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प्रियंका लड़की हैं, मुख्यमंत्री बनने की लड़ाई लड़ सकती हैं!

    • नवेद शिकोह
    • Updated: 03 जनवरी, 2022 09:44 PM
  • 03 जनवरी, 2022 09:44 PM
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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में बस कुछ समय शेष है. ऐसे में अच्छा यही होगा कि वो खुद भी हिम्मत दिखाएं और निडरता से यूपी के मुख्यमंत्री पद की दावेदारी के लिए अपना नाम पेश कर दें. ज्यादा से ज्यादा वो हार जाएंगी लेकिन इसका फायदा आने वाले वक़्त में कांग्रेस पार्टी को ही मिलेगा.

कांग्रेस की महासचिव और यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा नारी शक्ति को आगे बढ़ाने की बात कर रही हैं, लड़कियों में हिम्मत बांध रहीं हैं, उनकी हौसला-अफजाई कर रही हैं. अच्छा होगा कि वो खुद भी हिम्मत दिखाएं और निडरता से यूपी के मुख्यमंत्री पद की दावेदारी के लिए अपना नाम पेश कर दें. पश्चिम बंगाल और दिल्ली में हार की संभावना के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अंधाधुंध रैलियों को याद करें. प्रियंका ये न सोचें कि यूपी में हार गए तो मुख्यमंत्री की दावेदारी की वजह से उनका नाम खराब होगा. प्रियंका खुद कह रही हैं कि हार भी जीत का रास्ता तय करती हैं, अहम चीज है निडरता से लड़ना. हिम्मत और हार ही हर जीत का फलसफा तय करती है. प्रियंका की यात्राओं और हिरासत के संघर्षों से लेकर लड़कियों की मैराथन के आकर्षण वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते देख लग रहा है कि यूपी कांग्रेस का इवेंट मैनेजमेंट अपना असर दिखा रहा है.

प्रियंका इवेंट के मामले में भाजपा की सफलता के मूल मंत्र पर अमल करती दिख रही हैं. तो फिर भाजपा के उस हुनर को भी अपनाए जिसके तहत चुनावी लड़ाई में भाजपा के शीर्ष नेता अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगाने में ये नहीं सोंचते कि हार गए तो उनका नाम ख़राब होगा या उनकी ब्रांड वैल्यू कम होगी.

यूपी के चुनावी रण में प्रियंका के आने ने महिलाओं को हिम्मत जरूर दी है

दिल्ली से लेकर पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के चुनावों में भाजपा के जीतने अथवा सरकार बनाने की संभावना बेहद कम थी लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह सहित भाजपा के अन्य शीर्ष नेताओं ने यहां अपनी सभाओं-रैलियों की झड़ी लगा दी थी. ये नहीं सोचा कि यहां चुनाव हार गए तो बड़े नाम की साख खराब होगी.

राजनीति में ये परंपरा रही है कि बड़ा नेता अथवा पार्टी अपनी कमजोर...

कांग्रेस की महासचिव और यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा नारी शक्ति को आगे बढ़ाने की बात कर रही हैं, लड़कियों में हिम्मत बांध रहीं हैं, उनकी हौसला-अफजाई कर रही हैं. अच्छा होगा कि वो खुद भी हिम्मत दिखाएं और निडरता से यूपी के मुख्यमंत्री पद की दावेदारी के लिए अपना नाम पेश कर दें. पश्चिम बंगाल और दिल्ली में हार की संभावना के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अंधाधुंध रैलियों को याद करें. प्रियंका ये न सोचें कि यूपी में हार गए तो मुख्यमंत्री की दावेदारी की वजह से उनका नाम खराब होगा. प्रियंका खुद कह रही हैं कि हार भी जीत का रास्ता तय करती हैं, अहम चीज है निडरता से लड़ना. हिम्मत और हार ही हर जीत का फलसफा तय करती है. प्रियंका की यात्राओं और हिरासत के संघर्षों से लेकर लड़कियों की मैराथन के आकर्षण वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते देख लग रहा है कि यूपी कांग्रेस का इवेंट मैनेजमेंट अपना असर दिखा रहा है.

प्रियंका इवेंट के मामले में भाजपा की सफलता के मूल मंत्र पर अमल करती दिख रही हैं. तो फिर भाजपा के उस हुनर को भी अपनाए जिसके तहत चुनावी लड़ाई में भाजपा के शीर्ष नेता अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगाने में ये नहीं सोंचते कि हार गए तो उनका नाम ख़राब होगा या उनकी ब्रांड वैल्यू कम होगी.

