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यूपी चुनाव में योगी आदित्यनाथ की शुरुआती मुश्किल - और अमित शाह की अग्नि परीक्षा

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 10 फरवरी, 2022 01:31 PM
  • 10 फरवरी, 2022 01:31 PM
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जाटों की नाराजगी के चलते योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के लिए यूपी चुनाव (UP Election 2022) की शुरुआत ही काफी मुश्किलों भरी है - और देखा जाये तो ये अमित शाह (Amit Shah) की एक और अग्नि परीक्षा भी है.

ये यूपी विधानसभा चुनाव (P Election 2022) के पहले चरण के वोटर ही हैं जो बीजेपी नेतृत्व को सबसे ज्यादा डरा रहे हैं - और यही वजह है कि पश्चिम यूपी का सबसे मुश्किल टास्क प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद बीजेपी के सबसे ताकतवर नेता अमित शाह (Amit Shah) ने अपने हाथ में ले रखा था.

पहले दौर की वोटिंग की पूर्व संध्या पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के न्यूज एजेंसी एएनआई को दिये गये इंटरव्यू पर भी सवाल खड़े किये जा रहे हैं - दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी का ये इंटरव्यू भी किसी चुनावी रैली जैसा ही लगता है.

2014 का आम चुनाव अमित शाह के लिए सबसे मुश्किल चुनाव था क्योंकि जेल से रिहा होने के बाद जब कोर्ट ने उनके गुजरात जाने पर भी पाबंदी लगा दी तो यूपी की जिम्मेदारी दी गयी - और बड़ी ही शिद्दत से अमित शाह अपने काम में लग गये और बीजेपी को सबसे ज्यादा सीटें यूपी से दिला डाली.

2017 और 2019 के लिए भी अमित शाह ने ही यूपी बीजेपी की रणनीति तैयार की थी, लेकिन किसान आंदोलन की वजह से पश्चिम यूपी का मामला कुछ ज्यादा ही मुश्किल हो गया है - और जिस तरीके से अमित शाह आरएलडी नेता जयंत चौधरी पर डोरे डाल रहे थे, पूरा मामला आसानी से समझ में आ जाता है.

मामला अगर किसानों की नाराजगी का नहीं होता तो भी जाटों के गढ़ में जिन्ना बनाम गन्ना की लड़ाई में भी चुनाव योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के लिए उतना मुश्किल नहीं होता, लेकिन कृषि कानूनों के खिलाफ करीब सवा साल तक चले किसान आंदोलन का असर अब भी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है, मोदी सरकार के तीनों कृषि कानूनों के वापस ले लेने के बाद भी.

बीजेपी के लिए सबसे बड़ा चैलेंज

यूपी चुनाव के पहले चरण में पश्चिम यूपी के 11 जिलों की 58 सीटों के लिए 10 फरवरी को मतदान होने जा रहे हैं -...

ये यूपी विधानसभा चुनाव (P Election 2022) के पहले चरण के वोटर ही हैं जो बीजेपी नेतृत्व को सबसे ज्यादा डरा रहे हैं - और यही वजह है कि पश्चिम यूपी का सबसे मुश्किल टास्क प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद बीजेपी के सबसे ताकतवर नेता अमित शाह (Amit Shah) ने अपने हाथ में ले रखा था.

पहले दौर की वोटिंग की पूर्व संध्या पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के न्यूज एजेंसी एएनआई को दिये गये इंटरव्यू पर भी सवाल खड़े किये जा रहे हैं - दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी का ये इंटरव्यू भी किसी चुनावी रैली जैसा ही लगता है.

2014 का आम चुनाव अमित शाह के लिए सबसे मुश्किल चुनाव था क्योंकि जेल से रिहा होने के बाद जब कोर्ट ने उनके गुजरात जाने पर भी पाबंदी लगा दी तो यूपी की जिम्मेदारी दी गयी - और बड़ी ही शिद्दत से अमित शाह अपने काम में लग गये और बीजेपी को सबसे ज्यादा सीटें यूपी से दिला डाली.

