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राहुल गांधी की ये तैयारी तो अच्छी है, लेकिन तरीके में दम नहीं लगता

    • आईचौक
    • Updated: 28 जनवरी, 2018 05:57 PM
  • 28 जनवरी, 2018 05:57 PM
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कांग्रेस की कोशिश है कि बिहार में उसे आरजेडी का पिछलग्गू बन कर न रहना पड़े. 'आमंत्रण यात्रा' को राहुल गांधी की मंजूरी भी इसलिए मिली है, लेकिन उसका कितना असर होगा कहना मुश्किल है.

नॉर्थ-ईस्ट के तीन राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, लेकिन गुजरात के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का ज्यादा जोर कर्नाटक पर है. साथ ही साथ, वो बिहार, ओडिशा और मध्य प्रदेश राज्यों में कांग्रेस को मजबूत करने में भी जुटे हैं. इन राज्यों में कांग्रेस संगठन में और भी बदलाव होने की संभावना जतायी जा रही है. बिहार तो अभी कार्यकारी अध्यक्ष के भरोसी ही चल रहा है.

कांग्रेस की 'आमंत्रण यात्रा'

बिहार में तेजस्वी यादव 'न्याय यात्रा' पर निकलने वाले हैं. तेजस्वी की इस यात्रा का मकसद जनता की अदालत में लालू प्रसाद का पक्ष रखना है, लेकिन इसे नीतीश कुमार की 'समीक्षा यात्रा' से भी जोड़ कर देखा जा रहा है. समझा जाता है कि न्याय यात्रा के दौरान तेजस्वी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर और तेज हमले कर सकते हैं - और लोगों के बीच नीतीश सरकार के कामों की अपने तरीके से समीक्षा पेश कर सकते हैं.

बिहार कांग्रेस की भी दोनों यात्राओं ही पर पैनी नजर है, इसलिए वो अपनी अलग यात्रा की तैयारी कर रही है - 'आमंत्रण यात्रा'. खबर है कि 'आमंत्रण यात्रा' पहले 18 जनवरी से शुरू होने वाली थी, लेकिन ज्यादा ठंड होने के कारण इसे टाल दिया गया. अब ये फरवरी के पहले हफ्ते में शुरू हो सकती है. देखें तो कांग्रेस की आमंत्रण यात्रा भी तेजस्वी यादव की न्याय यात्रा के इर्द गिर्द ही शुरू होती लगती है.

बुजुर्गों को जोड़ने का आइडिया तो अच्छा है, लेकिन...

आमंत्रण यात्रा की तारीख महात्मा गांधी की चंपारण यात्रा से जोड़ कर रखी गयी थी. ये यात्रा बेतिया के वृंदावन से शुरू होगी और इस दौरान कांग्रेस का रथ पूरे बिहार का भ्रमण करेगा.

राहुल गांधी ने बिहार कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष कौकब कादरी को आमंत्रण यात्रा की अनुमति तो दे दी है, लेकिन वो खुद भी इसमें शामिल...

नॉर्थ-ईस्ट के तीन राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, लेकिन गुजरात के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का ज्यादा जोर कर्नाटक पर है. साथ ही साथ, वो बिहार, ओडिशा और मध्य प्रदेश राज्यों में कांग्रेस को मजबूत करने में भी जुटे हैं. इन राज्यों में कांग्रेस संगठन में और भी बदलाव होने की संभावना जतायी जा रही है. बिहार तो अभी कार्यकारी अध्यक्ष के भरोसी ही चल रहा है.

कांग्रेस की 'आमंत्रण यात्रा'

बिहार में तेजस्वी यादव 'न्याय यात्रा' पर निकलने वाले हैं. तेजस्वी की इस यात्रा का मकसद जनता की अदालत में लालू प्रसाद का पक्ष रखना है, लेकिन इसे नीतीश कुमार की 'समीक्षा यात्रा' से भी जोड़ कर देखा जा रहा है. समझा जाता है कि न्याय यात्रा के दौरान तेजस्वी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर और तेज हमले कर सकते हैं - और लोगों के बीच नीतीश सरकार के कामों की अपने तरीके से समीक्षा पेश कर सकते हैं.

बिहार कांग्रेस की भी दोनों यात्राओं ही पर पैनी नजर है, इसलिए वो अपनी अलग यात्रा की तैयारी कर रही है - 'आमंत्रण यात्रा'. खबर है कि 'आमंत्रण यात्रा' पहले 18 जनवरी से शुरू होने वाली थी, लेकिन ज्यादा ठंड होने के कारण इसे टाल दिया गया. अब ये फरवरी के पहले हफ्ते में शुरू हो सकती है. देखें तो कांग्रेस की आमंत्रण यात्रा भी तेजस्वी यादव की न्याय यात्रा के इर्द गिर्द ही शुरू होती लगती है.

बुजुर्गों को जोड़ने का आइडिया तो अच्छा है, लेकिन...

आमंत्रण यात्रा की तारीख महात्मा गांधी की चंपारण यात्रा से जोड़ कर रखी गयी थी. ये यात्रा बेतिया के वृंदावन से शुरू होगी और इस दौरान कांग्रेस का रथ पूरे बिहार का भ्रमण करेगा.

