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हिंदुत्व पॉलिटिक्स से राहुल गांधी मुस्लिम वोट पर जोखिम जानबूझ कर उठा रहे हैं

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 22 दिसम्बर, 2021 06:48 PM
  • 22 दिसम्बर, 2021 06:48 PM
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मुस्लिम पार्टी के ठप्पे से उबरने की कोशिश में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की लेटेस्ट हिंदुत्व पॉलिटिक्स (Hindutva Politics) काफी जोखिमभरी है, लेकिन कांग्रेस जानबूझ कर आगे बढ़ रही है - क्योंकि वो भी मुस्लिम वोटर (Muslim Voter) की मजबूरी समझती है.

मुस्लिम वोट (Muslim Voter) के लालच में ही कांग्रेस तुष्टिकरण के आरोप झेलती रही है. जब कांग्रेस पर मुस्लिम पार्टी जैसा ठप्पा लग गया तो नेतृत्व चिंतित हो गया. उबरने के लिए सॉफ्ट हिंदुत्व आजमाया गया. ऐसा प्रयोग जिसमें मुस्लिम वोटर भी बहुत नाराज न हो और हिंदू वोटर खारिज न कर दे.

संघ और बीजेपी के असर से कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व प्रयोग फेल हो गया. फिर तो कट्टर हिंदुत्व में घुसपैठ के अलावा कोई चारा ही नहीं बचा था. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) अब लगातार हिंदुत्व की राजनीति ही कर रहे हैं. आजमाने के लिए आने वाले यूपी विधानसभा चुनाव से बेहतर कुछ हो भी नहीं सकता.

हिंदुत्व की राजनीति (Hindutva Politics) कांग्रेस के लिए काफी जोखिम भरी भी है. अगर राम नहीं मिल पाये तो माया भी हाथ से गयी समझो. मतलब, हिंदुत्व की राजनीति में कांग्रेस के लिए मुस्मिल वोट गवांने का पूरा जोखिम है - और ध्यान देने वाली बात है कि कांग्रेस ये जोखिम जानबूझ कर उठा रही है.

सवाल भी यही है कि कांग्रेस जानबूझ कर ये जोखिम उठा क्यों रही है? हो सकता है कुछ लोगों को लगता हो कि कांग्रेस को लगता है कि मुस्लिम वोट जब अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के पास जा सकते हैं तो क्या फायदा? बचे खुचे वोट के लिए हिंदू वोटों से दूरी क्यों बनने दिया जाये? अखिलेश यादव की तरफ मुस्लिम वोट के आकर्षण की वजह सर्वे और यूपी में बने माहौल से ये मालूम होना कि अभी तक वहीं बीजेपी के सबसे बड़े चैलेंजर लग रहे हैं.

2019 के चुनाव में भी क्षेत्रीय दलों के कारण राज्यों में कांग्रेस को मुस्लिम वोट कम जरूर मिले थे, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर सबसे ज्यादा ऐसे वोट हाथ के साथ ही गये थे. दरअसल, कांग्रेस समझ गयी है कि बीजेपी की लहर में मुस्लिम वोटर मजबूर है - जाहिर है वो बीजेपी...

मुस्लिम वोट (Muslim Voter) के लालच में ही कांग्रेस तुष्टिकरण के आरोप झेलती रही है. जब कांग्रेस पर मुस्लिम पार्टी जैसा ठप्पा लग गया तो नेतृत्व चिंतित हो गया. उबरने के लिए सॉफ्ट हिंदुत्व आजमाया गया. ऐसा प्रयोग जिसमें मुस्लिम वोटर भी बहुत नाराज न हो और हिंदू वोटर खारिज न कर दे.

संघ और बीजेपी के असर से कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व प्रयोग फेल हो गया. फिर तो कट्टर हिंदुत्व में घुसपैठ के अलावा कोई चारा ही नहीं बचा था. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) अब लगातार हिंदुत्व की राजनीति ही कर रहे हैं. आजमाने के लिए आने वाले यूपी विधानसभा चुनाव से बेहतर कुछ हो भी नहीं सकता.

हिंदुत्व की राजनीति (Hindutva Politics) कांग्रेस के लिए काफी जोखिम भरी भी है. अगर राम नहीं मिल पाये तो माया भी हाथ से गयी समझो. मतलब, हिंदुत्व की राजनीति में कांग्रेस के लिए मुस्मिल वोट गवांने का पूरा जोखिम है - और ध्यान देने वाली बात है कि कांग्रेस ये जोखिम जानबूझ कर उठा रही है.

