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सचिन पायलट को लेकर प्रियंका गांधी की बात क्यों नहीं मान रहे गहलोत?

    • शरत कुमार
    • Updated: 12 नवम्बर, 2021 03:11 PM
  • 12 नवम्बर, 2021 03:11 PM
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राजस्थान कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच का विवाद ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा है. सोनिया गांधी के बाद खुद प्रियंका ने गहलोत को बहुत समझाया है मगर जैसे हालात हैं गहलोत किसी भी सूरत में कॉम्प्रोमाइज करने को तैयार नहीं हैं.

राजस्थान कांग्रेस की कलह ख़त्म करने में जुटे आलाकमान के लिए सुलह की राह तैयार करना आसान नहीं है. पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस की अंतरिम राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलकर अपनी बात कह कर जयपुर लौटे हैं. फिर जयपुर से सचिन पायलट को सोनिया गांधी के यहां से बुलावा आया. वहां दोनों ने वही बातें कहीं जो पिछले एक साल से कह रहे थे. अभिभावक की तरह सोनिया गांधी ने कहा कि मिल-जुलकर काम कीजिए मैं रास्ता निकालती हूं. हालांकि गांधी परिवार में भी इतने आलाकमान हैं कि एक व्यक्ति मिलकर फ़ैसला नहीं ले सकता है.

अशोक गहलोत और सचिन पायलट दोनों प्रियंका गांधी से मुलाक़ात कर चुके हैं और उसके बाद उन्होंने सोनिया गांधी से मुलाक़ात की है मगर फिर भी अभी फ़ैसला नहीं हुआ है क्योंकि राहुल गांधी विदेश से लौटने वाले हैं और उनके लौटने के बाद ही राजस्थान कांग्रेस में समझौते की राह खुल पाएगी. सबसे बड़ा सवाल है कि पेंच कहां फंसा हुआ है? गांधी परिवार के लिए भी मुश्किलें ख़त्म होती हुई नज़र नहीं आ रही हैं. आज्ञाकारी अशोक गहलोत पिछले एक साल से अवज्ञा पर उतारू हैं. पायलट पहले भी बग़ावत कर चुके हैं और समझौता न हुआ तो कब बाग़ी बन जाए पता नहीं. राजस्थान कांग्रेस के झगड़े को ख़त्म करने के लिए पिछले एक साल में एक दर्जन से ज़्यादा बैठकें हो चुकी हैं.

राजस्थान में गहलोत और पायलट के बीच की दूरियां ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही हैं

ये संगठन महासचिव केसी वेणु गोपाल, अहमद पटेल और प्रभारी अजय माकन की जो कमिटी बनी थी वह कमेटी भी 2 बैठक करा चुकी थी. उसके बाद कांग्रेस आलाकमान ने तीन बार तो संगठन महासचिव के सी वेणुगोपाल को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को मनाने के लिए जयपुर भेजा पर बात बनी नहीं. इसके बाद कमेटी में अहमद पटेल की जगह उत्तर प्रदेश के प्रभारी...

राजस्थान कांग्रेस की कलह ख़त्म करने में जुटे आलाकमान के लिए सुलह की राह तैयार करना आसान नहीं है. पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस की अंतरिम राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलकर अपनी बात कह कर जयपुर लौटे हैं. फिर जयपुर से सचिन पायलट को सोनिया गांधी के यहां से बुलावा आया. वहां दोनों ने वही बातें कहीं जो पिछले एक साल से कह रहे थे. अभिभावक की तरह सोनिया गांधी ने कहा कि मिल-जुलकर काम कीजिए मैं रास्ता निकालती हूं. हालांकि गांधी परिवार में भी इतने आलाकमान हैं कि एक व्यक्ति मिलकर फ़ैसला नहीं ले सकता है.

