• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

योगी आदित्यनाथ के लिए सबक- अपराध एनकाउंटर से खत्म नहीं होता

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 05 जुलाई, 2020 09:01 PM
  • 05 जुलाई, 2020 09:01 PM
offline
हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे (Historysheeter Vikas Dubey) के कानपुर कांड (Kanpur Kand) से योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) सरकार के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो गयी है. कानून व्यवस्था को लेकर दावों की हवा तो निकल ही गयी है, अब तो ये भी साफ होने लगा है कि महज एनकाउंटर से अपराध पर काबू नहीं पाया जा सकता.

कानपुर का हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे न सिर्फ यूपी पुलिस बल्कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भी नींद हराम किये हुए है. एक एफआईआर के सिलसिले में रेड डालने गयी पुलिस टीम पर हमला (Kanpur Encounter) कर विकास दुबे (Historysheeter Vikas Dubey) फरार हो गया और उसके गैंग के लोगों ने एक डिप्टी एसपी और थानेदार सहित 8 लोगों की हत्या कर डाली है. मीडिया रिपोर्ट विकास दुबे के कारनामे, इलाके में दहशत और खोज खोज कर पुलिसवालों को मारने की खबरों से भरी पड़ी हैं.

यूपी पुलिस ने विकास दुबे के दर्जन भर करीबी लोगों हिरासत में ले रखा है और 20 टीमें जगह जगह दबिश डाल कर धर पकड़ में जुटी हुई हैं. विकास दुबे का किलानुमा घर भी प्रशासन ने गिरा दिया है - और स्पेशल टास्क फोर्स एक SO सहित कुछ पुलिसकर्मियों को भी हिरासत में लेकर पूछताछ भी कर रही है.

सवाल है कि जिस उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के हुक्म पर 100 से ज्यादा अपराधियों को एनकाउंटर करने वाली पुलिस ने विकास दुबे के खिलाफ 60 मामले दर्ज होने के बावजूद कैसे छोड़ रखा था?

ये अपराध का राजनीतिक संरक्षण नहीं तो क्या है

योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते ही अगर किसी ने सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरी तो रही - यूपी पुलिस. यूपी पुलिस का एंटी रोमियो स्क्वाड बना तो था लड़कियों को परेशान करने वाले सड़क छाप एकतरफा आशिकों से निजात दिलाने के लिए, लेकिन वो युवा प्रेमी जोड़ों पर कहर बन कर टूट पड़े. फिर कुछ दिन बाद रोमियो स्क्वाड ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. योगी आदित्यनाथ ने मार्च में काम संभाला और जून, 2017 में एक इंटरव्यू में ये बोल कर सनसनी फैला दी कि अपराधी ठोक दिये जाएंगे. योगी आदित्यनाथ का कहना रहा, "...जो इल्लीगल स्लॉटरिंग कर रहे थे... वे बेरोजगार तो होंगे ना... लेकिन रोजगार के लिए उनको मजदूरी करनी पड़ेगी. मनरेगा उनके लिए है... - वो लोग अगर अपराध करेंगे तो ठोक दिए जाएंगे."

अपने मुख्यमंत्री की हरी झंडी मिलते ही यूपी पुलिस ऑपरेशन के लिए निकल पड़ी और...

कानपुर का हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे न सिर्फ यूपी पुलिस बल्कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भी नींद हराम किये हुए है. एक एफआईआर के सिलसिले में रेड डालने गयी पुलिस टीम पर हमला (Kanpur Encounter) कर विकास दुबे (Historysheeter Vikas Dubey) फरार हो गया और उसके गैंग के लोगों ने एक डिप्टी एसपी और थानेदार सहित 8 लोगों की हत्या कर डाली है. मीडिया रिपोर्ट विकास दुबे के कारनामे, इलाके में दहशत और खोज खोज कर पुलिसवालों को मारने की खबरों से भरी पड़ी हैं.

