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Coronavirus epidemic में भी विपक्ष की Lockdown पॉलिटिक्स चालू है!

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 13 अप्रिल, 2020 10:29 PM
  • 13 अप्रिल, 2020 07:32 PM
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कोनोना वायरस को लेकर देश में एक खास रणनीति के तहत लॉकडाउन पॉलिटिक्स (Lockdown Politics) चल रही है, जिसमें लोगों को ये मैसेज देने की कोशिश है कि संकटकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) से कहीं ज्यादा तत्पर विपक्षी दलों के मुख्यमंत्री (Chief Ministers) हैं.

कोरोना वायरस की महामारी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और देश के मुख्यमंत्रियों (Chief Ministers) के बीच अब तक तीन बैठकें हो चुकी हैं. तकरीबन तीनों ही मीटिंग में एक कॉमन बात ये जरूर दिखी है कि या तो चीजों को लेकर आम राय बनी है या फिर ज्यादातर मुख्यमंत्री एक राय रहे हैं - और कोई भी फैसला लेने से पहले प्रधानमंत्री मोदी सबकी सोच, समझ और सहमति के लिए देश के सभी मुख्यमंत्रियों के साथ बातचीति निश्चित तौर पर किये ही हैं.

चूंकि इमरजेंसी वाली स्थिति अचानक पैदा हो गयी और लोगों की जान बचानी जरूरी है, इसलिए अक्सर होने वाली राजनीतिक बयानबाजी से भी विपक्षी खेमे के ज्यादातर नेताओं ने परहेज किया है - लेकिन राज्यों में लॉकडाउन लागू किये जाने का पैटर्न (Lockdown Politics) देखें तो लगता है कि जैसे सब कुछ एक खास रणनीति के तहत हो रहा है.

लॉकडाउन में आगे गैर-बीजेपी मुख्यमंत्री

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्रियों की पहली वीडियो कांफ्रेंसिंग 20 मार्च को हुई थी. फिर प्रधानमंत्री मोदी ने दो दिन बाद जनता कर्फ्यू के लिए अपील की थी - और संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा प्रधानमंत्री मोदी ने 24 मार्च की शाम को की जो कुछ घंटों बाद आधी रात से लागू हो गया.

ये सब होने से पहले से ही कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम किसी न किसी रिपोर्ट का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोरोना वायरस को लेकर हुए फैसले को आधार बना कर ट्वीट करते रहे और बार बार यही सवाल करते रहे कि सख्त कदम क्यों नहीं उठाये जा रहे हैं. चिंदबरम ने ही ये भी कहा कि लॉकडाउन लागू कर देना चाहिये और बगैर जरा भी देर किये.

हो सकता है मुख्यमंत्रियों की पहली मीटिंग में ही लॉकडाउन को लेकर आम राय बन चुकी हो, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी को अचानक इसे लागू किया जाना व्यावहारिक न लगा हो, इसलिए संपूर्ण लॉकडाउन लागू करने से पहले देश को मानसिक तौर पर तैयार करने की सोचे हों - और उसी के मद्देनजर जनता कर्फ्यू का आइ़डिया आया हो.

तभी जनता कर्फ्यू के बीच ही राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक...

कोरोना वायरस की महामारी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और देश के मुख्यमंत्रियों (Chief Ministers) के बीच अब तक तीन बैठकें हो चुकी हैं. तकरीबन तीनों ही मीटिंग में एक कॉमन बात ये जरूर दिखी है कि या तो चीजों को लेकर आम राय बनी है या फिर ज्यादातर मुख्यमंत्री एक राय रहे हैं - और कोई भी फैसला लेने से पहले प्रधानमंत्री मोदी सबकी सोच, समझ और सहमति के लिए देश के सभी मुख्यमंत्रियों के साथ बातचीति निश्चित तौर पर किये ही हैं.

चूंकि इमरजेंसी वाली स्थिति अचानक पैदा हो गयी और लोगों की जान बचानी जरूरी है, इसलिए अक्सर होने वाली राजनीतिक बयानबाजी से भी विपक्षी खेमे के ज्यादातर नेताओं ने परहेज किया है - लेकिन राज्यों में लॉकडाउन लागू किये जाने का पैटर्न (Lockdown Politics) देखें तो लगता है कि जैसे सब कुछ एक खास रणनीति के तहत हो रहा है.

लॉकडाउन में आगे गैर-बीजेपी मुख्यमंत्री

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्रियों की पहली वीडियो कांफ्रेंसिंग 20 मार्च को हुई थी. फिर प्रधानमंत्री मोदी ने दो दिन बाद जनता कर्फ्यू के लिए अपील की थी - और संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा प्रधानमंत्री मोदी ने 24 मार्च की शाम को की जो कुछ घंटों बाद आधी रात से लागू हो गया.

