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दलितों के मुद्दे पर बीजेपी को कांग्रेस से मिले जख्म यूं ही नहीं भरने वाले

    • आईचौक
    • Updated: 14 अप्रिल, 2018 06:31 PM
  • 14 अप्रिल, 2018 05:12 PM
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दलितों के मुद्दे पर कांग्रेस ने बीजेपी को घेर लिया है. अंबेडकर जयंती और ग्राम स्वराज अभियान के बावजूद, दलितों की नाराजगी खत्म नहीं हुई. इंडिया टुडे सर्वे तो यही बता रहा है.

पहले उपवास, फिर मौन पर मचे बवाल के बाद आश्वासन की बारी थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेटियों को इंसाफ दिलाने का भरोसा तो दिलाया ही, लगे हाथ, दलितों को भी यकीन दिलाने की कोशिश की - 'सरकार एससी-एसटी एक्ट में छेड़छाड़ होने नहीं देगी.'

प्रधानमंत्री मोदी की ओर से जब तक ये आश्वासन आ पाया बहुत देर हो चुकी थी. कांग्रेस को दलितों के बहाने जो जख्म देने थे, वो दे चुकी थी - और जाहिर है ऐसे जख्मों को भरने में वक्त तो लगता है.

दलितों को मोदी का आश्वासन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभाओं में ताली बजने के साथ ही 'मोदी-मोदी' के नारे गूंजते हैं. अंबेडकर जयंती पर छत्तीसगढ़ पहुंचे मोदी ने खुद जय भीम पर जयकारा कराया. प्रधानमंत्री मोदी ने इस मौके पर महत्वाकांक्षी सरकारी बीमा स्कीम आयुष्मान भारत की शुरुआत की. स्थानीय लोगों, खासकर युवाओं से सीधा संवाद स्थापित करने के लिए मोदी ने भाषण की शुरुआत छत्तीसगढ़ी भाषा में की, "लेका लेकी पढ़तो लिखतो नोनी बाबो मनके खूबे खूबे माया."

'जय भीम!'

कहने का मतलब रहा - 'लड़के लड़कियों पढ़ो लिखो. युवाओं को बहुत बहुत प्यार.' इसका एक बड़ा फायदा ये भी होता है कि तर्जुमा के रिस्क फैक्टर अर्थ के अनर्थ होने का खतरा नहीं रहता, जैसा कर्नाटक में अमित शाह के भाषण के दौरान हो गया था. सूरज पूरब दिशा में उगता है और अक्सर मुहावरों में पश्चिम तक का इस्तेमाल होता है. मगर, मोदी का कहना था छत्तीसगढ़ के विकास का सूरज दक्षिण से उगेगा - यानी बस्तर से नयी उम्मीदों की शुरुआत होगी.

मोदी के भाषण में प्रभावी कीवर्ड अंबडेरकर का नाम रहा और प्रधानमंत्री ने बार बार आश्वस्त करने की कोशिश की कि बीजेपी ही अंबेडकर की विरासत की ठीक से देखभाल कर सकती है. ठीक एक दिन पहले ही मोदी ने दिल्ली में एससी-एसटी...

पहले उपवास, फिर मौन पर मचे बवाल के बाद आश्वासन की बारी थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेटियों को इंसाफ दिलाने का भरोसा तो दिलाया ही, लगे हाथ, दलितों को भी यकीन दिलाने की कोशिश की - 'सरकार एससी-एसटी एक्ट में छेड़छाड़ होने नहीं देगी.'

प्रधानमंत्री मोदी की ओर से जब तक ये आश्वासन आ पाया बहुत देर हो चुकी थी. कांग्रेस को दलितों के बहाने जो जख्म देने थे, वो दे चुकी थी - और जाहिर है ऐसे जख्मों को भरने में वक्त तो लगता है.

दलितों को मोदी का आश्वासन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभाओं में ताली बजने के साथ ही 'मोदी-मोदी' के नारे गूंजते हैं. अंबेडकर जयंती पर छत्तीसगढ़ पहुंचे मोदी ने खुद जय भीम पर जयकारा कराया. प्रधानमंत्री मोदी ने इस मौके पर महत्वाकांक्षी सरकारी बीमा स्कीम आयुष्मान भारत की शुरुआत की. स्थानीय लोगों, खासकर युवाओं से सीधा संवाद स्थापित करने के लिए मोदी ने भाषण की शुरुआत छत्तीसगढ़ी भाषा में की, "लेका लेकी पढ़तो लिखतो नोनी बाबो मनके खूबे खूबे माया."

