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कुछ बातें उन लोगों से जो हिंदू हुए बिना खुद को हिंदू क्लेम कर रहे हैं...

    • अभिरंजन कुमार
    • Updated: 14 दिसम्बर, 2021 03:59 PM
  • 14 दिसम्बर, 2021 03:59 PM
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आज दुनिया का कोई हिंदू इस बात को स्वीकार करने को तैयार नहीं है कि हिन्दू होना निरंतर आक्रमण सहते रहने का दूसरा नाम है. उदारता, सहिष्णुता और मानवता का मतलब अपने गौरव और मान-सम्मान का चीरहरण होते हुए देखते रहना नहीं है.

मेरे चिर-वंदनीय गुरुकुल बनारस (बीएचयू के नाते) की आधी टीस तो खत्म हो गई! काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण और उदघाटन सदियों पुराने ज़ख्मों पर मरहम लगाने में काफी हद तक कामयाब रहा है. नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ परम सौभाग्यशाली हैं कि बाबा विश्वनाथ ने उन्हें इसका माध्यम बनाया. इन दोनों का इस नवनिर्माण के लिए जितना भी अभिनंदन किया जाए, कम ही होगा. लेकिन कोई ज़रा उन लोगों को भी समझाइए, जो ऐसे मौके पर भी चिढ़े हुए हैं और हिन्दू और हिंदुत्व की जलेबी बनाए जा रहे हैं. कई लोग जो आत्मा से हिंदू हुए बिना ही खुद को हिंदू क्लेम कर रहे हैं, उन्हें समझना चाहिए कि आज दुनिया का कोई हिंदू इस बात को स्वीकार करने को तैयार नहीं है कि हिन्दू होना निरंतर आक्रमण सहते रहने का दूसरा नाम है. उदारता, सहिष्णुता और मानवता का मतलब अपने गौरव और मान-सम्मान का चीरहरण होते हुए देखते रहना नहीं है.

काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण और उदघाटन सदियों पुराने ज़ख्मों पर मरहम लगाने में काफी हद तक कामयाब रहा है

इसलिए, आज अगर बाबा विश्वनाथ की नगरी का गौरव कुछ हद तक वापस लौटा है, तो भला यह किस हिन्दू को नहीं सुहाएगा? जिसे नहीं सुहाएगा, सोचकर देखिए कि क्या वह हिन्दू कहलाने का अधिकारी है? एक भी हिन्दू को उसे क्यों वोट देना चाहिए, जो देश की राजधानी में बाबर और औरंगजेब जैसे पापियों और मानवता के हत्यारों के नाम की सड़कें बनवाता है और उनके द्वारा मंदिरों को तुड़वाकर बनवाए गए ढांचों को मस्जिद कहता है?

यहां बात मंदिर या मस्जिद की पक्षधरता की नहीं है, न्याय की है. और इस पर तो हमारे कथित मुसलमान भाइयों-बहनों को भी खुश होना चाहिए. दिल पर हाथ रखकर उन्हें पूछना चाहिए खुद से कि कौन हैं वे? कहां से आए? अगर कहीं से नहीं आए और यहीं के हैं, तो कब और कैसे वे मुसलमान बन गए? जिन...

मेरे चिर-वंदनीय गुरुकुल बनारस (बीएचयू के नाते) की आधी टीस तो खत्म हो गई! काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण और उदघाटन सदियों पुराने ज़ख्मों पर मरहम लगाने में काफी हद तक कामयाब रहा है. नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ परम सौभाग्यशाली हैं कि बाबा विश्वनाथ ने उन्हें इसका माध्यम बनाया. इन दोनों का इस नवनिर्माण के लिए जितना भी अभिनंदन किया जाए, कम ही होगा. लेकिन कोई ज़रा उन लोगों को भी समझाइए, जो ऐसे मौके पर भी चिढ़े हुए हैं और हिन्दू और हिंदुत्व की जलेबी बनाए जा रहे हैं. कई लोग जो आत्मा से हिंदू हुए बिना ही खुद को हिंदू क्लेम कर रहे हैं, उन्हें समझना चाहिए कि आज दुनिया का कोई हिंदू इस बात को स्वीकार करने को तैयार नहीं है कि हिन्दू होना निरंतर आक्रमण सहते रहने का दूसरा नाम है. उदारता, सहिष्णुता और मानवता का मतलब अपने गौरव और मान-सम्मान का चीरहरण होते हुए देखते रहना नहीं है.

काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण और उदघाटन सदियों पुराने ज़ख्मों पर मरहम लगाने में काफी हद तक कामयाब रहा है

इसलिए, आज अगर बाबा विश्वनाथ की नगरी का गौरव कुछ हद तक वापस लौटा है, तो भला यह किस हिन्दू को नहीं सुहाएगा? जिसे नहीं सुहाएगा, सोचकर देखिए कि क्या वह हिन्दू कहलाने का अधिकारी है? एक भी हिन्दू को उसे क्यों वोट देना चाहिए, जो देश की राजधानी में बाबर और औरंगजेब जैसे पापियों और मानवता के हत्यारों के नाम की सड़कें बनवाता है और उनके द्वारा मंदिरों को तुड़वाकर बनवाए गए ढांचों को मस्जिद कहता है?

यहां बात मंदिर या मस्जिद की पक्षधरता की नहीं है, न्याय की है. और इस पर तो हमारे कथित मुसलमान भाइयों-बहनों को भी खुश होना चाहिए. दिल पर हाथ रखकर उन्हें पूछना चाहिए खुद से कि कौन हैं वे? कहां से आए? अगर कहीं से नहीं आए और यहीं के हैं, तो कब और कैसे वे मुसलमान बन गए? जिन लोगों ने उनके पूर्वजों पर अत्याचार किये, हत्याएं कीं, बलात्कार किये, आज उन्हीं के साथ वे अपनी पहचान और अस्तित्व को किस कारण जोड़े हुए हैं?

उन्हें तो खुश होना चाहिए कि उनके पूर्वजों की तड़पती हुई आत्माएं अब धीरे-धीरे मुक्त हो रही हैं. इसलिए अब उन्हें भी वापस अपनी जड़ों की ओर लौट आना चाहिए और पूर्वजों का विधिवत तर्पण करके मुगलिया अत्याचार के कारण भटक रही उनकी आत्माओं को मुक्ति दिलानी चाहिए. जब तक वे अपने पूर्वजों की भटकती आत्माओं को मुक्ति नहीं दिलाएंगे, भारत तो क्या, इस समूचे उपमहाद्वीप में कभी उनकी तरक्की नहीं हो सकती, न शांति से वे जी सकते हैं.

यकीन नहीं आता हो, तो देख लीजिए कि इस्लामी राष्ट्र बन जाने के बाद भी आज अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में उनकी क्या स्थिति है? न शांति है, न समृद्धि है. हर रोज़ धर्म के नाम पर एक मार-काट में फंसे हुए हैं और फ़र्ज़ी जन्नत के ख्वाब में असली जन्नत यानी अपनी अपनी मातृभूमि को भी जहन्नुम बना लिया है.

और भारत में भी वे क्यों पिछड़े हुए हैं? इसका एक ही सबसे बड़ा कारण मुझे समझ में आता है कि वास्तव में वे जो थे नहीं, मजबूरी में उनके पूर्वजों को वह बन जाना पड़ा, जिसकी त्रासदी से उनकी मौजूदा पीढ़ियां भी पूरी तरह नहीं उबर पाई हैं.

इसलिए मैं तो सभी से यही कहूंगा कि अपनी जड़ों को पहचानिए और वापस अपनी जड़ों की ओर लौटिए. वोटों के सौदागरों के फेर में मत फंसिए. आपके लिए शांति और समृद्धि का रास्ता केवल और केवल इसी से खुल सकता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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