अशोक गहलोत और सचिन पायलट दोनों प्रियंका गांधी से मुलाक़ात कर चुके हैं और उसके बाद उन्होंने सोनिया गांधी से मुलाक़ात की है मगर फिर भी अभी फ़ैसला नहीं हुआ है क्योंकि राहुल गांधी विदेश से लौटने वाले हैं और उनके लौटने के बाद ही राजस्थान कांग्रेस में समझौते की राह खुल पाएगी. सबसे बड़ा सवाल है कि पेंच कहां फंसा हुआ है? गांधी परिवार के लिए भी मुश्किलें ख़त्म होती हुई नज़र नहीं आ रही हैं. आज्ञाकारी अशोक गहलोत पिछले एक साल से अवज्ञा पर उतारू हैं. पायलट पहले भी बग़ावत कर चुके हैं और समझौता न हुआ तो कब बाग़ी बन जाए पता नहीं. राजस्थान कांग्रेस के झगड़े को ख़त्म करने के लिए पिछले एक साल में एक दर्जन से ज़्यादा बैठकें हो चुकी हैं.

राजस्थान में गहलोत और पायलट के बीच की दूरियां ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही हैं

ये संगठन महासचिव केसी वेणु गोपाल, अहमद पटेल और प्रभारी अजय माकन की जो कमिटी बनी थी वह कमेटी भी 2 बैठक करा चुकी थी. उसके बाद कांग्रेस आलाकमान ने तीन बार तो संगठन महासचिव के सी वेणुगोपाल को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को मनाने के लिए जयपुर भेजा पर बात बनी नहीं. इसके बाद कमेटी में अहमद पटेल की जगह उत्तर प्रदेश के प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी ने कमान संभाली.

पिछले एक महीने में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को दो बार डेली तलबकर राजस्थान कांग्रेस के झगड़े को ख़त्म करने के लिए अशोक गहलोत को समझाया गया है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्षा सोनिया गांधी से मुलाक़ात करने के बाद पहली बार यह माना कि प्रियंका गांधी ने ही राजस्थान में एका करवाई थी और उनकी इच्छा है कि राजस्थान में कांग्रेस एक साथ रहे.

मगर कैसे रहे हैं? यह नहीं बताया. प्रियंका गांधी क्या ग़लत चाह रही हैं जो अशोक गहलोत उनकी बातें मानने के बजाए सोनिया गांधी से मुलाक़ात कर रहे हैं. और राहुल गांधी के विदेश से लौटने का इंतज़ार कर रहे हैं. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सोनिया गांधी से मिलने के बाद कहा कि कांग्रेस आलाकमान राजस्थान के बारे में कुछ जानना चाहा था. जो हमने बता दिया है. मगर सच तो यह है कि कांग्रेस आलाकमान सब कुछ जान रहा है.

मगर अशोक गहलोत फिर से वही बातें बताना चाहते हैं और किसी भी तरह से सचिन पायलट को राजस्थान में एडजस्ट नहीं करना चाहते हैं. उन दलीलों के साथ जिन दलीलों के साथ सचिन पायलट का विरोध करते आ रहे हैं. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कह रहे हैं कि सचिन पायलट फिर से सरकार गिरा सकते हैं. हमने अपने विधायकों से वादा किया है कि उन्हें मंत्रिमंडल में जगह लेंगे जिन्होंने सचिन पायलट से ग़द्दारी की थी.

अब अगर सचिन पायलट की चलेगी तो वह विधायक मुझे क्या कहेंगे जो मेरे साथ एक महीने तक होटल में रहे थे. संगठन महासचिव KC वेणुगोपाल, उत्तर प्रदेश के प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी और राजस्थान के प्रभारी महासचिव अजयमाकन उन्हें बार बार यही समझा रहे हैं कि बीती ताहि बिसार दे आगे की सुध लेई.

पिछले एक साल से तरह तरह के बहाने बनाकर कांग्रेस आलाकमान के सुलह की बातों को अशोक गहलोत टालते रहे हैं. मगर अब कांग्रेस आलाकमान जब ज़िद पर अड़ गया है तो अशोक गहलोत भी पीछे नहीं हट रहे हैं. जिसकी वजह से रास्ता निकाल नहीं पा रहा है. तो क्या मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अंदरखाने बग़ावत पर उतर आए हैं.

