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उद्धव ठाकरे के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी से ज्यादा जरूरी शिवसेना को टूटने से बचाना है

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 23 जून, 2022 06:00 PM
  • 23 जून, 2022 06:00 PM
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उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) ने सभी शिवसेना विधायकों को बातचीत के लिए बुलाया है. बागियों के नेता एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) को भी. शिवसेना (Shiv Sena) नेतृत्व के सामने 31 साल बाद दोबारा चुनौती पेश की गयी है - और ये पहले के मुकाबले काफी बड़ा चैलेंज है.

उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) बेशक बाल ठाकरे से भी बड़ी बगावत की चुनौती फेस कर रहे हैं. 1991 के बाद ये पहला मौका है जब शिवसेना नेतृत्व को किसी शिवसैनिक ने ऐसे अंदाज में चैलेंज किया हो - और ये दर्द उद्धव ठाकरे के फेसबुक लाइव के जरिये इमोशनल अपील में भी महसूस की जा सकती है.

उद्धव ठाकरे के साथ ये पहली बार हो रहा है जब किसी ने ऐसे शिवसेना (Shiv Sena) नेतृत्व को चैलेंज किया हो. ऐसी मुश्किलें तो बाल ठाकरे के सामने कई बार आयीं और वो उनसे निबटते भी रहे, लेकिन कोई भी ऐसी चुनौती नहीं थी जैसी एकनाथ शिंदे ने पेश की है.

उद्धव ठाकरे की ही तरह एनसीपी नेता शरद पवार के सामने भी ऐसी ही चुनौती 2019 में आयी थी जब उनके भतीजे अजित पवार बीजेपी के साथ जा मिले थे. रातोंरात बने एक्शन प्लान और उसको अमली जामा पहनाने में अजित पवार के हिस्से डिप्टी सीएम का वही पद आया था जो अक्सर ही महाराष्ट्र की सरकार में शरद पवार की बदौलत उनको मिलता रहा है. अब भी महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजित पवार ही हैं.

तब अजित पवार एक दिन अचानक बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस से मिले और सुबह सुबह राज भवन पहुंच कर दोनों ने क्रमशः डिप्टी सीएम और मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली. लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति के माहिर खिलाड़ी शरद पवार ने 72 घंटे में ही सारा खेल खत्म कर दिया - अजित पवार घर लौट आये और देवेंद्र फडणवीस को प्रेस कांफ्रेंस कर के इस्तीफे की घोषणा करनी पड़ी.

उद्धव ठाकरे की मुश्किल ये है कि एकनाथ शिंदे कोई अजित पवार जैसे नहीं हैं. और शिवसेना का तो इतिहास ये है कि शरद पवार की तरह बाल ठाकरे भी राज ठाकरे को घर छोड़ देने के बाद वापस नहीं बुला सके. बड़ी वजह ये भी रही कि राज ठाकरे के शिवसेना छोड़ने से तब बाल ठाकरे को कोई वैसा नुकसान नहीं हुआ था जैसा शरद पवार ने अजित पवार को लेकर...

उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) बेशक बाल ठाकरे से भी बड़ी बगावत की चुनौती फेस कर रहे हैं. 1991 के बाद ये पहला मौका है जब शिवसेना नेतृत्व को किसी शिवसैनिक ने ऐसे अंदाज में चैलेंज किया हो - और ये दर्द उद्धव ठाकरे के फेसबुक लाइव के जरिये इमोशनल अपील में भी महसूस की जा सकती है.

उद्धव ठाकरे के साथ ये पहली बार हो रहा है जब किसी ने ऐसे शिवसेना (Shiv Sena) नेतृत्व को चैलेंज किया हो. ऐसी मुश्किलें तो बाल ठाकरे के सामने कई बार आयीं और वो उनसे निबटते भी रहे, लेकिन कोई भी ऐसी चुनौती नहीं थी जैसी एकनाथ शिंदे ने पेश की है.

उद्धव ठाकरे की ही तरह एनसीपी नेता शरद पवार के सामने भी ऐसी ही चुनौती 2019 में आयी थी जब उनके भतीजे अजित पवार बीजेपी के साथ जा मिले थे. रातोंरात बने एक्शन प्लान और उसको अमली जामा पहनाने में अजित पवार के हिस्से डिप्टी सीएम का वही पद आया था जो अक्सर ही महाराष्ट्र की सरकार में शरद पवार की बदौलत उनको मिलता रहा है. अब भी महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजित पवार ही हैं.

