• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

प्रशांत किशोर सही वक्त के इंतजार में बस टाइमपास कर रहे हैं!

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 05 मई, 2022 07:49 PM
  • 05 मई, 2022 07:49 PM
offline
प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) की बातें सुन कर हो सकता है आपके मन में अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के शुरुआती दिनों की तस्वीर उभर रही हो, लेकिन नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के प्रति उनका सॉफ्ट कॉर्नर बता रहा है कि वो सिर्फ चर्चा में बने रहने का जुगाड़ भर कर रहे हैं.

प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) की पटना में प्रेस कांफ्रेंस के बाद काफी लोग उनमें केजरीवाल (Arvind Kejriwal) का अक्स देखने लगे हैं. क्या वाकई ऐसा ही है? क्या ऐसा नहीं लगता कि वो किसी बड़े मौके के हाथ लगने तक, चर्चा में बने रह कर, वक्त गुजारने का प्रयास कर रहे हों?

निश्चित तौर पर वो जन-सुराज की बात कर रहे हैं. अरविंद केजरीवाल भी स्वराज की बात किया करते थे. ऐसा लगता है वो सुराज में अरविंद केजरीवाल के जन-लोकपाल वाला ही 'जन' जोड़ दे रहे हों - लेकिन उससे कहीं ज्यादा ये सुशासन के लिए गढ़ा हुआ एक नया शब्द लग रहा है. जैसे नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का सुशासन वैसे ही प्रशांत किशोर का सुराज - तो फर्क क्या होगा?

जिन बदलावों की बातें प्रशांत किशोर कर रहे हैं वैसा तो हर पार्टी करती रही है. बल्कि बीजेपी तो सत्ता में साझीदार रहते हुए भी बिहार को लेकर ऐसी ही बातें कर डालती है. प्रशांत किशोर तो ऐसे समझा रहे थे जैसे लालू यादव और नीतीश कुमार के शासन में काम तो हुए हैं, लेकिन उसे और आगे बढ़ाने की जरूरत है. अगर नीतीश कुमार से पूछा जाये तो वो भी ऐसा ही कुछ कहेंगे.

हो सकता है प्रशांत किशोर ये समझाने की कोशिश कर रहे हों कि आगे बढ़ाने के लिए बिहार के लोगों को उनकी जरूरत पड़ सकती है - और लोग ये समझ लें कि जो काम लालू यादव और नीतीश कुमार ने कराये उसे आगे बढ़ाने के लिए प्रशांत किशोर की ही क्या जरूरत है? अभी से इतना कन्फ्यूजन है, आगे क्या होगा?

हाल के यूपी चुनाव में बीजेपी भी तो ऐसे ही समझा रही थी. योगी आदित्यनाथ ने बहुत काम किया है, लेकिन आगे के काम के लिए अभी वही उपयोगी हैं. जैसे अमेरिका में जॉर्ज बुश और बराक ओबामा ऐसी ही बातें समझाते हुए सत्ता में वापसी किये - लेकिन इसमें प्रशांत किशोर की क्या भूमिका हो सकती है? आने वाले दिनों में ये सब वो घूम घूम कर बिहार के लोगों से समझने और समझाने वाले हैं.

प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) की पटना में प्रेस कांफ्रेंस के बाद काफी लोग उनमें केजरीवाल (Arvind Kejriwal) का अक्स देखने लगे हैं. क्या वाकई ऐसा ही है? क्या ऐसा नहीं लगता कि वो किसी बड़े मौके के हाथ लगने तक, चर्चा में बने रह कर, वक्त गुजारने का प्रयास कर रहे हों?

निश्चित तौर पर वो जन-सुराज की बात कर रहे हैं. अरविंद केजरीवाल भी स्वराज की बात किया करते थे. ऐसा लगता है वो सुराज में अरविंद केजरीवाल के जन-लोकपाल वाला ही 'जन' जोड़ दे रहे हों - लेकिन उससे कहीं ज्यादा ये सुशासन के लिए गढ़ा हुआ एक नया शब्द लग रहा है. जैसे नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का सुशासन वैसे ही प्रशांत किशोर का सुराज - तो फर्क क्या होगा?

जिन बदलावों की बातें प्रशांत किशोर कर रहे हैं वैसा तो हर पार्टी करती रही है. बल्कि बीजेपी तो सत्ता में साझीदार रहते हुए भी बिहार को लेकर ऐसी ही बातें कर डालती है. प्रशांत किशोर तो ऐसे समझा रहे थे जैसे लालू यादव और नीतीश कुमार के शासन में काम तो हुए हैं, लेकिन उसे और आगे बढ़ाने की जरूरत है. अगर नीतीश कुमार से पूछा जाये तो वो भी ऐसा ही कुछ कहेंगे.