यूपी पुलिस ने विकास दुबे के दर्जन भर करीबी लोगों हिरासत में ले रखा है और 20 टीमें जगह जगह दबिश डाल कर धर पकड़ में जुटी हुई हैं. विकास दुबे का किलानुमा घर भी प्रशासन ने गिरा दिया है - और स्पेशल टास्क फोर्स एक SO सहित कुछ पुलिसकर्मियों को भी हिरासत में लेकर पूछताछ भी कर रही है.

सवाल है कि जिस उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के हुक्म पर 100 से ज्यादा अपराधियों को एनकाउंटर करने वाली पुलिस ने विकास दुबे के खिलाफ 60 मामले दर्ज होने के बावजूद कैसे छोड़ रखा था?

ये अपराध का राजनीतिक संरक्षण नहीं तो क्या है

योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते ही अगर किसी ने सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरी तो रही - यूपी पुलिस. यूपी पुलिस का एंटी रोमियो स्क्वाड बना तो था लड़कियों को परेशान करने वाले सड़क छाप एकतरफा आशिकों से निजात दिलाने के लिए, लेकिन वो युवा प्रेमी जोड़ों पर कहर बन कर टूट पड़े. फिर कुछ दिन बाद रोमियो स्क्वाड ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. योगी आदित्यनाथ ने मार्च में काम संभाला और जून, 2017 में एक इंटरव्यू में ये बोल कर सनसनी फैला दी कि अपराधी ठोक दिये जाएंगे. योगी आदित्यनाथ का कहना रहा, "...जो इल्लीगल स्लॉटरिंग कर रहे थे... वे बेरोजगार तो होंगे ना... लेकिन रोजगार के लिए उनको मजदूरी करनी पड़ेगी. मनरेगा उनके लिए है... - वो लोग अगर अपराध करेंगे तो ठोक दिए जाएंगे."

अपने मुख्यमंत्री की हरी झंडी मिलते ही यूपी पुलिस ऑपरेशन के लिए निकल पड़ी और धड़ाधड़ ठोकना शुरू भी कर दिया. यूपी पुलिस के एनकाउंटर को लेकर सवाल उठने शुरू हुए तो योगी आदित्यनाथ पुलिसवालों की ही पीठ ठोकने लगे. दिसंबर, 2019 में ही यूपी पुलिस ने समझाने की कोशिश की थी कि किस तरह एनकाउंटर के जरिये अपराध पर काबू पा लिया गया है.

हैदराबाद में बलात्कार के एक आरोपी को पुलिस एनकाउंटर में मार गिराये जाने पर जब पूर्व मुख्यमंत्री मायावती यूपी पुलिस को नसीहत देने लगीं तो यूपी पुलिस की तरफ से ट्विटर पर ऐसे ही सफाई दी गयी थी.

पुलिस सिर्फ दावे करती है. पुलिस सिर्फ कहानी गढ़ती है - और अब तो इस बात में भी कोई शक शुबहा नहीं होना चाहिये कि पुलिस अपराधियों के एनकाउंटर के मामले में भी काफी भेदभाव बरतती है - वरना, जिस अपराधी पर 5 दर्जन मुकदमें दर्ज हों, इलाके में दहशत कायम कर रखी हो - और थाने में घुस कर हत्या करने के मामले में संदेह का लाभ उठाकर अदालत से छूटा हुआ हो - उसकी गतिविधियों पर पुलिस की नजर क्यों नहीं थी.

अगर यूपी पुलिस ने विकास दुबे और राज्य के दूसरे अपराधियों में भेदभाव न किया होता तो क्या कानपुर शूटआउट का नतीजा कुछ और नहीं होता?