तब अजित पवार एक दिन अचानक बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस से मिले और सुबह सुबह राज भवन पहुंच कर दोनों ने क्रमशः डिप्टी सीएम और मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली. लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति के माहिर खिलाड़ी शरद पवार ने 72 घंटे में ही सारा खेल खत्म कर दिया - अजित पवार घर लौट आये और देवेंद्र फडणवीस को प्रेस कांफ्रेंस कर के इस्तीफे की घोषणा करनी पड़ी.

उद्धव ठाकरे की मुश्किल ये है कि एकनाथ शिंदे कोई अजित पवार जैसे नहीं हैं. और शिवसेना का तो इतिहास ये है कि शरद पवार की तरह बाल ठाकरे भी राज ठाकरे को घर छोड़ देने के बाद वापस नहीं बुला सके. बड़ी वजह ये भी रही कि राज ठाकरे के शिवसेना छोड़ने से तब बाल ठाकरे को कोई वैसा नुकसान नहीं हुआ था जैसा शरद पवार ने अजित पवार को लेकर महसूस किया होगा - ऊपर से शरद पवार को वो सब तब झेलना पड़ा था जब वो सीधे बीजेपी नेतृत्व यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी को चैलेंज करते हुए महाराष्ट्र में बिलकुल असंभव सा नया गठबंधन खड़ा करने की तैयारी कर रहे थे.

बड़ा सवाल ये है कि किया उद्धव ठाकरे अपनी इमोशनल अपील के बाद एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) को वैसे ही घर वापस बुला सकेंगे, जैसे शरद पवार अपन मामले में सफल रहे?

उद्धव ठाकरे ने ऐसी बगावत देखी नहीं कभी

उद्धव ठाकरे और शरद पवार के मामले में एक बड़ा फर्क है. शरद पवार को भतीजे अजीत पवार को मना कर घर वापस बुलाना था - और उद्धव ठाकरे को अपने बेहद भरोसेमंद शिवसैनिकों में से एक, एकनाथ शिंदे को. अभी 15 जून को ही अयोध्या में एकनाथ शिंदे और आदित्य ठाकरे के साथ साथ पूजा पाठ कर रहे थे. एक वो भी नजारा था जब आदित्य ठाकरे के अगल बगल संजय राउत और एकनाथ शिंदे को देखा गया.

शिवसेना को बचाने के लिए उद्धव ठाकरे चले अपना आखिर दांव

बीजेपी नेतृत्व और उद्धव ठाकरे के बीच ज्यादा तनातनी तो अब तक नारायण राणे के मामले में ही देखने को मिली है, लेकिन पहला झटका बीजेपी ने 2014 में सुरेश प्रभु को केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री बना कर दिया था. सुरेश प्रभु को उसी दिन मुंबई से दिल्ली बुलाकर सीधे कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ दिला दी गयी थी. अपने शपथग्रहण से ठीक पहले सुरेश प्रभु ने बीजेपी ज्वाइन किया था.

एकनाथ शिंदे की ही तरह तीन दशक पहले छगन भुजबल ने भी शिवसेना से बगावत कर दी थी - और वो तो पार्टी तोड़ कर ही दम लिये. देखना है एकनाथ शिंदे का अगला कदम क्या होता है. हालांकि, वो तो अब तक यही कह रहे हैं कि वो पार्टी नहीं छोड़ने जा रहे हैं. ये भी देखना होगा कि उद्धव ठाकरे की इमोशनल अपील का उनके ऊपर कोई फर्क पड़ता भी है या नहीं?

छगन भुजबल की बगावत: 90 के दशक में महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार हुआ करती थी - और शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे को पहली बार किसी ने चुनौती दी थी. तब शिवसेना के एक तिहाई विधायक अचानक बागी बन गये थे.

1991 में महाराष्ट्र के बड़े ओबीसी नेता छगन भुजबल ने करीब डेढ़ दर्जन विधायकों के समर्थन का दावा किया और सबको साथ लेकर कांग्रेस में चले गये. तब शिवसेना के पास 52 विधायक हुआ करते थे - और बाल ठाकरे मन मसोस कर रह गये थे.

