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राहुल गांधी अमेठी को तो सिंगापुर बनाएंगे - और भारत को?

    • आईचौक
    • Updated: 18 अप्रिल, 2018 04:52 PM
  • 18 अप्रिल, 2018 04:52 PM
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मनमोहन सिंह के 'मौन' मोदी वाले बयान पर मचे बवाल के बीच अमेठी और रायबरेली में कांग्रेस नेताओं की गतिविधियां बढ़ गयी हैं. कांग्रेस के पक्ष में भी और विरोध में भी - और इसके पीछे अमित शाह का रायबरेली दौरा है.

बड़े काम के लिए बड़ी सोच जरूरी होती है. राहुल गांधी भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह बड़ी सोच में यकीन रखते हैं. बड़ी सोच से नतीजे क्या निकलते हैं ये इस बात पर निर्भर करता है कि फोकस किस बात पर है? पैमाना क्या है? और हां, दायरा कहां तक है? दोनों की सोच में फर्क भी इसी आधार पर देखा जा सकता है.

एससी-एसटी एक्ट में तब्दीली के बहाने दलितों का मुद्दा उठाने वाले राहुल पहले ही बता चुके हैं कि उनकी तरक्की की स्पीड बृहस्पति की एस्केप वेलॉसिटी के बराबर होनी चाहिये. अक्टूबर, 2013 में राहुल गांधी ने कहा था, "एयरोनॉटिक्स में एक एस्केप वेलॉसिटी का कंसेप्ट होता है. एस्केप वेलॉसिटी मतलब अगर आपने धरती से स्पेस में जाना है... अगर आप हमारी धरती पे हैं तो 11.2 किलोमीटर प्रति सेकंड के हिसाब से आपकी वेलॉसिटी होनी पड़ेगी."

15 मिनट से लेकर 15 साल तक की बातें

दिसंबर, 2016 में संसद के बाहर एक बार कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, ''...अगर मुझे बोलने देंगे तो आप देखेंगे भूकंप आ जाएगा.''

तब राहुल काफी गंभीर लगने लगे थे और कई दल उनके समर्थन में खड़े होने लगे थे. तभी अचानक राहुल गांधी की टीम ने मोदी से मुलाकात का वक्त मांग लिया. टीम मोदी तो तैयार बैठी थी, राहुल और उनकी टीम के लोग उनसे मिले नहीं कि ट्विटर पर मुलाकात की तस्वीर आ गयी. कांग्रेस के अंदर भी टीम राहुल सीनियर कांग्रेस नेताओं निशाने पर रही - और बाहर खुद राहुल गांधी भी, विपक्ष के टारगेट पर. फिर राहुल ने धमाके की कोशिश की लेकिन वो फुस्स हो गया.

पूरी दुनिया मोदी के भाषण देने की कला का लोहा मानती है. एक पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री का तो मानना था कि जब मोदी मौजूद हों तो दूसरों को रिस्क नहीं लेना चाहिये. खुद राहुल गांधी भी सार्वजनित तौर पर स्वीकार चुके हैं कि वो मोदी की तरह भाषण नहीं दे सकते.

अब कौन सा चमत्कार हो गया है कि राहुल गांधी को भरोसा है कि प्रधानमंत्री मोदी उनके सामने 15 मिनट भी नहीं टिक पाएंगे? ये कोई नई एस्केप...

बड़े काम के लिए बड़ी सोच जरूरी होती है. राहुल गांधी भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह बड़ी सोच में यकीन रखते हैं. बड़ी सोच से नतीजे क्या निकलते हैं ये इस बात पर निर्भर करता है कि फोकस किस बात पर है? पैमाना क्या है? और हां, दायरा कहां तक है? दोनों की सोच में फर्क भी इसी आधार पर देखा जा सकता है.

एससी-एसटी एक्ट में तब्दीली के बहाने दलितों का मुद्दा उठाने वाले राहुल पहले ही बता चुके हैं कि उनकी तरक्की की स्पीड बृहस्पति की एस्केप वेलॉसिटी के बराबर होनी चाहिये. अक्टूबर, 2013 में राहुल गांधी ने कहा था, "एयरोनॉटिक्स में एक एस्केप वेलॉसिटी का कंसेप्ट होता है. एस्केप वेलॉसिटी मतलब अगर आपने धरती से स्पेस में जाना है... अगर आप हमारी धरती पे हैं तो 11.2 किलोमीटर प्रति सेकंड के हिसाब से आपकी वेलॉसिटी होनी पड़ेगी."