यूपी के चुनावी रण में प्रियंका के आने ने महिलाओं को हिम्मत जरूर दी है

दिल्ली से लेकर पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के चुनावों में भाजपा के जीतने अथवा सरकार बनाने की संभावना बेहद कम थी लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह सहित भाजपा के अन्य शीर्ष नेताओं ने यहां अपनी सभाओं-रैलियों की झड़ी लगा दी थी. ये नहीं सोचा कि यहां चुनाव हार गए तो बड़े नाम की साख खराब होगी.

राजनीति में ये परंपरा रही है कि बड़ा नेता अथवा पार्टी अपनी कमजोर ज़मीन वाले चुनावों में खुद के बजाय छोटे प्यादों को सामने लाती है ताकि चुनाव हारे तो हार का ठीकरा उसके सिर न फूटे. ऐसी परंपरा को भाजपा ने तोड़ा है. यहां तक कि छोटे-छोटे चुनावों (उप चुनाव/निकाय चुनाव) में भी भाजपा के बड़े नेता सभाएं/रैलियां करते हैं.

कांग्रेस को भाजपा से ऐसी जोखिम भरी हिम्मत के ज़ज्बे का सबक सीखना होगा. यूपी में प्रियंका का नाम मुख्यमंत्री के तौर पर पेश करके कांग्रेस हिम्मत बढ़ा क़दम बढ़ा कर अपना जनाधार बढ़ा सकती है और ऐसे में संगठन में भी मजबूती आ सकती है. देश के जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की तारीख चंद दिनों में आने वाली है उनमें यूपी सबसे अहम हैं.

कांग्रेस यूपी में बेहद कमज़ोर है पर यहां पार्टी सबसे ज्यादा मेहनत कर रही हैं. जिसके कई कारण हैं. 2024 में लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस यूपी में अपना संगठन और जनाधार बेहतर करके वोट प्रतिशत में इजाफा करना चाहती है. विशाल यूपी लोकसभा में हार-जीत के लिए निर्णायक होता है‌. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी की लोकसभा सीट है और प्रियंका गांधी ने बतौर यूपी प्रभारी इस सूबे में कांग्रेस की खोई हुई ज़मीन को हासिल करने का ज़िम्मा लिया है.

इसलिए पार्टी ने प्रियंका गांधी और सम्पूर्ण गांधी परिवार की प्रतिष्ठा बचाने के लिए जान फूंक दी है. यहां पार्टी ने धर्म-जाति से अलग हट कर महिलाओं और युवतियों को लुभाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम जारी रखें हैं. राजनीति के जानकारों का कहना है कि बिलकुल अलग हट कर महिलाओं का मुद्दा कांग्रेस के लिए कुछ फायदेमंद हो सकता है.

किंतु यदि प्रियंका गांधी को यूपी के मुख्यमंत्री का दावेदार पेश कर दिया जाए तो पार्टी को बड़ा फायदा मिल सकता है. ब्राह्मण समाज भी पार्टी की तरफ आकर्षित हो सकता है. लेकिन कांग्रेस ऐसा करने से झिझक रही है, क्योंकि पार्टी को पता है कि बहुत बेहतर सीटें पाने के बाद भी सरकार बनाने की स्थिति तक पहुंचना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.

इसलिए पार्टी सिर्फ प्रियंका के चेहरे और आकर्षक इवेंट वाले प्रचार के जरिए लोकसभा चुनाव तक अपना जनाधार और वोट प्रतिशत बढ़ाने की जमीन तैयार कर रही है. आकर्षक प्रचार में माहिर भाजपा के नक्शे-कदम पर चलकर कांग्रेस जनता तक पंहुचने, दिलों में जगह बनाने और चर्चाओं में आने के लिए प्रचार तंत्र और इवेंट मैनेजमेंट पर खूब ध्यान दे रही है.

इसके अलावा धर्म और जाति की राजनीति की नूराकुश्ती से अलग हट कर यूपी कांग्रेस महिला वर्ग को आगे बढ़ाने के एजेंडे का प्रयोग कर रही है. 'लड़की हूं लड़ सकती हूं, नारे के साथ महिला वर्ग को आगे लाने वाले कांग्रेस खुद में भी ये हौसला और भरोसा पैदा करें कि प्रियंका गांधी वाड्रा भी मुख्यमंत्री पद की दावेदारी के लिए अच्छी लड़ाई लड़ सकती हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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