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किताब बेचने के चक्कर में सलमान खुर्शीद ने प्रियंका गांधी की मेहनत पर पानी फेर दिया

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 11 नवम्बर, 2021 10:21 PM
  • 11 नवम्बर, 2021 10:21 PM
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प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) हिंदू लड़की बन कर यूपी में विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रही हैं. सलमान खुर्शीद (Salman Khurshid Book on Ayodhya) ने अयोध्या के बहाने हिंदुत्व पर हमला (Attack on Hindutva) बोल दिया है - ये किताब तो कांग्रेस के लिए नफे से ज्यादा नुकसान करा सकती है?

सलमान खुर्शीद की किताब 'सनराइज ओवर अयोध्या' (Salman Khurshid Book on Ayodhya) का तात्कालिक मकसद तो पूरा हो गया है. ज्यादा कुछ न सही, किताब की ठीक ठाक बिक्री भर कंट्रोवर्सी तो हो ही गयी - मुख्यधारा की राजनीति में बने रहने के लिए संघर्ष कर रहे किसी नेता के लिए भला और क्या चाहिये?

पहले भी सलमान खुर्शीद की कई किताबें आ चुकी हैं, लेकिन अयोध्या मसले पर है, खास कर अयोध्या केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर. केंद्र सरकार में मंत्री रह चुके सलमान खुर्शीद सुप्रीम कोर्ट के वकील भी हैं, लिहाजा अयोध्या केस में उनका ऑब्जर्वेशन अहम हो जाता है. अब वो कानून के एक्सपर्ट तक ही सीमित रहता है या फिर उनकी राजनीतिक विचारधारा से प्रभावित रहता है, अलग बात है.

मगर जिस तरह से चुनाव से पहले यूपी की राजनीति अयोध्या के इर्द-गिर्द सिमटने लगी है, सलमान खुर्शीद ने किताब के रिलीज के लिए समय तो अच्छा ही चुना, लेकिन मौके पर पी. चिदंबरम और दिग्विजय सिंह के अलावा कांग्रेस प्रवक्ता रागिनी नायक की ही मौजूदगी देखी गयी - न तो गांधी परिवार का ही कोई सदस्य दिखा और न ही अयोध्या मामले को लेकर अक्सर बीजेपी के निशाने पर आ जाने वाले कपिल सिब्बल.

फिर भी सलमान खुर्शीद की किताब बहस का मुद्दा बन चुकी है क्योंकि लेखक ने हिंदुत्व की तुलना ISIS और बोको हराम जैसे जिहादी संगठनों से कर डाली है - और ये एक ऐसी बात है जिसके सामने किताब में लिखी सारी बातें पीछे छूट जाती हैं.

कोई दो राय नहीं कि ये किताब चुनावी माहौल में कांग्रेस के फायदे के लिए ही इसी वक्त रिलीज हुई होगी, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या हिंदुत्व (Attack on Hindutva) पर ऐसी टिप्पणी करके सलमान खुर्शीद कांग्रेस को कोई फायदा दिला पाएंगे - वो भी तब जब हाथों में तुलसी का माला लिये और माथे पर त्रिपुंड लगा कर प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi...

सलमान खुर्शीद की किताब 'सनराइज ओवर अयोध्या' (Salman Khurshid Book on Ayodhya) का तात्कालिक मकसद तो पूरा हो गया है. ज्यादा कुछ न सही, किताब की ठीक ठाक बिक्री भर कंट्रोवर्सी तो हो ही गयी - मुख्यधारा की राजनीति में बने रहने के लिए संघर्ष कर रहे किसी नेता के लिए भला और क्या चाहिये?

पहले भी सलमान खुर्शीद की कई किताबें आ चुकी हैं, लेकिन अयोध्या मसले पर है, खास कर अयोध्या केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर. केंद्र सरकार में मंत्री रह चुके सलमान खुर्शीद सुप्रीम कोर्ट के वकील भी हैं, लिहाजा अयोध्या केस में उनका ऑब्जर्वेशन अहम हो जाता है. अब वो कानून के एक्सपर्ट तक ही सीमित रहता है या फिर उनकी राजनीतिक विचारधारा से प्रभावित रहता है, अलग बात है.

