• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

2017 के ये सियासी फैसले तय करेंगे भारतीय राजनीति की दिशा

    • अभिनव राजवंश
    • Updated: 28 दिसम्बर, 2017 11:47 AM
  • 28 दिसम्बर, 2017 11:47 AM
offline
जहाँ एक तरफ तमिलनाडु में जयललिता की मौत के बाद पैदा हुए शून्य को भरने के लिए काफी उठा पटक दिखी तो वाम दलों के आखिरी दुर्ग केरल में भी भारतीय जनता पार्टी अपनी पकड़ बनाने को जद्दोजेहद करती दिखी.

साल 2017 भारत की राजनीति के हिसाब से काफी इवेंट फुल कहा जा सकता है. जहाँ इस साल फिर से भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत के सबसे बड़े राजनेता बन कर उभरे तो भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगियों का फैलाव देश के 19 राज्यों तक पहुँच गया. इस साल देश के दक्षिण में भी काफी राजनैतिक हलचल देखने को मिली. जहाँ एक तरफ तमिलनाडु में जयललिता की मौत के बाद पैदा हुए शून्य को भरने के लिए काफी उठा पटक दिखी तो वाम दलों के आखिरी दुर्ग केरल में भी भारतीय जनता पार्टी अपनी पकड़ बनाने को जद्दोजेहद करती दिखी.

कांग्रेस के लिए यह साल मिला-जुला रहा. कई राज्यों में सत्ता खोने के बाद पंजाब में सत्ता में वापसी और गुजरात में अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन कांग्रेस के लिए कॉन्सोलेशन प्राइज की तरह रहा. हालाँकि, साल 2017 के ख़त्म होने में अब कुछ ही दिन शेष रह गए हैं, मगर इस साल कुछ ऐसे बड़े फैसले लिए गए, जिनका असर आने वाले कई वर्षों तक दिखता रहेगा.

एक नजर ऐसे ही 2017 की बड़ी राजनैतिक गतिविधियों पर -

राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी

आखिरकार साल 2017 में वो लम्हा भी आ गया, जब राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में चुन लिया गया. हालांकि, यह काफी सालों से लगभग तय ही था कि सोनिया गांधी के बाद राहुल गांधी ही कांग्रेस कि कमान संभालेंगे, लेकिन कब? यह बड़ा सवाल था. साल 2017 के दिसंबर महीने में राहुल गांधी को आधिकारिक रूप से कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में चुन लिया गया है. अब राहुल गांधी पर कांग्रेस को फिर से खड़ा करने की चुनौती है. कभी देश के ज्यादातर हिस्सों में राज करने वाली कांग्रेस आज चार राज्यों में सिमट गई है. ऐसे में आने वाले वर्ष में राहुल गांधी किस तरह नरेंद्र मोदी को चुनौती देते हैं, यह देखना दिलचस्प...

साल 2017 भारत की राजनीति के हिसाब से काफी इवेंट फुल कहा जा सकता है. जहाँ इस साल फिर से भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत के सबसे बड़े राजनेता बन कर उभरे तो भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगियों का फैलाव देश के 19 राज्यों तक पहुँच गया. इस साल देश के दक्षिण में भी काफी राजनैतिक हलचल देखने को मिली. जहाँ एक तरफ तमिलनाडु में जयललिता की मौत के बाद पैदा हुए शून्य को भरने के लिए काफी उठा पटक दिखी तो वाम दलों के आखिरी दुर्ग केरल में भी भारतीय जनता पार्टी अपनी पकड़ बनाने को जद्दोजेहद करती दिखी.

कांग्रेस के लिए यह साल मिला-जुला रहा. कई राज्यों में सत्ता खोने के बाद पंजाब में सत्ता में वापसी और गुजरात में अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन कांग्रेस के लिए कॉन्सोलेशन प्राइज की तरह रहा. हालाँकि, साल 2017 के ख़त्म होने में अब कुछ ही दिन शेष रह गए हैं, मगर इस साल कुछ ऐसे बड़े फैसले लिए गए, जिनका असर आने वाले कई वर्षों तक दिखता रहेगा.

एक नजर ऐसे ही 2017 की बड़ी राजनैतिक गतिविधियों पर -

राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी

आखिरकार साल 2017 में वो लम्हा भी आ गया, जब राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में चुन लिया गया. हालांकि, यह काफी सालों से लगभग तय ही था कि सोनिया गांधी के बाद राहुल गांधी ही कांग्रेस कि कमान संभालेंगे, लेकिन कब? यह बड़ा सवाल था. साल 2017 के दिसंबर महीने में राहुल गांधी को आधिकारिक रूप से कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में चुन लिया गया है. अब राहुल गांधी पर कांग्रेस को फिर से खड़ा करने की चुनौती है. कभी देश के ज्यादातर हिस्सों में राज करने वाली कांग्रेस आज चार राज्यों में सिमट गई है. ऐसे में आने वाले वर्ष में राहुल गांधी किस तरह नरेंद्र मोदी को चुनौती देते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा.