तभी से छगन भुजबल, शरद पवार के साथ हैं. जब कांग्रेस से बगावत करके शरद पवार ने एनसीपी बना ली तो छगन भुजबल भी पार्टी छोड़ कर साथ हो लिये थे. छगन भुजबल की बाल ठाकरे से नाराजगी मनोहर जोशी को लेकर हुई - जब उनको शिवसेना ने महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष का नेता बना दिया.

राज ठाकरे का शिवसेना छोड़ना: शिवसेना में एक दौर ऐसा भी देखा गया जब राज ठाकरे को ही बाल ठाकरे का उत्तराधिकारी समझा जाता रहा, लेकिन 'वारिस तो बेटा ही होगा' वाले फॉर्मूले के तहत जब उद्धव ठाकरे को शिवसेना का कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया तो वो अलग रास्ते पर निकल पड़े.

जनवरी, 2006 में शिवसेना से अलग होने के दो महीने बाद 9 मार्च 2006 को राज ठाकरे ने अपनी पार्टी बना ली - महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना. मनसे के गठन के बाद काफी समय तक राज ठाकरे पुराने तेवर में ही शिवसेना की जगह लेने की कोशिश करते रहे, लेकिन अब तक नाकाम ही साबित हुए हैं. हाल ही में वो मस्जिदों के लाउडस्पीकर के खिलाफ हनुमान चालीसा मुहिम चला रहे थे. माना जा रहा था कि राज ठाकरे सब बीजेपी की शह पर कर रहे हैं, लेकिन फिर कुछ खास वजहों से वो ठंडे पड़ गये.

नारायण राणे को निकाला जाना: कभी नारायण राणे भी शिवसेना के बड़े नेता हुआ करते थे. नारायण राणे की शिवसेना में तब हैसियत ऐसे समझी जा सकती है कि जब बाल ठाकरे ने मनोहर जोशी से मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा मांग लिया तो नारायण राणे को ही शपथ दिलायी गयी थी.

लेकिन विडंबना ये भी रही कि नारायण राणे और उद्धव ठाकरे में शुरू से ही छत्तीस का रिश्ता रहा - और 2005 में उद्धव ठाकरने ने पार्टी विरोधी गतिविधियों का इल्जाम लगाकर शिवसेना से बाहर का रास्ता भी दिखा दिया.

नारायण राणे शिवसेना के बाद कांग्रेस होते हुए फिलहाल बीजेपी में हैं और केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री भी हैं. आपको याद होगा उद्धव ठाकरे को थप्पड़ जड़ देने वाले बयान के बाद महाराष्ट्र पुलिस ने उनको घर से उठा कर गिरफ्तार कर लिया था - और सुशांत सिंह राजपूत की मौत से लेकर ठाकरे परिवार से जुड़े सभी मामलों में राणे और उनके बेटे नितेश राणे हमला बोलते रहते हैं. एकनाथ शिंदे की बगावत पर भी नारायण राणे की तरफ से वैसा ही ट्वीट किया गया है.

उद्धव की इमोशनल अपील कितनी असरदार?

शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने अपने विधायकों से जो भावपूर्ण अपील की है, उसमें भी एक बात कर खास जोर देखने को मिला है - हिंदुत्व को लेकर सफाई. दरअसल, अब तक बीजेपी की तरफ से उद्धव ठाकरे पर हिंदुत्व छोड़ देने का आरोप लगाया जाता रहा है. यहां तक कि महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी भी पत्र लिख कर इस बारे में कटाक्ष कर चुके हैं.

फेसबुक लाइव के जरिये एकनाथ शिंदे, शिवसेना विधायकों और शिवसैनिकों से मुखातिब उद्धव ठाकरे ने हिंदुत्व की बात इसलिए भी की है क्योंकि एकनाथ शिंदे भी एक तरीके से उन पर बाल ठाकरे वाले हिंदुत्व की राजनीति छोड़ देने का आरोप लगा रहे हैं.

हाल में ये भी देखा गया कि लाउडस्पीकर मुहिम के जरिये राज ठाकरे जो मुद्दा उठा रहे थे, ज्यादातर शिवसैनिक उससे सहमति जताते रहे. बल्कि, शिवसैनिकों को तो ये लग रहा था कि जो काम शिवसेना को करना चाहिये वो राज ठाकरे कर रहे हैं. असल में, राज ठाकरे भी वही मुद्दा उठा रहे थे जिसके कभी बाल ठाकरे भी हिमायती रहे.