मगर जिस तरह से चुनाव से पहले यूपी की राजनीति अयोध्या के इर्द-गिर्द सिमटने लगी है, सलमान खुर्शीद ने किताब के रिलीज के लिए समय तो अच्छा ही चुना, लेकिन मौके पर पी. चिदंबरम और दिग्विजय सिंह के अलावा कांग्रेस प्रवक्ता रागिनी नायक की ही मौजूदगी देखी गयी - न तो गांधी परिवार का ही कोई सदस्य दिखा और न ही अयोध्या मामले को लेकर अक्सर बीजेपी के निशाने पर आ जाने वाले कपिल सिब्बल.

फिर भी सलमान खुर्शीद की किताब बहस का मुद्दा बन चुकी है क्योंकि लेखक ने हिंदुत्व की तुलना ISIS और बोको हराम जैसे जिहादी संगठनों से कर डाली है - और ये एक ऐसी बात है जिसके सामने किताब में लिखी सारी बातें पीछे छूट जाती हैं.

कोई दो राय नहीं कि ये किताब चुनावी माहौल में कांग्रेस के फायदे के लिए ही इसी वक्त रिलीज हुई होगी, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या हिंदुत्व (Attack on Hindutva) पर ऐसी टिप्पणी करके सलमान खुर्शीद कांग्रेस को कोई फायदा दिला पाएंगे - वो भी तब जब हाथों में तुलसी का माला लिये और माथे पर त्रिपुंड लगा कर प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) बनारस में 'जय माता दी' के नारे के साथ रैली कर रही हों?

कांग्रेस नेताओं से सलमान खुर्शीद की नाराजगी!

कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद की किताब का विमोचन गांधी परिवार का कोई सदस्य भी कर सकता था - और कोई नहीं तो आने वाले यूपी विधानसभा चुनाव में अयोध्या की अहमियत को देखते हुए प्रियंका गांधी वाड्रा भी कर सकती थीं, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. कांग्रेस नेता की किताब का टॉपिक बी ऐसा है कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी ये काम किये होते तो कांग्रेस के लिए कुछ और भी महत्वपूर्ण बात निकल कर सामने आ सकती थी.

ये तो साफ है कि गांधी परिवार ने सलमान खुर्शीद की किताब को लेकर विवाद की आशंका से दूरी बना ली हो. हो सकता है, किताब का विमोचन करने के लिए सलमान खुर्शीद ने अपनी पसंद के नेताओं को चुना हो. ये भी हो सकता है कि बाकी कोई तैयार न हुआ हो.

जैसे दिग्विजय सिंह और पी. चिदंबरम आये, कपिल सिब्बल भी आ सकते थे - क्योंकि अयोध्या मुद्दे को लेकर बीजेपी उनको हमेशा ही ये कहते हुए टारगेट करती रहती है कि वो राम मंदिर निर्माण में रोड़े अटकाने की कोशिश करते रहे. कपिल सिब्बल के लिए भड़ास निकालने का ये अच्छा मौका हो सकता था, लेकिन लगता है कांग्रेस में फैसले लेने को लेकर सवाल पूछने की वजह से ही सलमान खुर्शीद ने उनको नहीं बुलाने का फैसला किया होगा. सलमान खुर्शीद यूपी चुनाव में प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ काम कर रहे हैं - और मैनिफेस्टो कमेटी के प्रभारी भी बनाये गये हैं.

सलमान खुर्शीद की किताब आने के बाद हिंदुुत्व के मुद्दे पर कांग्रेस का पक्ष रखना प्रियंका गांधी वाड्रा के लिए नयी चुनौती होगी

सलमान खुर्शीद ने किताब को लेकर साथी कांग्रेस नेताओं से बातचीत का भी जिक्र किया है. ये बातें भी ऐसी हैं जिनसे हिंदुत्व के मसले पर कांग्रेस नेताओं के रुख से वो इत्तेफाक नहीं रखते - और सलमान खुर्शीद ऐसी कई बातों की तरफ ध्यान दिलाने की कोशिश करते हैं.

