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Rafale Jets पर राहुल गांधी को कांग्रेस की ताजा सोच साझा करनी चाहिये

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 29 जुलाई, 2020 05:30 PM
  • 29 जुलाई, 2020 05:30 PM
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने 2019 के आम चुनाव में राफेल (Rafale Fighter Jets) डील को मुद्दा बनाया था और अब चीन को लेकर मोदी सरकार पर हमलावर हैं. जब राफेल विमान भारत आ चुके हैं, राहुल गांधी को साफ करना चाहिये कि कांग्रेस (Congress) पुराने स्टैंड पर कायम है या नहीं?

राफेल पर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की खामोशी भी कांग्रेस (Congress) का बयान समझी जाएगी, अगर वो कुछ नहीं बोलते हैं - और उसे 'हजार जवाबों से...' अच्छा भी नहीं माना जाएगा. ऐसा भी नहीं है कि राफेल विमानों (Rafale Fighter Jets) के भारत आने को लेकर कांग्रेस चुप बैठी हो, दो सीनियर नेताओं पी. चिदंबरम और दिग्विजय सिंह के बयान तो सामने आ ही चुके हैं. एक ने क्रेडिट भी लेने की कोशिश की है और दूसरा, अभी कीमत पर ही अटका हुआ है.

राहुल गांधी फिलहाल चीन पर फोकस हैं, लेकिन राफेल पर अब भी अगर चुप रहे तो कालांतर में 1984 के दिल्ली दंगों की तरह ही सवाल उठेंगे - और जवाब से बचने के नये रास्ते तलाशने होंगे.

राफेल पर स्टैंड क्या है

बेहतर तो यही होगा होता कि राहुल गांधी राफेल विमानों को लेकर नये सिरे से अपनी राय स्पष्ट कर देते. जरूरी नहीं कि वो राफेल को लेकर को लेकर कोई नया नजरिया ही पेश करें. वो चाहें तो ये भी कह सकते हैं कि वो पुराने स्टैंड पर कायम हैं. अगर राफेल को लेकर कोई राय बदली हो तो भी उसे शेयर कर सकते हैं.

अब कम से कम ये तो साफ कर ही देना चाहिये कि राहुल गांधी को राफेल विमानों से दिक्कत है या फिर राफेल डील से रही? अगर राफेल डील से दिक्कत है तो उस स्टैंड पर बने रहें, लेकिन ये तो बता ही देना चाहिये की राफेल विमानों से उनको कोई शिकायत नहीं है या डील की वजह से राफेल विमानों से भी उतनी ही चिढ़ है.

राफेल भी भारत के हिसाब से देखा जाये तो बोफोर्स जैसा ही साबित होने वाला है. हो सकता है उससे कहीं बढ़ कर साबित हो. कारगिल की जंग में बोफोर्स का जौहर देखा जा चुका है - और मौजूदा हालात में राफेल की महत्ता बोफोर्स के मुकाबले कहीं ज्यादा बढ़ गयी है. सरहद पार देश के दुश्मन एक जैसे ही खतरनाक होते हैं और अभी तो हद से कहीं ज्यादा हैं. चाहे वो सरहद LoC के नाम से जानी जाती हो या फिर उसे LAC ही क्यों न कहा जा रहा हो - भारत के लिए पाकिस्तान और चीन में कोई खास फर्क नहीं है.

राफेल ऐसे नाजुक वक्त पर भारत पहुंचा है जब चीन के...

राफेल पर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की खामोशी भी कांग्रेस (Congress) का बयान समझी जाएगी, अगर वो कुछ नहीं बोलते हैं - और उसे 'हजार जवाबों से...' अच्छा भी नहीं माना जाएगा. ऐसा भी नहीं है कि राफेल विमानों (Rafale Fighter Jets) के भारत आने को लेकर कांग्रेस चुप बैठी हो, दो सीनियर नेताओं पी. चिदंबरम और दिग्विजय सिंह के बयान तो सामने आ ही चुके हैं. एक ने क्रेडिट भी लेने की कोशिश की है और दूसरा, अभी कीमत पर ही अटका हुआ है.

राहुल गांधी फिलहाल चीन पर फोकस हैं, लेकिन राफेल पर अब भी अगर चुप रहे तो कालांतर में 1984 के दिल्ली दंगों की तरह ही सवाल उठेंगे - और जवाब से बचने के नये रास्ते तलाशने होंगे.

