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Jahangirpuri violence का राजनीतिक शास्त्र कुछ और इशारा करता है...

    • रमेश ठाकुर
    • Updated: 22 अप्रिल, 2022 01:36 PM
  • 22 अप्रिल, 2022 01:31 PM
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हनुमान जयंती पर जो कुछ भी दिल्ली के जहांगीरपुरी में हुआ कहा जा सकता है कि हिंसा के राजनीतिक शास्त्र को अब आम आदमियों को बुनियादी रूप से समझने की जरूरत है. मामले के बाद बड़ा सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्यों होता जा रहा है हमारे सौहाद्र पूर्ण माहौल में, कौन है जो ये जहर घोल रहा है.

हिंसा का बुनियादी सवाल यही है, क्या दिल्ली हिंसा पहले से सुनियोजित थी? या फिर ये ट्रेलर मात्र है, पिक्चर अभी शेष है? या इसकी नींव राजनीतिक स्वार्थ को ध्यान में रखकर राजनैतिक शास्त्र ने रखी. ऐसे कुछ सवाल घटना थमने के बाद दिल्लीवासियों के जेहन में उठ रहे हैं. सवाल उठने भी चाहिए, आखिर ऐसा क्या है जो किस्तों में कुछ अंतराल के बाद राजधानी में ऐसे फसाद होते रहते हैं. और तब तो और जब चुनावों की सुगबुहाटें होने लगती हैं. कुछ समय बाद दिल्ली में एमसीडी चुनाव होने भी हैं. इसलिए कड़ियां आपस में काफी हद तक मेल खाती भी हैं? खैर, ये तो आम इंसान के लिए सारे काल्पनिक अंदेशे मात्र हैं, जो होना होता है वो क्षण में हो ही जाता है. कमोबेश, वैसा हो भी रहा है. लेकिन हिंसा के राजनीतिक शास्त्र को अब आम आदमियों को बुनियादी रूप से समझने की जरूरत है. राजधानी की हिंसा सुनियोजित थी या नहीं? ये सवाल पुलिस पर छोड़ देते हैं. पर, दूसरे सवाल हम खुद में खोजेंगे, आखिर ऐसा क्यों होता जा रहा है हमारे सौहाद्र पूर्ण माहौल में, कौन है जो ये जहर घोल रहा है.

देश की राजधानी दिल्ली में हनुमान जयंती पर जिस तरह से हिंसा हुई महसूस यही हो रहा है कि इसकी प्लानिंग काफी दिनों पहले हुई थी

16 अप्रैल की शाम को जब दिल्ली में हिंसा हो रही थी, उसी वक्त सोशल मीडिया पर दो बेहद खूबसूरत तस्वीरें हम सबको दिख रही थी जिसमें हनुमान जन्मोत्सव के दौरान मुस्लिम समुदाय के लोग रैली में शामिल लोगों पर फूल बरसा रहे थे, कोल्ड ड्रिंक और पानी की बोतलों का वितरण कर रहे थे. ये तस्वीरें उत्तर प्रदेश के शामली और नोएडा की हैं. शामली में हिंदू-मुस्लिम भाईचारा कई समय बाद दिखा.

दरअसल हमें ऐसा ही तो हिंदुस्तान चाहिए, जो आजादी से पहले था, जब एक ही थाली में सभी धर्म के लोग खाना खाते थे. पर, अब ना जाने...

हिंसा का बुनियादी सवाल यही है, क्या दिल्ली हिंसा पहले से सुनियोजित थी? या फिर ये ट्रेलर मात्र है, पिक्चर अभी शेष है? या इसकी नींव राजनीतिक स्वार्थ को ध्यान में रखकर राजनैतिक शास्त्र ने रखी. ऐसे कुछ सवाल घटना थमने के बाद दिल्लीवासियों के जेहन में उठ रहे हैं. सवाल उठने भी चाहिए, आखिर ऐसा क्या है जो किस्तों में कुछ अंतराल के बाद राजधानी में ऐसे फसाद होते रहते हैं. और तब तो और जब चुनावों की सुगबुहाटें होने लगती हैं. कुछ समय बाद दिल्ली में एमसीडी चुनाव होने भी हैं. इसलिए कड़ियां आपस में काफी हद तक मेल खाती भी हैं? खैर, ये तो आम इंसान के लिए सारे काल्पनिक अंदेशे मात्र हैं, जो होना होता है वो क्षण में हो ही जाता है. कमोबेश, वैसा हो भी रहा है. लेकिन हिंसा के राजनीतिक शास्त्र को अब आम आदमियों को बुनियादी रूप से समझने की जरूरत है. राजधानी की हिंसा सुनियोजित थी या नहीं? ये सवाल पुलिस पर छोड़ देते हैं. पर, दूसरे सवाल हम खुद में खोजेंगे, आखिर ऐसा क्यों होता जा रहा है हमारे सौहाद्र पूर्ण माहौल में, कौन है जो ये जहर घोल रहा है.

देश की राजधानी दिल्ली में हनुमान जयंती पर जिस तरह से हिंसा हुई महसूस यही हो रहा है कि इसकी प्लानिंग काफी दिनों पहले हुई थी

16 अप्रैल की शाम को जब दिल्ली में हिंसा हो रही थी, उसी वक्त सोशल मीडिया पर दो बेहद खूबसूरत तस्वीरें हम सबको दिख रही थी जिसमें हनुमान जन्मोत्सव के दौरान मुस्लिम समुदाय के लोग रैली में शामिल लोगों पर फूल बरसा रहे थे, कोल्ड ड्रिंक और पानी की बोतलों का वितरण कर रहे थे. ये तस्वीरें उत्तर प्रदेश के शामली और नोएडा की हैं. शामली में हिंदू-मुस्लिम भाईचारा कई समय बाद दिखा.

