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'अयोध्या' और 'चुनावी योद्धा' क्या असर डालेंगे विधानसभा चुनाव पर...

    • आईचौक
    • Updated: 24 नवम्बर, 2018 05:41 PM
  • 24 नवम्बर, 2018 05:41 PM
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छत्तीसगढ़ में वोटिंग हो जाने के बाद मध्य प्रदेश और राजस्थान ऐसे दो राज्य हैं जो राजनीतिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण हैं. बीजेपी के लिए भी और कांग्रेस के लिए भी. अयोध्या मामला भी गर्म है - क्या ये बातें सब वोटर तक भी पहुंच रही हैं.

पांच में से राजनीतिक रूप से जो दो महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव हैं, वे हैं - मध्य प्रदेश और राजस्थान. दोनों ही राज्यों विधानसभा के चुनाव अभी होने हैं. दोनों ही जितना महत्वपूर्ण छत्तीसगढ़ भी है जहां दोनों चरणों के चुनाव हो चुके हैं. एक तरफ मध्य प्रदेश और राजस्थान में चुनावी तैयारियां आखिरी दौर में पहुंची हैं - दूसरी तरफ अयोध्या के छावनी में तब्दील होने की खबरें आ रही हैं. क्या ये बातें चुनावी इलाकों के मतदाताओं तक भी उतनी ही शिद्दत से पहुंच रही हैं, जितनी कि दिल्ली और देश के बाकी हिस्सों में?

स्थिति तनावपूर्ण भी, अपनेआप नियंत्रण में भी और आशंकाओं के बादल भी

अयोध्या में एक बार फिर खूब तनातनी है. ‘हर हिंदू की यही पुकार, पहले मंदिर फिर सरकार’ नारा लगाते हजारों शिवसैनिक ठाणे स्टेशन से अयोध्या के लिए कूच कर चुके हैं. शिवसेना की ओर से अयोध्या में जगह जगह सौ से ज्यादा पोस्टर, होर्डिंग और कटआउट लगे हुए हैं, स्लोगन वही है - 'पहले मंदिर फिर सरकार'.

दावा है कि 25 नवंबर को अयोध्या में करीब दो लाख लोग जुटेंगे, वीएचपी के संत समागम के लिए - 1 लाख आरएसएस कार्यकर्ता, 1 लाख वीएचपी कार्यकर्ता और करीब 5 हजार शिवसैनिक. वीएचपी के संत समागम से पहले शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे 1100 संतों को सम्मानित कर रहे हैं.

'पहले मंदिर फिर सरकार...'

अयोध्या में प्रशासन ने धारा 144 लागू जरूर कर दिया है, लेकिन आम जनता को कोई मुश्किल फिलहाल नहीं है. संघ और वीएचपी कार्यकर्ताओं और शिवसैनिकों के आने जाने पर किसी तरह की रोक टोक नहीं है. फिर भी लोगों के मन में आते पुराने ख्यालात आशंकाओं की बाढ़ लगा रहे हैं. कारोबारी तबका तो वीएचपी के रोड शो से ज्यादा ही नाराज है - और उसके बहिष्कार का फैसला किया है.

शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत कह रहे...

पांच में से राजनीतिक रूप से जो दो महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव हैं, वे हैं - मध्य प्रदेश और राजस्थान. दोनों ही राज्यों विधानसभा के चुनाव अभी होने हैं. दोनों ही जितना महत्वपूर्ण छत्तीसगढ़ भी है जहां दोनों चरणों के चुनाव हो चुके हैं. एक तरफ मध्य प्रदेश और राजस्थान में चुनावी तैयारियां आखिरी दौर में पहुंची हैं - दूसरी तरफ अयोध्या के छावनी में तब्दील होने की खबरें आ रही हैं. क्या ये बातें चुनावी इलाकों के मतदाताओं तक भी उतनी ही शिद्दत से पहुंच रही हैं, जितनी कि दिल्ली और देश के बाकी हिस्सों में?

स्थिति तनावपूर्ण भी, अपनेआप नियंत्रण में भी और आशंकाओं के बादल भी

अयोध्या में एक बार फिर खूब तनातनी है. ‘हर हिंदू की यही पुकार, पहले मंदिर फिर सरकार’ नारा लगाते हजारों शिवसैनिक ठाणे स्टेशन से अयोध्या के लिए कूच कर चुके हैं. शिवसेना की ओर से अयोध्या में जगह जगह सौ से ज्यादा पोस्टर, होर्डिंग और कटआउट लगे हुए हैं, स्लोगन वही है - 'पहले मंदिर फिर सरकार'.