सवाल भी यही है कि कांग्रेस जानबूझ कर ये जोखिम उठा क्यों रही है? हो सकता है कुछ लोगों को लगता हो कि कांग्रेस को लगता है कि मुस्लिम वोट जब अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के पास जा सकते हैं तो क्या फायदा? बचे खुचे वोट के लिए हिंदू वोटों से दूरी क्यों बनने दिया जाये? अखिलेश यादव की तरफ मुस्लिम वोट के आकर्षण की वजह सर्वे और यूपी में बने माहौल से ये मालूम होना कि अभी तक वहीं बीजेपी के सबसे बड़े चैलेंजर लग रहे हैं.

2019 के चुनाव में भी क्षेत्रीय दलों के कारण राज्यों में कांग्रेस को मुस्लिम वोट कम जरूर मिले थे, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर सबसे ज्यादा ऐसे वोट हाथ के साथ ही गये थे. दरअसल, कांग्रेस समझ गयी है कि बीजेपी की लहर में मुस्लिम वोटर मजबूर है - जाहिर है वो बीजेपी के साथ तो जाने से रहा और अगर वाकई ऐसा है तो कांग्रेस के अलावा मुस्लिम वोटर के पास विकल्प ही कहां बचते हैं?

क्या मुस्लिम वोटर मजबूर है?

राहुल गांधी हालिया हाव भाव से ऐसा लगता है जैसे वो भी अरविंद केजरीवाल की तरह 'जय श्रीराम' की राह पर ही आगे बढ़े जा रहे हैं - देखने वाली बात है कि वो पूरी तरह केजरीवाल बन जाते हैं या एक हद तक आगे जाने के बाद रुक जाते हैं. जो भी हो ये कांग्रेस की लंबी रणनीति का हिस्सा लगता है - और जब तक ऐसे ठोस संकेत सामने न आयें समझना मुश्किल हो सकता है.

अगर राहुल गांधी के साथ मुस्लिम वोटर ने भी वैसा ही सलूक किया तो?

ऐसा भी नहीं कि कांग्रेस की हिंदुत्व पॉलिटिक्स जयपुर में खुल कर सामने आयी है - और प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ अमेठी में राहुल गांधी नेव रिपीट कर लोगों को अच्छी तरह से समझाने की कोशिश की है. बल्कि ये तो अरसे से परदे के पीछे चल रही कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा लगती है.

कांग्रेस का संपर्क फॉर समर्थन: कांग्रेस की हिंदुत्व पॉलिटिक्स का जो स्वरूप अभी दिखायी दे रहा है, उसे राहुल गांधी से पहले तो कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने शुरू करायी थी. अयोध्या पर अपनी किताब में सलमान खुर्शीद ने हिंदुत्व को सनातन से अलग बताते हुए उसकी तुलना जिहादी इस्लामिक संगठन बोको हराम और आईएसआईएस से तुलना करके. बहस को अंदर तक समझने के लिए चाहें तो एक और कांग्रेस नेता राशिद अल्वी के उस बयान को थोड़ी देर के लिए भुला सकते हैं जिसमें वो कहते हैं - 'जय श्रीराम' बोलने वाले राक्षस होते हैं.

अपनी किताब के मार्केट में आने से पहले सलमान खुर्शीद, प्रियंका गांधी वाड्रा की मंजूरी लेकर पूरे यूपी में उलेमा सम्मेलन करा रहे थे - और इस काम में नसीमुद्दीन सिद्दीकी उनके सबसे मजबूत सहयोगी बने हुए थे. कांग्रेस से पहले नसीमुद्दीन सिद्दीकी ऐसे ही मुस्लिम सम्मेलन 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले पश्चिम यूपी में करा रहे थे, लेकिन नाकाम रहे और मायावती से खटपट हो गयी. मायावती ने परंपरागत तरीके से बीएसपी से निकाल दिया.

कांग्रेस के उलेमा सम्मेलनों को समझने के लिए बीजेपी के 2019 से पहले संपर्क फॉर समर्थन मुहिम को याद कर समझा जा सकता है. बीजेपी की ही तरह कांग्रेस मुस्लिम वोटर तक पहुंचने के लिए उलेमाओं से संपर्क साध रही थी. चाहें तो दिल्ली के शाही इमाम के प्रति कांग्रेस की निर्भरता की झलक भी देख सकते हैं, लेकिन नयी रणनीति के साथ.

उलेमा सम्मेलन में यही समझाने की कोशिश होती थी कि वे आम मुस्लिम वोटर को ये समझाने की कोशिश करें कि कांग्रेस मुस्लिम हितों के खिलाफ कभी नहीं जाने वाली है - और कांग्रेस आगे जो कुछ भी करेगी उसका एकमात्र मकसद बीजेपी को जैसे भी मुमकिन हो शिकस्त देना ही होगा.