राहुल गांधी ने बिहार कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष कौकब कादरी को आमंत्रण यात्रा की अनुमति तो दे दी है, लेकिन वो खुद भी इसमें शामिल होंगे या नहीं ये अभी तक पक्का नहीं है. वैसे राहुल गांधी 10 से 12 फरवरी के बीच तीन दिन के लिए कर्नाटक दौरे पर जाने वाले हैं.

आमंत्रण यात्रा के जरिये बिहार कांग्रेस फिर से पुराने कांग्रेसी नेताओं से कनेक्ट करने की कोशिश करना चाहती है. देखें तो साठ से ऊपर के जितने भी नेता हैं, भले ही वे किसी भी पार्टी में रहे हों - एक जमाने में तो सभी कांग्रेस में ही रहे हैं.

मौका तो है, मगर कांग्रेस फायदा उठाये तब तो!

बिहार में अब तक स्थायी अध्यक्ष न बनाने के पीछे बड़ी वजह तो यही लगती है कि कांग्रेस की तलाश अब तक पूरी नहीं हो पायी है. अशोक चौधरी को हटाने के बाद कांग्रेस नेता तारिक अनवर के संपर्क में काफी दिनों तक रहे. तारिक अनवर फिलहाल एनसीपी में हैं लेकिन किसी जमाने में कांग्रेस के धाकड़ युवा नेताओं में शुमार थे. जब तारिक अनवर तैयार नहीं हुए तो कांग्रेस ने कौकब कादरी को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया. इशारा ये है कि कांग्रेस किसी मुस्लिम को ही बिहार की कमान सौंपने मूड में है. इसके पीछे मुस्लिम वोटों को साधने की कांग्रेस की कोशिश हो सकती है. मुस्लिम वोट उसी को मिलेगा जो बीजेपी और नीतीश के खिलाफ मजबूत होगा. अगर कांग्रेस मजबूत हुई तो उसे आरजेडी का पिछलग्गू बन कर रहने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

बिहार में हैसियत बढ़ाने की कोशिश...

आमंत्रण यात्रा के जरिये ऐसे ही पुराने कांग्रेसियों से संपर्क कर उनके सामने घर वापसी का प्रस्ताव रखना है. कांग्रेस ने अभी ये स्पष्ट तो नहीं किया है कि उसकी नजर किन नेताओं पर है. वैसे तो बिहार विधानसभा के स्पीकर विजय कुमार चौधरी भी पुराने कांग्रेसी हैं. कांग्रेस की नजर आरजेडी के उन नेताओं पर भी है जो लालू के जेल जाने के बाद तेजस्वी के नेतृत्व में असहज महसूस करते हैं या फिर कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा पारिवारिक पार्टी होने के चलते घुटन महसूस कर रहे हों. इन नेताओं के जरिये कांग्रेस भले ही कोई बड़ा काम न कर सके, लेकिन सीटों पर बंटवारे के समय उसकी हालत यूपी जैसी तो नहीं होगी जब उसे समाजवादी पार्टी की कृपा का मोहताज रहना पड़ा. बिहार विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को प्रसाद में जो भी मिला वो भी तो नीतीश कुमार की कृपा से ही हासिल हुआ था.

वैसे भी इंडिया टुडे के ताजा सर्वे के मुताबिक बिहार में नीतीश कुमार से हाथ मिलाने के बाद भी बीजेपी को कोई फायदा होता नहीं दिखता. ऊपर से राहुल गांधी के कद में इजाफा दर्ज हुआ है. ये बात अलग है कि राहुल गांधी के मुकाबले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता काफी आगे है.

सर्वे में ये भी पता चला है कि अगर कांग्रेस 2019 में बीएसपी और समाजवादी पार्टी सहित दूसरे छोटे दलों से गठबंधन कर ले तो बीजेपी गठबंधन और कांग्रेस अलाएंस के सीटों का फासला काफी कम हो सकता है. मुश्किलात भी वहीं हैं जहां फायदे की बातें हैं. अखिलेश यादव पहले ही पल्ला झाड़ चुके हैं और मायावती कभी चुनाव पूर्व गठबंधन की पक्षधर नहीं रही हैं. मायावती दिल्ली में सोनिया के लंच में तो शामिल हुईं लेकिन लालू की पटना रैली से नदारद रहीं.

बुजुर्गों की देखभाल से बढ़िया और क्या हो सकता है और वो भी राजनीति में. अगर कांग्रेस लालकृष्ण आडवाणी को मार्गदर्शक मंडल भेजने को लेकर बीजेपी की खिंचाई करती है तो आमंत्रण यात्रा जैसे कदमों के जरिये वो उसके साथ साथ बाकियों के लिए मिसाल पेश कर सकती है. वैसे जब बीजेपी न्यू इंडिया के वोटर को जोड़ने के लिए 'युवा उद्घोष' जैसे कार्यक्रम चला रही हो, फिर कांग्रेस की आमंत्रण यात्रा राजनीतिक तौर पर कितना कारगर होगी दिमाग पर बहुत जोर देकर समझने की जरूरत नहीं है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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