अशोक गहलोत भी सोनिया गांधी से मिलकर बाहर निकलें तो पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की तरह उन्होंने भी बाहर आकर कहा कि हमने सारा फ़ैसला कांग्रेस आलाकमान पर छोड़ दिया है. यह बताता है कि मामला यहां भी इतना पेचीदा बन चुका है. और सहमति नहीं बन पा रही है. सूत्रों के अनुसार कांग्रेस आलाकमान राजस्थान सरकार में बड़ा बदलाव करना चाहती है मगर अशोका गहलोत इसके लिए तैयार नहीं है.

सचिन पायलट पुरानी बातों को भुलाकर आगे बढ़ चुके हैं. मगर अशोक गहलोत उन जख्मों को कुरेद कर पायलट को दर्द देना चाहते हैं. सचिन पायलट के पास भी वही पुराना राग है कि जो हालात मेरे साथ हो गए थे, मैं बेवफ़ा ना होता तो बसमुर्दा नेता होता. क्या हालात मेरे उस वक्त रहे होंगे आप उसका अंदाज़ा इस बातसे लगा सकते हैं कि क्या हालात मेरे लौटकर आने के बाद है.

माना जा रहा है कि प्रियंका गांधी ने साफ़ साफ़ शब्दों में अशोक गहलोत को समझा दिया है कि सचिन पायलट को साथ लेकर चलना होगा. इसके लिए आपको जो करना है और जैसे करना है उसे जल्दी करना है. सुलह के फ़ॉर्मूले में केवल मंत्री बनाना शामिल नहीं है बल्कि सचिन पायलट 2022 में राजस्थान में मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं और मुख्यमंत्री अशोक ग़हलोत इस बात को समझते हैं कि कांग्रेस आलाकमान को ऐसा लगता है कि उनका वक़्त हो गया है इसलिए वह लगातार विधायकों और पार्टी पर अपना कंट्रोल चाहते हैं.

सचिन पायलट के छह मंत्रियों की मांग को यह इतना बड़ा करना चाहते हैं कि सचिन पायलट ख़ुद के लिए मुख्यमंत्री पद के लिए मांग न कर पाए. मगर सचिन पायलट के खेमे के विधायक और सचिन पायलट चाहते हैं कि मंत्री बनने के बजाए मुख्यमंत्री बदलने पर बात हो. उधर दिल्ली में एक खेमा यह भी मानता है कि जिस तरह से कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बेहतरीन काम कर रहे हैं.

स्थानीय निकाय चुनाव जीत रहे हैं और लोकप्रिय भी है, हू-ब-हू यही हालात उनके पिछले दोनों कार्यकालों में भी थे. तब भी गहलोत को मुख्यमंत्री नंबर वन माना जाता था और चुनाव हुए तो कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया. कांग्रेस आलाकमान दो बार इसी चक्कर में राजस्थान गंवा चुका है और यह बात मुख्यमंत्री अशोक ग़लत समझते हैं इसलिए वह विधायकों को जो चाहे मांग लो की तर्ज़ पर छूट देते हुए अपने साथ रखे हुए हैं.

गहलोत को इस बात का भी डर लगता है कि अगर मंत्रिमंडल के गठन में सचिन पायलट की ज़्यादा चली तो फिर पार्टी के अंदर संदेश जाएगा कि सचिन पायलट मज़बूत हो रहे हैं और ज़्यादा विधायक सचिन पायलट के पास जाना जा सकते हैं लिहाज़ा अशोक गहलोत इस तरह के कोई राजनीतिक संदेश नहीं देना चाहते हैं इसके लिए प्रियंका गांधी की बात मानने से इंकार तो नहीं कर रहे हैं मगर मान भी नहीं रहे हैं.

