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नॉन-वेज फूड आइटम को लेकर लिए गए फैसले का ये है सियासी पहलू !

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 27 दिसम्बर, 2017 01:56 PM
  • 27 दिसम्बर, 2017 01:56 PM
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दक्षिण दिल्ली नगर निगम के प्रस्ताव को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं. नगर निगम ने इसे लोगों की सेहत से जुड़ा मामला बताया है, जबकि उसके दूसरे तर्क में सियासी छलक रही है.

दक्षिण दिल्ली में जल्द ही आपको सड़क किनारे चिकन तंदूरी और चिकन टिक्का जैसी नॉनवेज चीजें देखने को नहीं मिलेंगी. इसे लेकर दक्षिण दिल्ली नगर निगम ने एक प्रस्ताव भी पारित किया है. इस प्रस्ताव के हिसाब से रेस्टोरेंट, ढाबों या ठेलों आदि पर सार्वजनिक रूप से नॉन-वेज फूड आइटम नहीं दिखाए जा सकेंगे. तर्क दिया गया है कि ऐसा करने से एक तो बाहर लटकाया गया वह नॉन-वेज प्रदूषित होता है, वहीं दूसरी ओर इससे शाकाहारी लोगों की भावनाएं आहत होती हैं. दक्षिण दिल्ली नगर निगम के इस प्रस्ताव को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं. जिसे नगर निगम लोगों की सेहत के साथ जोड़कर प्रदूषित होने की बात कह रहा है, उसका एक सियासी पहलू भी है. नॉन-वेज चीजों से शाकाहारी लोगों की भावनाएं आहत होने का तर्क पूरी तरह से राजनीतिक लगता है.

इतने सालों से क्यों नहीं लिया एक्शन?

दक्षिण दिल्ली या फिर दिल्ली के अन्य इलाकों, यहां तक कि देशभर में रोस्टेड नॉन-वेज फूड आइटम हमेशा से ही दुकानों के बाहर लटकाए जाते रहे हैं. अगर इससे लोगों की सेहत को खतरा है तो इतने सालों में कभी इस पर कोई एक्शन क्यों नहीं लिया गया? पिछले साल ही दिवाली के बाद प्रदूषण खतरनाक स्तर तक जा पहुंचा था, तब भी ऐसा कोई आदेश नहीं आया तो फिर अब ये आदेश क्यों? वहीं दूसरी ओर, अगर नॉन-वेज चीजें खुले में दिखाने से वह प्रदूषित होती हैं तो शाकाहारी चीजों के साथ भी तो ऐसा ही होता होगा. तो फिर शाकाहारी चीजों को खुले में प्रदर्शित करने पर मनाही क्यों नहीं? आखिर पनीर टिक्का, सोया चाप जैसे चीजें भी तो चिकन तंदूरी और चिकन टिक्का की तरह सार्वजनिक रूप से दिखाकर बेची जाती हैं. प्रदूषण तो उनमें भी होता होगा. दक्षिण दिल्ली नगर निगम से स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. बीके हजारिका ने कहा है कि सड़क किनारे नॉन वेज चीजें लटकाने से वह प्रदूषित हो सकती हैं, जिसके चलते टायफॉयड, हैजा और दस्त जैसी बीमारियां हो सकती हैं.

दक्षिण दिल्ली में जल्द ही आपको सड़क किनारे चिकन तंदूरी और चिकन टिक्का जैसी नॉनवेज चीजें देखने को नहीं मिलेंगी. इसे लेकर दक्षिण दिल्ली नगर निगम ने एक प्रस्ताव भी पारित किया है. इस प्रस्ताव के हिसाब से रेस्टोरेंट, ढाबों या ठेलों आदि पर सार्वजनिक रूप से नॉन-वेज फूड आइटम नहीं दिखाए जा सकेंगे. तर्क दिया गया है कि ऐसा करने से एक तो बाहर लटकाया गया वह नॉन-वेज प्रदूषित होता है, वहीं दूसरी ओर इससे शाकाहारी लोगों की भावनाएं आहत होती हैं. दक्षिण दिल्ली नगर निगम के इस प्रस्ताव को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं. जिसे नगर निगम लोगों की सेहत के साथ जोड़कर प्रदूषित होने की बात कह रहा है, उसका एक सियासी पहलू भी है. नॉन-वेज चीजों से शाकाहारी लोगों की भावनाएं आहत होने का तर्क पूरी तरह से राजनीतिक लगता है.

इतने सालों से क्यों नहीं लिया एक्शन?