विकास दुबे सिर्फ अपराध के राजनीतिक संरक्षण की ही उपज नहीं है, वो तो पुलिस के सिस्टम में बनी हुई खामियों और गड़बड़ियों का भी फायदा उठाता रहा है. कानपुर में चौबेपुर के थानाध्यक्ष को हिरासत में लेकर एसटीएफ के अफसर पूछताछ कर रहे हैं वो भी तो सिस्टम का ही हिस्सा है. अब उसे सस्पेंड कर दिया गया है. विकास दुबे के कॉल रिकॉर्ड से दोनों के बीच हुई बातचीत का पता चला तो वो दारोगा संदेह के घेरे में आया, जबकि वो भी उस टीम में शामिल था जो विकास दुबे के यहां दबिश देने जा रही थी. जांच कर रहे अफसर फिलहाल तो यही मान कर चल रहे हैं कि विनय तिवारी नाम के दारोगा ने ही विकास दुबे को पुलिस एक्शन की पहले से जानकारी दे दी थी और उसने घर के बाहर जेसीबी खड़ा करने के साथ ही अपने आदमियों को मोर्चे पर लगा दिया. रिपोर्ट तो ये भी बताती हैं कि विनय तिवारी को भी विकास दुबे ने हाथापाई की थी, लेकिन इसके बारे में अधिकारियों को कोई सूचना नहीं थी.

योगी आदित्यनाथ सरकार ने कानपुर में विकास दुबे का घर ढहा दिया है

प्रत्यक्ष तौर पर विकास दुबे किसी भी राजनीतिक दल का सदस्य नहीं है, लेकिन उसने सभी पार्टियों में पैठ बना रखी है. विकास दुबे की आपराधिक गतिविधियां साल 2000 में शुरू हुईं जब हत्या के आरोपों के अलावा जेल से भी हत्या की साजिश रचने का आरोप लगा, लेकिन कुख्यात तब हुआ जब 2001 में थाने में घुस कर उसने संतोष शुक्ला की हत्या कर दी. संतोष शुक्ला बीजेपी के नेता थे और श्रम संविदा बोर्ड के चेयरमैन होने के नाते राज्य मंत्री का दर्जा मिला हुआ था.

हत्या के इस मामले में विकास दुबे जेल तो गया लेकिन 2005 में अदालत से बरी भी हो गया - क्योंकि पुलिस ने ठीक से चार्जशीट नहीं तैयार की और सारे गवाह भी अपने बयानों से पलट गये. 2001 से 2005 तक सूबे में सरकारें बदलती रहीं, लेकिन विकास दुबे की सेहत कमजोर होने की जगह दुरूस्त ही होती गयी.

विकास दुबे के इलाके में ग्राम प्रधान का चुनाव तक कोई उसकी मर्जी के बगैर नहीं लड़ पाता - और चुनावों में सभी राजनीतिक दलों के नेता चाहते हैं कि उसके इलाके का एक मुश्त वोट उसे ही मिल जाये. बताते हैं कि विकास यादव के कहने के अनुसार ही वहां के लोग जिसे वो चाहता है उस उम्मीदवार को वोट भी देते हैं.

वो जेल में बंद रहता है तब भी नगर पंचायत का चुनाव जीत जाता है - और खुद 15 साल से पंचायत सदस्य बना हुआ है. उसने अपने चचेरे भाई को भी पंचायत सदस्य बनवा रखा है और पत्नी रिचा दुबे घिमऊ जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ाया और जिता दिया.

अपराध और राजनीति के कॉकटेल की फितरत ऐसी है कि दोनों पक्ष सिर्फ अपना फायदा देखता है. 2001 में जब विकास दुबे ने हत्या की और 2005 में जब वो अदालत से बरी हो गया तब तक यूपी में तीन मुख्यमंत्री बदल चुके थे. बीजेपी नेता संतोष शुक्ला की हत्या जब हुई तो राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री थे. 2002 से जब विकास दुबे ने अपनी आपराधिक गतिविधियां बढ़ाईं तब मायावती मुख्यमंत्री बन चुकी थीं. बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार 2002 के आसपास विकास दूबे की काफी दहशत रही - दिलचस्प बात ये है कि अपने शासन में बेहतरीन कानून व्यवस्था की मिसाल देने वाली मायावती ही उस दौरान मुख्यमंत्री रहीं. 2005 में जिस वक्त विकास दुबे बीजेपी नेता की हत्या के आरोप से बरी हुआ, तब तक यूपी के सीएम की कुर्सी पर समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बैठ चुके थे. हैरानी की बात तो ये है कि विकास दुबे के अदालत से बरी हो जाने के बाद ऊपरी अदालत में अपील तक नहीं की गयी. अब ये विकास दुबे के प्रभाव के चलते हुआ हो या फिर राजनीतिक कारणों से.