योगी आदित्यनाथ का यूपी का मुख्यमंत्री बनना

साल 2017 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए विधानसभा की 403 सीटों में से सवा तीन सौ सीटों पर जीत दर्ज की. हालांकि, भाजपा की इस प्रचंड जीत के बाद मुख्यमंत्री को लेकर काफी अटकलें लगाई गईं. लेकिन आख़िरकार गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ को इस पद के लिया चुना गया.

योगी आदित्यनाथ का मुख्यमंत्री बनाया जाना कई मामलों में बेहद महत्वपूर्ण रहा है. पहला योगी की छवि कट्टर हिंदुत्ववादी नेता की रही है. ऐसे में उन्हें मुख्यमंत्री बना कर भाजपा ने यह साफ़ कर दिया कि बीजेपी अपनी हिंदूवादी छवि से समझौता करने के मूड में नहीं है. साथ ही योगी के मुख्यमंत्री बनाए जाने को लोग भाजपा के पास मोदी के बाद के विकल्प के रूप में भी देख रहे हैं.

योगी पर आने वाले वर्षों में उत्तर प्रदेश में लोक सभा के चुनावों में भी बेहतर प्रदर्शन का दारमोदार होगा, क्योंकि यही वह प्रदेश है जिसने साल 2014 में भाजपा की प्रचंड जीत में अहम भूमिका निभाई थी. हालांकि, योगी प्रदेश के निकाय चुनावों में बेहतर करने में सफल रहे हैं.

कमल हासन का सक्रिय राजनीति में आना

पिछले साल दिसम्बर में जयललिता के निधन के बाद से ही तमिलनाडु की सियासत में काफी उठा-पटक देखने को मिली. जयललिता के बाद पैदा हुए शून्य को भरने के लिए साउथ के दो बड़े सुपरस्टार रजनीकांत और कमल हासन के सक्रिय राजनीति में आने को लेकर चर्चा पूरे साल रही.

हालांकि, अभी तक रजनीकांत इस मुद्दे पर कुछ भी खुल कर बोलने से बचते रहे हैं. लेकिन कमल हासन ने सक्रिय राजनीति की राह पकड़ ली है. वैसे कमल हासन ने अभी तक पार्टी के मुद्दे पर कोई फैसला नहीं लिया है. लेकिन आने वाले सालों में यह देखना दिलचस्प रहेगा कि क्या कमल हासन एमजीआर, एनटी रामा राव और जयललिता जैसे फिल्मस्टार की तरह राजनीति में अपना परचम लहरा पाएंगे या नहीं.

नीतीश कुमार की बीजेपी के साथ वापसी

साल 2014 में नरेंद्र मोदी को बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद से भाजपा और जदयू के रिश्तों में तल्खी आ गई थी. हालांकि, साल 2017 में फिर से यह पुराने सहयोगी साथ आ गए. जुलाई 2015 में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लालू यादव के साथ बनाए गए महागठबंधन को छोड़ कर भाजपा का दामन थाम लिया.

नीतीश के इस फैसले के बाद जहां भाजपा के खाते में एक और राज्य आ गया तो वहीं इसका फायदा भाजपा को 2017 के लोकसभा में भी देखने को मिल सकता है. साथ ही नीतीश कुमार, जिन्हें विपक्ष नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक बड़े नेता के तौर पर देख रही थी, उनके बीजेपी से मिलने से विपक्ष ने एक बड़ा नेता खो दिया है.

गुजरात की राजनीति में तीन युवा नेताओं की एंट्री

वैसे तो गुजरात पिछले 2 दशकों से भाजपा का गढ़ माना जाता रहा है. हालांकि, 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को उसी के गढ़ में तीन स्थानीय युवा नेताओं ने कड़ी चुनौती दी. हालांकि, हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवानी भाजपा को गुजरात में छठी जीत से नहीं रोक सके. मगर जिस तरह गुजरात चुनाव में इन नेताओं के प्रति लोगों में उत्साह दिखा वो इस बात के संकेत जरूर देते दिखे कि आने वाले सालों में यह तिकड़ी गुजरात की राजनीति में उभर कर आ सकती है.

ये भी पढ़ें-

मजबूरी में नोएडा आए थे योगी, अंधविश्वास से तो उनका पुराना नाता है

जानिए चारा घोटाले में दोषी करार दिए गए लालू प्रसाद के 'जेल पड़ोसियों' के बारे में

नॉन-वेज फूड आइटम को लेकर लिए गए फैसले का ये है सियासी पहलू !


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