मुस्लिम वोटर के पास विकल्प क्या है: राहुल गांधी की तरफ से शुरू की गयी हिंदू और हिंदुत्व की ताजा बहस है तो बीजेपी के खिलाफ, लेकिन सीधे सीधे मुस्लिम वोटर को परेशान कर सकती है. ये ठीक है कि मुस्लिम वोटर क्षेत्रीय स्तर पर अपने पुराने तरीके से वोट डाल सकता है. मतलब, उस पार्टी को वोट कर सकता है जो बीजेपी को शिकस्त देने में सक्षम लगती हो.

जैसे यूपी में फिलहाल अखिलेश यादव ने माहौल बना रखा है. थोड़ा अब्बाजान वाली डिबेट से और बाकी जिन्ना पर शुरू की गयी बहस से, लेकिन ऑल इंडिया लेवल पर भी वैसा ही हो जरूरी भी तो नहीं है. अखिल भारतीय स्तर पर अभी तक कांग्रेस के अलावा कोई और विकल्प तो मुस्लिम वोटर के सामने नहीं है.

अपनी छवि के बूते ममता बनर्जी जरूर थोड़ा बहुत उम्मीद बढ़ा रही हो सकती हैं, लेकिन अभी तो इसी बात की लड़ाई नहीं खत्म हो पा रही कि बीजेपी को ममता बनर्जी और राहुल गांधी में से कौन चैलेंज करेगा. ममता बनर्जी और राहुल गांधी की इस लड़ाई में अरविंद केजरीवाल अलग से अड़ेंगे लगाते देखे जा सकते हैं.

देखा जाये तो मुस्लिम वोट को लेकर कांग्रेस करीब करीब वैसे ही आश्वस्त लगती है जैसे सवर्ण वोटर को लेकर बीजेपी, जाएंगे कहां? विकल्प ही कहां है? जैसे सवर्ण वोटर के लिए सपा-बसपा जैसी जातिवादी राजनीतिक दलों के सामने लाख नाराजगी के बावजूद बीजेपी ही बेहतर लगती है - मुस्लिम वोटर के लिए भी कांग्रेस करीब करीब वैसी ही हो चुकी है.

अब अगर मुस्लिम वोटर कांग्रेस को वोट नहीं देगा तो क्या गुस्से में बीजेपी को दे बैठेगा - राहुल गांधी की टीम को कुछ ऐसा ही भरोसा हो गया है. मुस्लिम समुदाय की इसी कमजोरी को अपनी ताकत मान कर कांग्रेस और राहुल गांधी हिंदुत्व की राजनीति के साथ आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं.

राहुल गांधी के स्टैंड से कार्यकर्ता परेशान: ऐसा कतई नहीं है कि हर मुस्लिम वोटर राहुल गांधी पर वैसे ही आंख मूंद कर यकीन करने लगा है. हालत तो ये हो चली है कि मुस्लिम कांग्रेस कार्यकर्ता भी खासे परेशान हैं - मुस्लिम कार्यकर्ताओं को ये समझ में नहीं आ रहा है कि वो अपने समर्थकों को क्या समझायें जब राहुल गांधी हिंदुत्व की बात कर रहे हों.

राहुल गांधी की ताजा मुहिम कांग्रेस की जयपुर रैली से जोर पकड़ी है और राजस्थान के मुस्लिम कार्यकर्ता कह रहे हैं कि राहुल गांधी को ऐसे मुद्दों से बचना चाहिये. कोटा निवासी कांग्रेस कार्यकर्ता अब्दुल करीम खान कहते हैं, 'राहुल जी जब ये मुद्दा उठाते हैं तो हमारे जैसे कार्यकर्ताओं के लिए थोड़ी मुश्किल हो जाती है - क्योंकि जब हम अल्पसंख्यकों के बीच जाते हैं तो लोग कहते हैं कि अब राहुल गांधी भी मोदी की तरह हिंदू - हिंदू करने लगे हैं.'

ठीक वैसे ही, कांग्रेस कार्यकर्ता का कहना है, जब बहुसंख्यक समाज में बीजेपी को वोटर के पास जाते हैं तो लोग कहते हैं कि मोदी ने राहुल गांधी को मंदिर - मंदिर चक्कर कटवा दिये. हो सकता है, यूपी के उलेमा सम्मेलन की बातें उन तक न पहुंच पायी हों. हालांकि, ऐसे कांग्रेस कार्यकर्ताओं को ये नहीं भूलना चाहिये कि कैसे कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने डॉक्टर कफील खान को यूपी से ले जाकर राजस्थान में शरण दी हुई है.

