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उत्तराखंड में केदार बाबा और बद्रीनाथ का आशीर्वाद लगाएगा बीजेपी का बेड़ा पार!

    • रीमा पाराशर
    • Updated: 26 जून, 2016 12:08 PM
  • 26 जून, 2016 12:08 PM
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एक बार उत्तराखंड की सत्ता पर काबिज होने का नाकाम सपना देख चुकी बीजेपी की उम्मीदें अब राज्य में होने वाले चुनाव पर टिकी हैं. लेकिन पिछले दिनों हुए पोलिटिकल ड्रामे ने पार्टी को चिंता में डाल दिया है.

एक बार उत्तराखंड की सत्ता पर काबिज होने का नाकाम सपना देख चुकी बीजेपी की उम्मीदें अब राज्य में होने वाले चुनाव पर टिकी हैं. लेकिन पिछले दिनों हुए पोलिटिकल ड्रामे ने पार्टी को चिंता में डाल दिया है. क्योंकि मुख्यमंत्री हरीश रावत और कांग्रेस पार्टी जनता को ये बताने में लगी है की किस तरह मोदी सरकार ने राज्य में सरकार को गिराने का षड्यंत्र रचा.

कांग्रेस से मिल रही इस चुनौती को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी भांप चुके हैं. शायद इसीलिए उत्तराखंड में पार्टी का चुनावी बिगुल फूंकने से पहले उन्होंने बाबा केदारनाथ और बद्रीनाथ के दर्शन किये और राज्य के कई नेताओ के साथ लंबी पूजा अर्चना की.

पार्टी अध्यक्ष के काफिले में शामिल एक नेता का कहना था की 'इस वक़्त चार धाम यात्रा चल रही है और ऐसे में केदार बाबा और बद्री विशाल के आशीर्वाद से शुरू होने वाला काम सफल ही होता है.'

 उत्तराखंड में बीजेपी को क्यों है आशीर्वाद की जरूरत..

बीजेपी को इस आशीर्वाद की ज़रूरत भी है क्योंकि राज्य में कांग्रेस से कड़ी चुनौती मिल रही है और मुख्यमंत्री हरीश रावत चुनाव से पहले लोकलुभावन घोषनाएं कर बीजेपी को पटकनी देने में लगे हैं. शायद इसीलिए अमित शाह ने शाम को हरिद्वार में पार्टी की पहली शंखनाद रैली में सीधा हमला हरीश रावत सरकार के भ्रष्टाचार और गांधी परिवार पर बोला.

भारत माता की जय का नारा लगाते हुए उन्होंने जनता से अपील की कि आवाज दिल्ली में बैठे कांग्रेस के साहबजादे के कानों तक पहुंचनी चाहिए. अमित शाह ने कहा की देश में इन दिनों गर्मी है, तो राहुल जी विदेश गए हैं. राहुल को अपने अंदाज में जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि भाजपा ने पहला काम तो देश को बोलने वाला...

एक बार उत्तराखंड की सत्ता पर काबिज होने का नाकाम सपना देख चुकी बीजेपी की उम्मीदें अब राज्य में होने वाले चुनाव पर टिकी हैं. लेकिन पिछले दिनों हुए पोलिटिकल ड्रामे ने पार्टी को चिंता में डाल दिया है. क्योंकि मुख्यमंत्री हरीश रावत और कांग्रेस पार्टी जनता को ये बताने में लगी है की किस तरह मोदी सरकार ने राज्य में सरकार को गिराने का षड्यंत्र रचा.

कांग्रेस से मिल रही इस चुनौती को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी भांप चुके हैं. शायद इसीलिए उत्तराखंड में पार्टी का चुनावी बिगुल फूंकने से पहले उन्होंने बाबा केदारनाथ और बद्रीनाथ के दर्शन किये और राज्य के कई नेताओ के साथ लंबी पूजा अर्चना की.

पार्टी अध्यक्ष के काफिले में शामिल एक नेता का कहना था की 'इस वक़्त चार धाम यात्रा चल रही है और ऐसे में केदार बाबा और बद्री विशाल के आशीर्वाद से शुरू होने वाला काम सफल ही होता है.'

 उत्तराखंड में बीजेपी को क्यों है आशीर्वाद की जरूरत..

बीजेपी को इस आशीर्वाद की ज़रूरत भी है क्योंकि राज्य में कांग्रेस से कड़ी चुनौती मिल रही है और मुख्यमंत्री हरीश रावत चुनाव से पहले लोकलुभावन घोषनाएं कर बीजेपी को पटकनी देने में लगे हैं. शायद इसीलिए अमित शाह ने शाम को हरिद्वार में पार्टी की पहली शंखनाद रैली में सीधा हमला हरीश रावत सरकार के भ्रष्टाचार और गांधी परिवार पर बोला.

भारत माता की जय का नारा लगाते हुए उन्होंने जनता से अपील की कि आवाज दिल्ली में बैठे कांग्रेस के साहबजादे के कानों तक पहुंचनी चाहिए. अमित शाह ने कहा की देश में इन दिनों गर्मी है, तो राहुल जी विदेश गए हैं. राहुल को अपने अंदाज में जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि भाजपा ने पहला काम तो देश को बोलने वाला प्रधानमंत्री देने का किया. कांग्रेस ने दस साल तक ऐसा प्रधानमंत्री दिया, जिनकी आवाज आपने (राहुल) या आपकी माताजी के अलावा किसी ने नहीं सुनीं. दो साल में मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार का एक भी आरोप नहीं लगा.'

शाह ने राज्य की जनता से कहा की अगर उत्तराखण्ड में बीजेपी की सरकार बनी तो राज्य को नंबर वन बना देंगे और केंद्र की योजनाएं जल्दी लागू होंगी.

रविवार को अमित शाह हल्द्वानी में पार्टी राज्य कार्यकारिणी की बैठक को संबोधित करेंगे और राज्य के तमाम नेताओ को ज़िम्मेदारी देकर काम पर लगाएंगे. कांग्रेस के निकले और बीजेपी में शामिल हुए विजय बहुगुणा और हरक सिंह रावत पहली बार पार्टी की बैठक में हिस्सा लेंगे.

मुमकिन है की अमित शाह इस बैठक में न सिर्फ पार्टी की भावी रणनीति का खुलासा करें बल्कि नेताओ को गुटबाज़ी से हटकर काम करने की सीख भी दे सकते हैं. क्योंकि राष्ट्रपति शासन के फैसले से हुई किरकिरी का घाव भरने के लिए पार्टी उत्तराखंड में अभी से चुनावी बिसात बिछाने की कोशिश में जुट गई है. इसके लिए नेताओं को अनुशासन के दायरे में रखना उसकी पहली चुनौती होगी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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