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उमेश पाल हत्याकांड ने ऐसी कहानियां सामने लाई हैं, जिनके आगे सभी क्राइम-थ्रिलर फेल हैं?

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 28 फरवरी, 2023 06:58 PM
  • 28 फरवरी, 2023 06:58 PM
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मिर्जापुर, रक्तांचल और पाताल लोक जैसी वेब सीरीज को मिला भी दिया जाए तो ऐसा रोमांच पैदा नहीं होगा, जो प्रयागराज में पाल कुनबे और अतीक अहमद के बीच चली आ रही खूनी लड़ाई के कारण सामने आया है.

ओटीटी पर एंटरटेनमेंट का स्वरूप बदल गया है. किसी और चीज के मुकाबले क्राइम- थ्रिलर ऑडियंस की पहली पसंद बना है. डायरेक्टर-प्रोड्यूसर भी दर्शकों की इस पसंद को समझ चुके नतीजे के रूप में मिर्ज़ापुर, पाताललोक, रक्तांचल जैसी वेब सीरीज हमारे सामने हैं. कहानियों का जैसा चयन इन वेब सीरीज में होता है दर्शक अपनी पलकें झपका ही नहीं पाता. रोमांच कुछ इस लेवल का होता है कि दर्शक जब इन वेब सीरीज जको देखना शुरू करता है तो इसे ख़त्म करके ही उठता है.जिक्र क्राइम थ्रिलर का हुआ है तो मिर्जापुर, रक्तांचल और पाताल लोक जैसी वेब सीरीज को मिला भी दिया जाए तो ऐसा रोमांच पैदा नहीं होगा, जो प्रयागराज में पाल कुनबे और अतीक अहमद के बीच चली आ रही खूनी लड़ाई के कारण सामने आया है.

जी हां बिलकुल सही सुना आपने. अभी बीते दिनों ही प्रयागराज में राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल और उनके गनर की दिनदहाड़े हुई हत्या के बाद यूपी समेत पूरे देश में गुजरात की जेल में बंद माफिया से नेता बने अतीक अहमद का नाम जोरों पर है. 

माफिया अतीक अहमद द्वारा उमेश पाल की हत्या ने एक बार फिर राजू पाल हत्याकांड का जिन्न बाहर निकाल दिया है

जिस तरह उमेश पाल की हत्या हुई, वायरल वीडियो देखते हुए ऐसा लग रहा है कि, हमारे सामने किसी फिल्म का सीन चल रहा है. जिसमें हम जो कुछ भी देख रहे हैं वो स्क्रिप्टेड है. बताते चलें कि राजू पाल हत्याकांड की सुनवाई से जब उमेश पाल और उनके दो गनर घर लौट रहे थे , तभी रास्ते में उन पर हमला हुआ. पुलिस के अनुसार हमलावरों ने पहले बम फेंका और फिर कई राउंड फायरिंग की जिसमें उमेश पाल और उनके एक गनर की गोली लगने से मौत हो गयी. इस हत्याकांड का सूत्रधार अतीक अहमद को बताया जा रहा है.

ऐसे में सवाल ये है कि क्या ये कहानी...

ओटीटी पर एंटरटेनमेंट का स्वरूप बदल गया है. किसी और चीज के मुकाबले क्राइम- थ्रिलर ऑडियंस की पहली पसंद बना है. डायरेक्टर-प्रोड्यूसर भी दर्शकों की इस पसंद को समझ चुके नतीजे के रूप में मिर्ज़ापुर, पाताललोक, रक्तांचल जैसी वेब सीरीज हमारे सामने हैं. कहानियों का जैसा चयन इन वेब सीरीज में होता है दर्शक अपनी पलकें झपका ही नहीं पाता. रोमांच कुछ इस लेवल का होता है कि दर्शक जब इन वेब सीरीज जको देखना शुरू करता है तो इसे ख़त्म करके ही उठता है.जिक्र क्राइम थ्रिलर का हुआ है तो मिर्जापुर, रक्तांचल और पाताल लोक जैसी वेब सीरीज को मिला भी दिया जाए तो ऐसा रोमांच पैदा नहीं होगा, जो प्रयागराज में पाल कुनबे और अतीक अहमद के बीच चली आ रही खूनी लड़ाई के कारण सामने आया है.

जी हां बिलकुल सही सुना आपने. अभी बीते दिनों ही प्रयागराज में राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल और उनके गनर की दिनदहाड़े हुई हत्या के बाद यूपी समेत पूरे देश में गुजरात की जेल में बंद माफिया से नेता बने अतीक अहमद का नाम जोरों पर है. 

