• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

चाचा शिवपाल का 'दर्द' कहीं अखिलेश को 'टीपू' न बना दे!

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 09 फरवरी, 2022 01:22 PM
  • 09 फरवरी, 2022 01:20 PM
offline
यूपी चुनाव 2022 (UP Election 2022) के मद्देनजर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने चाचा शिवपाल सिंह यादव (Shivpal Singh Yadav) से पुराने गिले-शिकवे मिटा लिए हैं. लेकिन, शिवपाल यादव का 'दर्द' छलककर सामने आना समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के लिए खतरे की घंटी हो सकता है.

यूपी चुनाव 2022 में भाजपा को चित्त करने के लिए समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने हरसंभव दांव खेल दिया है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आरएलडी के जाट नेता जयंत चौधरी से गठबंधन से लेकर पूर्वांचल में छोटे दलों को बड़ी तवज्जो देकर समाजवादी पार्टी ने सीएम योगी आदित्यनाथ को चुनौती देने के समीकरण भिड़ाए हैं. इसी कड़ी में अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव के साथ रिश्तों में जारी कड़वाहट को भुलाकर उनकी पार्टी से भी गठबंधन का ऐलान किया था. हालांकि, यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के लिए मतदान शुरू होने से ठीक पहले शिवपाल सिंह यादव का 'दर्द' छलक कर उनकी जुबान पर आ ही गया. सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में शिवपाल सिंह का अखिलेश यादव के साथ गठबंधन करने पर सिर्फ एक विधानसभा सीट मिलने का दर्द दिखाई पड़ रहा है. बताया जा रहा है कि ये बैठक शिवपाल के करीबियों की थी. फिर भी इस वीडियो का लीक हो जाना एक अलग ही इशारा कर रहा है. इस वीडियो के वायरल होने के बाद इस बात की संभावना बढ़ गई है कि चाचा शिवपाल का 'दर्द' कहीं अखिलेश को 'टीपू' न बना दे. 

समर्थकों को 100 सीट का भरोसा, मिली केवल एक

दरअसल, सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में शिवपाल सिंह यादव कहते नजर आ रहे हैं कि 'मैंने अपनी पार्टी कुर्बान कर दी. प्रसपा अपने दम पर उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने को तैयार थी. 100 सीटों पर प्रत्याशी घोषित हो गए थे. लेकिन, भाजपा को हराने के लिए हमने गठबंधन कर लिया. हमें भरोसा दिया गया था कि आपके समर्थक उम्मीदवारों को भी टिकट देंगे, लेकिन किसी को भी टिकट नहीं दिया गया. अखिलेश से 65 सीटें मांगी, तो कहा गया कि ज्यादा हैं. फिर 45 नामों की लिस्ट दी, तब भी कहा गया कि ज्यादा हैं. फिर हमने 35 प्रत्याशियों के नाम दिए. लेकिन, आपको पता ही है कि हमारे खाते में केवल 1 ही सीट आई है. कम से कम 50 सीटें तो मिलनी ही चाहिए थीं. अब सारी सीटों की कसर इसी सीट से जीत का रिकॉर्ड बनाकर पूरी करनी है. अखिलेश से ज्यादा वोटों से जिताकर ताकत दिखानी होगी.'

यूपी चुनाव 2022 में भाजपा को चित्त करने के लिए समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने हरसंभव दांव खेल दिया है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आरएलडी के जाट नेता जयंत चौधरी से गठबंधन से लेकर पूर्वांचल में छोटे दलों को बड़ी तवज्जो देकर समाजवादी पार्टी ने सीएम योगी आदित्यनाथ को चुनौती देने के समीकरण भिड़ाए हैं. इसी कड़ी में अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव के साथ रिश्तों में जारी कड़वाहट को भुलाकर उनकी पार्टी से भी गठबंधन का ऐलान किया था. हालांकि, यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के लिए मतदान शुरू होने से ठीक पहले शिवपाल सिंह यादव का 'दर्द' छलक कर उनकी जुबान पर आ ही गया. सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में शिवपाल सिंह का अखिलेश यादव के साथ गठबंधन करने पर सिर्फ एक विधानसभा सीट मिलने का दर्द दिखाई पड़ रहा है. बताया जा रहा है कि ये बैठक शिवपाल के करीबियों की थी. फिर भी इस वीडियो का लीक हो जाना एक अलग ही इशारा कर रहा है. इस वीडियो के वायरल होने के बाद इस बात की संभावना बढ़ गई है कि चाचा शिवपाल का 'दर्द' कहीं अखिलेश को 'टीपू' न बना दे. 

समर्थकों को 100 सीट का भरोसा, मिली केवल एक

दरअसल, सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में शिवपाल सिंह यादव कहते नजर आ रहे हैं कि 'मैंने अपनी पार्टी कुर्बान कर दी. प्रसपा अपने दम पर उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने को तैयार थी. 100 सीटों पर प्रत्याशी घोषित हो गए थे. लेकिन, भाजपा को हराने के लिए हमने गठबंधन कर लिया. हमें भरोसा दिया गया था कि आपके समर्थक उम्मीदवारों को भी टिकट देंगे, लेकिन किसी को भी टिकट नहीं दिया गया. अखिलेश से 65 सीटें मांगी, तो कहा गया कि ज्यादा हैं. फिर 45 नामों की लिस्ट दी, तब भी कहा गया कि ज्यादा हैं. फिर हमने 35 प्रत्याशियों के नाम दिए. लेकिन, आपको पता ही है कि हमारे खाते में केवल 1 ही सीट आई है. कम से कम 50 सीटें तो मिलनी ही चाहिए थीं. अब सारी सीटों की कसर इसी सीट से जीत का रिकॉर्ड बनाकर पूरी करनी है. अखिलेश से ज्यादा वोटों से जिताकर ताकत दिखानी होगी.'