15 मिनट से लेकर 15 साल तक की बातें

दिसंबर, 2016 में संसद के बाहर एक बार कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, ''...अगर मुझे बोलने देंगे तो आप देखेंगे भूकंप आ जाएगा.''

तब राहुल काफी गंभीर लगने लगे थे और कई दल उनके समर्थन में खड़े होने लगे थे. तभी अचानक राहुल गांधी की टीम ने मोदी से मुलाकात का वक्त मांग लिया. टीम मोदी तो तैयार बैठी थी, राहुल और उनकी टीम के लोग उनसे मिले नहीं कि ट्विटर पर मुलाकात की तस्वीर आ गयी. कांग्रेस के अंदर भी टीम राहुल सीनियर कांग्रेस नेताओं निशाने पर रही - और बाहर खुद राहुल गांधी भी, विपक्ष के टारगेट पर. फिर राहुल ने धमाके की कोशिश की लेकिन वो फुस्स हो गया.

पूरी दुनिया मोदी के भाषण देने की कला का लोहा मानती है. एक पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री का तो मानना था कि जब मोदी मौजूद हों तो दूसरों को रिस्क नहीं लेना चाहिये. खुद राहुल गांधी भी सार्वजनित तौर पर स्वीकार चुके हैं कि वो मोदी की तरह भाषण नहीं दे सकते.

अब कौन सा चमत्कार हो गया है कि राहुल गांधी को भरोसा है कि प्रधानमंत्री मोदी उनके सामने 15 मिनट भी नहीं टिक पाएंगे? ये कोई नई एस्केप वेलॉसिटी तो नहीं है?

अब वो अमेठी को सिंगापुर जैसा बनाने की बात कर रहे हैं. राहुल गांधी का कहना है कि 15 साल बाद जब सिंगापुर और कैलिफोर्निया की चर्चा होगी, लोग अमेठी का भी नाम लेंगे.

ये बयान देकर राहुल गांधी ने विपक्ष को तो सवाल पूछने का मौका दे ही दिया है, लोगों के मन में भी संशय के भाव भर दिये हैं. ऐसा लगता है जैसे राहुल गांधी ने बीजेपी के आरोपों को स्वीकार कर लिया है. अगर वो अमेठी को अब विकसित करने की बात कर रहे हैं तो लोगों के मन में ये सवाल तो उठेंगे ही कि जिस भावना के साथ वो अब तक राहुल को वोट देते रहे उसका कोई मोल नहीं था. यहां तक कि 2014 के मोदी लहर में भी लोगों ने स्मृति ईरानी के मुकाबले राहुल को बढ़ चढ़ कर वोट दिया. अब जब बीजेपी ने घेरना चालू कर दिया तो वो अमेठी को सिंगापुर बनाने की बात करने लगे हैं.

राहुल गांधी की ये बात अपनेआप में अजीब लगती है. जो आदमी दुनिया में अमेरिका और चीन की तरह भारत की भी एक सोच होने जरूरत बताता है, वही शख्स भारत से सीधे अमेठी पर उतर आता है. ये तो यूपीए के 10 साल के कार्यकाल में हुए विकास के कामों पर भी सवाल उठाता है. आखिर अचानक भारत को लेकर सोच कहां चली जाती है? न्यू इंडिया का ख्याल कैसे दिमाग से उतर जाता है? होना तो ये चाहिये कि राहुल को भारत की बात करनी चाहिये. ऐसा इसलिए भी जरूरी हो जाता है क्योंकि वो कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं.

अमेठी में राहुल, रायबरेली में सोनिया

गुजरात चुनाव के दौरान अमित शाह पूरे लाव लश्कर के साथ अमेठी गये थे. ठीक उसी तरह अब रायबरेली पहुंच रहे हैं, जब कर्नाटक में चुनाव होने जा रहे हैं. जिस तरह अमित शाह के कार्यक्रम से पहले राहुल गांधी अमेठी तब अमेठी पहुंचे थे, सोनिया भी रायबरेली पहुंची हुई हैं. अमित शाह 21 अप्रैल को रायबरेली जाने वाले हैं. ध्यान देने वाली बात है कि 14 अप्रैल को स्मृति ईरानी भी अमेठी गयी हुई थीं.

