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प्रशांत किशोर क्यों नजर आते हैं भाजपा के 'अंडरकवर' एजेंट

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 15 अप्रिल, 2021 07:06 PM
  • 15 अप्रिल, 2021 07:05 PM
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पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का साथ छोड़कर भाजपा में शामिल हुए टीएमसी नेताओं में से अधिकतर ने केवल दो वजहों से ही पार्टी से किनारा किया था. पहला कारण ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी का तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की तुलना में पार्टी में बढ़ता कद रहा. दूसरा कारण खुद प्रशांत किशोर थे.

चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर उर्फ PK के बारे में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि अमित शाह के फोन करने पर उन्होंने PK को जेडीयू उपाध्यक्ष बनाया था. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले जब भाजपा और शिवसेना आमने-सामने थे, तब प्रशांत किशोर ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से मुलाकात की थी. इसके कुछ ही दिनों बाद भाजपा और शिवसेना एक साथ आ गए थे. ऐसे कई मौके रहे हैं, जब आपको लगा होगा कि आखिर प्रशांत किशोर काम किसके साथ कर रहे हैं? इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (I-PAC) के जरिये 'सारथी' बनकर राजनीति के 'महारथी' प्रशांत किशोर ने नरेंद्र मोदी को देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया था. हालांकि, लोकसभा चुनाव के बाद उन्होंने भाजपा से दूरी बना ली, लेकिन चुनावी रणनीतिकार के तौर पर उन्होंने अन्य दलों के लिए अपना काम जारी रखा. पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के चौथे चरण के मतदान से एक दिन पहले उनकी एक क्लबहाउस ऑडियो चैट क्लिप वायरल हुई. PK की वायरल हुई यह क्लबहाउस ऑडियो चैट भाजपा की जीत के ओपिनियन पोल की तरह लग रही थी.

पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का साथ छोड़कर भाजपा में शामिल हुए टीएमसी नेताओं में से अधिकतर ने केवल दो वजहों से ही पार्टी से किनारा किया था. पहला कारण ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी का तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की तुलना में पार्टी में बढ़ता कद रहा. दूसरा कारण खुद प्रशांत किशोर थे. टीएमसी के कई नेताओं ने आरोप लगाया कि पार्टी के मामले में प्रशांत किशोर का हस्तक्षेप बहुत ज्यादा बढ़ गया है. तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने खुलकर आरोप लाए थे कि अभिषेक बनर्जी को सत्ता का उत्तराधिकारी बनाने के लिए ममता बनर्जी ने प्रशांत किशोर की हर बात पर आंख मूंदकर विश्वास किया था.

ममता बनर्जी ने विधानसभा चुनाव के बीच में ही देश के कई विपक्षी दलों को भाजपा के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने की अपील की थी. निश्चित तौर पर यह रणनीति प्रशांत किशोर की ओर से ही उन तक आई होगी. PK की इस रणनीति ने 'दीदी' के लिए पश्चिम बंगाल में कितनी संभावनाएं जुटाईं...

चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर उर्फ PK के बारे में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि अमित शाह के फोन करने पर उन्होंने PK को जेडीयू उपाध्यक्ष बनाया था. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले जब भाजपा और शिवसेना आमने-सामने थे, तब प्रशांत किशोर ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से मुलाकात की थी. इसके कुछ ही दिनों बाद भाजपा और शिवसेना एक साथ आ गए थे. ऐसे कई मौके रहे हैं, जब आपको लगा होगा कि आखिर प्रशांत किशोर काम किसके साथ कर रहे हैं? इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (I-PAC) के जरिये 'सारथी' बनकर राजनीति के 'महारथी' प्रशांत किशोर ने नरेंद्र मोदी को देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया था. हालांकि, लोकसभा चुनाव के बाद उन्होंने भाजपा से दूरी बना ली, लेकिन चुनावी रणनीतिकार के तौर पर उन्होंने अन्य दलों के लिए अपना काम जारी रखा. पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के चौथे चरण के मतदान से एक दिन पहले उनकी एक क्लबहाउस ऑडियो चैट क्लिप वायरल हुई. PK की वायरल हुई यह क्लबहाउस ऑडियो चैट भाजपा की जीत के ओपिनियन पोल की तरह लग रही थी.

पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का साथ छोड़कर भाजपा में शामिल हुए टीएमसी नेताओं में से अधिकतर ने केवल दो वजहों से ही पार्टी से किनारा किया था. पहला कारण ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी का तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की तुलना में पार्टी में बढ़ता कद रहा. दूसरा कारण खुद प्रशांत किशोर थे. टीएमसी के कई नेताओं ने आरोप लगाया कि पार्टी के मामले में प्रशांत किशोर का हस्तक्षेप बहुत ज्यादा बढ़ गया है. तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने खुलकर आरोप लाए थे कि अभिषेक बनर्जी को सत्ता का उत्तराधिकारी बनाने के लिए ममता बनर्जी ने प्रशांत किशोर की हर बात पर आंख मूंदकर विश्वास किया था.