आंकड़ों में कमजोर, लेकिन, चुनाव मैनेज करने में आगे हैं शिवपाल

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में अखिलेश यादव के लिए 'करो या मरो' वाली स्थिति बनी हुई है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो यूपी चुनाव में अखिलेश यादव का राजनीतिक भविष्य दांव पर लगा हुआ है. क्योंकि, उन्होंने खुद को भाजपा और सीएम योगी आदित्यनाथ के सामने सबसे बड़े चैलेंजर के तौर पर पेश किया है. 400 सीटें जीतने का दावा कर रहे अखिलेश ने जातीय से लेकर धार्मिक समीकरणों को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. अगर इस सत्ता विरोधी लहर में भी उनका सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला नहीं चला, तो समाजवादी पार्टी की हालत भी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की तरह ही हो जाने का खतरा है. यहां शिवपाल यादव की बात की जाए, तो समाजवादी पार्टी से अलग होने के बाद उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में केवल समाजवादी पार्टी को नुकसान ही पहुंचाया था. राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा बहुत आम थी कि अगर चाचा-भतीजा की जोड़ी अपने गिले-शिकवे भुलाकर एक नहीं हुई, तो समाजवादी पार्टी को फिर से हार का दंश झेलना पड़ सकता है. हालांकि, यूपी चुनाव की तारीखों के ऐलान से करीब 25 दिन पहले ही गठबंधन का ऐलान हो गया.

बीते साल हुए पंचायत चुनाव में अखिलेश यादव ने भाजपा से ज्यादा समाजवादी पार्टी समर्थक पंचायत सदस्य उम्मीदवारों के जीतने का दंभ भरा था. लेकिन, जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में भाजपा के चुनावी प्रबंधन के आगे अखिलेश यादव ढेर हो गए थे. वैसे, पंचायत चुनाव में भी शिवपाल यादव ने अखिलेश यादव की अघोषित तरीके से मदद ही की थी. दरअसल, यादव कुनबे की साख बचाते हुए शिवपाल के समर्थक उम्मीदवारों ने समाजवादी पार्टी की परंपरागत इटावा सीट बचा ली थी. यहां प्रगतिशील समाजवादी पार्टी को आठ और समाजवादी पार्टी को नौ सीट मिली थीं. अगर शिवपाल यादव जरा सा भी दाएं-बाएं होते, तो अखिलेश यादव के राजनीतिक करियर पर घर की सीट भी न बचा पाने का दाग लग जाता. 2017 से पहले ऐसे कई मौके आए हैं, जब चाचा शिवपाल ने अखिलेश की डांवाडोल नैया को मझधार से निकालकर किनारे लगाया है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो चुनाव प्रबंधन के मामले में शिवपाल के सामने अखिलेश यादव अभी भी 'टीपू' ही हैं.

गिले-शिकवे भुलाकर अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल यादव से गठबंधन कर लिया है. लेकिन, उनकी मंशा स्पष्ट नही है.

समाजवादी पार्टी में गहरी हैं शिवपाल की जड़ें

शिवपाल सिंह यादव राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को खड़ा करने में जितना योगदान मुलायम सिंह यादव का है, उतना ही शिवपाल यादव का भी है. समाजवादी पार्टी में आज भी उनके शुभचिंतकों की कमी नही है. अखिलेश यादव भले ही खुद को शिवपाल यादव द्वारा समाजवादी पार्टी का नया 'नेताजी' मान लिए जाने से निश्चिंत नजर आ रहे हों. लेकिन, अखिलेश ने 'टीपू' से उत्तर प्रदेश का मुखिया बनने से पहले तक का सियासी ककहरा शिवपाल यादव से ही सीखा है. वैसे, राजनीतिक तौर पर देखा जाए, तो प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का सपा में विलय नहीं, बल्कि गठबंधन हुआ है. वहीं, अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल को समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह से ही प्रत्याशी बनाकर उनकी पार्टी को साइडलाइन करने का दांव खेला है. क्योंकि, अखिलेश यादव जिस वोट बैंक की राजनीति करते हैं, शिवपाल यादव भी उसी में अपनी हिस्सेदारी मांगते नजर आते हैं.

खैर, शिवपाल यादव को तो अखिलेश यादव ने जैसे-तैसे मना लिया है. लेकिन, जिन 100 सीटों पर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी ने प्रत्याशी घोषित किए थे. उन सीटों पर प्रसपा समर्थकों का इस वीडियो के सामने आने के बाद भड़कना स्वाभाविक ही है. बहुत हद तक संभव है कि अखिलेश यादव को अपनी सियासी ताकत का अंदाजा लगवाने के लिए शिवपाल यादव के समर्थक 2019 की तरह ही कई सीटों पर नुकसान पहुंचा दें. यूपी चुनाव 2022 में समाजवादी पार्टी और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर होने की संभावना जताई जा रही है. ऐसे में जब एक-एक वोट बहुत जरूरी नजर आता है, तो अखिलेश यादव के पास शिवपाल के इस वायरल वीडियो से निपटने का क्या तरीका होगा, ये देखना दिलचस्प होगा. एक आंकलन के अनुसार, ऐसी करीब 50 विधानसभा सीटें हैं, जहां समाजवादी पार्टी को वोटों का सीधा नुकसान हो सकता है. वैसे, भाजपा ने पहले ही अपने सियासी दांवों से यादव कुनबे की बहू अपर्णा यादव को अपना स्टार प्रचारक बनाकर अखिलेश यादव पर मानसिक बढ़त ले ही रखी है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