'जय भीम!'

कहने का मतलब रहा - 'लड़के लड़कियों पढ़ो लिखो. युवाओं को बहुत बहुत प्यार.' इसका एक बड़ा फायदा ये भी होता है कि तर्जुमा के रिस्क फैक्टर अर्थ के अनर्थ होने का खतरा नहीं रहता, जैसा कर्नाटक में अमित शाह के भाषण के दौरान हो गया था. सूरज पूरब दिशा में उगता है और अक्सर मुहावरों में पश्चिम तक का इस्तेमाल होता है. मगर, मोदी का कहना था छत्तीसगढ़ के विकास का सूरज दक्षिण से उगेगा - यानी बस्तर से नयी उम्मीदों की शुरुआत होगी.

मोदी के भाषण में प्रभावी कीवर्ड अंबडेरकर का नाम रहा और प्रधानमंत्री ने बार बार आश्वस्त करने की कोशिश की कि बीजेपी ही अंबेडकर की विरासत की ठीक से देखभाल कर सकती है. ठीक एक दिन पहले ही मोदी ने दिल्ली में एससी-एसटी एक्ट पर सरकार का पक्ष साफ करते हुए कहा था कि कानून को किसी भी कीमत पर कमजोर नहीं पड़ने दिया जाएगा. एक कार्यक्रम में मोदी ने कहा, 'मैं देश को आश्वस्त करना चाहता हूं कि जिस कानून को हमने ही सख्त किया है, उसे किसी भी कीमत पर कमजोर नहीं पड़ने देंगे.' मोदी ने ये दोहराया कि किस तरह उनकी सरकार ने 2015 में एससी-एसटी एक्ट में दलितों के खिलाफ होने वाले 47 अपराधों को जोड़ा था.

कांग्रेस को चैलेंज करते हुए कि वो कोई एक काम बता दे जो उसने बाबा साहब के लिए किया हो, मोदी ने बोले, 'नेहरू जी से राजीव गांधी की सरकार तक तमाम कांग्रेसियों को भारत रत्न दिया गया, लेकिन आंबेडकर को नहीं दिया गया... जब बीजेपी के समर्थन वाली सरकार आई तो अटल जी और आडवाणी जी के कहने पर बाबा साहेब को भारत रत्न दिया गया.'

ये तो रहा भाषण और आश्वासन. मोदी सरकार दलितों को खुश करने के लिए तीन हफ्ते का स्पेशल पैकेज लेकर आ रही है - और इसके लिए बीजेपी सांसदों के साथ साथ बड़े पैमाने पर केंद्र सरकार के सीनियर अफसरों को तैनात किया गया है.

दलितों के लिए स्पेशल पैकेज

बीजेपी सांसदों के दलित बहुल आबादी वाले गांवों में रात गुजारने की खबर तो पहले ही आ गयी थी, अब ये भी मालूम हुआ है कि ऐसे इलाकों के लिए एक हजार सीनियर अफसरों को भी तैनात किया गया है. 14 अप्रैल से 5 मई तक चलने वाले ग्राम स्वराज अभियान में मोदी सरकार का खास जोर उत्तर प्रदेश पर है. वैसे भी दलित सांसदों की बगावत की आवाजें भी सबसे ज्यादा यूपी से ही उठी हैं.

केंद्रीम मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एनडीटीवी से बातचीत में बताया, "ग्राम स्वराज अभियान के तहत 21000 से अधिक गांवों को चुना गया है जिनमें दलित परिवारों की संख्या 50 फीसदी से ज़्यादा है."

इस मुहिम के तहत यूपी के 70 जिलों में तीन हजार से ज्यादा गांवों की पहचान की गयी है जिनमें प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के 15 गांव शामिल हैं.