1. कांग्रेस की मुस्लिम पार्टी की छवि: सलमान खुर्शीद के मुताबिक, कांग्रेस नेताओं में एक तबका ऐसा है जो इस बात को लेकर अफसोस जताने लगता है कि पार्टी की छवि अल्पसंख्यक समर्थक राजनीतिक दल की हो गयी है.

कांग्रेस के चाहे जिन नेताओं की तरफ सलमान खुर्शीद का इशारा हो या निजी तौर पर असहमति या शिकायत हो, लेकिन ये बात तो सार्वजनिक तौर पर खुद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ही कह चुकी हैं.

इंडिया टुडे के ही एक कार्यक्रम में सोनिया गांधी ने कांग्रेस पर मुस्लिम पार्टी का ठप्पा लग जाने की बात स्वीकार की थी. बीजेपी पर ठीकरा फोड़ते हुए सोनिया गांधी ने कहा था कि उन लोगों से कांग्रेस को मुस्लिम पार्टी के तौर पर प्रचारित कर दिया - और ये 2019 के आम चुनाव के पहले की बात है.

जाहिर है सोनिया गांधी को भी लगता है कि कांग्रेस की मुस्लिम समर्थक पार्टी की छवि बन चुकी है और राहुल गांधी या प्रियंका गांधी को मंदिरों और मठों में हाजिरी लगाते इसीलिए देखा जाता है. हमेशा न सही चुनावों से पहले तो ऐसा किया भी जाता है और कांग्रेस की तरफ से ही प्रचारित भी किया जाता है.

वैसे भी बीजेपी नेता तो खुल्लम खुल्ला कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लगाते रहे हैं - और चुनाव दर चुनाव नतीजे भी यही साबित करते हैं कि लोग भी बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस की सफाई पर कम यकीन करते हैं.

आखिर सलमान खुर्शीद कांग्रेस की अल्पसंख्यक छवि को लेकर बताना क्या करना चाहते हैं - क्या वो सोनिया गांधी की बातों से भी असहमत हैं?

2. राहुल गांधी का सॉफ्ट हिंदुत्व: सलमान खुर्शीद को इस बात से भी आपत्ति है कि पार्टी में नेताओं का एक तबका ऐसा भी है जो कांग्रेस नेतृत्व की जनेऊधारी छवि की पहचान की वकालत करता है.

राहुल गांधी को हिंदू नेता की छवि धारण कर मंदिरों और मठों तक की यात्रा करते हर कोई देख चुका है - और कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने खुद उनके जनेऊधारी हिंदू होने का मीडया के सामने दावा किया है.

ऐसी चीजों का कांग्रेस को या राहुल गांधी को कितना फायदा मिला या नहीं मिल पाया ये अलग से आकलन हो सकता है, लेकिन सलमान खुर्शीद को ये क्यों लगता है कि ये सब कांग्रेस के कुछ नेता जिनका हिंदुत्व के प्रति खास झुकाव है उनकी वजह से ऐसा हो रहा है?

जो राहुल गांधी कांग्रेस के स्थापना दिवस समारोह छोड़ कर छुट्टी मनाने विदेश चले जाते हों. जो राहुल गांधी चुनाव प्रचार बीच में छोड़ कर छुट्टी मनाने चुपचाप निकल जाते हों - क्या उस राहुल गांधी की मर्जी के बगैर ये सब कांग्रेस के कुछ नेता ऐसा करा सकते हैं?

राहुल गांधी चाहे जैसे भी ये सब कार्यक्रम बनाते हों, लेकिन क्या सलमान खुर्शीद को भी कांग्रेस नेतृत्व की ऐसी बातों से ऐतराज है?

3. राम मंदिर का समर्थन क्यों: सलमान खुर्शीद को इस बात से भी ऐतराज है कि अयोध्या मसले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए ऐसे नेता ये घोषणा कर दिये वहां पर भव्य मंदिर बनाया जाना चाहिये.