2017 और 2019 के लिए भी अमित शाह ने ही यूपी बीजेपी की रणनीति तैयार की थी, लेकिन किसान आंदोलन की वजह से पश्चिम यूपी का मामला कुछ ज्यादा ही मुश्किल हो गया है - और जिस तरीके से अमित शाह आरएलडी नेता जयंत चौधरी पर डोरे डाल रहे थे, पूरा मामला आसानी से समझ में आ जाता है.

मामला अगर किसानों की नाराजगी का नहीं होता तो भी जाटों के गढ़ में जिन्ना बनाम गन्ना की लड़ाई में भी चुनाव योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के लिए उतना मुश्किल नहीं होता, लेकिन कृषि कानूनों के खिलाफ करीब सवा साल तक चले किसान आंदोलन का असर अब भी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है, मोदी सरकार के तीनों कृषि कानूनों के वापस ले लेने के बाद भी.

बीजेपी के लिए सबसे बड़ा चैलेंज

यूपी चुनाव के पहले चरण में पश्चिम यूपी के 11 जिलों की 58 सीटों के लिए 10 फरवरी को मतदान होने जा रहे हैं - और ठीक एक महीने बाद सभी सात फेज के चुनाव खत्म होंगे और 10 मार्च को वोटों की गिनती के साथ विधानसभा चुनाव के नतीजे भी आ जाएंगे.

योगी बनाम अखिलेश के मुकाबले में अमित शाह के लिए मायावती ही मददगार हैं, जबकि कुछ जगह मुकाबले में कांग्रेस भी हो सकती है.

यूपी पुलिस के एडीजी लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार ने पहले चरण की 58 में से 12 विधानसभाओं को संवेदनशील कैटेगरी का बताया है, ये हैं - खैरागढ़, फतेहाबाद ,आगरा (दक्षिण), बाह, छाता ,मथुरा, सरधना, मेरठ शहर, छपरौली, बड़ौत, बागपत और कैराना.

महत्वपूर्ण सीटें जिन पर नजर रहेगी: पश्चिम यूपी में ऐसी कई महत्वपूर्ण सीटें हैं जिन पर तगड़ा मुकाबला है. बेशक मुख्यमंत्री मुकाबला बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच ही है, लेकिन कुछ सीटें ऐसी भी हैं जहां बीएसपी और कांग्रेस की भी खास भूमिका निश्चित तौर पर होने वाली है.

पहले दौर में जिन महत्वपूर्ण उम्मीदवारों की किस्मत दांव पर लगी है, उनमें योगी आदित्यनाथ सरकार के ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा भी हैं. श्रीकांत शर्मा मथुरा से बीजेपी उम्मीदवार हैं और गौर करने वाली बात ये है कि उनको चुनौती कांग्रेस उम्मीदवार प्रदीप माथुर से मिलती समझी जा रही है.

मथुरा जिले की ही मांट सीट पर आठ बार विधायक रहे श्याम सुंदर शर्मा बड़ी चुनौती बन कर उभरे हैं - श्याम सुंदर ने मांट सीट पर बीजेपी और सपा गठबंधन के बीच त्रिकोणीय मुकाबला बना दिया है.

आगरा में भी बीएसपी की स्थिति मजबूत समझी जा रही है - और बेबी रानी मौर्य के चुनाव मैदान में होने की वजह से आगरा ग्रामीण सीट भी काफी महत्वपूर्ण हो गयी है. बेबी रानी मौर्य उत्तराखंड के राज्यपाल का दो साल का कार्यकाल छोड़ कर चुनाव लड़ रही हैं.

असल में बेबी रानी मौर्य भी मायावती की जाटव कम्युनिटी से आती हैं, लिहाजा बीजेपी ने उनको बीएसपी नेता की काट के तौर पर उनके मजबूत गढ़ आगरा में वापस मौर्चे पर तैनात कर दिया है. आगरा ग्रामीण के अलावा भी जिले की एत्मादपुर, आगरा कैंट, आगरा दक्षिण, फतेहपुर सीकरी, खैरागढ़ और फतेहाबाद बाह में भी बीजेपी और सपा-आरएलडी गठबंधन में साफ मुकाबला माना जा रहा है.