ममता बनर्जी ने विधानसभा चुनाव के बीच में ही देश के कई विपक्षी दलों को भाजपा के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने की अपील की थी. निश्चित तौर पर यह रणनीति प्रशांत किशोर की ओर से ही उन तक आई होगी. PK की इस रणनीति ने 'दीदी' के लिए पश्चिम बंगाल में कितनी संभावनाएं जुटाईं हैं, ये चुनाव के नतीजे तय कर देंगे. लेकिन, 2024 के लिए अभी से ममता बनर्जी को एक काल्पनिक 'तीसरा मोर्चा' का प्रमुख चेहरा बनाने की कोशिश सवाल जरूर खड़े करती है. एक ऐसा चुनावी रणनीतिकार जिसने देश के कई राज्यों में मुख्यमंत्री बनाए हैं, वह एक चैट की प्राइवेसी ओपन रखने की गलती कर सकता है क्या?

प्रशांत किशोर कई बार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर भाजपा के लिए लॉबिंग करते नजर आए हैं.

अपने काम के नेचर की वजह से वह पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद पंजाब का रुख करेंगे. पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बीते महीने ही प्रशांत किशोर को अपना प्रधान सलाहकार (कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त) नियुक्त किया है. बीते कुछ दिनों से पंजाब की राजनीति में हलचल मची हुई है. मीडिया रिपोर्ट्स में सामने आया हैं कि टिकट बंटवारे में प्रशांत किशोर की दखलंदाजी की वजह से कांग्रेस में उनका विरोध बढ़ गया है. यह तब हो रहा है, जब 2017 में कांग्रेस ने प्रशांत किशोर की रणनीतियों पर चलते हुए सत्ता की कुर्सी पाई थी. हालांकि, कैप्टन अमरिंदर सिंह ने टिकटों को अंतिम रूप देने में प्रशांत किशोर की भूमिका से इनकार किया है. लेकिन, कांग्रेस विधायकों का विरोध जारी है और अगले साल होने वाले चुनाव से पहले यह मुखर होने की संभावना है.

2014 में भाजपा को अपनी रणनीति के सहारे सत्ता के शिखर पर पहुंचाने के बाद प्रशांत किशोर ने एनडीए से अलग हुए जेडीयू के नीतीश कुमार का साथ कर लिया. उन्होंने नीतीश कुमार को 'महागठबंधन' का नेता बनाया. अपनी रणनीति पर चलते हुए नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद पर पहुंचाया. लेकिन, साझा सरकार बीच में ही गिर गई और जेडीयू को अपने पुराने साथी भाजपा के पास वापस लौटना पड़ा. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव से करीब एक साल पहले प्रशांत किशोर ने जेडीयू की पार्टी लाइन से हटकर बयान देना शुरू कर दिया. अंत में नीतीश कुमार को मजबूरी में उनसे किनारा करना पड़ा. 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद उपमुख्यमंत्री और नीतीश कुमार के करीबी कहे जाने वाले भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी को बिहार से बाहर केंद्र की राजनीति में ले आया गया.

बिहार में बड़े भाई की भूमिका से छोटे भाई बन गए नीतीश कुमार ने चुनाव खत्म होने के बाद उपेंद्र कुशवाहा से पुरानी दुश्मनी खत्म की. नीतीश के इस कदम को भाजपा के पर कतरने की तैयारी के रूप में देखा जा रहा है. लेकिन, सवाल खड़ा होता है कि आखिर इस कदम को उठाने में इतना लंबा समय क्यों लग गया? क्या इसके पीछे प्रशांत किशोर की कोई भूमिका थी? प्रशांत किशोर के आने-जाने के समय में ऐसी बहुत सी चीजें होती हैं, जिन्हें नजरअंदाज करना मुश्किल होता है. भाजपा उनपर बिहार से लेकर पश्चिम बंगाल तक हमलावर रही है. प्रशांत किशोर को भाजपा नेताओं ने 'भाड़े का टट्टू' तक कह दिया, लेकिन प्रशांत किशोर की ओर से कोई खास प्रतिक्रिया आती नहीं दिखी है. 

प्रशांत किशोर की चुनावी रणनीतिकार वाली भूमिका में कई बातें सांकेतिक है. भाजपा से अलग होने के बाद भी प्रशांत किशोर कई बार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर भाजपा के लिए लॉबिंग करते नजर आए हैं. इस स्थिति में उनके भाजपा का अंडरकवर एजेंट होने के दावे को बल मिलता है. अब प्रशांत किशोर वास्तव में क्या हैं, इस सवाल का जवाब भविष्य के गर्त में छिपा हुआ है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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