ये सब होने से पहले से ही कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम किसी न किसी रिपोर्ट का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोरोना वायरस को लेकर हुए फैसले को आधार बना कर ट्वीट करते रहे और बार बार यही सवाल करते रहे कि सख्त कदम क्यों नहीं उठाये जा रहे हैं. चिंदबरम ने ही ये भी कहा कि लॉकडाउन लागू कर देना चाहिये और बगैर जरा भी देर किये.

हो सकता है मुख्यमंत्रियों की पहली मीटिंग में ही लॉकडाउन को लेकर आम राय बन चुकी हो, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी को अचानक इसे लागू किया जाना व्यावहारिक न लगा हो, इसलिए संपूर्ण लॉकडाउन लागू करने से पहले देश को मानसिक तौर पर तैयार करने की सोचे हों - और उसी के मद्देनजर जनता कर्फ्यू का आइ़डिया आया हो.

तभी जनता कर्फ्यू के बीच ही राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राज्य में लॉकडाउन लागू कर देते हैं. कुछ ही देर बाद ऐसा ही फैसला पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह भी ले लेते हैं - ध्यान देने वाली बात ये है कि दोनों ही राज्यों में कांग्रेस की ही सरकारें हैं.

अगले ही दिन दिल्ली में भी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल लॉकडाउन की घोषणा करते हैं - लेकिन उसके भी 24 घंटे बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ राज्य के कुछ जिलों में ही लॉकडाउन लगाते हैं. धीरे धीरे बाकी मुख्यमंत्री भी सख्त कदम उठाते हैं तब तक प्रधानमंत्री मोदी पूरे देश में संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा कर देते हैं.

देश में 21 दिन के लिए लॉकडाउन लागू हो जाता है. लोग घरों में कैद हो जाते हैं, लेकिन दिल्ली में रह रहे पूर्वांचल के लोग सड़कों पर निकल जाते हैं और पैदल ही अपने घरों की तरह चल देते हैं - यूपी और बिहार की सरकारों के मंत्री दिल्ली की केजरीवाल सरकार को संकट के दौर में भी राजनीति करने का आरोप लगाते हुए कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करते हैं. फिर योगी आदित्यनाथ और नीतीश कुमार अपने अपने लोगों की मदद में जुट जाते हैं और अरविंद केजरीवाल बढ़ते कोरोना संक्रमण को रोकने में जुट जाते हैं - राजनीति थमने जैसा लगती है. हालांकि, थमती है नहीं.

जैसे जैसे लॉकडाउन के 21 दिन पूरे होने की तारीख नजदीक आने लगती है, फिर से गैर-बीजेपी राज्यों के मुख्यमंत्री सक्रिय हो जाते हैं - और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूसरी बार मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाते हैं. ऐसा लगने लगता है जैसे लॉकडाउन खत्म किये जाने की तैयारी चल रही हो. सबसे ज्यादा ऐसी तैयारी उत्तर प्रदेश में दिखायी देती है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगातार अफसरों के साथ मीटिंग लेते हैं. कमेटियां बनाते हैं - ब्रीफिंग और बयानों से ऐसा माहौल बनता है जैसे लॉकडाउन नहीं बढ़ाया जाने वाला है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की लॉकडाउन पॉलिटिक्स कहां पहुंचने वाली है

11 अप्रैल को तीसरी बार मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलायी जाती है और फिर से लॉकडाउन को लेकर विचार विमर्श होता है. मीटिंग के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ये बात प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ के साथ बताते हैं कि लॉकडाउन बढ़ाकर प्रधानमंत्री मोदी ने बहुत अच्छा किया है.

लेकिन ये क्या पहले ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और फिर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, प्रधानमंत्री मोदी के ऐलान से पहले ही अपने अपने राज्यों में लॉकडाउन और दो हफ्ते के लिए बढ़ा देते हैं - और फिर महाराष्ट्र, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल से भी ऐसी ही खबरें आने लगती हैं - आखिर में कर्नाटक और यूपी की बीजेपी सरकारों के मुख्यमंत्री भी वैसा ही करते हैं जैसा उनके विरोधी राजनीतिक दलों के मुख्यमंत्री कर चुके होते हैं.