ऐसे ही एक महत्वपूर्ण सीट गौतमबुद्ध नगर की नोएडा है, जहां से चुनाव मैदान में मौजूदा विधायक और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह फिर से मैदान में बने हुए हैं. पंकज सिंह का सीधा मुकाबला समाजवादी गठबंधन उम्मीदवार सुनील चौधरी के साथ माना जा रहा है.

नोएडा से कांग्रेस ने चर्चित चेहरा पंखुड़ी पाठक को उम्मीदवार बनाया है. पंखुड़ी पाठक पहले समाजवादी पार्टी में ही हुआ करती थीं - और उनको अखिलेश यादव के साथ साथ डिंपल यादव का भी काफी करीबी समझा जाता था.

अमित शाह के लिए बड़ा चैलेंज: देखा जाये तो यूपी में बीजेपी की सत्ता में वापसी के हिसाब से शुरुआती दौर के मतदान बीजेपी के लिए, खास कर अमित शाह के लिए बहुत बड़ी चुनौती हैं.

जब यूपी को छह हिस्सों में बांट कर जिम्मेदारी उठाने का फैसला हुआ तो पश्चिम यूपी का सबसे मुश्किल टास्क अमित शाह ने अपने हाथ में लिया. बाकी दो इलाकों की जिम्मेदारी बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और राजनाथ सिंह के पास है.

पश्चिम यूपी में बीजेपी की मुश्किल किसानों की नाराजगी ही बनी हुई है. किसान नेता पहले से तो यही कहते रहे कि वो चुनावी राजनीति से दूरी बनाये रखेंगे, लेकिन हालिया बयानों और उनकी गतिविधियों से इरादे साफ हो गये हैं. राकेश टिकैत ने ये तो नहीं कहा है कि यूपी चुनाव में वो किस राजनीतिक दल का समर्थन करेंगे, लेकिन ये जरूर कहा है कि वो बीजेपी का विरोध करेंगे - और बीजेपी के विरोध का मतलब ये तो नहीं कि वो खुद और उनके प्रभाव वाले सभी किसान नोटा का बटन ही दबाएंगे.

बीजेपी के खिलाफ राकेश टिकैत का ताजा स्टैंड तो यही बता रहा है कि वो सपा-आरएलडी गठबंधन या कांग्रेस के साथ जाएंगे - और ये भी साफ हो जाता है कि राकेश टिकैत का चुनावी राजनीति से दूर होने की बातें भी उनकी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा रही होंगी, भले उनकी महत्वाकांक्षाओं के मुताबिक अब तक कोई रास्ता नहीं बन पाया हो.

जाटों की नाराजगी दूर करने के लिए अमित शाह ने दिल्ली में बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा के घर पर एक बड़ी मीटिंग भी बुलायी थी और जयंत चौधरी को बीजेपी से हाथ मिला लेने का ऑफर भी दिया गया - हालांकि, आरएलडी नेता जयंत चौधरी ने बीजेपी का ऑफर तत्काल प्रभाव से अस्वीकार भी कर दिया था.

अमित शाह की ही तरह अखिलेश यादव भी दलितों की नाराजगी न मोल लेने को काफी तत्पर दिखे - और अमित शाह की तरह ही अखिलेश यादव ने भी मायावती से अपील की थी कि समाजवादियों के साथ अंबेडकरवादियों को आ जाना चाहिये.

देखा जाये तो पश्चिम यूपी में अमित शाह के लिए मायावती ही उम्मीद की सबसे बड़ी किरण बनी हुई हैं - क्योंकि माना जा रहा है कि बीएसपी ने जगह जगह अपने ऐसे ही कैंडीडेट उतारे हैं जो गठबंधन के उम्मीदवारों के वोट काट कर बीजेपी के लिए सहूलियत भरा रास्ता बना सकें.