राज ठाकरे के बाल ठाकरे की तरह लाल टीका और भगवा धारण किये हुए पोस्टर लगवाने के बाद उद्धव ठाकरे उन पर भी बिफर पड़े थे - और अयोध्या में तो राज ठाकरे को नकली और उद्धव ठाकरे को असली ठाकरे तक बताया गया था.

उद्धव ठाकरे ने खेला बड़ा दांव: बहरहाल, उद्धव ठाकरे ने अपनी तरफ से सबसे बड़ा दांव खेल दिया है - सोशल मीडिया लाइव के जरिये सरेआम कह चुके हैं कि वो मुख्यमंत्री पद कौन कहे, वो तो शिवसेना प्रमुख की गद्दी तक छोड़ने को तैयार हैं.

हालांकि, उद्धव ठाकरे ने ऐसा करने से पहले एक शर्त भी रखी है - शिवसैनिकों को उनके सामने आकर खुद बोलना होगा, न कि किसी होटल से मीडिया के जरिये और बीजेपी या किसी अन्य राजनीतिक दल के प्रभाव में ऐसा कोई प्रदर्शन करना होगा.

मुश्किल ये है कि फिलहाल उद्धव ठाकरे के पास ऐसा करने के अलावा कोई चारा भी नहीं बचा है. शिवसेना के 55 विधायक हैं और एकनाथ शिंदे का दावा है कि करीब 40 विधायक उनके साथ हैं - साथ में कुछ निर्दलीय विधायकों के सपोर्ट का भी एकनाथ शिंदे ने दावा किया है.

1. उद्धव ठाकरे का सवाल है, 'एकनाथ शिंदे को सूरत जाकर बात करने की क्या जरूरत थी?' उद्धव ठाकरे ने का कहना है कि कुछ विधायक फोन करके कह रहे हैं कि वो लौटना चाहते हैं.

ये कहते हुए कि वो अपनी जिम्मेदारियों को समझते हैं और निभाते भी हैं, उद्धव ठाकरे ने कहा, 'मैं सीएम पद छोड़ने के लिए तैयार हू... मेरे बाद कोई शिवसैनिक मुख्यमंत्री बने तो मुझे खुशी होगी...'

एकनाथ शिंदे सहित महाराष्ट्र से बाहर चले गये विधायकों से उद्धव ठाकरे की अपील है कि वो उनके पास आयें, बात करें और साथ राज भवन जाकर इस्तीफा देते वक्त उनके साथ रहें.

2. नेतृत्व के सवाल पर उद्धव ठाकरे का कहना है, 'जो शिवसैनिक ये सोचते हैं कि मैं शिवसेना का नेतृत्व नहीं कर सकता... ऐसा कहने के लिए आपको किसी विरोधी की नहीं, एक शिवसैनिक की जरूरत है - मैं शिवसैनिकों के लिए प्रतिबद्ध हू.'

3. नेताओं की पहुंच से बाहर रहने को लेकर अपनी सफाई में उद्धव ठाकरे ने कहा है, 'लोग कह रहे थे कि मुख्यमंत्री मिलते नहीं हैं. शिवसेना कौन चला रहा है? मेरा ऑपरेशन हुआ था... मैं लोगों से मिल नहीं पाया... वो वक्त बहुत मुश्किल था. मैं अस्पताल से ऑनलाइन काम कर रहा था.'

4. और हिंदुत्व छोड़ने के मुद्दे पर भी उद्धव ठाकरे कहते हैं, 'शिवसेना और हिंदुत्व एक दूसरे से जुड़े शब्द हैं... शिवसेना हिंदुत्व से दूर नहीं हो सकती - क्योंकि हमे मंत्र मिला है कि हिंदुत्व हमारी सांस है.'

अपने लाइव संबोधन आखिर में उद्धव ठाकरे ने बागी शिवसेना विधायकों से अपील की कि वे जहा कहीं भी हैं उनकी बात सुनें और वापस लौटकर उनसे बात करें. सही बात है. बात करने से ही बात बनती है, बशर्ते - बहुत देर न हो चुकी हो.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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