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Ukraine special 4: क्या है पुतिन का व्लादिमीर प्लान, कौन है इस प्लान के पीछे?

    • शरत कुमार
    • Updated: 01 मार्च, 2022 10:19 PM
  • 01 मार्च, 2022 08:39 PM
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पुतिन पश्चिमी मीडिया को Bunch of Lies कहते हैं मगर यह पूरा असत्य नहीं है. वैसे रूस कम्युनिस्ट देश रहा है मगर असल में वह कभी नास्तिक नहीं बन पाया. कम्युनिस्ट पतन से पनपे पुतिन रूस के धार्मिक उपदेशक शेवकुवनोव के सोहबत में रहते हैं जिसने सबसे पहले रूसी जनता को पुतिन के लिए पुतिन से ज़्यादा व्लादिमीर बोलने और पुकारे जाने की रणनीति बनाई.

शेक्सपीयर ने जब कहा था कि नाम में क्या रखा है? तब, क्या उन्होंने सोचा होगा कि ‘नाम‘ रूस और युक्रेन युद्ध का बीज भी बो सकता है. आप सोच रहे होंगे कि कोई नाम भला दो युद्धों का कारक कैसे बन सकता है? मगर रूस और पुतिन के पिछले 30 सालों के इतिहास को जानने वाले जानते हैं कि पुतिन अपने व्लादिमीर नाम और व्लादिमीर नाम से जुड़े यूक्रेन के इतिहास को लेकर कितने जज़्बाती हैं. मगर पुतिन के व्लादिमीर के इतिहास को लेकर पश्चिमी यूरोपीय और अमेरिकी मीडिया भी अपने प्रोपोगंडा में पुतिन को टक्कर देता है. आज हम यूक्रेन युद्ध के ऐतिहासिक और धार्मिक कारणों को समझेंगे

व्लादिमीर नाम में क्या रखा है?

ये नाम बड़े काम की चीज है. क्या ये संभव है कि देवी थियोकोटोस ने व्लादिमीर द ग्रेट के अवतार के रूप व्लादिमीर पुतिन को रूस को बचाने और यूक्रेन, बेलारूस और रूस के कीवियन रूस को फिर से एक साथ लाने के लिए रूस की सत्ता पुतिन को सौंपी है. पुतिन की सोच और उनके सपनों को लेकर ये कहानियां पश्चिमी यूरोप और अमेरिकी मीडिया में प्रचलित है कि पुतिन ऐसा सोचते हैं और उसी सपने को लेकर सनकीपन पर उतारू हैं.

यूक्रेन को लेकर जो पुतिन की इच्छा है साफ़ पता चलता है कि वो महत्वकांशी हैं

वैसे पुतिन पश्चिमी मीडिया को Bunch of Lies कहते हैं मगर यह पूरा असत्य नहीं है. वैसे रूस कम्युनिस्ट देश रहा है मगर असल में वह कभी नास्तिक नहीं बन पाया. कम्युनिस्ट पतन से पनपे पुतिन रूस के धार्मिक उपदेशक शेवकुवनोव के सोहबत में रहते हैं जिसने सबसे पहले रूसी जनता को पुतिन के लिए पुतिन से ज़्यादा व्लादिमीर बोलने और पुकारे जाने की रणनीति बनाई.

पुतिन भी अपना नाम व्लादिमीर हीं कहने पर ज़ोर डालने लगे. 2009 में तब यह रणनीतिक फ़ैसला था क्योंकि रूसी क़ानून के अनुसार पुतिन को...

शेक्सपीयर ने जब कहा था कि नाम में क्या रखा है? तब, क्या उन्होंने सोचा होगा कि ‘नाम‘ रूस और युक्रेन युद्ध का बीज भी बो सकता है. आप सोच रहे होंगे कि कोई नाम भला दो युद्धों का कारक कैसे बन सकता है? मगर रूस और पुतिन के पिछले 30 सालों के इतिहास को जानने वाले जानते हैं कि पुतिन अपने व्लादिमीर नाम और व्लादिमीर नाम से जुड़े यूक्रेन के इतिहास को लेकर कितने जज़्बाती हैं. मगर पुतिन के व्लादिमीर के इतिहास को लेकर पश्चिमी यूरोपीय और अमेरिकी मीडिया भी अपने प्रोपोगंडा में पुतिन को टक्कर देता है. आज हम यूक्रेन युद्ध के ऐतिहासिक और धार्मिक कारणों को समझेंगे

व्लादिमीर नाम में क्या रखा है?

ये नाम बड़े काम की चीज है. क्या ये संभव है कि देवी थियोकोटोस ने व्लादिमीर द ग्रेट के अवतार के रूप व्लादिमीर पुतिन को रूस को बचाने और यूक्रेन, बेलारूस और रूस के कीवियन रूस को फिर से एक साथ लाने के लिए रूस की सत्ता पुतिन को सौंपी है. पुतिन की सोच और उनके सपनों को लेकर ये कहानियां पश्चिमी यूरोप और अमेरिकी मीडिया में प्रचलित है कि पुतिन ऐसा सोचते हैं और उसी सपने को लेकर सनकीपन पर उतारू हैं.

