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Priyanka Gandhi का कद बढ़ाकर भाजपा ने की है अखिलेश यादव-मायावती की काट

    • नवेद शिकोह
    • Updated: 07 जुलाई, 2020 08:03 PM
  • 07 जुलाई, 2020 08:03 PM
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यूपी (Uttar Pradesh) में विधानसभा चुनावों (UP Assembly Elections) को कुछ समय शेष है ऐसे में सूबे में प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) के आने से सपा (SP) और बसपा (BSP) के खेमे में बेचैनी बढ़ गई है और माना यही जा रहा है कि प्रियंका के यूपी आगमन से कहीं न कहीं फायदा भाजपा को है.

भाजपा (BJP) की रणनीति इतनी कमज़ोर नहीं कि वो प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को चर्चा में लाकर कांग्रेस (Congress) को ताकत दे. लेकिन वो ऐसा ही कर रही है. ये उसकी चूक नहीं रणनीति है. भाजपा (BJP) को पता है कि कांग्रेस जितना भी संघर्ष कर ले लेकिन उसे धर्म की राजनीति करीब पांच-दस वर्ष तक हराती रहेगी. क्योंकि ये अफीम के नशे जैसा है. उसे उतरने में वक्त लगता है. धर्म के नशे की काट जाति की राजनीति है जिसमें क्षेत्रीय दलों को महारत हासिल है. इसलिए भाजपा को कांग्रेस से नहीं क्षेत्रीय दलों से ज्यादा खतरा नजर आता है. कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों का वोट बैंक लगभग एक जैसा है. इसलिए एक विचारधारा के ये छोटे-बड़े दल एक दूसरे को भाजपा से बड़ा प्रतिद्वंदी समझते है. इनके बीच गठबंधन भी फेल हो चुके है. यही कारण है कि भाजपा चाहती है कि गोट से गोट पिटे और भाजपा विरोधी वोटों का बंटवारा हो.

कांग्रेस का थोड़े बढ़े जनाधार से भाजपा को कोई ख़ास फर्ख नहीं पड़ेगा लेकिन क्षेत्रीय दलों को बड़ा नुकसान होगा और उनकी जातिगत राजनीति को गति नहीं मिल पायेगी. कांग्रेस देश के बड़े सूबे उत्तर प्रदेश को अपना लक्ष्य बनाकर 2022 की तैयारी में है, जबकि समाजवादी पार्टी यहां भाजपा को टक्कर दे सकती है. यदि कांग्रेस ने यूपी में थोड़ा सा भी जनाधार बढ़ाने में सफलता हासिल कर ली तो सपा भाजपा से मुकाबले की भी स्थिति में नहीं होगी.

उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी के आने के बाद सपा और बसपा के खेमों में बेचैनी बढ़ गयी है

दूसरी नंबर की लड़ाई में कांग्रेस, सपा और बसपा का त्रिकोणीय मुक़ाबला होगा और भाजपा को टक्कर देने वाला कोई भी नहीं होगा. बसपा के साथ बढ़ रहे मधुर रिश्ते भाजपा की सियासी गाड़ी की स्टेपनी जैसे होंगे. यूपी के आगामी विधानसभा चुनाव में...

भाजपा (BJP) की रणनीति इतनी कमज़ोर नहीं कि वो प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को चर्चा में लाकर कांग्रेस (Congress) को ताकत दे. लेकिन वो ऐसा ही कर रही है. ये उसकी चूक नहीं रणनीति है. भाजपा (BJP) को पता है कि कांग्रेस जितना भी संघर्ष कर ले लेकिन उसे धर्म की राजनीति करीब पांच-दस वर्ष तक हराती रहेगी. क्योंकि ये अफीम के नशे जैसा है. उसे उतरने में वक्त लगता है. धर्म के नशे की काट जाति की राजनीति है जिसमें क्षेत्रीय दलों को महारत हासिल है. इसलिए भाजपा को कांग्रेस से नहीं क्षेत्रीय दलों से ज्यादा खतरा नजर आता है. कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों का वोट बैंक लगभग एक जैसा है. इसलिए एक विचारधारा के ये छोटे-बड़े दल एक दूसरे को भाजपा से बड़ा प्रतिद्वंदी समझते है. इनके बीच गठबंधन भी फेल हो चुके है. यही कारण है कि भाजपा चाहती है कि गोट से गोट पिटे और भाजपा विरोधी वोटों का बंटवारा हो.