दरअसल हमें ऐसा ही तो हिंदुस्तान चाहिए, जो आजादी से पहले था, जब एक ही थाली में सभी धर्म के लोग खाना खाते थे. पर, अब ना जाने किसकी नजर लग गई है. दोनों धर्म के लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हुए पड़े हैं. घटना वाला इलाका जहांगीरपुरी दिल्ली का ऐसा आवासीय क्षेत्र है जहां बेहद गरीब तबके लोग रहते हैं, दिहाड़ी-मजदूरी करके अपना पेट पालते हैं, उन्हें राजनीति, दंगा-फसादों से कोई मतलब नहीं, लेकिन हनुमान जन्मोत्सव के दिन लोगों ने उन्हें उकसाकर ये कारनाम कर दिया.

जहां हिंसा हुई, वहां दोनों तरफ आमने-सामने मंदिर और मस्जिद हैं, हिंदु-मुस्लमान आपस में प्यार से रहते हैं. एक-दूसरे के बनी-बिगड़ी और सुख-दुख में साथी होते हैं, आपस में हाथ बंटाते हैं. किसी तरह की कोई आज तक दिक्कतें नहीं हुई. घटना कैसे हुई, इस बात को वहां के लोग समझ नहीं पाए हैं, आखिर ये हुआ कैसे? हिंसक घटना के बाद से समूचा इलाका भयभीत है. हर तरह के काम धंधे बंद हैं, पुलिस ने सबको घरों में कैद किया हुआ है.

सुरक्षा की दृष्टि से कोई कहीं आजा ना सके इसके लिए केंद्र सरकार ने इलाके को छावनी में तब्दील कर धारा 144 लगा दी है. गलियों के गेट पर ताला जड़ दिया है. स्कूल, प्रतिष्ठान, दुकानें, बाजारें सब बंद पड़ी हैं. लोग घरों में सहमे हुए हैं. बहरहाल, घटना के पीछे किसका समाजशास्त्र था, उसकी तस्वीर अब दिखने लगी है. हिंसा को लेकर जमकर सियासत होनी शुरू गई है. पक्ष-विपक्ष की ओर से आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल पड़ा है. जबकि, इस वक्त सिर्फ और सिर्फ समाधान की बात होनी चाहिए.

पर, नहीं, लोग अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने की फिराक में हैं. कोई एक दल नहीं, बल्कि सभी पार्टियां मौके का फायदा उठाना चाहती हैं. लेकिन धरातल पर अंदरूनी खाने राजधानी के हालात अच्छे नहीं हैं. इसके बाद भी कुछ अंदेशे ऐसे दिखते हैं जो सुखद नहीं? आगे भी हालात बिगड़ते नजर आते हैं. ये तय है कि जो हिंसा हुई, वह अचानक से घटने वाली घटना नहीं थी, बल्कि उसकी पटकथा पहले ही लिखी गई थी.

इलाके के कई लोग तो खुलेआम बोल ही रहे हैं कि अगर पुलिस सतर्क होती तो घटना होती भी नहीं? प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं जब लोग हिंसक हो रहे थे, तब पुलिसकर्मी तमाशबीन बने हुए थे. लोगों के हाथों में धारदार हथियार थे, पत्थर थे. दोनों तरफ से जब पथराव शुरू हुआ तो सबसे पहले लोगों ने पुलिसकर्मियों को ही निशाना बनाया, जिसमें कई पुलिसकर्मी और स्थानीय लोग घायल हुए.

घायलों का इलाज पास के बाबू जगजीवन राम अस्पताल में हो रहा है. फिलहाल पुलिस ने पूरे मामले पर एफआईआर दर्ज की हैं जिसमें मुस्लिम समुदाय के 14 लोगों को नामजद किया गया है जिसमें प्रमुख नाम मोहम्मद अंसार है जिसने सबसे पहले विरोध करना शुरू किया था. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया है. ये बंदा इलाके का कुख्यात है, कई मुकदमे दर्ज हैं, गैंगस्टर के तरह चार बार जेल जा चुका है.

समय का तकाजा यही है, घटना की निष्पक्ष जांच हो, दोषी पर सख्त से सख्त कार्रवाई हो. फिलहाल हिंसा को लेकर केंद्र सरकार की नजर बनीं हुई है, क्योंकि दिल्ली की सुरक्षा का जिम्मा उन्हीं के कंधों पर है. घटना की जानकारी के लिए गृहमंत्री अमित शाह ने पुलिस कमिश्नर तलब कर जरूरी कदम उठाने के निर्देश दिए. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी एलजी से बात करके दंगाईयों पर सख्त कार्रवाई की मांग की.

गृह मंत्रालय में घटना को लेकर बड़ी बैठक भी हुई. हालांकि ऐसा हर घटना के बाद होता ही है. पर, इस बार सिर्फ मामला शांत होने का इंतजार नहीं किया जाए, फसाद के तय तक जाने की जरूरत है. घटना की जांच में तीन टुकड़ियां लगी हैं. ड्रोन कैमरों भी लगे हैं जिन घरों से पथराव शुरू हुआ, उनकी जांच हो. हर एंगल से जांच की जाए. ईमानदारी और राजनीतिक चश्में के बिना कड़ाई से जांच होगी, तभी प्रत्येक वर्ष होने वाले दंगों से राजधानी मुक्त हो पाएगी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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