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मोदी के आगे सिब्बल की क्या बिसात !

    • नवेद शिकोह
    • Updated: 25 नवम्बर, 2018 07:01 PM
  • 25 नवम्बर, 2018 07:01 PM
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कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल कानूनी दांव-पेंच से अयोध्या विवाद पर अदालत का फैसला टलवा सकते हैं तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्री अरुण जेटली और रविशंकर जैसे तमाम क़ाबिल अधिवक्ता फैसला टलवाने की कांग्रेसी कोशिश को असफल क्यों नहीं कर सके?

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की मांग को लेकर धर्म संसद के आयोजन से देशभर की राममयी हलचलों में मोदी सरकार ने खुद की जिम्मेदारी और वादे के बोझ को कम करने के लिए राम मंदिर निर्माण ना होने का ठीकरा एक बार फिर कांग्रेस के सिर पर फोड़ा. प्रधानमंत्री ने कहा कि कांग्रेस रोड़े ना अटकाती तो अयोध्या विवाद पर अदालत का फैसला टलता नहीं.

जल्द से जल्द अयोध्या में राम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहे तमाम रामभक्तों को प्रधानमंत्री का ये तर्क हजम नहीं हो रहा है. शिव सेना.. तमाम हिन्दू संगठनों.. साधू-संतों और राम मंदिर निर्माण के पैरोकार करोड़ों देशवासी सोशल मीडिया पर भाजपा सरकार से सवाल कर रहे हैं- कमजोर विपक्षी दल कांग्रेस अयोध्या मसले पर फैसला टलवा सकती है तो ताकतवर सत्ताधारी भाजपा फैसला करवा भी सकती थी. लोगों ने सवाल किये - साढ़े चार साल में भाजपा की ताकतवर सरकार ना तो अविलंब फैसला करवा पाई और न जन भावनाओं के आधार पर संसद में राम मंदिर निर्माण के कानून के लिए अध्यादेश ला सकी.

भाजपा और देश के करोड़ों नागरिक अदालत में लंबित राम मंदिर का फैसला ना आने से आहत हैं.

कांग्रेस कम संख्या बल के लिहाज से बेहद कमजोर विपक्षी दल है. सत्ता पक्ष के आरोपों के अनुसार कांग्रेस चाहती है कि अयोध्या में राम जन्मभूमि पर फैसला टलता रहे. इसलिए कांग्रेस नेता और अधिवक्ता कानूनी प्रक्रिया में रुकावटें डाल रहे हैं. फैसले में विलम्ब पैदा कर रहे हैं. जजों पर दबाव बना रहे हैं.

सोशल मीडिया पर भाजपा समर्थक ही भाजपा से सवाल करने लगे हैं कि यदि विपक्ष कानूनी फैसले में बाधा डाल सकता है तो कांग्रेस के शासनकाल में बतौर विपक्षी दल भाजपा ने अविलंब फैसला करने के क्या प्रयास किये. यानी राम के नाम की राजनीति करके सत्ता पाने वाली भाजपा ने इस विवाद के निपटारे के...

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की मांग को लेकर धर्म संसद के आयोजन से देशभर की राममयी हलचलों में मोदी सरकार ने खुद की जिम्मेदारी और वादे के बोझ को कम करने के लिए राम मंदिर निर्माण ना होने का ठीकरा एक बार फिर कांग्रेस के सिर पर फोड़ा. प्रधानमंत्री ने कहा कि कांग्रेस रोड़े ना अटकाती तो अयोध्या विवाद पर अदालत का फैसला टलता नहीं.

जल्द से जल्द अयोध्या में राम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहे तमाम रामभक्तों को प्रधानमंत्री का ये तर्क हजम नहीं हो रहा है. शिव सेना.. तमाम हिन्दू संगठनों.. साधू-संतों और राम मंदिर निर्माण के पैरोकार करोड़ों देशवासी सोशल मीडिया पर भाजपा सरकार से सवाल कर रहे हैं- कमजोर विपक्षी दल कांग्रेस अयोध्या मसले पर फैसला टलवा सकती है तो ताकतवर सत्ताधारी भाजपा फैसला करवा भी सकती थी. लोगों ने सवाल किये - साढ़े चार साल में भाजपा की ताकतवर सरकार ना तो अविलंब फैसला करवा पाई और न जन भावनाओं के आधार पर संसद में राम मंदिर निर्माण के कानून के लिए अध्यादेश ला सकी.

भाजपा और देश के करोड़ों नागरिक अदालत में लंबित राम मंदिर का फैसला ना आने से आहत हैं.

कांग्रेस कम संख्या बल के लिहाज से बेहद कमजोर विपक्षी दल है. सत्ता पक्ष के आरोपों के अनुसार कांग्रेस चाहती है कि अयोध्या में राम जन्मभूमि पर फैसला टलता रहे. इसलिए कांग्रेस नेता और अधिवक्ता कानूनी प्रक्रिया में रुकावटें डाल रहे हैं. फैसले में विलम्ब पैदा कर रहे हैं. जजों पर दबाव बना रहे हैं.

सोशल मीडिया पर भाजपा समर्थक ही भाजपा से सवाल करने लगे हैं कि यदि विपक्ष कानूनी फैसले में बाधा डाल सकता है तो कांग्रेस के शासनकाल में बतौर विपक्षी दल भाजपा ने अविलंब फैसला करने के क्या प्रयास किये. यानी राम के नाम की राजनीति करके सत्ता पाने वाली भाजपा ने इस विवाद के निपटारे के लिए ना सत्ता में रहकर कुछ किया और ना विपक्ष में रहकर कानूनी लड़ाई में फैसला आने का प्रयास किया. जबकि भाजपा और देश के करोड़ों नागरिक अदालत में लंबित इस विवाद का फैसला ना आने से आहत हैं.

सोशल मीडिया में भाजपा समर्थक ही इस तरह के तमाम सवाल कर रहे हैं. सीमा चतुर्वेदी लिखती हैं कि जीएसटी, एफडीआई और कांगेस की कई अधूरी योजनाओं को भाजपा सरकार ने पूरा किया. यानी कांग्रेस के बोये बीज को खाद-पानी देकर वृक्ष का रूप दिया. लेकिन कांग्रेस के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अयोध्या में जिस राम मंदिर का शिलान्यास कराया तो बस कांग्रेस के इस अधूरे काम को ही भाजपा पूरा नहीं कर पा रही है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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