निश्चित तौर पर संकट के वक्त अच्छी पहल तारीफ के काबिल होती है - लेकिन ये सिर्फ पहल क्यों नहीं लगती. ऐसा क्यों लगता है कि ये मिलजुल कर किया जा रहा है. विपक्षी खेमे के मुख्यमंत्री ऐसा करके एक तरीके से प्रधानमंत्री मोदी पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

ये तो ऐसा लगता है जैसे विपक्ष एक खास रणनीति के तहत लोगों को ये मैसेज देने की कोशिश कर रहा है कि मोदी सरकार को लोगों की जरा भी फिक्र नहीं है - पहली बार भी विपक्ष के दबाव बनाने के बाद ही प्रधानमंत्री मोदी ने संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की और यही सोचकर लॉकडाउन बढ़ाये जाने को लेकर भी दबाव बनाने की ही कोशिश हो रही है.

ये थ्योरी साबित होते भी बहुत देर नहीं लगती - पहले सोनिया गांधी, राहुल गांधी और पी. चिदंबरम कांग्रेस की कार्यकारिणी में मोदी सरकार के संपूर्ण लॉकडाउन के फैसले की खामियां गिनाते हैं - बार बार प्रधानमंत्री को पत्र लिखे जाते हैं. एक पत्र में तो कांग्रेस के चुनावी वादे न्याय योजना ही लागू करने की मांग की जाती है. फिर मोदी सरकार को इस आरोप के साथ कठघरे में खड़ा किये जाने की कोशिश होती है कि बगैर किसी तैयारी के संपूर्ण लॉकडाउन लागू कर दिया गया और देश के गरीब मुश्किल में पड़ गये हैं.

ये थ्योरी पूरी तरह तब सही साबित हो जाती है जब सोनिया गांधी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्षों की मीटिंग में भीलवाड़ा मॉडल का क्रेडिट राहुल गांधी को दे डालती हैं - उसका आधार बनता है 12 फरवरी को एक रिपोर्ट के साथ किया गया वायनाड के सांसद का ट्वीट.

बस ऐसे ही छोटी छोटी कड़ियों को जोड़ते जाइये कोरोना जैसी महामारी के बीच भी विपक्ष की सोची समझी रणनीतिक के साथ रफ्तार भरती राजनीति परत दर परत यूं ही खुलती नजर आने लगेगी - और तभी आपको एक सरप्राइज भी मिल जाएगा.

भीलवाड़ा बनाम आगरा मॉडल

कोरोना वायरस के खिलाफ जारी जंग के बीच भीलवाड़ा मॉडल की काफी चर्चा हो चुकी है - और इसी कड़ी में सामने आया आगरा मॉडल आखिर सरप्राइज नहीं तो क्या है?

अब तक भीलवाड़ा मॉडल को ही आधार बनाकर देश के दूसरे हिस्सों में लागू किये जाने को लेकर संस्तुतियां होती रहीं. प्रजेंटेशन बनाये जाते रहे - और केंद्र सरकार की तरफ से भी ब्रीफिंग में तारीफ की जाती रही - लेकिन अब इसमें आगरा मॉडल को सरप्राइज एंट्री मिल चुकी है. ऐसा लगता है, अब भीलवाड़ा की जगह आगरा मॉडल लागू किये जाने पर जोर होगा.

भीलवाड़ा मॉडल और आगरा मॉडल में मेडिकल पैमाने पर तो कोई फर्क नजर नहीं आएगा, लेकिन राजनीतिक अंतर जरूर है - भीलवाड़ा मॉडल कांग्रेस के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के इलाके से आता है जबकि आगरा मॉडल बीजेपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रशासनिक ज्युरिस्डिक्शन के बीच से. हो सकता है सोनिया गांधी ने राहुल गांधी को भीलवाड़ा मॉडल का क्रेडिट देने की कोशिश न की होती तो ऐसी क्रिया-प्रतिक्रिया न हुई होती.

WHO के मुताबिक किसी भी संक्रमण को डील करने का एक ही तरीका है, एक ही मॉडल है - भीलवाड़ा हो या आगरा दोनों ही जगह एक ही तरीका अपनाया गया है. दोनों ही मामलों में विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ से ही स्थानीय प्रशासन को तकनीकी सपोर्ट दिये जाने की बात पता चली है. ये भी ठीक वैसा ही है जैसा दुनिया का बाकी देशों में हो रहा है. ये मॉडल है - जैसे ही संक्रमण के सोर्स का पता चले, उसे ट्रैक करना है. संक्रमित व्यक्ति कहां कहां जाता है, किस किस से मिलता है और कौन कौन से लोग संक्रमित हो सकते है. बस सभी को शुरुआत में ही क्वारंटीन कर देना है. अगर किसी की तबीयत बिगड़ रही हो तो उसे अस्पताल में भर्ती से लेकर वेंटीलेटर पर रखने तक जरूरत के हिसाब से उपाय किये जा सकते हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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