हो सकता है प्रशांत किशोर ये समझाने की कोशिश कर रहे हों कि आगे बढ़ाने के लिए बिहार के लोगों को उनकी जरूरत पड़ सकती है - और लोग ये समझ लें कि जो काम लालू यादव और नीतीश कुमार ने कराये उसे आगे बढ़ाने के लिए प्रशांत किशोर की ही क्या जरूरत है? अभी से इतना कन्फ्यूजन है, आगे क्या होगा?

हाल के यूपी चुनाव में बीजेपी भी तो ऐसे ही समझा रही थी. योगी आदित्यनाथ ने बहुत काम किया है, लेकिन आगे के काम के लिए अभी वही उपयोगी हैं. जैसे अमेरिका में जॉर्ज बुश और बराक ओबामा ऐसी ही बातें समझाते हुए सत्ता में वापसी किये - लेकिन इसमें प्रशांत किशोर की क्या भूमिका हो सकती है? आने वाले दिनों में ये सब वो घूम घूम कर बिहार के लोगों से समझने और समझाने वाले हैं.

प्रशांत किशोर की अपनी मुश्किल भी है. अब तक उनके पास बताने के लिए कुछ भी नहीं है. जो बताना था वो पहले ही बता चुके हैं. प्रशांत किशोर का ये कहना भी लोगों को रास नहीं आया था कि जब वो प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री बना सकते हैं तो क्या बिहार के नौजवानों को मुखिया और सरपंच नहीं बनवा सकते? हालांकि, बाद में उनका टोन बदल गया. हाल फिलहाल के इंटरव्यू में भी अक्सर उनके मुंह से सुनने को मिला - मैं बहुत छोटा आदमी हूं. वैसे शुरू में अरविंद केजरीवाल भी ये लाइन बार बार कहा करते थे.

प्रशांत किशोर और अरविंद केजरीवाल में बड़ा फर्क ये है कि जब रामलीला आंदोलन शुरू होने से पहले केजरीवाल मैगसेसे अवॉर्ड जीत चुके थे. उनके पास सूचना के अधिकार पर अपना काम बताने के लिए था - और भ्रष्टाचार से निजात दिलाने का भरोसा भी वो उसी दम पर लोगों को दिला पाये. वो भी तब जब केंद्र की सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी हुई थी.

प्रेस कांफ्रेंस में प्रशांत किशोर ने अपनी तरफ से सफाई भी पेश की. बोले, जैसा मीडिया में सरकुलेट किया जा रहा है... आज मैं कोई राजनीतिक पार्टी बनाने जा रहा हूं... राजनीतिक दल बनाने जा रहा हूं... ऐसा मैं कुछ नहीं करने जा रहा हूं.'

प्रशांत किशोर की नयी पारी में कोई हिडेन एजेंडा भी है क्या?

लेकिन प्रशांत किशोर ने ये भी नहीं कहा कि वो आगे भी कोई पार्टी नहीं बनाने वाले हैं. ये जरूर बताया कि सारे काम के लिए लोगों को इकट्ठा कर एक मंच खड़ा करने की कोशिश जरूर होगी. अब जिसे जो समझ में आये समझता रहे. ये भी एक वजह है कि लोग प्रशांत किशोर में अरविंद केजरीवाल का चेहरा देख रहे हैं.

क्या ये प्रोड्यूसर के डायरेक्टर बनने की कोशिश है?

प्रशांत किशोर को लेकर ऐसे कयास लगाये जा रहे थे कि वो अपनी राजनीतिक पार्टी बनाने का ऐलान कर सकते हैं. ऐसा इसलिए भी क्योंकि हाल ही में प्रशांत किशोर ने ट्विटर पर लिखा था कि वो कांग्रेस ज्वाइन करने के ऑफर को ठुकरा चुके हैं. बाकी कहीं किसी राजनीतिक पार्टी में उनको लेकर कोई संभावना नजर भी नहीं आ रही थी.

दिल्ली विधानसभा चुनावों के बाद, राज्य सभा सांसद संजय सिंह ने ये जरूर कहा था कि अगर प्रशांत किशोर आम आदमी पार्टी में आना चाहें तो उनका स्वागत किया जाएगा. पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद जिस तरीके से तृणमूल कांग्रेस की बैठकों में प्रशांत किशोर की मौजूदगी की चर्चा होती रही, कई बार लगा कि वो ममता बनर्जी के साथ ही राजनीति शुरू कर सकते हैं. इसलिए भी क्योंकि बंगाल चुनाव के नतीजे आने के दिन ही वो साफ कर चुके थे कि आगे से वो चुनाव रणनीति तैयार करने का काम नहीं करने वाले हैं.

