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उत्तराखंड में जो भी सरकार बने दबदबा कांग्रेस के डीएनए वाले नेताओं का ही होगा

    • आईचौक
    • Updated: 28 जनवरी, 2017 04:02 PM
  • 28 जनवरी, 2017 04:02 PM
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लगता है अगली बार सत्ता में चाहे जो भी पार्टी आये, सरकार तो वही चलाएंगे जो अब तक चलाते रहे - बस, उनकी पार्टी और निष्ठा बदली हुई होगी.

हर सर्वे कुछ कहता है. एक ताजा सर्वे के मुताबिक, बाकी जगह तो नहीं, लेकिन उत्तराखंड में बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनेगी. उत्तराखंड में अभी कांग्रेस की सरकार है, जिसे हटाने के लिए नौ महीने पहले बीजेपी ने साम, दाम, दंड और भेद सभी का जीभर कर इस्तेमाल किया, लेकिन तब उसे फजीहत और कांग्रेस के कुछ बागियों के सिवा कुछ खास हाथ न लगा.

अब उन्हीं बागियों के भरोसे बीजेपी चुनाव मैदान में कांग्रेस को शिकस्त देने में जुटी है. ऐसे में लगता है अगली बार सत्ता में चाहे जो भी पार्टी आये, सरकार तो वही चलाएंगे जो अब तक चलाते रहे - बस, उनकी पार्टी और निष्ठा बदली हुई होगी.

दलबदलुओं की बल्ले बल्ले

हरीश रावत सरकार से बगावत के अगुवा रहे विजय बहुगुणा ने तो साथियों के साथ तभी बीजेपी का दामन थाम लिया था और अपने मिशन में लगे रहे. नतीजा ये है कि अब तक दो दर्जन कांग्रेसी कमल को अपना चुके हैं. लेटेस्ट एंट्री यशपाल आर्य की है.

बीजेपी ने कांग्रेस से आने वाले 14 नेताओं को टिकट दे रखा है, लेकिन पार्टी के अंदर अब भी उन्हें 'बाहरी' ही माना जा रहा है और अंदरूनी कलह की सबसे बड़ी वजह भी यही है. इनमें 20 से ज्यादा सीटों पर टिकट देने में पक्षपात और परिवारवाद का आरोप लगा है जिसे लेकर कार्यकर्ताओं में गहरा असंतोष है.

खुद बहुगुणा के बेटे सौरभ बहुगुणा को सितारगंज सीट से टिकट दिया गया है जो कभी बहुगुणा की सीट हुआ करती थी.

कभी पास रहे लेकिन साथ कभी न रहा... [फाइल फोटो]

यशपाल आर्य पर तो बीजेपी इतनी मेहरबान हुई कि कांग्रेस छोड़ने के दो दिन के भीतर ही उन्हें बाजपुर से टिकट मिल गया. इतना ही नहीं बीजेपी ने उनके बेटे संजीव आर्य को भी नैनीताल से टिकट दिया है. हरीश सरकार में यशपाल आर्य मंत्री रह चुके हैं जहां उन्हें पार्टी का...

हर सर्वे कुछ कहता है. एक ताजा सर्वे के मुताबिक, बाकी जगह तो नहीं, लेकिन उत्तराखंड में बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनेगी. उत्तराखंड में अभी कांग्रेस की सरकार है, जिसे हटाने के लिए नौ महीने पहले बीजेपी ने साम, दाम, दंड और भेद सभी का जीभर कर इस्तेमाल किया, लेकिन तब उसे फजीहत और कांग्रेस के कुछ बागियों के सिवा कुछ खास हाथ न लगा.

अब उन्हीं बागियों के भरोसे बीजेपी चुनाव मैदान में कांग्रेस को शिकस्त देने में जुटी है. ऐसे में लगता है अगली बार सत्ता में चाहे जो भी पार्टी आये, सरकार तो वही चलाएंगे जो अब तक चलाते रहे - बस, उनकी पार्टी और निष्ठा बदली हुई होगी.

दलबदलुओं की बल्ले बल्ले

हरीश रावत सरकार से बगावत के अगुवा रहे विजय बहुगुणा ने तो साथियों के साथ तभी बीजेपी का दामन थाम लिया था और अपने मिशन में लगे रहे. नतीजा ये है कि अब तक दो दर्जन कांग्रेसी कमल को अपना चुके हैं. लेटेस्ट एंट्री यशपाल आर्य की है.