सलमान खुर्शीद को लगता है कि अयोध्या में मंदिर निर्माण की सलाह देकर कांग्रेस नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के उस हिस्से की अनदेखी की जिसमें मस्जिद के लिए भी जमीन देने का निर्देश दिया गया था.'

फिर तो सलमान खुर्शीद को प्रियंका गांधी वाड्रा का वो बयान भी नागवार गुजरा होगा जो कांग्रेस महासचिव ने राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन कार्यक्रम की पूर्व संध्या पर ट्विटर पर शेयर किया था.

सलमान खुर्शीद ने किताब क्यों लिखी?

सलमान खुर्शीद की किताब का महज एक हिस्सा सारे बवाल की जड़ बना है जिसमें हिंदुत्व की तुलना वो मुस्लिम जिहादी संगठनों से कर रहे हैं - अब तो सवाल ये भी है कि क्या कांग्रेस ऐसा करके कुछ मुस्लिम वोट हासिल करने के बदले हिंदू वोटों की बड़ी संख्या गंवाने का जोखिम नहीं उठा चुकी है?

कांग्रेस नेता के किताब के उस खास हिस्से को हाइलाइट कर लोग सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं. बीजेपी के आईटी सेल के हेड अमित मालवीय ने भी इसे ट्विटर पर शेयर किया है.

जिन पंक्तियों पर ऐतराज जताया जा रहा है, वे किताब के छठवें चैप्टर 'द सैफ्रन स्काई' के पेज नंबर 113 पर लिखी हैं, "साधु और संत जिस सनातन धर्म और शास्त्रोक्त हिंदुत्व की बातें करते आये हैं, आज उसे कट्टर हिंदुत्व के जरिये हाशिये पर धकेला जा रहा है. हर तरीके से ये एक राजनीतिक संस्करण है जो हाल के वर्षों में ISIS और बोको हराम जैसे जिहादी मुस्लिम गुटों के समान है."

सलमान खुर्शीद की किताब ने कांग्रेस के कुछ नेताओं के लिए अपने मन की बात कहने का बेहतरीन मौका मुहैया करायी है. कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने 6 दिसंबर की घटना को गलत और संविधान को कलंकित और अदालत की अवमानना करने वाला बताया है - और सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कहा है, 'काफी समय बीत जाने की वजह से दोनों पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार कर लिया. कोर्ट का फैसला दोनों पक्षों ने स्वीकार कर लिया और इसी वजह से ये अच्छा फैसला था, न कि फैसले के अच्छा होने के कारण दोनों पक्षों ने स्वीकार किया.'

लेकिन यहां पर सलमान खुर्शीद का नजरिया चिदंबरम से थोड़ा अलग लगता है. सलमान खुर्शीद ने एक इंटरव्यू में अयोध्या पर ये किताब लिखने की वजह भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ही बताया है.

सलमान खुर्शीद का कहना है कि लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला पढ़े बगैर की टिप्पणी करने लगे थे, '1500 पेज पढ़ लेने के बाद मैंने दोबारा पढ़ा और समझने की कोशिश की. तब तक लोग फैसले को देखे बिना ही अपनी राय देने लगे थे. कोई कह रहा था कि उसे अच्छा नहीं लगा कि आपने मस्जिद नहीं बनने दी, कुछ बोले कि उनको अच्छा नहीं लगा कि मंदिर बनवा दिया.'

कांग्रेस नेता खुर्शीद कहते हैं, 'किसी ने पढ़ा नहीं... समझा नहीं कि सुप्रीम कोर्ट ने क्या किया? क्यों किया? कैसे किया? लिहाजा मेरा दायित्व बनता है कि फैसले को समझाऊं. मैं इस कोर्ट से जुड़ा हुआ हूं... लोगों को बताऊं कि फैसले में त्रुटि है या नहीं - मैंने पाया कि ये अच्छा फैसला है... देश में आज जो हालात हैं... मरहम लगाने का एक रास्ता है.'

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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