अपनी राजनीतिक पार्टी बनाने को लेकर जिस तरीके से प्रशांत किशोर ने अपनी बात समझाने की कोशिश की कन्फ्यूजन बढ़ता ही गया. प्रशांत किशोर का कहना रहा, 'मैं कोई राजनीतिक पार्टी या मंच नहीं बना रहा हूं... मेरी भूमिका ये होगी कि बिहार को बदलने की चाह रखने वाले लोगों... यहां रहने वाले लोगों से मिलूं - और उनको एक साथ लाऊं.'

ये सब तो ठीक है, लेकिन जिस तरीके से प्रशांत किशोर ने अपनी शॉर्ट कट कामयाबी का दावा किया है, उनकी ही पुरानी बातों की याद दिला रहा है - 'जब लोगों को प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री बनवा सकता हूं तो बिहार के नौजवानों को मुखिया...'

प्रशांत किशोर का सबसे बड़ा दावा है, "चुनाव लड़ने का अगर मेरा लक्ष्य होता तो चुनाव से छह महीने पहले में पार्टी बनाकर चुनाव लड़ सकता हूं."

बातें तो प्रशांत किशोर पुष्पा फिल्म के हीरो जैसी कर रहे हैं, लेकिन उसमें पुष्पम प्रिया की झलक मिल रही है. विदेश से पढ़ाई करने के बाद 2020 के बिहार चुनाव में उतरीं पुष्पम प्रिया भी शुरू शुरू में ऐसे ही हवाई दावे कर रही थीं. बॉलीवुड एक्टर रणवीर शौरी को भी ऐसा ही महसूस हो रहा है.

प्रशांत किशोर के मुताबिक, उनकी टीम ने बिहार में 17 हजार 500 लोगों की एक लंबी चौड़ी सूची बनायी है - और सभी लोगों से निजी तौर पर मिल कर वो जन-सुराज पर चर्चा करने वाले हैं. ये ऐसे लोग बताये जा रहे हैं जो जन सुराज की सोच को जमीन पर लाने के प्रयासों में रुचि रखते हैं.

प्रशांत किशोर बताते हैं कि जिन लोगों से वो मिलने वाले हैं उनमें से दो, तीन या पांच हजार लोग एक साथ मिलते हैं और तय करते हैं कि किसी राजनीतिक पार्टी या मंच की जरूरत है, तो उसकी घोषणा की जाएगी. लेकिन लगे हाथ डिस्क्लेमर भी है - तब भी वो प्रशांत किशोर की पार्टी नहीं होगी. ये तो बिलकुल अरविंद केजरीवाल जैसी ही लाइन है, जब पहली बार में ही वो संस्थापकों में से योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण सहित कई लोगों को बाहर का रास्ता दिखा दिये थे.

राजनीति की बात करते करते, प्रशांत किशोर दार्शनिक जैसा व्यवहार शुरू कर देते हैं, 'बिहार में कहा जाता है कि यहां केवल जाति के आधार पर वोट मिलता है... मैं जाति नहीं बल्कि समाज के सभी लोगों को जोड़ने की कोशिश कर रहा हूं.' आगे जो भी हो अभी तक तो वो अपनी इसी महारत के बूते लोगों को चुनाव जिताते रहे हैं.

प्रशांत किशोर का कहना है कि वो कोविड-19 के खत्म होने का इंतजार कर रहे थे ताकि अपनी नई योजना पर काम कर सकें. बोले, अगर मैं कोविड-19 के दौरान यात्रा की शुरुआत करता तो लोग मुझ पर सवाल खड़े करते.

असल में प्रशांत किशोर तीन हजार किलोमीटर लंबी पदयात्रा भी करने जा रहे हैं. प्रशांत किशोर के ट्विटर अकाउंट के कवर से जाहिर है कि वो महात्मा गांधी के विचारों से काफी प्रभावित हैं, यही वजह है कि वो 2 अक्टूबर से ये पदयात्रा शुरू करने जा रहे हैं - पश्चिमी चंपारण से.

2020 के बिहार विधानसभा चुनावों से पहले प्रशांत किशोर ने एक मुहिम शुरू की थी - बात बिहार की. तभी देश में लॉकडाउन लग गया और वो मुहिम सोशल मीडिया पर सिमट कर रह गयी. लगता नयी कोशिश, उसी के आगे का सफर है.