दावा है कि 25 नवंबर को अयोध्या में करीब दो लाख लोग जुटेंगे, वीएचपी के संत समागम के लिए - 1 लाख आरएसएस कार्यकर्ता, 1 लाख वीएचपी कार्यकर्ता और करीब 5 हजार शिवसैनिक. वीएचपी के संत समागम से पहले शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे 1100 संतों को सम्मानित कर रहे हैं.

'पहले मंदिर फिर सरकार...'

अयोध्या में प्रशासन ने धारा 144 लागू जरूर कर दिया है, लेकिन आम जनता को कोई मुश्किल फिलहाल नहीं है. संघ और वीएचपी कार्यकर्ताओं और शिवसैनिकों के आने जाने पर किसी तरह की रोक टोक नहीं है. फिर भी लोगों के मन में आते पुराने ख्यालात आशंकाओं की बाढ़ लगा रहे हैं. कारोबारी तबका तो वीएचपी के रोड शो से ज्यादा ही नाराज है - और उसके बहिष्कार का फैसला किया है.

शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत कह रहे हैं मस्जिद गिराने में कुल 17 मिनट लगे थे - अब और कितना वक्त लगेगा? ये धमकी है या कोई औपचारिक राजनीतिक सूचना अपनी अपनी समझ के हिसाब से समझने की जरूरत है.

अयोध्या को लेकर राजनीतिक दलों में शिवसेना ही इतनी आक्रामक है. बीजेपी नेता मंदिर वहीं बनाएंगे जैसे नारे जरूर दोहरा रहे हैं - मध्य प्रदेश और राजस्थान के चुनावी सभाओं में भी.

अयोध्या में सियासी हलचल पर राम मंदिर के पुजारी सत्येंद्र दास की एक टिप्पणी गौर करने वाली है, "विहिप-शिवसेना राजनीति कर रहे हैं. मंदिर बनाना है तो संसद घेरें. अयोध्या में भीड़ बुलाकर क्या होगा?"

अयोध्या पर अगर अभी तक कोई चुप है तो वो हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. बाकी टीम मैदान में डटी हुई है. हां, मोदी का कांग्रेस मुक्त अभियान चालू रहता है, चाहे जिस रूप में और जहां कहीं भी हों, "वे पिछले 18 सालों से कांग्रेस को चुनौती देते आ रहे हैं... मुझसे भिड़ने के बजाए मेरी मां को गाली दी जा रही है... मां को बदनाम कर रहे हैं... जिस मां को राजनीति का 'र' नहीं मालूम उस मां को राजनीति में घसीटा जा रहा है...' दरअसल, कांग्रेस नेता राज बब्बर ने इंदौर की एक चुनावी सभा में रुपये के गिरते मूल्य की तुलना प्रधानमंत्री की मां की उम्र से की थी.

कांग्रेस को टारगेट करते हुए प्रधानमंत्री मोदी बोफोर्स और भोपाल गैस कांड की याद दिलाते हैं, कहते हैं - 'कांग्रेस को शिवराज मामा को गाली देने से पहले ओत्तावियो क्वात्रोची और एंडरसन 'मामा' को भी याद कर लेना चाहिए.'

सवाल है कि ये आवाजें कहां तक पहुंच रही है? क्या मध्य प्रदेश और राजस्थान के मतदाताओं तक अयोध्या की हलचल और अयोध्या की पुकार पहुंच रही है? अगर ये आवाजें पहुंच भी रही हैं तो क्या मतदाताओं पर इन बातों का कोई असर भी हो रहा है?

बड़े नेताओं के बयान और उनका असर

नेताओं के बयानों के असर से जुड़ी अब तक एक ही पक्की खबर आयी है. ये बयान राहुल गांधी का है जिसका सीधा असर दर्ज किया गया है. वो भी मध्य प्रदेश में. वरना, 'माय इंडिया एक्सिस' सर्वे तो से यही मालूम हुआ कि जिस बात पर राहुल गांधी का सबसे ज्यादा जोर है उससे 80 फीसदी वोटर पूरी तरह बेखबर हैं.

प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय मंत्री उमा भारती की जाति पर टिप्पणी कर विवादों में छाये हुए सीपी जोशी भी दावा करते हैं कि कांग्रेस अयोध्या में मंदिर निर्माण कराएगी, लेकिन वैसे ही जो बीजेपी अपने चुनाव घोषणा पत्रों में कहती आयी है. राजस्थान के नाथद्वारा में मीडिया से मुखातिब जोशी कहते हैं, ‘भारतीय जनता पार्टी चुनावी मौसम में राम मंदिर का मुद्दा उठाकर लोगों को भ्रमित कर रही है... सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद कांग्रेस भव्य मंदिर बनाएगी...’