कांग्रेस का थोड़े बढ़े जनाधार से भाजपा को कोई ख़ास फर्ख नहीं पड़ेगा लेकिन क्षेत्रीय दलों को बड़ा नुकसान होगा और उनकी जातिगत राजनीति को गति नहीं मिल पायेगी. कांग्रेस देश के बड़े सूबे उत्तर प्रदेश को अपना लक्ष्य बनाकर 2022 की तैयारी में है, जबकि समाजवादी पार्टी यहां भाजपा को टक्कर दे सकती है. यदि कांग्रेस ने यूपी में थोड़ा सा भी जनाधार बढ़ाने में सफलता हासिल कर ली तो सपा भाजपा से मुकाबले की भी स्थिति में नहीं होगी.

उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी के आने के बाद सपा और बसपा के खेमों में बेचैनी बढ़ गयी है

दूसरी नंबर की लड़ाई में कांग्रेस, सपा और बसपा का त्रिकोणीय मुक़ाबला होगा और भाजपा को टक्कर देने वाला कोई भी नहीं होगा. बसपा के साथ बढ़ रहे मधुर रिश्ते भाजपा की सियासी गाड़ी की स्टेपनी जैसे होंगे. यूपी के आगामी विधानसभा चुनाव में अभी तक किसी भी गठबंधन की गुंजाइश नजर नहीं आ रही है. सपा, बसपा और कांग्रेस बारी-बारी एक दूसरे के साथ गठबंधन कर असफल हो चुके हैं.

ऐसे में भाजपा और बसपा के बीच आपसी सामंजस्य एक दूसरे के लिए मददगार होगा. भाजपा को अंदाजा है कि देश का अधिकांश बहुसंख्यक समाज फिलहाल कांग्रेस के पक्ष में नहीं है. इसलिए गांधी परिवार और कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा गांधी के किसी भी बयान को जनता भले ही नजरअंदाज कर दे पर भाजपा उसे रिएक्ट ज़रुर करती है. ताकि भाजपा के सामने कांग्रेस का ही अस्तित्व नजर आये. जिससे कि यूपी जैसे बड़े सूबे में भाजपा के मुख्य प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी चर्चा से भी दूर होकर जातिगत राजनीति का प्रहार करने में सफल ना हो.

पिछले लोकसभा चुनाव में यूपी को लक्ष्य बनाने वाली प्रिंयंका फ्लॉप साबित हुयीं थी. लेकिन उन्होंने हौसला नहीं हारा. लगातार योगी सरकार को घेर कर वो भले ही भाजपा को नुकसान ना पंहुचा पायें पर यहां के क्षेत्रीय दलों को निष्क्रिय साबित करने में किसी हद तक सफल हो रही हैं. भाजपा भी प्रियंका वाड्रा को चर्चा में बने रहने का खूब मौका दे रही है.

एनआरसी के आरोप में जेल में बंद लोगों के परिजनों से प्रियंका को यूपी पुलिस ने रोका था. तब वो स्कूटी से पूर्व आईपीएस के परिजनों से मिलने उनके घर पंहुच गयीं. फिर उस स्कूटी का चालान कर दिया गया. इन सब के बीच कांग्रेस महासचिव प्रियंका सुर्खियों में छायी रहीं. इसके बाद प्रवासी मजदूरों के लिए भेजी गयी बसों को योगी सरकार ने इजाजत नहीं दी. इस पर चर्चा थमी ही थी कि प्रियंका का सरकारी बंगला छीन कर मोदी सरकार ने एक बार फिर कांग्रेस की फायर ब्रांड नेत्री को चर्चा मे ला दिया.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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