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उपराष्ट्रपति चुनाव: विपक्षी एकता का खेला ख़त्म...

    • प्रशांत तिवारी
    • Updated: 26 जुलाई, 2022 09:09 PM
  • 26 जुलाई, 2022 09:07 PM
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उपराष्ट्रपति चुनाव से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने को अलग कर लिया है. ममता के इस फैसले पर टीएमसी का यही मानना है कि ममता बनर्जी को विपक्ष को नेता माना जाए. उनकी राय के बिना कोई फैसला नहीं किया जाए. विपक्ष की धुरी कांग्रेस के आस पास होने के बजाय तृणमूल कांग्रेस के इर्द-गिर्द होनी चाहिए.

उपराष्ट्रपति चुनाव से पहले ही विपक्षी एकता को तगड़ा झटका लगता दिखा, जब तृणमूल कांग्रेस ने उपराष्ट्रपति चुनाव में हिस्सा नहीं लेने का फैसला किया. टीएमसी न ही एनडीए और ना ही विपक्ष के किसी उम्मीदवार को सपोर्ट करेगी. तृणमूल कांग्रेस ने मतदान में हिस्सा नहीं लेने का निर्णय लिया है.

उपराष्ट्रपति चुनाव से दूर रहेगी तृणमूल कांग्रेस

चुनाव में वोटिंग ना करने के पीछे वजह बताते हुए टीएमसी के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी ने कहा कि बातचीत व सलाह-मशविरा किए बिना जिस तरह से उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवार का चयन किया गया है, उसे देखते हुए पार्टी ने उसका समर्थन नहीं करने का फैसला किया है.

उपराष्ट्रपति चुनाव के मद्देनजर ममता बनर्जी ने पूरे विपक्ष को मुसीबत में डाल दिया है

हालांकि एनडीए की ओर से उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ के समर्थन का सिरे से ख़ारिज करते हुए बनर्जी ने धनखड़ के बंगाल के राज्यपाल रहते एकतरफा काम करने का हवाल दिया. एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने विपक्ष के उम्मीदवार कांग्रेस नेता मार्गरेट अल्वा के नाम की घोषणा करते समय कहा था कि आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस भले ही बैठक में नहीं आयी हों, मगर दोनों पार्टियां अल्वा का समर्थन करेंगी.

राष्ट्रपति चुनाव र‍िजल्‍ट से ममता को डर...

गौरतलब है कि राष्ट्रपति चुनाव के दौरान टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने ही यशवंत सिन्हा के नाम का प्रस्ताव रखा था. इसके बाद कांग्रेस सहित ज्‍यादातर व‍िपक्षी दलों ने ममता बनर्जी का समर्थन क‍िया था. लेकिन राष्ट्रपति चुनाव चुनाव परिणाम में विपक्षी खेमे में दरार साफ़ तौर पर देखने को मिला है, शायद यही वजह है कि उपराष्‍ट्रपत‍ि चुनाव से ममता बनर्जी ने अलग रहने का फैसला किया...

उपराष्ट्रपति चुनाव से पहले ही विपक्षी एकता को तगड़ा झटका लगता दिखा, जब तृणमूल कांग्रेस ने उपराष्ट्रपति चुनाव में हिस्सा नहीं लेने का फैसला किया. टीएमसी न ही एनडीए और ना ही विपक्ष के किसी उम्मीदवार को सपोर्ट करेगी. तृणमूल कांग्रेस ने मतदान में हिस्सा नहीं लेने का निर्णय लिया है.

उपराष्ट्रपति चुनाव से दूर रहेगी तृणमूल कांग्रेस

चुनाव में वोटिंग ना करने के पीछे वजह बताते हुए टीएमसी के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी ने कहा कि बातचीत व सलाह-मशविरा किए बिना जिस तरह से उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवार का चयन किया गया है, उसे देखते हुए पार्टी ने उसका समर्थन नहीं करने का फैसला किया है.

उपराष्ट्रपति चुनाव के मद्देनजर ममता बनर्जी ने पूरे विपक्ष को मुसीबत में डाल दिया है

हालांकि एनडीए की ओर से उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ के समर्थन का सिरे से ख़ारिज करते हुए बनर्जी ने धनखड़ के बंगाल के राज्यपाल रहते एकतरफा काम करने का हवाल दिया. एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने विपक्ष के उम्मीदवार कांग्रेस नेता मार्गरेट अल्वा के नाम की घोषणा करते समय कहा था कि आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस भले ही बैठक में नहीं आयी हों, मगर दोनों पार्टियां अल्वा का समर्थन करेंगी.

राष्ट्रपति चुनाव र‍िजल्‍ट से ममता को डर...

गौरतलब है कि राष्ट्रपति चुनाव के दौरान टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने ही यशवंत सिन्हा के नाम का प्रस्ताव रखा था. इसके बाद कांग्रेस सहित ज्‍यादातर व‍िपक्षी दलों ने ममता बनर्जी का समर्थन क‍िया था. लेकिन राष्ट्रपति चुनाव चुनाव परिणाम में विपक्षी खेमे में दरार साफ़ तौर पर देखने को मिला है, शायद यही वजह है कि उपराष्‍ट्रपत‍ि चुनाव से ममता बनर्जी ने अलग रहने का फैसला किया है.

राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी खेमे के लगभग आधा दर्जन दलों ने द्रौपदी मुर्मू का समर्थन किया था, इसके अलावा करीब सवा सौ से ज्यादा विधायकों और लगभग डेढ़ दर्जन सांसदों ने द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में क्रॉस-वोटिंग कर यह साफ़ कर दिया कि विपक्षी खेमा एकजुट रहने में नाकाम रही है.  

हांलाकि यह कोई पहला मौका नहीं है जब विपक्षी दल एकजुट रहने में नाकाम रही है बल्कि इसके पहले भी कई मौके ऐसे आये जब इनमें आपसी कलह देखने को मिला है. साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भी विपक्ष को एकजुट करने की कोशिशें हुई थीं.

चुनाव से पहले कई विपक्षी दलों के नेताओं ने कोलकाता में एकजुट हो मंच साझा किया था, हालांकि चुनाव के पहले ही विपक्षी पार्टियों के बीच सब कुछ ठीक ठाक नहीं रह सका और नतीजन समय रहते विपक्षी दलों के बीच औपचारिक गठबंधन की घोषणा नहीं हो सकी.

विपक्षी एकजुटता नहीं होने के पीछे कारण...

दरअसल, इसमें सबके अपने अपने हित छुपे हैं. टीएमसी का मानना है कि ममता बनर्जी को विपक्ष को नेता माना जाए. उनकी राय के बिना कोई फैसला नहीं किया जाए. विपक्ष की धुरी कांग्रेस के आस पास होने के बजाय तृणमूल कांग्रेस के इर्द-गिर्द होनी चाहिए. विपक्ष में कई दल ऐसे हैं, जो कांग्रेस के साथ होने के बजाय उससे अलग रहना ज्‍यादा पसंद करते हैं क्योंकि कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों का मुकाबला कांग्रेस से है और वो दल चाहते नहीं चाहते कि कांग्रेस विपक्षी एकता का चेहरा बने.

विपक्ष को राष्ट्रीय स्तर पर एक होने के लिए प्रदेश स्तर पर मिल कर लड़ना होगा. अगर ऐसा करने में विपक्षी दल सफल होते हैं, तो आने वाले 2024 लोकसभा चुनाव में संयुक्त विपक्ष की कल्पना की जा सकती है, लेकिन यह राह आसान नहीं लगती.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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