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राहुल गांधी के लिए 2022 में जानी दुश्मन हो सकते हैं ये 5 सियासी किरदार

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 27 दिसम्बर, 2021 12:47 PM
  • 27 दिसम्बर, 2021 12:47 PM
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के लिए ये साल भी निराश करने वाला ही रहा और 2022 तो जैसे चुनौतियों का बंडल लेकर आ रहा है - चैलेंज करने वाले सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ही नहीं, बल्कि कतार में कई और भी हैं.

राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के लिए अगला साल 2022 कई लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है. अगर वास्तव में वो अगले आम चुनाव की तैयारी कर रहे हैं तो पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव लोगों के मूड भांपने और खुद को आजमाने के लिए बेहतरीन साधन साबित हो सकते हैं.

अमेठी दौरे से पहले तक लग तो यही रहा था कि राहुल गांधी यूपी चुनाव से दूरी बना कर चल रहे हैं. चुनावी माहौल के बीच प्रयागराज और वाराणसी के उनके निजी दौरों ने भी ऐसे ही संकेत दिये थे. माना जाने लगा था कि वो यूपी चुनावों के लिए अपनी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को पूरा स्पेस देना चाह रहे हैं - और जब अमेठी के अगले ही दिन प्रियंका ने रायबरेली में अकेले ही शक्ति संवाद किया तो फिर से कन्फ्यूजन पैदा होने लगा है.

आम चुनाव 2024 के हिसाब से देखें तो महज दो साल ही बचे हैं. चुनावी तैयारियों के हिसाब से आखिर के दो साल काफी ज्यादा अहम होते हैं - और महत्वपूर्ण बात ये भी है कि तब तक एक दर्जन से ज्यादा राज्यों में विधानसभा के चुनाव भी लड़ने होंगे.

चुनौतियों के हिसाब से देखें तो राहुल गांधी के लिए सबसे बड़ी चुनौती देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ही हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल चुनावों के बाद से ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) भी मैदान में कूद पडी हैं - और कदम कदम पर रोड़े बिछाने लगी हैं.

लेकिन जिस तरह से राहुल गांधी के इर्द गिर्द पॉलिटिकल डेवलपमेंट हो रहे हैं, कांग्रेस नेता को कुछ छिपे हुए किरदारों से भी जूझना पड़ सकता है. बहुत हद तक संभव है ऐसे सियासी किरदार 2022 में ही उभर कर सामने आ जायें - और ये सब काफी हैरान करने वाले हो सकते हैं.

1. प्रियंका गांधी वाड्रा

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी तो सिर्फ G-23 नेताओं से ही जूझ रही हैं,

राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के लिए अगला साल 2022 कई लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है. अगर वास्तव में वो अगले आम चुनाव की तैयारी कर रहे हैं तो पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव लोगों के मूड भांपने और खुद को आजमाने के लिए बेहतरीन साधन साबित हो सकते हैं.

अमेठी दौरे से पहले तक लग तो यही रहा था कि राहुल गांधी यूपी चुनाव से दूरी बना कर चल रहे हैं. चुनावी माहौल के बीच प्रयागराज और वाराणसी के उनके निजी दौरों ने भी ऐसे ही संकेत दिये थे. माना जाने लगा था कि वो यूपी चुनावों के लिए अपनी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को पूरा स्पेस देना चाह रहे हैं - और जब अमेठी के अगले ही दिन प्रियंका ने रायबरेली में अकेले ही शक्ति संवाद किया तो फिर से कन्फ्यूजन पैदा होने लगा है.

आम चुनाव 2024 के हिसाब से देखें तो महज दो साल ही बचे हैं. चुनावी तैयारियों के हिसाब से आखिर के दो साल काफी ज्यादा अहम होते हैं - और महत्वपूर्ण बात ये भी है कि तब तक एक दर्जन से ज्यादा राज्यों में विधानसभा के चुनाव भी लड़ने होंगे.

चुनौतियों के हिसाब से देखें तो राहुल गांधी के लिए सबसे बड़ी चुनौती देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ही हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल चुनावों के बाद से ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) भी मैदान में कूद पडी हैं - और कदम कदम पर रोड़े बिछाने लगी हैं.

लेकिन जिस तरह से राहुल गांधी के इर्द गिर्द पॉलिटिकल डेवलपमेंट हो रहे हैं, कांग्रेस नेता को कुछ छिपे हुए किरदारों से भी जूझना पड़ सकता है. बहुत हद तक संभव है ऐसे सियासी किरदार 2022 में ही उभर कर सामने आ जायें - और ये सब काफी हैरान करने वाले हो सकते हैं.