अमेठी के बाद रायबरेली की तैयारी

सोनिया भी लंबे अरसे बाद रायबरेली पहुंची हैं. यूपी चुनाव के वक्त माना जा रहा था कि और कहीं नहीं तो कम से कम अपने संसदीय क्षेत्र में वोट मांगने वो जरूर जाएंगी, पर ऐसा न हुआ. सोनिया का जनता दरबार भी लग रहा है और जाहिर है ये लोगों से बातचीत करने, उनकी बातें सुनने और सीधे कनेक्ट होने के मकसद से किया जा रहा है. इससे पहले इस तरह का जनता दरबार प्रियंका गांधी लगाती रही हैं. चार साल पहले तक ये दरबार दिल्ली में भी लगता था जहां अपनी बातें शेयर करने लोग रायबरेली से आया करते थे.

सोनिया का ये दौरा और जनता दरबार उस वक्त हो रहा है जब अमित शाह अमेठी की तरह ही रायबरेली में धावा बोलने वाले हैं. अमित शाह का ट्रैक रिकॉर्ड देखें तो जहां कहीं भी उन्हें जाना होता है विपक्षी दलों में तोड़ फोड़ पहले से ही शुरू हो जाती है. ऐसा ही कुछ रायबरेली में भी होने की संभावना नजर आ रही है. कांग्रेस एमएलसी दिनेश सिंह के बीजेपी में जाने की चर्चा जोरों पर है. दिनेश सिंह का जाना कांग्रेस के लिए काफी नुकसानदेह होगा. दिनेश दो भाई भी हैं एक विधायक और दूसरे जिला पंचायत अध्यक्ष. सभी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते हैं और सभी कांग्रेस छोड़ने की चर्चा है. ऐसा हुआ तो रायबरेली में कांग्रेस के पास सिर्फ एक विधायक बचेगा - वो विधायक भी अदिति सिंह जिन्हें कांग्रेस के नाम से कम और बाहुबली अखिलेश सिंह की बेटी के रूप में ज्यादा जाना जाता है.

कुछ दिन पहले राहुल गांधी ने कहा था कि अगर समाजवादी पार्टी, बीएसपी और कांग्रेस मिल कर चुनाव लड़ें तो नरेंद्र मोदी को वाराणसी में भी हराया जा सकता है. इस पर बीजेपी का कहना था कि राहुल गांधी वाराणसी नहीं, बल्कि अमेठी और रायबरेली की चिंता करें. ऐसे कम मौके होते हैं जब बीजेपी कह सकती है कि उसकी कथनी और करनी में फर्क नहीं होता है. फिलहाल बीजेपी रायबरेली के बारे में तो ऐसा कह ही सकती है.

मोदी को और कितना सुनना चाहते हैं मनमोहन

मोदी के बोलने को लेकर राहुल गांधी और मनमोहन सिंह के ताजा विचार मेल नहीं खा रहे. वैसे मनमोहन सिंह को राहुल गांधी अपना गुरु भी कई बार बता चुके हैं. राहुल गांधी का कहना है कि मोदी सिर्फ भाषण देते रहते हैं, जबकि मनमोहन सिंह को लगता है कि मोदी खुद भी वैसा ही व्यवहार कर रहे हैं जिस तरह का आरोप कभी उन पर लगाया करते थे.

खामोशी टूटी और मन की बात जबान पर आ गयी!

कांग्रेस और बीजेपी के मार्गदर्शक मंडल में कम से कम एक कॉमन बात और फर्क गौर करने लायक है... दोनों ही बुजुर्गों को हर अहम मौके पर साथ रखते हैं... लेकिन आडवाणी जहां दया भाव से देखते हैं, वहीं मनमोहन अब बोलते भी हैं, जो पहले खामोशी के लिए जाने जाते रहे.

राहुल गांधी का कहना है, "हमारे प्रधानमंत्री एक के बाद एक भाषण देते हैं लेकिन जो सबसे जरूरी काम है, वो नहीं कर पाते हैं."

मनमोहन सिंह का कहना है, "मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री जो सलाह मुझे दिया करते थे, उस पर उन्हें खुद अमल करना चाहिए और अक्सर बोलते रहना चाहिए." पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ये बात इंडियन एक्सप्रेस के साथ एक इंटरव्यू में कठुआ और उन्नाव को लेकर पूछे गये सवाल के जवाब में कही है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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