यूक्रेन को लेकर जो पुतिन की इच्छा है साफ़ पता चलता है कि वो महत्वकांशी हैं

वैसे पुतिन पश्चिमी मीडिया को Bunch of Lies कहते हैं मगर यह पूरा असत्य नहीं है. वैसे रूस कम्युनिस्ट देश रहा है मगर असल में वह कभी नास्तिक नहीं बन पाया. कम्युनिस्ट पतन से पनपे पुतिन रूस के धार्मिक उपदेशक शेवकुवनोव के सोहबत में रहते हैं जिसने सबसे पहले रूसी जनता को पुतिन के लिए पुतिन से ज़्यादा व्लादिमीर बोलने और पुकारे जाने की रणनीति बनाई.

पुतिन भी अपना नाम व्लादिमीर हीं कहने पर ज़ोर डालने लगे. 2009 में तब यह रणनीतिक फ़ैसला था क्योंकि रूसी क़ानून के अनुसार पुतिन को राष्ट्रपति का पद छोड़कर प्रधानमंत्री बनना पड़ा था और दुबारा राष्ट्रपति बनने के लिए देश में माहौल बनाया जाना था. मगर पुतिन व्लादिमीर क्यों बनना चाहते थे.

व्लादिमीर द ग्रेट

व्लादिमीर द ग्रेट का 958 ई से 1015 ई. का कार्यकाल कीवियन रूस के इतिहास का गोल्डन एज कहा जाता है. व्लादिमीर द ग्रेटकीव के ग्रैंड प्रिंस था जिसने पहली बार रूस, बेलारूस और युक्रेन को मिलाकर एक रूसी सम्राज्य बनाया था. अब तो आप समझ गए होंगे कि पुतिन के यूक्रेन प्रेम के पीछे कीव का व्लादिमीर द ग्रेट है. व्लादिमीर नोवोगोरोड का प्रिंस भी था.

नोवोगोरोड को मौजूदा रूस का फ़ाउंडेशन माना जाता है. चर्च का उपदेशक शेवकुनोव ने कहा था कि जो भी रूस की भूमि से प्रेम करता है उसे व्लादिमीर से भी प्रेम करना चाहिए. ईश्वर ने रूसी प्रजाति को व्लादिमीर को सौंपा है. पुतिन ने अब खुलकर कहना खुद को व्लादिमीर कहना शुरू कर दिया. नवंबर 2012 में रूसी संसद को संबोधित करते हुए कहा कि मैं व्लादिमीर द ग्रेट का सपना पूरा कर रहा हूं.

पुतिन के इसी सपने में रूस-बेलारूस-यूक्रेन का महासंघ का सपना था. नवंबर 2013 में जब यूक्रेन और यूरोपियन यूनियन के बीच ऐतिहासिक यूक्रेन यूरोपियन यूनियन ट्रेड एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर होना था तो उससे पहले पुतिन कीव पहुंचे. वहां यूक्रेन से कहा कि 'हमारी सोच, धर्म, संस्कृति और इतिहास एक है. भाषा भी लगभग एक जैसी है. मैं फिर से कहने आया हूं कि हम एक है.

धर्म और जाति कार्ड

पुतिन जुलाई 2013 की कीव दौरे के दौरान व्लादिमीर द ग्रेट के माउंटेन पर पहुँचे. जहां सेंट व्लादिमीर की प्रतिमा है. व्लादिमीर द ग्रेटकीवियन रूस के ईस्टर्न क्रिश्चियनिटी के जनक भी माने जाते हैं. व्लादिमीर द ग्रेट ने पहली बार कॉन्सटेटिनोपल जो आज तुर्की काइस्तांबुल है, जीतकर वहां के चर्च में क्रिश्चियन बने थे और फिर पूरे रूस को क्रिश्चियन बनाया. इसीलिए इन्हें कीव में सेंट व्लादिमीर भी कहा जाता है.

ये यूरोप के वेस्टर्न क्रिश्चियन से अलग है. वहां उन्होंने ईस्टर्न क्रिश्चियन की एकता का कार्ड खेला और वहाँ के चर्चों से रूस के साथ एकता के लिए काम करने की अपील की. पुतिन ने कहा ईश्वर की यही इच्छा है कि हम दोनों देश यूक्रेन और रूस एक रहे. जब यही ईश्वर की चाहत है. ईश्वर की मर्ज़ी है इसलिए दुनिया की कोई ताक़त यूक्रेन और रूस को अलग नहीं कर सकता है.