दक्षिण दिल्ली या फिर दिल्ली के अन्य इलाकों, यहां तक कि देशभर में रोस्टेड नॉन-वेज फूड आइटम हमेशा से ही दुकानों के बाहर लटकाए जाते रहे हैं. अगर इससे लोगों की सेहत को खतरा है तो इतने सालों में कभी इस पर कोई एक्शन क्यों नहीं लिया गया? पिछले साल ही दिवाली के बाद प्रदूषण खतरनाक स्तर तक जा पहुंचा था, तब भी ऐसा कोई आदेश नहीं आया तो फिर अब ये आदेश क्यों? वहीं दूसरी ओर, अगर नॉन-वेज चीजें खुले में दिखाने से वह प्रदूषित होती हैं तो शाकाहारी चीजों के साथ भी तो ऐसा ही होता होगा. तो फिर शाकाहारी चीजों को खुले में प्रदर्शित करने पर मनाही क्यों नहीं? आखिर पनीर टिक्का, सोया चाप जैसे चीजें भी तो चिकन तंदूरी और चिकन टिक्का की तरह सार्वजनिक रूप से दिखाकर बेची जाती हैं. प्रदूषण तो उनमें भी होता होगा. दक्षिण दिल्ली नगर निगम से स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. बीके हजारिका ने कहा है कि सड़क किनारे नॉन वेज चीजें लटकाने से वह प्रदूषित हो सकती हैं, जिसके चलते टायफॉयड, हैजा और दस्त जैसी बीमारियां हो सकती हैं.

ये हो सकता है इसका सियासी पहलू

भारतीय जनता पार्टी हमेशा से ही लोगों को शाकाहारी होने के लिए कहती रही है. दक्षिण दिल्ली नगर निगम के इस कदम को भाजपा के इस नजरिए के साथ भी जोड़कर देखा जा रहा है. यहां नगर निगम की मेयर कमलजीत सेहरावत हैं, जो भारतीय जनता पार्टी की दिल्ली प्रदेश उपाध्यक्ष भी हैं. ऐसे में शाकाहारी लोगों की भावनाएं आहत होने वाले तर्क को सियासी चश्मे से भी देखा जा रहा है. नजफगढ़ जोन के काकरोला गांव से काउंसलर राज दत्त कहते हैं कि उन्हें शाकाहारी लोगों की तरफ से इस तरह की शिकायतें मिलती रहती हैं कि सार्वजनिक रूप से मुर्गे, बकरी और मछलियों को काटा जाता है. उसकी गंध और खून आदि से लोग काफी असहज महसूस करते हैं. साथ ही वह बोले कि जो लोग मांस को दुकानों के बाहर टांगते हैं, उनके पास दक्षिण दिल्ली नगर निगम का लाइसेंस भी नहीं है. सवाल उठता है कि अगर लाइसेंस नहीं है तो इनके खिलाफ कोई एक्शन क्यों नहीं लिया गया? राज दत्त की इस बात को माना जा सकता है कि सार्जनिक रूप से मुर्गा, बकरा आदि काटा जाना गलत है, लेकिन रोस्टेड फूड आइटम को सार्वजनिक रूप से दिखाकर बेचना कैसे गलत हो सकता है? आखिर जो दिखता है, वही तो बिकता है.

दुकानदारी भी होगी प्रभावित

दुकानदार मानते हैं कि नॉन-वेज रोस्टेड आइटम इस तरह से दिखाते हुए बेचने से अधिक ग्राहक आकर्षित होते हैं. एक बार के लिए ढाबे और रेस्टोरेंट में तो अगर नॉन-वेज आइटम दुकान के बाहर ना भी दिखाए जाएंगे तो चलेगा, लेकिन ठेले वालों का क्या? सड़क किनारे ठेलों पर नॉन-वेज आइटम बेच कर रोजी-रोटी कमाने वाले तो इसी तरह से अपनी दुकानदारी चलाते हैं. माना जा रहा है कि इससे उनकी दुकानदारी पर भी असर पड़ेगा. यूं तो अधिकतर दुकानदार इस प्रस्ताव को गलत मान रहे हैं, लेकिन साथ ही यह भी कह रहे हैं कि आदेश तो मानना ही होगा.

फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष सुनील मल्होत्रा का कहना है- 'नॉन-वेज फूड आइटम को सार्वजनिक रूप से बेचने और पकाए जाने से कैसे रोका जा सकता है? साथ ही, शाकाहारी चीजें भी तो प्रदूषित हो सकती है?' अब नगर निगम के इस प्रस्ताव का विरोध होगा या फिर इसे सभी मान लेंगे ये देखना दिलचस्प होगा. लेकिन इसे लागू करने के पीछे जो तर्क दिए जा रहे हैं, वह हजम नहीं हो रहे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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