माफिया अतीक अहमद द्वारा उमेश पाल की हत्या ने एक बार फिर राजू पाल हत्याकांड का जिन्न बाहर निकाल दिया है

जिस तरह उमेश पाल की हत्या हुई, वायरल वीडियो देखते हुए ऐसा लग रहा है कि, हमारे सामने किसी फिल्म का सीन चल रहा है. जिसमें हम जो कुछ भी देख रहे हैं वो स्क्रिप्टेड है. बताते चलें कि राजू पाल हत्याकांड की सुनवाई से जब उमेश पाल और उनके दो गनर घर लौट रहे थे , तभी रास्ते में उन पर हमला हुआ. पुलिस के अनुसार हमलावरों ने पहले बम फेंका और फिर कई राउंड फायरिंग की जिसमें उमेश पाल और उनके एक गनर की गोली लगने से मौत हो गयी. इस हत्याकांड का सूत्रधार अतीक अहमद को बताया जा रहा है.

ऐसे में सवाल ये है कि क्या ये कहानी सिर्फ अतीक अहमद के इर्द गिर्द घूमती है? यदि आपका जवाब हां है तो आप गलत हैं. गैंग्स ऑफ इलाहाबाद की इस कहानी में तमाम कड़ियां हैं और इन कड़ियों में अतीक के बाद अगर कोई सबसे बड़ी कड़ी है तो वो और कोई नहीं बल्कि दिवंगत बसपा विधायक राजू पाल है. आइये समझें कि आखिर आज से 18 साल पहले हुए राजू पाल हत्याकांड में ऐसा क्या क्या है जिसपर आज हर सूरत में बात होनी चाहिए. 

राजू पाल- कौन थे, क्यों मारे गए?

 तब के इलाहाबाद और आज के प्रयागराज में राजू पाल भी एक जमीन कारोबारी की तरह काम करता था. साल 2004 में अतीक अहमद ने अपने दबदबे वाली इलाहाबाद पश्चिमी विधानसभा सीट को खाली किया और खुद फूलपुर लोकसभा सीट से सांसद चुने गए. शहर पश्चिमी की विधानसभा सीट पर उन्होंने अपने भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ को सपा से टिकट दिलाया.

इसी चुनाव में पाल वोटों को एकजुट करने के लिए बसपा ने राजू पाल पर दांव खेला और उसे बसपा का टिकट दिया. राजू पाल ने अशरफ को चुनाव हरा दिया. क्योंकि राजू की जीत अतीक के वर्चस्व के लिए चुनौती जैसी थी, चंद दिनों के बाद ही 25 जनवरी 2005 को राजू पाल को उनके घर के नजदीक गोलियों से छलनी करके उनकी हत्या की गई.

उमेश पाल- कौन थे, क्‍या क्या किया, क्यों मारे गए?

उमेश पाल राजू पाल के बचपन के मित्र थे. राजू की हत्या के बाद वह गवाह बने. अतीक अहमद ने उमेश का अपहरण कर उसका बयान बदलवा दिया. इसके बाद 2007 में सूबे में बसपा की सरकार आई, जिसके बाद उमेश को फिर एक बार मौका मिला और उसने अपहरण का मामलाअतीक पर दर्ज करा दिया. इसी अपहरण में अपना बयान दर्ज कराने के लिए वह हत्या वाले दिन भी कोर्ट गए थे.

बताया जा रहा है कि उमेश ने अतीक के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था, कई बार की धमकी के बावजूद वह पीछे नहीं हटा था. उमेश को 2016 के एक मर्डर केस में नामजद भी किया गया था. अतीक गैंग उसे गिरफ्तार भी कराना चाह रहा था लेकिन 2017 में अतीक पर सीबीआई ने डेरा डाल दिया जिसके बाद उमेश को क्लीनचिट मिल गई थी.

उमेश इस दौरान प्रापर्टी का काम भी बड़े पैमाने पर करने लगा. शहर पश्चिम व सिविल लाइंस में उसकी कई प्रापर्टी डीलरों से विवाद था. इलाहाबाद की राजनीति को समझने वाले लोगों की बातों पर यदि यकीन किया जाए तो जमीन के मामले में उमेश पाल के कई दुश्मन भी थे.

पूजा पाल- कौन हैं, कहां हैं, और उनकी बातों के पेंच?

पूजा पाल राजू पाल की पत्नी हैं. उनकी शादी राजू पाल की हत्या से महज 11 दिन पहले ही हुई थी. बताया जाता है कि पति की हत्या के बाद खुद बसपा सुप्रीमो मायावती पूजा के आंसू पोंछने इलाहाबाद आई थी. तब मायावती ने पूजा पाल को शहर पश्चिमी का प्रत्याशी भी घोषित किया था. पूजा पाल यह चुनाव अशरफ से हार गई. इसके बाद वर्ष 2007 के चुनाव में वह बसपा के टिकट पर इसी सीट से चुनाव जीती.

2012 में भी उन्होंने जीत दर्ज की. 2017 में उन्हें भाजपा के सिद्धार्थनाथ ने हरा दिया. इसके बाद वह सपा में शामिल हो गई. ध्यान रहे कि पूजा, राजूपाल की हत्या के मामले में गवाह हैं जिन्होंने लखनऊ की सीबीआई कोर्ट में गवाही भी दी है.