विकास दुबे का ट्रैक रिकॉर्ड देख कर तो यही लगता है जैसे सत्ता बदलने से उसकी आपराधिक गतिविधियों पर कोई फर्क नहीं पड़ा. स्थानीय लोगों से बातचीत के आधार पर जो मीडिया रिपोर्ट आ रही हैं उनसे तो यही मालूम होता है कि शुरू से लेकर अब तक सभी दलों के नेताओं के यहां उसका बराबर उठना बैठना रहा है.

योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बने तीन साल हो चुके हैं और अब तो वो 2022 में होने वाले अगले विधानसभा चुनाव की भी मन ही मन तैयारी कर रहे हैं. अब तो योगी आदित्यनाथ का ये कहना भी बेदम लगता है कि अपराधी या तो जेल में रहेंगे या ठोक दिये जाएंगे. कानपुर शूटआउट से बड़ा उदाहरण क्या होगा कि अपराधी न जेल में था और न ही कभी उसे एनकाउंटर का डर हुआ - वरना किलेनुमा बने घर की छत से उसके गैंग के लोग पुलिस फोर्स पर एके-47 से ताबड़तोड़ फायरिंग की हिम्मत शायद ही जुटा पाते.

तीन साल के शासन के बाद अब तो योगी आदित्यनाथ ये भी नहीं कह सकते कि किस राजनीतिक दल के शासन के दौरान विकास दुबे ने अपराध की दुनिया में कदम रखा या किस शासन में

उसका खौफ कायम हुआ - असल बात तो यही है कि 19 मार्च, 2017 जिस दिन योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने तब से अब तक विकास दुबे अपनी आपराधिक गतिविधियां खुलेआम ऑपरेट करता रहा - और पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही.

कानपुर शूटआउट में पुलिस की तरफ से भी कदम कदम पर चूक नजर आ रही है. ये सही है कि पुलिस टीम में ही विकास दुबे का मुखबिर छिपा हुआ था, लेकिन क्या पुलिस को उसके बारे में जरा भी अंदेशा नहीं था? क्या पुलिस वालों के पास बुलेट प्रूफ जैकेट भी नहीं थी - या किसी ने ऐसी जरूरत नहीं समझी? मुंह से 'ठायं-ठायं' बोल कर ज्यादा से ज्यादा एक बार एनकाउंटर किया जा सकता है - बार बार नहीं.

यूपी में कानून का राज कैसे माना जाये?

योगी आदित्यनाथ और उनकी यूपी पुलिस राज्य में कानून के राज का लाख दावा करें, लगता तो नहीं है. लगेगा भी कैसे - बुलंदशहर में दिन दहाड़े SHO सुबोध कुमार सिंह की हत्या कर दी जाती है और साथी पुलिसवालों को समझ आ जाता है कि कुछ नहीं होने वाला. बड़े दिनों बाद हत्या का आरोपी पकड़ा जाता है और छूट कर आता है तो फूल माला के साथ स्वागत होता है. आरोपी के पास पकड़े जाने से पहले पूरा मौका होता है कि वो अपना वीडियो मैसेज जारी करे और वो वायरल हो जाये. लखनऊ में आधी रात को एक निजी कंपनी के मैनेजर की हत्या में हमलावर पुलिसकर्मी पकड़ा जाता है तो राज्य के कई थानों में भूख हड़ताल और काली पट्टी बांध कर विरोध जताया जाने लगता है. मालूम होता है कि इसके पीछे राजनीतिक इशारे होते हैं, लेकिन सुबोध कुमार सिंह के मामले में कुछ नहीं होता - और उसमें भी राजनीति ही आड़े आती है.