वोटिंग से पहले मोदी का इंटरव्यू

यूपी विधानसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग की पूर्व संध्या पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक इंटरव्यू आया है - न्यूज एजेंसी एएनआई के साथ हुए इस इंटरव्यू को सभी न्यूज चैनलों ने एक साथ प्रसारित किया है.

वैसे तो जब पहले फेज के लिए लोग वोट डाल रहे होंगे तो प्रधानमंत्री सहारनपुर में चुनावी रैली कर रहे होंगे, लेकिन इंटरव्यू को लेकर सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने कड़ा ऐतराज जताया है, लेकिन सोशल मीडिया पर ही बचाव में बीजेपी समर्थकों ने भी मोर्चा संभाल लिया है.

सहारनपुर के रिमाउंट डिपो ग्राउंड में प्रधानमंत्री मोदी की रैली होने जा रही है. देखा जाये तो लाइव टीवी प्रसारण, वेबसाइट और सोशल मीडिया के माध्यम से प्रधानमंत्री का इंटरव्यू वोटिंग के आस पास भी लोग देख और सुन सकेंगे - लेकिन अंग्रेजों के जमाने के नियमों में बंधा चुनाव आयोग इसे आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन की कैटेगरी में नहीं मानता.

2017 के यूपी चुनाव में ऐसे ही कुछ इलाकों में वोटिंग होती रही और किसी और जगह अखिलेश यादव और राहुल गांधी रोड शो या रैली करते रहे. ऐसे ही 2018 के कैराना उपचुनाव के ठीक पहले प्रधानमंत्री मोदी की बागपत में रैली हुई थी, लेकिन चुनाव आयोग ने जमीनी दूरी को दायरे से बाहर बताते हुए आचार संहिता का उल्लंघन नहीं माना था.

वैसे ही मोदी के इंटरव्यू को लेकर बीजेपी समर्थकों की दलील भी वाजिब लगती है. बीजेपी समर्थकों का कहना है कि मोदी के इंटरव्यू से पहले अखिलेश यादव का भी इंटरव्यू टीवी पर चला है - और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने कांग्रेस मैनिफेस्टा का तीसरा हिस्सा उन्नति विधान जारी किया है - जो लोगों ने अलग अलग तरीके से लाइव देखा है.

बाकी बातें अपनी जगह और प्रधानमंत्री मोदी के चुनाव प्रचार का अपना तरीका होता है. इंटरव्यू के माध्यम से प्रधानमंत्री मोदी ने यूपी में परिवारवाद की राजनीति पर सवाल खड़े करते हुए अखिलेश यादव के समाजवादी होने के दावे पर भी सवाल खड़ा किया है - और नीतीश कुमार तक की मिसाल दे डाली है.

मोदी का कहना है, 'मैं समाज के लिए हूं... परन्तु मैं जो नकली समाजवाद की चर्चा करता हूं - ये पूरी तरह परिवारवाद है... लोहिया जी का परिवार कहीं नजर आता है क्या? जॉर्ज फर्नांडिस का परिवार कहीं नजर आता है क्या? नीतीश बाबू का परिवार कहीं नजर आता है क्या?'

और फिर मुलायम परिवार को कठघरे में खड़ा करते हुए प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं, 'एक बार किसी ने मुझे चिट्ठी भेजी थी कि यूपी में समाजवादी पार्टी के परिवार से 45 लोग ऐसे थे जो किसी न किसी पद पर थे... किसी ने मुझे कहा कि उनके पूरे परिवार में 25 साल से अधिक आयु के हर व्यक्ति को चुनाव लड़ने का मौका दिया गया है.'

जाहिर है चुनाव आयोग तो ये सब आचार संहिता का उल्लंघन मानने से रहा, लेकिन एक बात तो तय है केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मुश्किलें जरूर कुछ कम हो सकती हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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