बीजेपी ने कांग्रेस से आने वाले 14 नेताओं को टिकट दे रखा है, लेकिन पार्टी के अंदर अब भी उन्हें 'बाहरी' ही माना जा रहा है और अंदरूनी कलह की सबसे बड़ी वजह भी यही है. इनमें 20 से ज्यादा सीटों पर टिकट देने में पक्षपात और परिवारवाद का आरोप लगा है जिसे लेकर कार्यकर्ताओं में गहरा असंतोष है.

खुद बहुगुणा के बेटे सौरभ बहुगुणा को सितारगंज सीट से टिकट दिया गया है जो कभी बहुगुणा की सीट हुआ करती थी.

कभी पास रहे लेकिन साथ कभी न रहा... [फाइल फोटो]

यशपाल आर्य पर तो बीजेपी इतनी मेहरबान हुई कि कांग्रेस छोड़ने के दो दिन के भीतर ही उन्हें बाजपुर से टिकट मिल गया. इतना ही नहीं बीजेपी ने उनके बेटे संजीव आर्य को भी नैनीताल से टिकट दिया है. हरीश सरकार में यशपाल आर्य मंत्री रह चुके हैं जहां उन्हें पार्टी का दलित चेहरा माना जाता रहा. मई 2016 में हरीश रावत की सरकार जैसे तैसी बच तो गई लेकिन मुश्किलें नहीं थमीं. हर दिन उनके लिए नई चुनौती लेकर आया और कांग्रेस में उठापटक पर कभी विराम नहीं लग पाया.

कांग्रेस में कलह बरकरार

विधायकों की खरीद फरोख्त से जुड़े स्टिंग मामले में सीबीआई का शिकंजा हरीश रावत की मुश्किलें बनाये हुए है. केदार आपदा में करोड़ों के घोटाले के आरोप और फिर आपदा पीडितों की आर्थिक मदद के लिए मिली रकम को बॉलीवुड कलाकारों में बांटे जाने का भी आरोप रावत सरकार पर लग चुका है. बड़ी तादाद में नेताओं के बीजेपी में जाने के बावजूद कांग्रेस में बवाल नहीं थमा और मुख्यमंत्री हरीश रावत और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय लगातार टकराते रहे. किशोर उपाध्याय ने रावत के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके कामों पर न केवल सवाल खड़े किये बल्कि पार्टी लाइन से हटकर किशोर ने सरकार को खूब चिट्टियां भी लिखीं. कोई रास्ता निकलता न देख कर कांग्रेस आलाकमान ने प्रशांत किशोर को मामला सुलझाने का जिम्मा दिया है. मुख्यमंत्री हरीश रावत दो सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं - हरिद्वार और किच्छा से. फिलहाल, हरीश रावत पिथौरागढ़ जिले की धारचूला सीट से विधायक हैं. बीजेपी कार्यकर्ताओं के अंसतोष से कांग्रेस को कोई विशेष लाभ तो नहीं मिल पा रहा, लेकिन बीजेपी कांग्रेस भीतर मचे घमासान का हर संभव फायदा उठा लेना चाहती है.

ताजा सर्वे क्या कहता है

उत्तराखंड में विधानसभा की कुल 70 सीटों पर 15 फरवरी को वोट डाले जाने हैं. वोटों की गिनती 11 मार्च को ही होगी.

सत्ता के मुख्य दावेदार इस बार भी कांग्रेस और बीजेपी ही हैं. हालांकि, उत्तराखंड क्रांति दल, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसी पार्टियां भी चुनाव मैदान में अपने उम्मीदवारों के साथ दावेदारी जता रही हैं.

द वीक-हंसा रिसर्च के ऑपिनियन पोल की माने तो सिर्फ उत्तराखंड में बीजेपी पूरे बहुमत के साथ सरकार बना सकती है. सर्वे के मुताबिक उत्तराखंड विधानसभा की 70 में से बीजेपी को 37-39 सीटें मिल सकती हैं. सर्वे के मुताबिक सत्ताधारी कांग्रेस 27-29 सीटों पर सिमट सकती है. बीएसपी के खाते में 1-3 सीटें आ सकती हैं और अन्य को भी इतनी ही सीटें मिलने की संभावना जताई गई है.

2012 में बीजेपी को 31 तो कांग्रेस को 32 सीटें मिली थीं जबकि बीएसपी को 3 और उत्तराखंड क्रांति दल को एक सीट से संतोष करना पड़ा था.

उत्तराखंड बीजेपी में फिलहाल तो विजय बहुगुणा को किंगमेकर की भूमिका में ही देखा जा रहा है - आगे आलाकमान जानें. वैसे उत्तराखंड का इतिहास तो यही रहा है कि हमेशा मुख्यमंत्री पद पर पैराशूट एंट्री ही होती है - इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता की सरकार बीजेपी बना रही है या फिर कांग्रेस.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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