वक्त तो लगता है

अंबेडकर जयंती मनाने के मामले में मायावती की पिछली सरकारों और पिछले चार साल से केंद्र की मोदी सरकार की तुलना करें तो बीस नहीं तो उन्नीस भी नहीं पड़ेगी. मगर, बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मुश्किल ये है कि अंबेडकर जयंती मनाने से लेकर दलितों को रिझाने के चाहे जितने उपाय कर लें, कोई न कोई काम उन्हीं के समर्थक ऐसा कर देते हैं कि लेने के देने पड़ जाते हैं.

अंबेडकर के बहाने दलितों को जोड़ने की कोशिश

बीजेपी से दलितों की नाराजगी की ताजा वजह तो बिलकुल अलग है. इस बार बीजेपी या संघ खुद नहीं बल्कि कांग्रेस की राजनीति का शिकार हो गये हैं. एससी-एसटी एक्ट के मुद्दे पर मोदी सरकार भले दावा करे कि सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के 12 दिन पुनर्विचार याचिका दाखिल कर दी गयी थी, लेकिन लगता नहीं दलित समुदाय बीजेपी की बातें सुनने को तैयार है. कम से कम कर्नाटक में हुआ सर्वे तो यही बता रहा है.

खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कर्नाटक की कांग्रेस सरकार को 'सीधा-रुपैया' सरकार बताने के बावजूद सिद्धारमैया बतौर मुख्यमंत्री लोगों की पहली पसंद बने हुए हैं. इंडिया टुडे कार्वी ओपिनियन पोल के मुताबिक सिद्धारमैया को 33 फीसदी लोग पसंद करते हैं जबकि बीजेपी की सीएम कैंडिडेट 26 फीसदी पसंद के साथ दूसरे नंबर पर ही पहुंच पाये हैं.

कर्नाटक की सभी 224 सीटों पर हुए ओपिनियन पोल के मुताबिक बहुमत तो किसी को भी मिलने की संभावना नहीं, लेकिन कांग्रेस (90-101 सीटें) सबसे बड़ी पार्टी के रुप में उभर कर आने की संभावना है. सर्वे में बीजेपी को 78-86 सीटें जीतने का अंदाजा है. 2013 में बीजेपी और जेडीएस दोनों को 40-40 सीटें मिली थीं, जेडीएस के खाते में इस बार भी 34-43 सीटें मिलने की उम्मीद है. 2013 को याद करें तो बीजेपी बिखरी हुई थी, जबकि इस बार पूरा कुनबा साथ है, ऐसे में पार्टी के लिए खबर बिलकुल भी अच्छी नहीं है.

ये सर्वे 17 मार्च से 15 अप्रैल के बीच का है. ध्यान देने वाली बात ये है कि एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर 20 मार्च को आया था जिसकी तोहमत कांग्रेस ने बीजेपी पर मढ़ दी. कठुआ और उन्नाव गैंग रेप को लेकर लोगों का गुस्सा सड़क पर उतरा हुआ था और कांग्रेस नेता बीजेपी के खिलाफ उसे खूब हवा दे रहे थे. ये सारे घटनाक्रम उसी पीरियड के हैं जब सर्वे के लिए सैंपल इकट्ठा किये जा रहे थे.

बीजेपी अध्यक्ष अमित भले जगह जगह कह रहे हों कि आरक्षण को न तो उनकी सरकार खत्म होने देगी और न ही किसी को करने देगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अंबडेकर के प्रति भले ही कितना भी अपत्व दिखाने और कांग्रेस को कोस रहे हों - दलितों की नाराजगी इतनी जल्दी खत्म होती तो नहीं दिख रही. सर्वे के आंकड़े भी यही इशारा कर रहे हैं. फिर बाकी बातें तो अपनेआप ही गौण हो जाती हैं.

आदिवासी महिला को चप्पल पहनाते प्रधानमंत्री मोदी

जब अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस मिल कर सीरिया में हमले कर रहे थे, प्रधानमंत्री मोदी ने भी विरोधियों पर ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया, 'एक गरीब मां का बेटा, अति पिछड़े समाज से आने वाला आपका साथी देश का प्रधानमंत्री है तो यह बाबा साहेब की देन है.'

ये सुनने के बाद मोदी और बीजेपी को लेकर दलितों की जो भी राय बने, इतना तो तय है विपक्ष के कानों में मोदी का 'जय भीम' कहना काफी देर तक गूंज रहा होगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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