पुतिन ने यूक्रेन के पाने के लिए रूसी देवी थियोटोकोस का भी कार्ड खेला. व्लादिमीर द ग्रेट थियोटोकोस को अपना देवी मानता था जैसे वेस्टर्न क्रिश्चियन मैडोना को मानते हैं. थियोटोकोस को रूस और यूक्रेन के लोग इतना मानते हैं कि मंगोल आक्रमण के दौरान इनकी तस्वीर पूरे कीव में घूमाया गया. तैमूर लंग पर रूसी आक्रमण के समय रूस को बचाने के लिए इसे कीव के चर्च से मॉस्को के चर्च में ले ज़ाया गया.

बोल्शेविकों ने भले हीं थियोटोकोस की तस्वीर आर्ट गैलरी में रखवा दी मगर जब नाजियों ने रूस पर आक्रमण किया तोनास्तिक स्टैलिन ने बचने के लिए म्यूज़ियम से निकालकर थियोटोकस के चित्र को पूरे रूस में घुमाया. पुतिन का मानना है कि एक और व्लादिमीर लेनिन इसलिए असफल हुआ क्योंकि उसने पवित्र लेडी थियोटोकोस का अनादर किया था.

पुतिन ने म्यूज़ियम से निकालकर इन्हें वापस चर्च में रखवाया है और हर रूसी इनका दर्शन कर सकता है. अब इसी पवित्र लेडी के बल पर पुतिन युक्रेन को वापस पाना चाहते हैं.

पुतिन का नैरेटिव

किसी भी नैरेटिव को सेट करने के लिए आपको एतिहासिक साक्ष्य और तथ्य चाहिए. तो फिर मॉन्क शेवकुनोव ने इसके लिए इतिहासकार और दार्शनिक ईवान अलेक्ज़ेंडरो इलियन को चुना जो बोल्शेविकों के भगाने के बाद हिटलर की सरपरस्ती में जी रहा था. पुतिन युग में इलियन के साहित्य को खुब प्रचारित और प्रसारित किया गया. इलियन अब पुतिन का चाणक्य और पुतिन चंद्रगुप्त के रूप में रूस का नायक है.

2009 में पुतिन खुद ज्यूरिख गए और इलियन के कब्र से इलियन के अवशेष मॉस्को लेकर आए. शेवकुवनोव नेइलियन के सपने को पुतिन का सपना बना डाला. इलियन ने 1930 में कहा था रूस को बोल्शेविक और लोकतंत्र के बीच का एकशासन चाहिए. आज का पुतिन वही देने का दावा कर रहे हैं.

40 के दशक में जब यूरोप और अमेरिका रूस से यूक्रेन को अलग करने की साज़िशों करने में लगे थे या उनके नज़रिए से यूक्रेनियों को रूस के अत्याचार से बचाने में लगे थे तब इलियन ने कहा था कि, 'जो भी यूक्रेन को रूस से अलग करने का सपना देखता है उससे बड़ा रूस का दुश्मन इस धरती पर नहीं है.'

व्लादिमीर बनाम वोलोदिमिर

किसी भी युद्ध में चाहे वह आमने सामने की लड़ाई हो या परोक्ष युद्ध हो या छद्म युद्ध हो, इतिहास की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होती है. अमेरिका ने रूस को घेरने के लिए जब तालिबान बनाया तो सैकड़ों करोड़ रुपये केवल इस्लामी और अफ़ग़ानिस्तानी प्रोपोगंडा साहित्य बनाने पर ख़र्च किया. मुल्ला और मदरसा ऐसे ऐसे बनाए थी जिसकी सीखें इस्लाम में दूर दूर तक नहीं है यहाँ तक कि इस्लामिक देशों में भी नहीं थी.

यही काम पश्चिमी यूरोप और अमेरिका यूक्रेन में भी करना शुरू कर दिए. ब्लादिमीर की काट में उन्होंने वोलोदिमिर नामलेकर आए और कहा कि यूक्रेन के व्लादिमीर द ग्रेट व्लादिमीर नहीं वोलोदिमिर द ग्रेट थे. तो क्या पश्चिमी यूरोप और अमेरिका के वोलेदिमिर जेलिंस्की को यूक्रेन का नायक बनाकर यूक्रेन की गद्दी पर बैठाने की रणनीति के पीछे व्लादिमीर बनाम वोलोदिमिर कार्ड खेलना तो नहीं था.

शुरुआत में पुतिन के नायक व्लादिमीर द ग्रेट के ईस्टर्न क्रिश्चियनिटी को लेकर भी कई सवाल उठाए गए कि वोकनवर्टेड था. भाइयों को मारकर गद्दी पर बैठनेवाला था. इलियन को ये लोग सनकी लेखक मानते हैं न कि कोई दार्शनिक या इतिहासकार. दासी पुत्र था वैगेरह-वग़ैरह. और यह सब व्लादिमीर पुतिन के व्लादिमीर ग्रेट बनने और कीव का शासक बनने की महत्वाकांक्षा को और मज़बूत करता गया.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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