राफेल पर स्टैंड क्या है

बेहतर तो यही होगा होता कि राहुल गांधी राफेल विमानों को लेकर नये सिरे से अपनी राय स्पष्ट कर देते. जरूरी नहीं कि वो राफेल को लेकर को लेकर कोई नया नजरिया ही पेश करें. वो चाहें तो ये भी कह सकते हैं कि वो पुराने स्टैंड पर कायम हैं. अगर राफेल को लेकर कोई राय बदली हो तो भी उसे शेयर कर सकते हैं.

अब कम से कम ये तो साफ कर ही देना चाहिये कि राहुल गांधी को राफेल विमानों से दिक्कत है या फिर राफेल डील से रही? अगर राफेल डील से दिक्कत है तो उस स्टैंड पर बने रहें, लेकिन ये तो बता ही देना चाहिये की राफेल विमानों से उनको कोई शिकायत नहीं है या डील की वजह से राफेल विमानों से भी उतनी ही चिढ़ है.

राफेल भी भारत के हिसाब से देखा जाये तो बोफोर्स जैसा ही साबित होने वाला है. हो सकता है उससे कहीं बढ़ कर साबित हो. कारगिल की जंग में बोफोर्स का जौहर देखा जा चुका है - और मौजूदा हालात में राफेल की महत्ता बोफोर्स के मुकाबले कहीं ज्यादा बढ़ गयी है. सरहद पार देश के दुश्मन एक जैसे ही खतरनाक होते हैं और अभी तो हद से कहीं ज्यादा हैं. चाहे वो सरहद LoC के नाम से जानी जाती हो या फिर उसे LAC ही क्यों न कहा जा रहा हो - भारत के लिए पाकिस्तान और चीन में कोई खास फर्क नहीं है.

राफेल ऐसे नाजुक वक्त पर भारत पहुंचा है जब चीन के साथ सीमा पर तनाव बना हुआ है और पाकिस्तान की तरफ से भी हरकतों में कोई कमी नहीं आयी है. भारत के खिलाफ दोनों दोस्त से भी बढ़ कर दोस्ती निभा रहे हैं.

राफेल के विरोध में राहुल गांधी अब भी हैं या नहीं?

आम चुनाव से पहले की बात है. एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि पुलवामा हमले के बाद जब पाकिस्तान की तरफ से भारतीय हवाई सीमा में घुसपैठ की कोशिश हुई तो भारतीय जांबाजों ने मुहतोड़ जवाब दिये - लेकिन अगर भारत के पास राफेल होता तो बात ही और होती. अब वो राफेल भारत के पास है और जब न्यूक्लियर बम को लेकर प्रधानमंत्री मोदी कह चुके हों कि वो कोई दिवाली के लिए नहीं बना रखे हैं, तो राफेल को लेकर भी चीन हो या पाकिस्तान समझ ही लेना चाहिये कि महज गणतंत्र दिवस की परेड के लिए नहीं मंगाये गये हैं.

राफेल को लेकर कांग्रेस की तरफ से दो तरह के बयान आये हैं. पी. चिदंबरम और दिग्विजय सिंह के बयान से मालूम होता है कि राफेल को लेकर भी कांग्रेस में दो तरह के विचार हैं. ठीक वैसे ही जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निजी हमले को लेकर कांग्रेस बंटी हुई है या फिर राजस्थान के मामले में कानूनी रास्ता अख्तियार करने को लेकर कांग्रेस के नेताओं में मतभेद रहा और सचिन पायलट पर भी तकरीबन वैसा ही मतभेद नजर आया है.

पी. चिदंबरम का दावा है कि राफेल डील कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार की देन है. क्या चिदंबरम के बयान को ऐसे भी देखा जाना चाहिये कि चुनावों में राहुल गांधी राफेल को लेकर 'चौकीदार चोर है' का जो नारा लगा रहे थे वो भी जुमला ही था. या फिर राहुल गांधी और कांग्रेस की मौजूदा सोच भी वही है जो दिग्विजय सिंह ट्विटर पर व्यक्त कर रहे हैं, वो भी भूल सुधार के साथ में.

राहुल गांधी को अब तो सामने आकर तस्वीर साफ करनी ही चाहिये - राफेल पर उनका विचार क्या है? क्या अब भी वही है जो कांग्रेस अध्यक्ष पद से अपने इस्तीफे के वक्त वो बोले थे या अब उसमें कोई बदलाव आ चुका है. ट्विटर पर इस्तीफा शेयर करते वक्त राहुल गांधी ने कहा था कि चुनाव के नतीजों की बात और है लेकिन वो अपने विचार पर कायम हैं और हमेशा रहेंगे.

चूंकि चिदंबरम का बयान राफेल पर कांग्रेस के रूख में बदलाव की तरफ इशारा करता है और दिग्विजय सिंह के नजरिये को समझें तो कांग्रेस पुरानी राय पर ही कायम है. अब तो राहुल गांधी ही बता सकते हैं कि राफेल पर कांग्रेस का आधिकारिक स्टैंड क्या है?