1. प्रियंका गांधी वाड्रा

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी तो सिर्फ G-23 नेताओं से ही जूझ रही हैं, राहुल गांधी अगर अगले साल फिर से कांग्रेस की कमान संभालने के लिए तैयार हो जाते हैं तो उनके लिए चुनौतियों का जखीरा इंतजार कर रहा है - मुश्किल ये है कि खुद उनको भी ऐसी चीजों का शायद ही अंदाजा हो.

गांधी परिवार से अलग करके देखें तो कांग्रेस में ओहदे के हिसाब से प्रियंका गांधी वाड्रा दर्जनों महासचिवों में से एक हैं, जो कहीं न कहीं प्रभारी के तौर पर काम करते रहते हैं. ओहदे के हिसाब से प्रियंका गांधी वाड्रा के मुकाबले केसी वेणुगोपाल महासचिव होकर भी संगठन का काम देखने के कारण ज्यादा ही ताकतवर समझे जाएंगे. बैठकों में भागीदारी और भूमिका के लिहाज से संगठन महासचिव ज्यादा ताकतवर समझा जाता है.

क्या राहुल गांधी को मालूम है कि 2022 में उनका सबसे बड़ा चैलेंजर कौन है?

प्रियंका गांधी वाड्रा काफी दिनों से कांग्रेस में संकटमोचक के तौर पर भी जानी जाने लगी हैं. राजस्थान और पंजाब से लेकर उत्तराखंड तक पार्टी के अंदरूनी झगड़ों में भी पंचायत प्रियंका गांधी वाड्रा ही कराती हैं - और बिहार चुनाव जैसे हालात में गठबंधन और सीटों के बंटवारे को अंतिम नतीजे तक पहुंचाने में भी उनकी ही भूमिका होती है.

उत्तर प्रदेश चुनाव को लेकर जिस तरीके से 'लड़की हूं... लड़ सकती हूं' के राजनीतिक नारे के साथ फील्ड में उतरी हैं, असर नजर आने लगा है. यूपी चुनाव में महिलाओं के लिए 40 फीसदी टिकट रिजर्व करने की उनकी घोषणा विरोधियों के लिए मुश्किलें खड़ी करने लगी है.

फर्ज कीजिये प्रियंका गांधी पूरे यूपी में बहुत ज्यादा सीटें न सही, अमेठी और रायबरेली की ज्यादातर सीटें ही कांग्रेस की झोली में डाल देती हैं तो पार्टी में असर तो होगा ही. यूपी के बाद गुजरात और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में भी प्रियंका गांधी का अलग से असर होने लगा तो क्या होगा?

एक तरफ राहुल गांधी लगातार फेल होते जा रहे हैं और दूसरी तरफ प्रियंका गांधी वाड्रा फील्ड में उतर कर कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भर देती हैं, फिर क्या होगा? अभी तो प्रियंका गांधी हर काम राहुल गांधी से पूछ कर करती हैं, लेकिन अगर कांग्रेस के भीतर एक सपोर्ट बेस बन गया तो राहुल गांधी के लिए कांग्रेस के भीतर भी अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ सकती है.

2. ममता बनर्जी

जुलाई, 2021 में ममता बनर्जी के दिल्ली में कदम रखते ही राहुल गांधी को हद से ज्यादा एक्टिव देखा गया था. उससे पहले तक कम ही मौके देखने को मिले होंगे जब वो विपक्षी दलों की राजनीति में कोई दिलचस्पी लेते हों. एक बड़ी वजह ये भी रही है कि विपक्ष के ज्यादातर नेता सोनिया गांधी की बात तो रखते हैं, लेकिन राहुल गांधी को गंभीरता से नहीं लेते.

ममता बनर्जी तो कई बार ऐसे संकेत दे चुकी हैं कि राहुल गांधी को वो कितना तवज्जो देती हैं. सिर्फ दिल्ली की ही कौन कहे, ममता बनर्जी के गोवा जाते ही, राहुल गांधी वहां भी पहुंच गये थे - और लोगों से मिल कर समझाने लगे थे कि कांग्रेस अगले विधानसभा चुनावों में लोगों के लिए क्या वादे लेकर आने वाली है.

विपक्षी खेमे से नीतीश कुमार के किनारे हो जाने के बाद से ममता बनर्जी ही राहुल गांधी के लिए चुनौती बनी हुई हैं - और जिस तरीके से वो राज्यों में तृणमूल कांग्रेस को विस्तार देने की कोशिश कर रही हैं - ममता बनर्जी राहुल गांधी के लिए 2022 में बड़ी चुनौती साबित होने वाली हैं.

3. शरद पवार

2019 के आम चुनाव के दौरान तो ऐसा लगा जैसे शरद पवार थोड़ा बहुत राहुल गांधी को महत्व देने लगे हैं, लेकिन महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद गठबंधन की सरकार बनने में राहुल गांधी को पूछा तक नहीं गया. शरद पवार ने ही बताया था कि सोनिया गांधी से तो उनकी चर्चा होती ही रही, लेकिन राहुल गांधी से उस दौरान कोई बात नहीं हुई.

पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद जब प्रशांत किशोर ने ममता बनर्जी का प्रतिनिधि बर कर शरद पवार से मुलाकात की तो विपक्ष की कई बैठकें हुईं. खास बात ये रही कि कांग्रेस को काफी दिनों तक ऐसी बैठकों से दूर रखा जाता रहा.

अभी ये जरूर देखने को मिला है कि ममता बनर्जी के कांग्रेस को विपक्षी नेटवर्क से बाहर करने के पक्ष में होने के बावजूद शरद पवार, सोनिया गांधी की बुलायी हुई मीटिंग में शामिल हुए हैं. ऊपर से भले ही ये लगता हो कि वो कांग्रेस के साथ खड़े हैं - लेकिन ये भी तो हो सकता है कि वो ममता बनर्जी को हद में रखने के मकसद से ऐसा कर रहे हों.

आम चुनाव से पहले 2022 विपक्षी एकजुटता के हिसाब से काफी महत्वपूर्ण होगा - और शरद पवार हर हाल में चाहेंगे कि कमान उनके हाथ में रहे, न कि राहुल गांधी के हाथ में. ऐसा लगता है जैसे शरद पवार भी चाहते हैं कि कांग्रेस विपक्ष में रहे जरूर लेकिन लीडर बन कर नहीं, बल्कि बाकियों की तरह एक पार्टनर बन कर.

4. प्रशांत किशोर

अभी तो नहीं, लेकिन ज्यादा दिन भी नहीं बचे हैं. प्रशांत किशोर भारतीय राजनीति में ठेके पर काम करने की जगह कहीं एक जगह सेटल होना चाहते हैं - और हाल ही में एक बार फिर अपनी ये इच्छा दोहरा चुके हैं. वो चुनाव कैंपेन का काम अब नहीं करना चाह रहे हैं.

प्रशांत किशोर भारतीय राजनीति में बड़े नाम हैं, लेकिन वो मुख्यधारा की पॉलिटिक्स नहीं है. चुनाव रणनीतिकार के तौर पर वो अपने क्लाइंट के लिए काम करते हैं, लेकिन वो राजनीतिक सहयोगी बन कर ही काम करना चाहते हैं, चुनावी रणनीतिकार के रूप में नहीं.

इंडिया टुडे को दिये इंटरव्यू में प्रशांत किशोर ने बताया था कि वो कांग्रेस लगभग ज्वाइन कर चुके थे, लेकिन फिर दोनों तरफ लगा कि बहुत फायदेमंद नहीं होने वाला है - और फिर बात आई गई हो गई. मतलब साफ है, प्रशांत किशोर बीजेपी तो नहीं, लेकिन किसी ऐसी पार्टी को ही पकड़ना चाहेंगे जो कांग्रेस की राह का ही रोड़ा होगी. प्रशांत किशोर ने अभी अभी कहा है कि वो बीजेपी नहीं ज्वाइन करने वाले हैं.

प्रशांत किशोर जहां कहीं भी रहेंगे राहुल गांधी के लिए बड़ी चुनौती बने रहेंगे. हाल फिलहाल देखा जाये तो राहुल गांधी को जिस तरीके से प्रशांत किशोर टारगेट कर रहे हैं, आगे भी रवैया बदलने वाला हो ऐसा तो नहीं लगता - प्रशांत किशोर से बचने का एक ही तरीका है, जैसे भी हो सकते राहुल गांधी उनको कांग्रेस ज्वाइन करा लें.

5. अरविंद केजरीवाल

अरविंद केजरीवाल के मामले में तो अब तक यही देखने को मिला है कि गांधी परिवार उनके नाम से ही परहेज करता रहा है. 2019 के आम चुनाव के दौरान वो दिल्ली में कांग्रेस के साथ गठबंधन जरूर करना चाहते थे, लेकिन नहीं हो सका और वो फिर से भला बुरा कहने पर उतर आये.

2022 के आम चुनाव को लेकर अरविंद केजरीवाल पंजाब और गोवा के साथ साथ यूपी और उत्तराखंड में भी सक्रिय हैं. यूपी में तो समाजवादी पार्टी से गठबंधन की भी कोशिशें काफी दिखीं लेकिन बात नहीं बन पायी. पंजाब में किसानों के नेता के साथ चुनावी समझौते की बातें जरूर चल रही हैं. किसान नेता को मुख्यमंत्री का चेहरा तक बनाने की चर्चा है.

गोवा में तो राहुल गांधी के सामने ममता बनर्जी के साथ साथ अरविंद केजरीवाल अलग से चैलेंज कर रहे हैं. जाहिर है जिस तरीके से अरविंद केजरीवाल राज्यों में पांव जमाने की कोशिश कर रहे हैं राहुल गांधी के लिए एक नये चैलेंजर बन सकते हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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