पूजा के बारे में रोचक तथ्य ये है कि 2019 में उन्होंने हरदोई के बृजेश वर्मा से दूसरा विवाह किया था जिसका खुलासा 2022 के चुनाव में हुआ. अभी पूजा कौशाम्बी के चायल विधानसभा सीट से सपा की विधायक हैं.

अतीक अहमद-कौन है, कहां है, क्या भविष्‍य है?

अतीक अहमद पूर्व सांसद व पूर्व विधायक हैं. राजूपाल हत्याकांड के अलावा अतीक पर दर्जनों की संख्या में मुकदमे दर्ज हैं. सबसे अधिक मामने धमकी देने और जमीन पर कब्जा करने के हैं. फिलहाल वह गुजरात की अहमदाबाद जेल में बंद है. अभी बीते दिनों ही अतीक ने सार्वजनिक मंच से योगी की तारीफ की थी, जिसके बाद लगने लगा था कि वह भाजपा में इंट्री लेकर जेल से बाहर आना चाह रहे हैं. लेकिन भाजपा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी.

भाजपा के करीब आने के चक्कर में ही 2022 के विधानसभा चुनाव में अतीक की पत्नी ने चुनाव नहीं लड़ा था, जबकि उनकी पत्नी को एआईएमआईएम के चीफ ओवैसी ने ही पार्टी में शामिल किया था और टिकट दिया था. भाजपा से बात न बन पाने पर अतीक ने बसपा से करीबी चाही.

इसी कड़ी मे अतीक की पत्नी ने बसपा से संपर्क साधा. जिसके बाद अतीक की पत्नी को बसपा में शामिल किया गया और उनके महापौर प्रत्याशी बनाए जाने की बात होने लगी. अतीक की पत्नी ने चुनाव के लिए लोगों से संपर्क भी साधना शुरू कर दिया था. बसपा भी मुस्लिम वोटबैंक को वापस पाने की जुगत में अतीक के नाम का इस्तेमाल कर रही थी.

कितने वोटर पाल हैं, और कितने मुस्लिम?

राजनीति के लिहाज से इलाहाबाद शहर पश्चिमी की सीट हमेशा ही अहम रही है. इस सीट पर लगभग 85 हजार मुस्लिम वोट और 40 हजार पाल वोट हैं. कुल वोट चार लाख 50 हजार के आसपास है.

प्रॉपर्टी के काले कारोबार का क्या स्वरूप है?

प्रापर्टी का काम शहर पश्चिमी में खूब है. कौशाम्बी और इलाहाबाद के बार्डर पर बड़ी संख्या में जमीन खाली पड़ी है. प्रयागराज का एयरपोर्ट इस क्षेत्र में बन जाने के बाद इस कारोबर में और तेजी आ गई है. लेकिन सबसे खास यह है कि अतीक के गैंग ने अधिकतर प्रापर्टी पर अपना दखल दे रखा है जिससे अकसर इस क्षेत्र में विवाद पैदा होते ही रहते हैं.

रंगदारी का हिसाब क्या है?

वर्तमान में रंगदारी खुले तौर पर तो नहीं होती है, लेकिन अतीक के गुर्गे अभी भी रंगदारी के मामले में आगे हैं. पुलिस समय समय पर इनपर शिकंजा कसती है लेकिन यह मामले पूरी तरह से खत्म नहीं हुए हैं.

अभी किसके पास ज्यादा ताकत है?

बात की जाए पकड़ और दबदबे की तो अभी भी अतीक के गुर्गों का ही क्षेत्र में दबदबा है. अतीक की पकड़ अभी भी क्षेत्र में बनी हुई है. अतीक को प्रशासन और सरकार ने लाख चोंट पहुंचाई हो लेकिन प्रयागराज के लोगों का मानना है कि अभी उसकी 25 फीसदी संपत्ती को भी सरकार जब्त नहीं कर पाई है.

उमेश पाल के पीछे कौन था, और अब उसके ग्रुप का क्या?

उमेश पाल का कोई गैंग नहीं था. वह अधिकारियों का करीबी माना जाता था. अधिकारियों को जब अतीक पर शिकंजा कसना होता था वह उमेश से संपर्क साधती थी. उमेश गवाही देने से कभी पीछे नहीं रहता था. इसी वजह से उमेश से मुस्लिम चेहरे दूरी बनाकर रखते थे कि कहीं उमेश गवाही में उनका नाम भी न लेले.

इसके अलावा उमेश की भाजपा के नेताओं के साथ पकड़ बनना भी उसे मजबूत बना रही थी. पूजा पाल के सपा में शामिल होने के बाद से उमेश और पूजा की भी दूरी बढ़ गई थी. उमेश भाजपा का सक्रिय कार्यकर्ता बन चुका था. और सिद्धार्थनाथ के बाद शहर पश्चिमी से चुनाव लड़ने की योजना में था.

उमेश के आलीशान बंगले को देखकर कहा जा सकता है कि उसने प्रापर्टी के काम में जबर्दस्त कमाई कर रखी थी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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