कांग्रेस की राह भी आसान नहीं

राहुल गांधी ने हिंदुत्व की राजनीति का जो रास्ता अख्तियार किया है वो काफी मुश्किल है. सबसे ज्यादा मुश्किल तो राहुल गांधी की थ्योरी ही है, बुद्धिजीवियों के बीच हिंदू, हिंदुत्व और हिंदुत्ववादी पर चाहे कितनी भी लंबी बहस क्यों न चले, लेकिन आम आदमी की समझ के लेवल से काफी ऊपर चली जाती है.

सेमिनार और ऐसे कार्यक्रमों की बात और है, लेकिन रैलियों में भाषण के जरिये सबको समझा पाना किसी के लिए भी मुश्किल हो सकता है. काफी मुश्किल टॉपिक चुन लेने के बावजूद राहुल गांधी आसान शब्दों में समझाने की कोशिश भी करते हैं - 'महात्मा गांधी हिंदू थे, जबकि गोडसे हिंदुत्ववादी था.'

और फिर खुद को भी एक मिसाल के तौर पर पेश करते हैं 'मैं हिंदू हूं मगर हिंदुत्ववादी नहीं हूं...' ऐसा करके राहुल गांधी बीजेपी और उसके नेताओं को गोडसे वाली साइड में खड़ा करने की कोशिश करते हैं.

राहुल गांधी ट्विटर पर लिखते हैं, 'हिंदू मानते हैं कि हर व्यक्ति का डीएनए अलग होता है... हिंदुत्ववादी मानते हैं कि सब भारतीयों का डीएनए एक जैसा है.' प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ साथ, राहुल गांधी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत को भी टारगेट करने लगे हैं.

संघ की तरफ से राहुल गांधी के लिए जवाब भी फौरन ही आ जाता है. संघ के नेता इंद्रेश कुमार ने हिंदू और हिंदुत्व को एक दूसरे का पूरक बताया है. उदाहरण देते हैं, हिंदू से हिंदुत्व को अलग करना शरीर से आत्मा को अलग करने जैसा है.

यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का तो कहना है कि अगर 2014 में कमल नहीं खिला होता, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में बीजेपी सरकार नहीं बनी होती तो राहुल गांधी खुद को हिंदू ही नहीं मानते. बहस ऐसे आगे बढ़ाई जा रही है कि 'भगवा आतंकवाद' खोज डालने वाली कांग्रेस के ही राहुल गांधी आज खुद को असली हिंदू के तौर पर पेश करने लगे हैं.

अमेठी में राहुल गांधी को शिकस्त देने वाली केंद्रीय मंत्री कोई भी मौका खाली नहीं जाने देतीं. उत्तर प्रदेश की ही एक रैली में राहुल गांधी को स्मृति ईरानी चुनाव में कोट के ऊपर जनेऊ पहनने वाला नकली हिंदू बताती हैं. स्मृति ईरानी कहती हैं, 'हिंदू वो नहीं जो चुनाव आते ही कोट के ऊपर जनेऊ पहन ले बल्कि हिंदू वो है जो गरीब के घर में उज्ज्वला का आशीर्वाद दे और सड़क का निर्माण करवाये... जिस पर हर धर्म और जाति के लोग एक साथ मिलकर चलें.'

राहुल गांधी की राह में बड़ी मुश्किल ये है कि बीजेपी की सोशल मीडिया टीम राहुल गांधी के हिंदू और हिंदुत्व की बहस को आतंकवाद से सीधे जोड़ देती है - राहुल गांधी और पाकिस्तानी आतंकवादियों के फोटो लेकर तरह तरह के मीम बनाये जा रहे हैं. राहुल गांधी की तस्वीरों के साथ हाफिज सईद जैसे पाकिस्तानी आतंकवादियों की तस्वीर लगा कर राहुल गांधी के बयानों को उसी तरीके से पेश किया जा रहा है - "मैं आतंकी हूं, आतंकवादी नहीं."

ऐसी बातें बीजेपी और संघ समर्थकों को बड़ी आसानी से समझ में आ जाती हैं - और फिर वो व्हाट्सऐप से उठा कर वही कंटेंट फेसबुक सहित बाकी सोशल मीडिया टाइमलाइन पर पोस्ट करते हैं - शेयर होने के साथ ही ये वायरल सिलसिला आगे बढ़ने लगता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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