पुलिस महकमे में एक अनौपचारिक समझ रही है कि अपराधी अमूमन पुलिस से नहीं उलझते, बल्कि बचने की ही हर संभव कोशिश करते हैं. यूपी के दो बड़े माफिया मुख्तार अंसारी और ब्रजेश सिंह हत्याएं और अपहरण करते रहे हैं, आपस में भी गैंगवार हुआ है, लेकिन पुलिस को कभी टारगेट नहीं किये. कुछ अपवाद भी होते हैं और गोरखपुर का श्रीप्रकाश शुक्ला तो ऐसा रहा कि कहते हैं कि उसने मुख्यमंत्री की ही सुपारी ले ली थी. मुख्यमंत्री भी कौन - कल्याण सिंह. अभी शुरुआती दौर ही रहा जब श्रीप्रकाश शुक्ला लखनऊ के एक सैलून में गया था. पुलिस को भनक लगी और चारों तरफ से घेर लिया गया. श्रीप्रकाश शुक्ला बहुत दुस्साहसी था वो सैलून से फायरिंग करते हुए निकला और भागने लगा. पुलिसवाले पीछे करते रहे. एक सब इंसपेक्टर उसे पकड़ने की कोशिश में था कि पैर में ठोकर लगी और वो गिर पड़ा. श्रीप्रकाश शुक्ला पीछे लौटा और रिवाल्वर लेकर सब इंसपेक्टर को वहीं मार दिया. बाद में श्रीप्रकाश शुक्ला के यूपी एसटीएफ ने एनकाउंटर में मार गिराया था. दरअसल, यूपी में एसटीएफ का गठन ही श्रीप्रकाश शुक्ला की दहशत पर काबू पाने के लिए हुआ था.

फिलहाल वही एसटीएफ अब विकास दुबे के पीछे लगी हुई है. वे अच्छी तरह जानते हैं कि पुलिस को छेड़ा तो उसका रिएक्शन क्या होगा - लेकिन जब किसी अपराधी को लगता है कि उसे संरक्षण मिला हुआ है और उसके खिलाफ कुछ होते ही बचाने वाले दौड़ पड़ेंगे तो वो बैखोफ हो जाता है.

अपराध को जब राजनीतिक संरक्षण मिलता है तो वही होता है जो अभी अभी कानपुर में भी हुआ है.

विकास दुबे हों या फिर कुलदीप सेंगर सिर्फ नाम का फर्क है. जिसे अपराध का मौका मिला वो अपराध किया और जिसे राजनीति का मौका मिला वो उसी में आगे बढ़ता गया. कुलदीप सेंगर को उन्नाव गैंग रेप में उम्रकैद की सजा हो चुकी है और वो जेल में है. उसके खिलाफ और भी कई मामले हैं.

बलात्कार के जिस मामले में कुलदीप सेंगर को सजा हुई है, उसे गिरफ्तार करने की जगह यूपी पुलिस के आला अफसर उसे माननीय कह कर संबोधित कर रहे थे - क्या वास्तव में उन पुलिस वालों को मालूम नहीं था कि कुलदीप सेंगर ने अपराध किया है या नहीं?

अब इसे क्या कहें जब बीजेपी के सांसद साक्षी महाराज जेल जाकर सेंगर को जन्मदिन की बधाई देते हैं और लोक सभा का चुनाव जीतने के बाद भी शुक्रिया अदा करते हैं - फर्क सिर्फ यही है कि सेंगर के मुलाकातियों के बारे में सबको पता चल जाता है, लेकिन विकास दुबे को जन्मदिन की बधाई कौन देता है और उसके एहसानों तले दबे होने का शुक्रिया कौन अदा करता है, मालूम होना बाकी है - लेकिन यूपी में अब कानून का ही राज है सुनने में ही अजीब लगता है.

इन्हें भी पढ़ें :

कौन है विकास दुबे, जो यूपी के 8 पुलिस कर्मियों की हत्या कर बच निकला

अपराधियों के माफी-स्टंट के बावजूद योगी की पुलिस मुठभेड़ को सही नहीं ठहरा सकती

कासगंज में हिंसा क्या इसलिए भड़क गयी क्योंकि पुलिसवाले एनकाउंटर में व्यस्त थे!


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