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बिहार चुनाव में सुशांत केस को मुख्य चुनावी मुद्दा बनाने पर आम सहमति लगती है

    • आईचौक
    • Updated: 17 अगस्त, 2020 05:18 PM
  • 17 अगस्त, 2020 05:18 PM
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सुशांत सिंह केस (Sushant Singh Rajput Case) बिहार चुनाव (Bihar Election 2020) में मुख्य मुद्दा बनने की तरफ बढ़ रहा है. देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) को बिहार का प्रभारी बनाया जाना इस दिशा में बड़ा संकेत है - और सभी दलों का इस मुद्दे पर सक्रिय होना इस मुद्दे पर आम राय का इशारा करता है.

सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput Case) के लिए इंसाफ की लड़ाई का दायरा अब महज घर-परिवार और रिश्तेदारों तक सिमट कर रह गया लगता है - बाहर का शोर तो सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए मचा है. चुनावी माहौल में ये केस बिहार में सबसे ज्यादा चर्चा में तो है ही, महाराष्ट्र तक उथल पुथल मचा रहा है.

बिहार चुनाव 2020 (Bihar Election 2020) को लेकर नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और सत्ता में साझीदार बीजेपी की तरफ से अब तक जंगलराज को चुनावी मुद्दे के तौर पर सबसे ज्यादा हवा दी जा रही थी, लेकिन सुशांत की मौत के मामले ने जंगलराज के मुद्दे को लगता है पीछे छोड़ दिया है - और खास बात ये है कि इसे चुनावी मुद्दा बनाने को लेकर आम सहमति बन चुकी है.

बिहार से जुड़े नेता ही अब तक सुशांत सिंह राजपूत और उनके परिवार को न्याय दिलाने के लिए मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर लगतार बयानबाजी करते रहे - और बीजेपी की तरफ से महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) को बिहार भेजने की तैयारी से तो साफ है कि इसे चुनावी मुद्दा बनाने पर बिहार में सक्रिय राजनीतिक दलों में आम सहमति बन चुकी है.

देवेंद्र फडणवीस डबल फायदे के लिए बिहार जा रहे हैं

जो मामला महाराष्ट्र के पवार परिवार में राजनीतिक कलह पैदा कर दे, उसकी गंभीरता अपनेआप समझ में आ जानी चाहिये है. अजीत पवार के बेटे पार्थ पवार ने सुशांत सिंह केस की सीबीआई जांच कराने की मांग कर घर में कलह और पार्टी को ही कठघरे में खड़ा कर दिया है. महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार में साझीदार एनसीपी मुंबई पुलिस की जांच के साथ है, लेकिन पार्टीलाइन से अलग जाकर पार्थ पवार ने गृह मंत्री अनिल देशमुख को पत्र तक लिखा डाला और सवाल उठने पर एनसीपी नेता शरद पवार को ये दिखाने के लिए कि इस बात का कोई महत्व नहीं है, कहना पड़ा कि पार्थ पवार अभी अपरिपक्व हैं. शरद पवार के इस बयान के बाद खूब मान मनौव्वल और बयानबाजी हुई - आखिर में सुप्रिया सुले को डैमेज कंट्रोल के लिए मोर्चा संभालना पड़ा.

महाराष्ट्र में बिहार और...

सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput Case) के लिए इंसाफ की लड़ाई का दायरा अब महज घर-परिवार और रिश्तेदारों तक सिमट कर रह गया लगता है - बाहर का शोर तो सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए मचा है. चुनावी माहौल में ये केस बिहार में सबसे ज्यादा चर्चा में तो है ही, महाराष्ट्र तक उथल पुथल मचा रहा है.

बिहार चुनाव 2020 (Bihar Election 2020) को लेकर नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और सत्ता में साझीदार बीजेपी की तरफ से अब तक जंगलराज को चुनावी मुद्दे के तौर पर सबसे ज्यादा हवा दी जा रही थी, लेकिन सुशांत की मौत के मामले ने जंगलराज के मुद्दे को लगता है पीछे छोड़ दिया है - और खास बात ये है कि इसे चुनावी मुद्दा बनाने को लेकर आम सहमति बन चुकी है.

बिहार से जुड़े नेता ही अब तक सुशांत सिंह राजपूत और उनके परिवार को न्याय दिलाने के लिए मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर लगतार बयानबाजी करते रहे - और बीजेपी की तरफ से महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) को बिहार भेजने की तैयारी से तो साफ है कि इसे चुनावी मुद्दा बनाने पर बिहार में सक्रिय राजनीतिक दलों में आम सहमति बन चुकी है.