राफेल पर कांग्रेस का बयान क्यों जरूरी है

राहुल गांधी ने 'चौकीदार चोर है' का नारा 2018 के आखिर में शुरू किया था. तब देश के पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव हो रहे थे - और उसी बीच हेलीकॉप्टर घोटाले के आरोपी क्रिश्चियन मिशेल का प्रत्यर्पण हुआ था. प्रधानमंत्री मोदी मिशेल को मामा बता कर तब कांग्रेस अध्यक्ष रहे राहुल गांधी को बार बार कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करते रहे. राहुल गांधी को भी कोई काउंटर हथियार चाहिये था. चूंकि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को कामयाबी मिल गयी, इसलिए राहुल गांधी को लगा कि राफेल डील को चुनावी मुद्दा बनाया जा सकता है. हालत तो ये है कि बीजेपी समर्थकों के साथ साथ राहुल गांधी को गंभीरता से न लेने वालों को अब भी उनकी माफी ही याद रहती है, जो राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट से मांगी थी.

अब एक बार राहुल गांधी अगर राफेल पर नये सिरे से अपना रूख साफ कर दें तो चीन को लेकर भी उनके स्टैंड को समझना सबके लिए आसान हो जाएगा. वरना, चीन पर स्टैंड का भी नतीजा वैसा ही हो सकता है जैसा राफेल को चुनावी मुद्दा बनाने पर हुआ.

राहुल गांधी की सीधी लड़ाई प्रधानमंत्री मोदी से है. कोरोना वायरस और लॉकडाउन से लेकर चीन के मसले तक हर मामले में देखने में तो यही आया है. राहुल गांधी की कांग्रेस के सामने मोदी-शाह की जोड़ी के नेतृत्व में बीजेपी पहाड़ जैसी चुनौती बनी हुई है.

आम चुनाव में बीजेपी के कट्टर राष्ट्रवाद के आगे कांग्रेस का राफेल मुद्दा मैदान के दूसरी तरफ आखिरी छोर पर पहुंच गया था. राहुल गांधी के 'चौकीदार चोर है' को प्रधानमंत्री मोदी ने नाम के साथ जोड़ कर बीजेपी के लिए ऐसा चुनावी कवच तैयार कर दिया कि कांग्रेस का हर वार बेअसर होता गया. राफेल का भारत पहुंचना उसी की पूर्णाहूति है. कांग्रेस नेतृत्व को मालूम होना चाहिये.

अब बीजेपी ये भी समझाएगी कि राफेल जैसे देश के लिए अतिमहत्वपूर्ण विमान के खिलाफ जो बात करता है वो देश भक्त कैसे हो सकता है - अब ऐसा भी कोई संकेत नहीं मिला है जिससे लगे कि कांग्रेस ने राफेल के मुद्दे पर शिकस्त से कोई सीख ली हो.

चाहे वो जम्मू कश्मीर से जुड़ा धारा 370 रहा हो, या CAA और चीन का मुद्दा कांग्रेस नेतृत्व हर मामले में दूसरी ही छोर पर नजर आया है. राहुल गांधी के साथ साथ सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह और बाकी कांग्रेस नेता भी एक ही लाइन पकड़े हुए हैं. ये ठीक है कि विपक्ष को अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता बनाये रखने के लिए दूसरी छोर पकड़ना मजबूरी होती है, लेकिन ऐसा भी क्या कि मैदान से ही बाहर हो जाने की नौबत आ पड़े. ऐसा भी क्या कि देश के लोग ही कांग्रेस को देश विरोधी समझने लगें - बीजेपी तो अपना काम कर रही है. आखिर ये सब कांग्रेस मुक्त भारत मुहिम का हिस्सा नहीं तो क्या है - लेकिन ये तो कांग्रेस को ही अपने सरवाइवल की लड़ाई लड़नी होगी.

अब तो चीन के मुद्दे पर भी बीजेपी कांग्रेस को राफेल की तरह ही ठिकाने लगाने में जुटी है. राहुल गांधी चाहें तो चीन पर कांग्रेस के स्टैंड के नतीजे को भी राफेल के साथ जोड़ कर अंदाजा लगा सकते हैं. राहुल गांधी के आगे आकर राफेल पर नये सिरे से अपना स्टैंड साफ करने की जरूरत इसलिए भी आ पड़ी है - क्योंकि लोग तो जानना चाहेंगे ही कि राहुल गांधी राफेल पर पी. चिदंबरम से इत्तेफाक रखते हैं या दिग्विजय सिंह से?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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