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Rahul Gandhi ने COVID-19 को मौका यूं ही नहीं बताया है

    • आईचौक
    • Updated: 18 अप्रिल, 2020 10:08 PM
  • 18 अप्रिल, 2020 10:08 PM
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हो सकता है राहुल गांधी (Rahul Gandhi) अब अक्सर मीडिया से मुखातिब हों और सवालों के जवाब देते नजर आयें - ये संकेत मिला है कांग्रेस (Congress) में एक सलाहकार समिति (Consultative Committee) के गठन के बाद जो पार्टी में बड़े बदलावों का संकेत भी है.

राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने अपनी हालिया प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि जिस दिन COVID-19 को हिंदुस्तान ने हरा दिया, उस दिन बताऊंगा कि कमी कहां रह गयी - ये बात राहुल गांधी ने तब कही थी जब उनसे पूछा गया कि कोरोना वायरस से जंग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) से कहां कमी रह गयी?

राहुल गांधी ने ये भी बताया कि उनकी ऐसी सोच की वजह क्या है - 'मैं कंस्ट्रक्टिव सजेशन देना चाहता हूं, तू-तू-मैं-मैं नहीं करना चाहता.' मोदी सरकार के FDI को लेकर नियमों में किये गये बदलाव के लिए राहुल गांधी ने धन्यवाद भी कहा है, हालांकि, लगे हाथ क्रेडिट भी ले लिया है कि सरकार ने उनके सुझाव पर अमल किया है.

कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफे के बाद राहुल गांधी कुछ दिन तक तो खुद को महज एक सांसद के तौर पर पेश करते रहे, लेकिन धीरे धीरे उनके हाव-भाव में बदलाव आता गया. वो अमेठी भी गये थे तो लोगों से बताये थे कि वो वायनाड के सांसद हैं, इसलिए अपनी लड़ाई उनको स्वयं लड़नी होगी. हां, जब भी जरूरत होगी वो हाजिर रहेंगे. राहुल गांधी ने अमेठी के लिए 11 ट्रक राशन की दूसरी खेप भेज कर वादा निभाया भी है - पांच ट्रक चावल, पांच ट्रक आटा गेहूं और एक ट्रक दाल के साथ तेल मसाला और अन्य खाद्य सामग्री. करीब 13 हजार फूड पैकेट के अलावा 50 हजार मास्क, 20 हजार सैनिटाइजर और 20 हजार साबुन भी लोगों बांटे गये हैं.

ये सब बता रहा है कि राहुल गांधी ने कोविड 19 को मौका यूं ही नहीं बताया है - और कांग्रेस (Congress) में नयी नयी बनायी गयी कंसल्टेटिव कमेटी (Consultative Committee) भी विस्तार से यही किस्सा सुना रही है.

हर बदलाव कुछ कहता है

प्रेस कांफ्रेंस के बाद कई हलकों में राहुल गांधी के तेवर में बदलाव महसूस किया जा रहा है और शिवसेना ने तो सामना में लिख भी डाला है - 'मौजूदा संकट में राहुल गांधी के रुख के लिए उनकी सराहना की जानी चाहिए.'

कुछ लोग प्रेस कांफ्रेंस में राहुल गांधी के बात-व्यवहार में आयी तब्दीली को भी उनके नये अवतार के रूप में देख रहे हैं. वैसे...

राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने अपनी हालिया प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि जिस दिन COVID-19 को हिंदुस्तान ने हरा दिया, उस दिन बताऊंगा कि कमी कहां रह गयी - ये बात राहुल गांधी ने तब कही थी जब उनसे पूछा गया कि कोरोना वायरस से जंग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) से कहां कमी रह गयी?

राहुल गांधी ने ये भी बताया कि उनकी ऐसी सोच की वजह क्या है - 'मैं कंस्ट्रक्टिव सजेशन देना चाहता हूं, तू-तू-मैं-मैं नहीं करना चाहता.' मोदी सरकार के FDI को लेकर नियमों में किये गये बदलाव के लिए राहुल गांधी ने धन्यवाद भी कहा है, हालांकि, लगे हाथ क्रेडिट भी ले लिया है कि सरकार ने उनके सुझाव पर अमल किया है.

कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफे के बाद राहुल गांधी कुछ दिन तक तो खुद को महज एक सांसद के तौर पर पेश करते रहे, लेकिन धीरे धीरे उनके हाव-भाव में बदलाव आता गया. वो अमेठी भी गये थे तो लोगों से बताये थे कि वो वायनाड के सांसद हैं, इसलिए अपनी लड़ाई उनको स्वयं लड़नी होगी. हां, जब भी जरूरत होगी वो हाजिर रहेंगे. राहुल गांधी ने अमेठी के लिए 11 ट्रक राशन की दूसरी खेप भेज कर वादा निभाया भी है - पांच ट्रक चावल, पांच ट्रक आटा गेहूं और एक ट्रक दाल के साथ तेल मसाला और अन्य खाद्य सामग्री. करीब 13 हजार फूड पैकेट के अलावा 50 हजार मास्क, 20 हजार सैनिटाइजर और 20 हजार साबुन भी लोगों बांटे गये हैं.

ये सब बता रहा है कि राहुल गांधी ने कोविड 19 को मौका यूं ही नहीं बताया है - और कांग्रेस (Congress) में नयी नयी बनायी गयी कंसल्टेटिव कमेटी (Consultative Committee) भी विस्तार से यही किस्सा सुना रही है.

हर बदलाव कुछ कहता है

प्रेस कांफ्रेंस के बाद कई हलकों में राहुल गांधी के तेवर में बदलाव महसूस किया जा रहा है और शिवसेना ने तो सामना में लिख भी डाला है - 'मौजूदा संकट में राहुल गांधी के रुख के लिए उनकी सराहना की जानी चाहिए.'

कुछ लोग प्रेस कांफ्रेंस में राहुल गांधी के बात-व्यवहार में आयी तब्दीली को भी उनके नये अवतार के रूप में देख रहे हैं. वैसे देखा जाये तो दिल्ली विधानसभा चुनाव के वक्त प्रधानमंत्री मोदी को लेकर राहुल गांधी के डंडा-मार बयान से तुलना करें तो फर्क तो वाकई लगता है.

राहुल गांधी के हाव भाव में बदलाव स्थायी है या अस्थायी ये तो नहीं पता लेकिन कांग्रेस में लगता है स्थायी बदलाव की बयार बह चली है. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के आदेश पर एक कंसल्टेटिव कमेटी बनायी गयी है. कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल की तरह से जारी प्रेस रिलीज के मुताबिक कमेटी की वर्चुअल मीटिंग करीब करीब रोजाना होगी - और कमेटी मौजूदा हालात में विभिन्न मुद्दों पर पार्टी को अपनी राय देगी.

क्या ये राहुल गांधी की वापसी का पहला स्केच है?

कंसल्टेटिव कमेटी का चेयरमैन पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को बनाया गया है और रणदीप सिंह सुरजेवाला इसके संयोजक हैं. कमेटी में केसी वेणुगोपाल को भी शुमार किया गया है. सलाहकार समिति में शामिल कांग्रेस नेताओं के नाम पर गौर करें तो ये काफी इशारे करती है.

1. कमेटी के चेयरमैन मनमोहन सिंह के ठीक बाद लिस्ट में राहुल गांधी का नाम है. फिर तो कोई शक-शुबहे की जरूरत ही नहीं है कि ये कमेटी राहुल गांधी को ही ध्यान में रख कर बनायी गयी है. कमेटी की रोज मीटिंग होगी तो कोरोना संकट के वक्त मोदी सरकार के कामकाज की राजनीतिक समीक्षा भी होगी और कंस्ट्रक्टिव सजेशन भी तैयार किये जाएंगे. अब रोज मीटिंग होगी तो मीडिया ब्रीफिंग भी होगी ही - चाहे तो खुद राहुल गांधी सामने आयें वरना रणदीप सिंह सुरजेवाला तो हैं ही.

2. कमेटी में पुराने कांग्रेस नेताओं को रखा गया है तो नये चेहरे भी शामिल किये गये हैं - लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि कमेटी से वे तीन नाम गायब हैं जो 1998 में सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने से लेकर उनकी नयी पारी तक तकरीबन हर कमेटी में रहे ही हैं. ये तीन नाम हैं - अहमद पटेल, एके एंटनी और गुलाम नबी आजाद. इन तीन नेताओं का राहुल गांधी के प्रभाव वाली कमेटी में न होना काफी कुछ कहता है. कहने का मतलब ये भी हो सकता है कि ये राहुल गांधी के फिर से कांग्रेस का नेतृत्व करने का इशारा भी हो. हो सकता है ये कमेटी कांग्रेस के नये रूप का शिलान्यास भी हो.