सचिन पायलट अपनी पसंद के छह विधायकों को मंत्री बनाना चाह रहे हैं. मगर माना जा रहा है कि आशोक गहलोत तीन से ज़्यादा देने के लिए तैयार नहीं हैदरअसल इस तरह की सौदेबाज़ी वह इसलिए भी कर रहे हैं कि यह सचिन पायलट इसी चक्कर में फंसे रहे हैं और उनकी नज़र मुख्यमंत्री की गद्दी से चूक तीर हैं.

सचिन पायलट के लिए बड़ा सवाल यह भी है कि अगर उनकी पसंद के छह लोग मंत्री बन भी गाए तो फिर उनके लिए आगे का रास्ता क्या है? क्योंकि पहले भी उन्होंने अपनी पसंद के 12 मंत्री बनाए थे जिनमें से एक ही साथ रहा. मगर प्रियंका गांधी सचिन पायलट को लेकर राजस्थान का प्लान बना रही है और राजस्थान के अलावा देश का प्लान बना रही है क्योंकि तेज़ी के साथ कांग्रेस अपने जनाधार वाले और भीड़ को आकर्षित करने वाले नेताओं की फ़ौज खोता जा रहा है.

माना जा रहा है कि प्रियंका गांधी चाह रही है कि सचिन पायलट को उचित सम्मान मिले और कांग्रेस में संगठन में उन्हें सक्रिय किया जाए. प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश की कांग्रेस महासचिव हैं मगर राजस्थान की राजनीति में उनकी सक्रियता को देखते हुए क़यास लगाए जा रहे हैं कि क्या प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश से बाहर कांग्रेस की राजनीति में दख़ल देने शुरू कर दी है हालांकि यह भी कहा जा रहा हैकि प्रियंका गांधी भले ही सचिन पायलट की पैरवी कर रही हो मगर उनके निशाने पर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव है.

सचिन पायलट ने पिछले 1 महीने में उत्तरप्रदेश के 4 दौरे किया है. लखनऊ और कानपुर में प्रेस कॉन्फ़्रेन्स के अलावा कल्कि पीठ में संतों को संबोधित किया और फिर गोवर्धन पूजा के दौरान नोएडा में कई जगह पर पूजा करते हुए देखे गए. इसके अलावा प्रियंका गांधी को जब लखिमपुर खीरी कांड के समय हिरासत में लिया गया था तब सचिन पायलट को सड़क मार्ग से पश्चिमी उत्तर प्रदेश भेजा गया था.

पायलट ने बड़ी संख्या में समर्थकों के साथ गिरफ़्तारी दी थी. अभी हाल में हुए उपचुनाव में मध्य प्रदेश में सचिन पायलट ने गुर्जर बहुल इलाकों में कांग्रेस के लिए आधा दर्जन सभाओं को संबोधित किया था. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गुर्ज़र मतदाताओं की बड़ी संख्या है इसे देखते हुए इस प्रियंका गांधी सचिन पायलट को जल्दी से जल्दी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यूज़ करना चाहती है.

यही वजह है कि वह लगातार सचिन पायलट को लेकर राजस्थान की बैठकों में शामिल हो रही है. अशोक गहलोत को यही से डर बैठा हुआ है यादगार सचिन पायलट एक बार फिर से दिल्ली दरबार में मज़बूत हुए तो राजस्थान की कुर्सी पर दावेदारी ठोक सकते हैं. इसीलिए यह सारा झगड़ा मंत्रिमंडल में फेरबदल और राजनीतिक नियुक्तियों का ना होकर कौन बनेगा मुख्यमंत्री को लेकर है.

इसीलिए माना जा रहा है कि जिस तरह से बैठकें की जा रही है इन बैठकों के ज़रिए राजस्थान कांग्रेस का सुलह का रास्ता निकालने वाला नहीं है क्योंकि एक पद और दो दावेदार है .छोटे -मोटे अगर युद्ध विराम हो भी जाएं तो आगे जंग का मैदान सामने खुला ही रहेगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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