सबरीमाला से लेकर अयोध्या तक सुविधा के हिसाब से बीजेपी का अपना स्टैंड तो है ही. राजस्थान पहुंचे अमित शाह का कहना है, ‘अयोध्या में जहां रामलला विराजमान हैं, उसी स्थान पर भव्य राम मंदिर बने, इसके लिए भारतीय जनता पार्टी कटिबद्ध है और ये हमारा देश से वादा है... इसमें एक इंच भी पीछे हटने का कोई सवाल नहीं है...’

मंदिर वहीं बनाएंगे, लेकिन...

वैसे बीजेपी के पास एक रेडीमेड डिस्क्लेमर भी हुआ करता है - और अमित शाह भी साझा करते हैं, 'भाजपा ने अपने घोषणापत्र में कहा है कि वह इस मुद्दे का न्यायिक समाधान चाहती है.'

सवाल ये है कि आखिर ये बातें विधानसभा चुनाव के लिए वोट डालने जा रहे लोगों पर कितना प्रभाव डाल रही हैं.

कांग्रेस और बीजेपी के ये दावे अपनी जगह हैं, लेकिन अलवर की घटना अंदर तक झकझोर कर रख देती है - जहां नौजवानों में इतनी निराशा है कि उन्हें नौकरी मिलने की बिल्कुल संभावना नहीं नजर आती है - और ये निराशा इस हद तक जा पहुंच रही है कि वे आत्महत्या जैसा आखिर कदम उठाने को मजबूर हो जाते हैं.

मंदिर मुद्दे को लेकर सीनियर पत्रकार राजदीप सरदेसाई दैनिक भास्कर में अपने कॉलम में लिखते हैं - 'जमीनी स्तर पर इनकी कोई प्रतिध्वनि नहीं है. मैं उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर के सामने शिवभक्तों के साथ बैठा था, जिनमें से कई पहली बार वोट देने वाले थे.

वे नौजवान, राजदीप सरदेसाई को बताते हैं, ‘हमें और मंदिर, प्रतिमाएं व शहरों के नामकरण नहीं चाहिए... कृपया सरकार से कहिए कि वह कुछ पैसा हमारी बंद पड़ी मिलें खोलने में लगाएं और हमें रोजगार दे... मंदिर बनना चाहिए पर पहले रोजगार जरूरी है.’

यानी ग्राउंड लेवल पर राजस्थान और मध्य प्रदेश में इन मामलों में कोई फर्क नहीं है. एक अरसे से राहुल गांधी राफेल डील को लेकर प्रधानमंत्री मोदी को लगातार कठघरे में खड़ा कर रहे हैं. इसी कड़ी में राहुल गांधी ने एक स्लोगन भी गढ़ा है. अपनी चुनावी सभाओं में राहुल गांधी जोर से बोलते हैं - 'चौकीदार' और सामने से पब्लिक दोहराती है - 'चोर है'. सर्वे भी कहता है कि मध्य प्रदेश के 80 फीसदी से ज्यादा मतदाताओं ने रफाल का नाम तक नहीं सुना है.

राजदीप सरदेसाई कहते हैं, 'हर चुनावी भाषण में राहुल गांधी रफाल सौदे पर प्रहार करते हैं और बताते हैं कि कैसे इसने मोदी सरकार में शीर्ष पर हो रहा भ्रष्टाचार उजागर किया है. मैं जिस भी गांव और कस्बे में गया रफाल कहीं नजर नहीं आया. महान गायक किशोर कुमार के शहर खंडवा के बस स्टैंड पर तो एक व्यक्ति ने मुझसे यह पूछा भी कि क्या रफाल कोई जंगली पक्षी है!'

किसी भी राज्य में कोई बड़ा मसला चुनावी मुद्दा नहीं बन पाया है. तमाम रिपोर्ट और सर्वे तो यही बताते हैं. देश काल और परिस्थिति के हिसाब से नौजवानों की अपनी समस्याएं हैं, किसानों की अपनी मुश्किल है, तो कई इलाकों में एससी-एसटी एक्ट को लेकर सवर्णों में असंतोष है. यही वजह है कि महिलाओं और नौजवानों के साथ साथ सभी दलों का जोर किसानों पर भी नजर आता है. मध्य प्रदेश के मंदसौर में किसानों पर हुई फायरिंग की बरसी पर राहुल गांधी ने वादा किया था कि कांग्रेस की सरकार बनने पर 10 दिन के भीतर किसानों का दो लाख तक का कर्ज माफ कर दिया जाएगा.

राहुल गांधी के इसी बयान का किसानों पर असर देखा जा रहा है. किसानों ने कर्जमाफी की आस में लोन चुकाने बंद कर दिये हैं. नतीजा ये हुआ है कि पिछले छह महीने में लोन रिकवरी में 10 फीसदी की कमी आ चुकी है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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