3. राहुल गांधी, मनमोहन सिंह, रणदीप सुरजेवाला और केसी वेणुगोपाल के अलावा कमेटी में पी. चिदंबरम, जयराम रमेश, मनीष तिवारी तो हैं ही कुछ नये चेहरे भी शामिल किये गये हैं - गौरव वल्लभ, सुप्रिया श्रीनेत, रोहन गुप्ता और प्रवीण चक्रवर्ती. नेताओं के नाम देख कर तो यही लगता है जैसे राहुल गांधी के लिए उनके मनमाफिक टीम बनायी गयी है - मजबूरी में ही सही मंजूरी तो सोनिया गांधी ने ही दी है. एक कमी और हैरान करने वाली है जब नये चेहरे शामिल किये जा सकते हैं तो प्रियंका गांधी वाड्रा का नाम क्यों गायब है?

4. रोहन गुप्ता और प्रवीण चक्रवर्ती को राहुल गांधी का पसंदीदा और करीबी माना जाता है. रोहन गुप्ता पिछले सितंबर में सोशल मीडिया के इंचार्ज बनाये गये थे. प्रवीण चक्रवर्ती AICC के टेक्नोलॉजी और डाटा सेल के चेयरमैन हैं. ऐसा लगता है इनकी विशेषज्ञता को देखते हुए कमेटी में शामिल किया गया है.

5. गौरव वल्लभ एक ही झटके में तब चर्चा में आये जब एक टीवी डिबेट में संबित पात्रा से पूछ बैठे कि पांच ट्रिलियन में कितने जीरो लगते हैं. झारखंड की जमशेदपुर सीट से वो विधानसभा का चुनाव भी लड़े थे लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के साथ साथ गौरव वल्लभ भी हार गये - क्योंकि निर्दलीय चुनाव लड़ कर सरयू राय चुनाव जीत गये थे. गौरव वल्लभ की ही तरह सुप्रिया श्रीनेत भी 2019 में लोक सभा चुनाव हार गयी थीं - लेकिन ये दोनों लगातार कांग्रेस के पक्ष में बहसों को आगे बढ़ाते रहे हैं. गौरव वल्लभ प्रोफेसर रहे हैं जबकि सुप्रिया श्रीनेत पत्रकार.

क्या वाकई बदले हैं राहुल गांधी?

राहुल गांधी ने एक ट्वीट कर कोविड 19 को मौका बताया है - और ऐसा लगता है जैसे घर से ही चैरिटी की शुरुआत हो रही हो. या तो ये कहें कि राहुल गांधी ने मौका खोज लिया है या फिर कांग्रेस ने मौका खोज लिया है. राहुल गांधी के इस ट्वीट में सुझाव भी है - मौका फायदा उठाते हुए वैज्ञानिकों, इंजीनियर्स और डाटा एक्सपर्ट को नये सॉल्युशन की तलाश में लगाया जा सकता है.

राहुल गांधी ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को लेकर सरकार के फैसले का भी स्वागत किया है. सरकार ने अब देश की सीमा से लगने वाले देशों के लिए एफडीआई को लेकर परमिशन की शर्त लगा दी है. मोदी सरकार के इस फैसले का सीधा असर चीन, बांग्लादेश और पाकिस्तान पर पड़ेगा. राहुल गांधी ने अपना ही ट्वीट रीट्वीट करते हुए सरकार को ये कहते हुए धन्यवाद दिया है कि उनकी बात मान ली गयी है.

शिवसेना के मुखपत्र सामना में राहुल गांधी की जी खोल कर तारीफ की गयी है. शिवसेना का कहना है कि राहुल गांधी के विचार सरकार और विपक्षी दलों के लिए चिंतन शिविर की तरह हैं और ये देश को फायदा पहुंचाएगा.

लिखा तो यहां तक है कि राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी को देश के फायदे के लिए वैश्विक महामारी पर आमने सामने चर्चा करनी चाहिये. शिवसेना का मानना है कि राहुल गांधी के बारे में कुछ विचार हो सकते हैं - लेकिन राय तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बारे में भी है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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