बिहार के 30 साल

प्रशांत किशोर ने बिहार के बीते 30 साल के शासन पर भी अपनी राय जाहिर की है. प्रशांत किशोर ने भी वही लाइन पकड़ी है जो बिहार में दो सीटों के उपचुनावों से पहले कन्हैया कुमार ने समझाने की कोशिश की थी. तारापुर और कुशेश्वर स्थान के लिए हुए उपचुनावों से पहले पटना पहुंचे कन्हैया कुमार ने भी लालू-राबड़ी सरकार और नीतीश कुमार के शासन को एक जैसा ही पेश किया था - प्रशांत किशोर वैसी ही बातें जरा सोफियाने अंदाज में कह रहे हैं.

प्रशांत किशोर ये याद दिलाना भी नहीं भूलते कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से उनके अच्छे संबंध हैं - और ये भी कि हर मुद्दे पर वो उनसे सहमत नहीं होते हैं. प्रशांत किशोर के साथ रिश्ते को लेकर हाल ही में नीतीश कुमार ने भी ऐसी ही बातें की थी. कुछ समय पहले विपक्षी एकजुटता की कवायद के बीच प्रशांत किशोर ने कुछ गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेस गठबंधन के पक्षधर के. चंद्रशेखर राव जैसे नेताओं की तरफ से नीतीश कुमार को विपक्ष के राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाये जाने की पेशकश भी की थी.

प्रशांत किशोर कहते हैं, पहले 15 साल लालू जी और अब 14-15 साल से नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री हैं... लालू जी के समर्थकों का मानना है कि उन्होंने सामाजिक विकास किया, नीतीश जी के समर्थकों का मानना है कि उन्होंने आर्थिक विकास और बिहार का विकास किया है.

और फिर अपनी राय भी बताते हैं, 'लालू जी और नीतीश जी के राज में जो हुआ उन दोनों की बातों में सच्चाई जरूर है लेकिन जितना उनके दावों में सच्चाई है उतना इस बात में भी सच्चाई है कि बिहार आज लालू और नीतीश के तीस वर्ष के शासनकाल में देश का सबसे पिछड़ा राज्य है,' - और नीतीश कुमार के रहते बिहार में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार की व्यवस्था पूरी तरीह से ध्वस्त और नष्ट है.

अब तक नीतीश कुमार और बीजेपी लालू-राबड़ी शासन के 15 साल को जंगलराज बताकर फायदा उठाते आ रहे हैं. प्रशांत किशोर के नये चश्मे से देखें तो नीतीश कुमार का कार्यकाल भी हाफ-जंगलराज ही लगता है.

ये सब सुन कर तो ऐसा लगता है जैसे एक ऐसी मुहिम शुरू करने की कोशिश हो रही है जो सत्ता विरोधी लहर को हवा दे सके - और अगर कोई नया राजनीतिक दल या फोरम बन पाने की स्थिति न बने तो भी पूरा पैकेज तैयार रहे - और बायर हाथ लगते ही डील पक्की की जा सके.

ये टाइमपास नहीं तो क्या है

चुनाव रणनीतिकार से मुख्यधारा के राजनेता बनने की कवायद में जुटे प्रशांत किशोर ने मीडिया के जरिये जो बातें समझाने की कोशिश की है, उससे कहीं ज्यादा सवाल छोड़ दिये हैं -

1. क्या प्रशांत किशोर भी अरविंद केजरीवाल के रास्ते पर ही राजनीति में आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं?

2. क्या प्रशांत किशोर बिहार में किसी और राजनीतिक पार्टी के लिए हिडेन कैंपेन चलाने जा रहे हैं?

3. क्या प्रशांत किशोर ये सब करके अपनी बार्गेनिंग पावर बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि सही वक्त आने पर उसे भुनाया जा सके?

4. क्या प्रशांत किशोर सिर्फ चर्चाओं में बने रहने के लिए ये टाइमपास पॉलिटिकल जुगाड़ इस्तेमाल कर रहे हैं?

5. क्या अब भी प्रशांत किशोर को किसी राजनीतिक पार्टी में कोई महत्वपूर्ण पद और जिम्मेदारी हासिल करने का इंतजार है?

इन्हें भी पढ़ें :

क्या प्रशांत किशोर की पार्टी AAP का डुप्लीकेट होगी?

क्या प्रशांत किशोर के इशारे पर बिहार में कोई बड़ा राजनीतिक उलटफेर होने वाला है?

प्रशांत किशोर क्यों नजर आते हैं भाजपा के 'अंडरकवर' एजेंट


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