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तैयारियां तो ऐसी हैं मानो लखनऊ से ही चुनाव लड़ेंगी प्रियंका गांधी

    • आशीष वशिष्ठ
    • Updated: 10 फरवरी, 2019 05:36 PM
  • 10 फरवरी, 2019 05:36 PM
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कांग्रेस की तैयारियों से ऐसा आभास भी हो रहा है मानो पार्टी प्रियंका को लखनऊ से चुनाव मैदान में उतारना चाह रही है. अब यह देखना अहम होगा कि वह लखनऊ से पर्चा भरकर इतिहास रचती हैं या अपनी परंपरागत सीटों में से किसी को चुनती हैं.

कांग्रेस पार्टी की नवमनोनीत राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा बसंत पंचमी के अगले दिन नवाबों की नगरी लखनऊ में पहुंच रही हैं. पिछले काफी बरसों के बाद यह शायद पहला ऐसा अवसर है जब किसी कांग्रेस नेता के आगमन पर पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं में खुशी के करंट की सुई 220 वोल्ट का निशान क्रॉस कर रही है. ऐसा होना स्वाभाविक भी है, आखिरकार नेहरू-गांधी परिवार की बेटी और यूपी की बहू प्रिंयका गांधी वाड्रा जो आ रही हैं. प्रियंका के स्वागत में चौधरी चरण सिंह एयरपोर्ट से मॉल एवेन्यु स्थित पार्टी प्रदेश कार्यालय को सजाया जा रहा है. असल में कांग्रेस प्रियंका का स्वागत इतने जोर-शोर से करना चाहती है कि उसकी गूंज से प्रदेश भर के कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं का उत्साह दोगुना हो जाए और विरोधियों का मनोबल घटकर आधा रह जाए.

कांग्रेस की तैयारियों से ऐसा आभास भी हो रहा है मानो पार्टी प्रियंका को लखनऊ से चुनाव मैदान में उतारना चाह रही है. भारत के संसदीय इतिहास में लखनऊ सीट पर सात बार कांग्रेस ने विजय पताका फहराई और चुनावी मुकाबले में कुल सात ही बार वो दूसरे स्थान पर रही. फूलपुर, अमेठी और रायबरेली की तरह लखनऊ भी किसी जमाने में नेहरू-गांधी परिवार की परंपरागत सीट रही है. पार्टी सूत्रों की मानें तो प्रियंका के लिए ऐसी सीट की तलाश की जा रही है जिससे आस-पास की सीटों को प्रभावित करने के साथ-साथ दूर तक मजबूत संदेश दिया जा सके. ऐसे में लखनऊ की सीट मुफीद सौदा दिखाई देती है.

ऐसा लग रहा है मानो पार्टी प्रियंका को लखनऊ से चुनाव मैदान में उतारना चाह रही है.

इतिहास के पन्ने पलटें तो, 1951 में शिवराजवती नेहरू ने इस सीट पर जीत का परचम लहराया था. शिवराजवती नेहरू जी की भाभी (चचेरे भाई की पत्नी) थीं. 1953 में उनके निधन के बाद नेहरू जी की बहन विजयलक्ष्मी पंडित यहां...

कांग्रेस पार्टी की नवमनोनीत राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा बसंत पंचमी के अगले दिन नवाबों की नगरी लखनऊ में पहुंच रही हैं. पिछले काफी बरसों के बाद यह शायद पहला ऐसा अवसर है जब किसी कांग्रेस नेता के आगमन पर पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं में खुशी के करंट की सुई 220 वोल्ट का निशान क्रॉस कर रही है. ऐसा होना स्वाभाविक भी है, आखिरकार नेहरू-गांधी परिवार की बेटी और यूपी की बहू प्रिंयका गांधी वाड्रा जो आ रही हैं. प्रियंका के स्वागत में चौधरी चरण सिंह एयरपोर्ट से मॉल एवेन्यु स्थित पार्टी प्रदेश कार्यालय को सजाया जा रहा है. असल में कांग्रेस प्रियंका का स्वागत इतने जोर-शोर से करना चाहती है कि उसकी गूंज से प्रदेश भर के कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं का उत्साह दोगुना हो जाए और विरोधियों का मनोबल घटकर आधा रह जाए.

कांग्रेस की तैयारियों से ऐसा आभास भी हो रहा है मानो पार्टी प्रियंका को लखनऊ से चुनाव मैदान में उतारना चाह रही है. भारत के संसदीय इतिहास में लखनऊ सीट पर सात बार कांग्रेस ने विजय पताका फहराई और चुनावी मुकाबले में कुल सात ही बार वो दूसरे स्थान पर रही. फूलपुर, अमेठी और रायबरेली की तरह लखनऊ भी किसी जमाने में नेहरू-गांधी परिवार की परंपरागत सीट रही है. पार्टी सूत्रों की मानें तो प्रियंका के लिए ऐसी सीट की तलाश की जा रही है जिससे आस-पास की सीटों को प्रभावित करने के साथ-साथ दूर तक मजबूत संदेश दिया जा सके. ऐसे में लखनऊ की सीट मुफीद सौदा दिखाई देती है.