देवेंद्र फडणवीस डबल फायदे के लिए बिहार जा रहे हैं

जो मामला महाराष्ट्र के पवार परिवार में राजनीतिक कलह पैदा कर दे, उसकी गंभीरता अपनेआप समझ में आ जानी चाहिये है. अजीत पवार के बेटे पार्थ पवार ने सुशांत सिंह केस की सीबीआई जांच कराने की मांग कर घर में कलह और पार्टी को ही कठघरे में खड़ा कर दिया है. महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार में साझीदार एनसीपी मुंबई पुलिस की जांच के साथ है, लेकिन पार्टीलाइन से अलग जाकर पार्थ पवार ने गृह मंत्री अनिल देशमुख को पत्र तक लिखा डाला और सवाल उठने पर एनसीपी नेता शरद पवार को ये दिखाने के लिए कि इस बात का कोई महत्व नहीं है, कहना पड़ा कि पार्थ पवार अभी अपरिपक्व हैं. शरद पवार के इस बयान के बाद खूब मान मनौव्वल और बयानबाजी हुई - आखिर में सुप्रिया सुले को डैमेज कंट्रोल के लिए मोर्चा संभालना पड़ा.

महाराष्ट्र में बिहार और यूपी के लोग बरसों से बाहरी माने और बताये जाते रहे हैं - पहले शिवसेना बवाल मचाती रही और अब राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की तो जमापूंजी भी ले देकर पूर्वांचल के लोगों का विरोध के रूप में बची हुई है. ऐसा में देवेंद्र फडणवीस को बिहार चुनाव के लिए बीजेपी का प्रभारी बनाया जाना काफी महत्वपूर्ण हो जाता है.

फर्ज कीजिये बीजेपी और शिवसेना का गठबंधन नहीं टूटा होता और वैसी परिस्थिति में सुशांत सिंह राजपूत वाली घटना होती तो क्या होता - असल बात तो ये है कि महाराष्ट्र सरकार की तरफ से सीबीआई जांच की सिफारिश होती और न ही बिहार से. ये तो राजनीतिक विरोधी सरकारों के टकराव और चुनावी माहौल के चलते ये सब संभव हो पा रहा है. महाराष्ट्र पुलिस तो पहले ही तय कर चुकी थी कि मामला खुदकुशी का है इसलिए आगे की जांच का सवाल ही नहीं उठता. बिहार पुलिस भी तब सक्रिय हुई जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लगने लगा कि उनके दो विरोधी युवा नेता बाजी न मार लें - क्योंकि तेजस्वी यादव और चिराग पासवान शुरू से ही सुशांत सिंह राजपूत केस की सीबीआई जांच की मांग करने लगे थे. बतौर विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने विधानसभा सत्र के आखिरी दिन केस की सीबीआई जांच कराने की मांग जोर शोर से उठायी थी.

बिहार चुनाव को लेकर बीजेपी में लिये गये फैसले के मुताबिक अब देवेंद्र फडणवीस, भूपेंद्र यादव के साथ मिल कर तैयारियों में जुटेंगे. देवेंद्र फडणवीस और भूपेंद्र यादव महाराष्ट्र में भी साथ काम कर चुके हैं, लेकिन फडणवीस को महाराष्ट्र से बाहर ऐसी कोई जिम्मेदारी पहली बार दी जा रही है.

देवेंद्र फडणवीस को बीजैपी ने दोहरे फायदे के लिए बिहार भेजा है

देवेंद्र फडणवीस को बिहार की जिम्मेदारी दिये जाने के पीछे सुशांत केस के साथ साथ प्रवासी मजदूरों पर भी नजर है. लॉकडाउन के समय भी प्रवासी मजदूरों के बड़ी संख्या में बांद्रा स्टेशन पहुंच जाने को लेकर भी बीजेपी और महाविकास आघाड़ी के नेताओं में तीखी बयानबाजी हुई थी. बाद में देखा गया कि प्रवासी मजदूर देश भर में यूपी-बिहार से लौटने भी लगे हैं. बिहार पहुंच कर देवेंद्र फडणवीस युवाओं को जहां सुशांत सिंह केस में इंसाफ की लड़ाई में साथ खड़े होने के दावे करेंगे, प्रवासी मजदूरों को महाराष्ट्र में भी पूरा ख्याल रखने के वादे करेंगे. बिहार में सुशांत सिंह केस की तरह प्रवासी मजदूरों का मामला भी चुनाव में छाएगा ही. बीजेपी इसे डबल बेनिफिट स्कीम के तौर पर देख रही है.

