जी को बेल हमको जेल...जैसा लालूजी ने किया. "

"लेकिन वह तो कह रहे हैं कि उनको पिछड़ी जाति का होने की वजह से परेशान किया जा रहा है"...मैंने कहा.

"लेकिन, जब सूबे के मुख्यमंत्री बने तब तो यह तर्क न दिया, जब रेल मंत्री बने और काम की तारीफ बटोरी तब तो यह तर्क न दिया"...गुड्डू खिसियाए से लग रहे थे.

"लेकिन सज़ा सुनाने वाले जज को क्या यह कहना चाहिए था कि ठंड लगती है तो तबला बजाइए! " मैंने पीछे हटना ठीक नहीं समझा.

"आपसी बातचीत को मीडिया में उछालना और उसको मुद्दा बनाना तुम मीडियावालों का काम है. किसने किसको कहां चुम्मा ले लिया, किस खिलाड़ी ने शादी में कितने खर्च किए, देश में ब्याह किया कि इटली जाकर इस पर विमर्श करो तुम लोग...बलिहारी है बे तुम पे. और अब जज साहब ने कह दिया कि लालूजी पशुपालन के एक्सपर्ट हैं तो उसको भी मुद्दा बना लो. अदालत जिसको सज़ा दे उसको शहीद बनाने के काम में लग गए हो. और तो और, जब जेल प्रशासन अभी तक सजायाफ्ता लालू के लिए काम तय नहीं कर पाया है. वहीं उनके जेल पहुंचने से दो घंटे पहले ही उनका रसोइया लक्ष्मण कुमार और सेवक मदन फर्जी केस के जरिए जेल पहुंच गए. अब इसका क्या अर्थ है? पता है, जेल जाने के लिए इन दोनों की ही चुना गया क्योंकि दोनों रांची के ही रहने वाले हैं और लालू के खास विश्वासपात्र हैं. मालिक से पहले सेवक के जेल जाने का यह मसला भी पहली बार नहीं हुआ. पहले भी होटवार जेल में बंद लालू के लिए मदन जेल पहुंच गया था. "

"इस बार तो क्या गजब का आइडिया चुना इन लोगों ने. दोनों ने मारपीट का एक फर्जी मामला गढ़ा. मदन ने पड़ोसी सुमित कुमार को इसके लिए तैयार किया. उसने लक्ष्मण पर मारपीट करके 10 हजार रु. लूटने का आरोप लगाते हुए डोरंडा थाने में शिकायत दर्ज कराई. फटाफट एफआइआर दर्ज हुई, वकील ने दोनों का आत्मसमर्पण करवाया और जेल भी भेज दिए गए. भाई, जैसे जेल लालूजी गए वैसे सब जाएं. बुढ़ापे का तर्क देते हुए ओपन जेल में रहे, रसोइए से खाना बनवाएं, सारी सुविधाएं भोगे. ऐसा क्यों नही करते कि उनको जेल जाने से माफी ही दे दो. उनकी नेकचलनी के नाम पर! "

"गुड्डू भैया गुस्सा क्यों हो रहे हैं, आखिर वह जनता के सेवक हैं. "

"जनता का सेवक जब राजनीतिक बंदी होता है तब उसे ऐसा सुविधाएं दी जानी चाहिए, आपराधिक कृत्य के लिए नहीं. वित्तीय घोटाला कब से राजनीतिक मसला हो गया जी? "

"देखो बाबू, इस देश में किसी ने आम लोगों को कभी कैटल, कभी मैंगो पीपल कहा था, तब तो बहुत मिर्ची लगी थी तुम्हें. जरा बताओ कि जेल में ठंड क्या सिर्फ चारा घोटाले में सजायाफ्ता पूर्व-मुख्यमंत्री को ही लगती है या दूसरे कैदियों को भी ठंड लगती होगी? जब ठंड सबको लगती है तो सबको बजाने के लिए तबला क्यों नहीं मुहैया कराती सरकार? "

गुड्डू अब रंग में आ चुके थे. मेरे पास खिसक आए और लबनी से ताड़ी का बड़ा घूंट लगाते हुए बोलेः "देखो ठाकुर, आम आदमी हो तो औकात में रहा करो. कभी पुलिस और अदालत में चक्कर में पड़ोगे तब समझ में आएगा. समझे! लालूजी पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तभी अपनी मां को पद के बारे में समझाते हुए कह चुके हैं कि, माई हथुआ राज मिल गईल (मां, हथुआ राज मिल गया) तो समझो कि वह असल में राजा ही हैं. उनकी सुविधा का ख्याल रखना हम सबका परम-पावन और पुनीत कर्तव्य है. जब जेल में शशिकला, शहाबुद्दीन, कनिमोई, ए राजा सबको सुविधा मिल सकती है तो क्या सिर्फ लालू को न मिले क्योंकि वह पिछडी जाति से हैं! धिक्कार है बे तुम पे, धिक्कार है. "

गुड्डू भैया ने मुझ पर धिक्कारों की बौछार कर दी और सारे धिक्कार समेटता हुआ मैं चुपचाप अपनी राह चल दिया.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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