ऐसा लग रहा है मानो पार्टी प्रियंका को लखनऊ से चुनाव मैदान में उतारना चाह रही है.

इतिहास के पन्ने पलटें तो, 1951 में शिवराजवती नेहरू ने इस सीट पर जीत का परचम लहराया था. शिवराजवती नेहरू जी की भाभी (चचेरे भाई की पत्नी) थीं. 1953 में उनके निधन के बाद नेहरू जी की बहन विजयलक्ष्मी पंडित यहां से सांसद बनीं. 1957 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के पुलिन बिहारी बनर्जी और 1962 में बी.के. धवन ने कांग्रेस का परचम लहराया. 1967 के चुनाव में आजाद उम्मीदवार आनंद नारायण मुल्ला ने कांग्रेस प्रत्याशी प्रसिद्ध उद्योगपति कर्नल वीआर मोहन को हराया. 1971 में कांग्रेस उम्मीदवार शीला कौल ने इस सीट पर कब्जा जमाया. शीला कौल रिशते में नेहरू जी की सलहज (साले की पत्नी) थीं.

इमरजेंसी के बाद 1977 के हुए आम चुनाव में जनता पार्टी के हेमवतीनंदन बहुगणा इस सीट से जीते. बहुगुणा ने कांग्रेस उम्मीदवार शीला कौल को डेढ़ लाख से ज्यादा के भारी अंतर से हराया. 1980 व 1984 के आम चुनाव में कांग्रेस (आई) की उम्मीदवार शीला कौल यहां से लगातार दो बार जीतीं. 1989 में जनता दल के मंधाता सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी दाऊजी को हराया था.

दो ही साल बाद वर्ष 1991 में हुए आम चुनाव में पहली बार इस सीट पर कमल खिला. भाजपा प्रत्याशी अटल बिहारी वाजपेयी ने कांग्रेस उम्मीदवार रणजीत सिंह को बड़े अंतर से हराया. 1991 से लेकर 2014 तक इस सीट पर लगातार बीजेपी का कब्जा है. 1996 के चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी अटल बिहारी ने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार राज बब्बर (वर्तमान में उप्र कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष) को परास्त किया. 1998 के आम चुनाव में लखनऊ की जनता ने दोबारा बीजेपी के अटल बिहारी को अपना नेता चुना. इस बार अटल जी ने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार मशहूर फिल्म निर्माता मुजफ्फर अली को पछाड़ा. 1999 व 2004 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की ओर अटल जी ने क्रमशः कांग्रेस के राजा कर्ण सिंह और समाजवादी पार्टी की डॉ. मधु गुप्ता को हराया.

2009 के आम चुनाव में बीजेपी की ओर मैदान में लालजी टण्डन (वर्तमान में बिहार के राज्यपाल) थे. टण्डन जी ने कांग्रेस उम्मीदवार डॉ. रीता बहुगुणा जोशी (वर्तमान में यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री) को हराकर अटल जी की सीट की शान बरकरार रखी. 2014 में बीजेपी की ओर राजनाथ सिंह मैदान में थे, तो कांग्रेस ने दोबारा डॉ. रीता बहुगुणा जोशी पर दांव लगाया. इस बार भी जीत भाजपा के हाथ लगी और कांग्रेस दूसरे स्थान पर रही.

किसी जमाने में नेहरू परिवार की सीट रही लखनऊ पर पिछले ढाई दशकों से बीजेपी का वर्चस्व है. जानकारों के मुताबिक, अगर प्रियंका लखनऊ से मैदान में उतरती हैं तो उसका एक मजबूत ‘पॉजिटिव मैसेज’ नेताओं और कार्यकर्ताओं में जाएगा. वहीं वो अवध क्षेत्र, पश्चिमी व पूर्वी उत्तर प्रदेश की दो दर्जन से ज्यादा सीटों को सीधे तौर पर प्रभावित करेंगी. सूत्रों के अनुसार कांग्रेस के रणनीतिकार प्रियंका को लखनऊ से मैदान में उतारने की संभावनाओं पर चिंतन-मंथन कर रहे हैं. वर्ष 2009 और 2014 के चुनाव में कांग्रेस इस सीट पर दूसरे नंबर की पार्टी रही है. जानकारों के मुताबिक अगर प्रियंका लखनऊ से मैदान में उतरीं तो भाजपा उम्मीदवार को कड़ी टक्कर दे सकती हैं. अब यह देखना अहम होगा कि प्रियंका गांधी-नेहरू परिवार की परंपरागत सीटों अमेठी, रायबरेली, फूलपुर से मैदान में उतरती हैं या फिर किसी नयी सीट से पर्चा भरकर इतिहास बनाती हैं. फिलवक्त कांग्रेस अपनी नयी नवेली महासचिव के ग्रैंड वेलकम के जश्न की तैयारियों में मशरूफ है. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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