सुशांत केस को लेकर देवेंद्र फडणवीस का नये सिरे से एक्टिव होना महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के लिए तो टेंशन वाली बात होगी, लेकिन लगे हाथ इस बात के लिए राहत भी महसूस कर सकते हैं कि बिहार चुनाव तक उनकी कुर्सी पर लटक रहा खतरा टला रहेगा - क्योंकि फडणवीस बिहार के चुनावी संग्राम में व्यस्त रहेंगे.

मुद्दे तो और भी हैं, लेकिन...

महाराष्ट्र के गृह मंत्री को लिखे पत्र में शरद पवार के पोते पार्थ पवार ने सुशांत सिंह राजपूत की मौत को लेकर युवाओं में आक्रोश की तरफ ध्यान दिलाने की कोशिश की है. बिहार में भी सबसे पहले आरजेडी नेता तेजस्वी यादव और उनके ठीक बाद लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान ने सुशांत सिंह राजपूत केस को लेकर सक्रियता दिखायी थी. बाद में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पटना में FIR दर्ज होते ही पुलिस टीम रवाना कर दिया. फौरन ही पटना के एसपी सिटी भी मुंबई रवाना हो गये, लेकिन बीएमसी ने एयरपोर्ट से ही उनको ले जाकर कर क्वारंटीन कर दिया. फिर सीबीआई जांच की सिफारिश में भी नीतीश कुमार ने देर नहीं की.

देखा जाये तो तेजस्वी यादव को जो फायदा जंगलराज के मुद्दे पर माफी मांगने से नहीं मिल पाया, वो सुशांत सिंह केस को उछालने से मिला है. ऐसा सीधे सीधे तो नहीं कहा जा सकता है, लेकिन गौर करने पर यही समझ में आता है. सुशांत सिंह केस के जोर पकड़ लेने पर बिहार में लालू-राबड़ी शासन के जंगलराज का मुद्दा थोड़ा पीछे छूट रहा है - और तेजस्वी यादव के लिए इससे बड़ी राहत भी कोई हो सकती है क्या?

असल में जेडीयू और बिहार बीजेपी में भी कुछ नेताओं को लग रहा है कि जंगलराज का मुद्दा ताजा माहौल में उतना प्रभावी नहीं हो सकता है. एक वजह ये भी है कि राष्ट्रीय जनता दल लालू-राबड़ी के 15 साल बनाम नीतीश कुमार के 15 साल को तुलना करते हुए पेश कर रहा है - साथ ही राजनीतिक समीकरण भी कुछ बनते बिगड़ते महसूस किये जा रहे हैं. चिराग पासवान के तेवर नीतीश कुमार के खिलाफ कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं. माना तो यही जा रहा है कि चिराग पासवान सीटों के बंटवारे में ज्यादा से ज्यादा हिस्सेदारी जताने के लिए जितना संभव हो दबाव बनाने की राजनीति कर रहे हैं. एक और खबर है कि नीतीश सरकार में मंत्री श्याम रजक भी अपनी पुरानी पार्टी आरजेडी में लौटने जा रहे हैं - जेडीयू के दलित चेहरे श्याम रजक के पाला बदलने का बहुत बड़ा असर भले न हो, चुनाव के ऐन पहले ठीक तो नहीं ही होगा.

जहां तक दूसरे मुद्दों की बात है बिहार के डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी नया मुद्दा पेश करने की कोशिश कर रहे हैं - बसपा. ये वैसे ही है जैसे आम चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूपी में 'सराब' से बचने की सलाह दी थी.

कभी 'लालूवाद' बोल कर विरोध जताने वाले सुशील कुमार मोदी के मुताबिक 'बसपा' का मतलब यूपी में मायावती की बहुजन समाज पार्टी से नहीं है - ये बिजली, सड़क और पानी का संक्षिप्त रूप बना कर पेश करने की कोशिश हो रही है. वैसे भी बिजली, सड़क और पानी तो रोटी, कपड़ा और मकान की तरह ही इंसान के लिए सबसे जरूरी चीजें होती हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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