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प्रशांत किशोर भले केजरीवाल बनना चाहते हों, लेकिन बिहार तो दिल्ली कतई नहीं है

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 03 अक्टूबर, 2022 11:54 PM
  • 03 अक्टूबर, 2022 11:54 PM
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प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) बिहार में पदयात्रा पर निकल चुके हैं. कुछ दिनों तक जनसुराज (Jan Suraj Yatra) मुहिम चलाने के बाद वो पदयात्रा पर निकले हैं - और मंशा उनकी भी अरविंद केजरीवाल जैसी ही लगती है - मान कर चलना चाहिये बिहार और दिल्ली का फर्क भी समझ रहे होंगे.

प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) यानी पीके बिहार में लंबी पदयात्रा पर निकल चुके हैं. पीके अपनी जन सुराज यात्रा (Jan Suraj Yatra) में दूरी तो 3500 किलोमीटर यानी राहुल गांधी के बराबर ही तय करने वाले हैं, लेकिन वक्त काफी लंबा होने वाला है.

भारत जोड़ो यात्रा के तहत राहुल गांधी जितनी दूरी 150 दिनों में तय करने वाले हैं, प्रशांत किशोर कम से कम एक साल या उससे ज्यादा टाइम लगा सकते हैं. जैसा पहले बताया गया था राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और प्रशांत किशोर की जनसुराज यात्रा दोनों एक ही साथ शुरू होनी थी - गांधी जयंती के मौके पर 2 अक्टूबर, 2022 से. लेकिन राहुल गांधी ने कार्यक्रम में तब्दीली कर दी और 7 सितंबर को ही कन्याकुमारी से चल पड़े.

और उसी दिन अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने भी हरियाणा से अपनी मेक इंडिया नंबर 1 के लिए भी यात्रा शुरू कर दी थी. राहुल गांधी जहां भारत जोड़ो यात्रा का मकसद देश के लोगों से जुड़ना बता रहे हैं, वहीं प्रशांत किशोर और अरविंद केजरीवाल अपने अभियानों को लेकर ज्यादा स्पष्ट लग रहे हैं. अरविंद केजरीवाल भारत को दुनिया में नंबर 1 बनाने के लिए यात्रा कर रहे हैं, जबकि प्रशांत किशोर बिहार में परिवर्तन लाने के लिए.

प्रशांत किशोर जितने स्पष्ट राजनीतिक दलों के कैंपेन के वक्त होते हैं, अपनी मुहिम को लेकर गोल गोल घुमा रहे हैं. समझने की कोशिश करें तो राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल की मंजिल जहां प्रधानमंत्री की कुर्सी है, प्रशांत किशोर ज्यादा से ज्यादा अभी बिहार सीएम बनने का सपना देख रहे लगते हैं.

मुख्यधारा की राजनीति में आने के लिए जैसे अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली का मैदान चुना, प्रशांत किशोर बिहार को लेकर आगे बढ़ने की कोशिश कर चुके हैं. प्रशांत किशोर के लिए बिहार में काम करना आसान सिर्फ इसीलिए नहीं है कि वो उनका गृह...

प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) यानी पीके बिहार में लंबी पदयात्रा पर निकल चुके हैं. पीके अपनी जन सुराज यात्रा (Jan Suraj Yatra) में दूरी तो 3500 किलोमीटर यानी राहुल गांधी के बराबर ही तय करने वाले हैं, लेकिन वक्त काफी लंबा होने वाला है.

भारत जोड़ो यात्रा के तहत राहुल गांधी जितनी दूरी 150 दिनों में तय करने वाले हैं, प्रशांत किशोर कम से कम एक साल या उससे ज्यादा टाइम लगा सकते हैं. जैसा पहले बताया गया था राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और प्रशांत किशोर की जनसुराज यात्रा दोनों एक ही साथ शुरू होनी थी - गांधी जयंती के मौके पर 2 अक्टूबर, 2022 से. लेकिन राहुल गांधी ने कार्यक्रम में तब्दीली कर दी और 7 सितंबर को ही कन्याकुमारी से चल पड़े.

और उसी दिन अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने भी हरियाणा से अपनी मेक इंडिया नंबर 1 के लिए भी यात्रा शुरू कर दी थी. राहुल गांधी जहां भारत जोड़ो यात्रा का मकसद देश के लोगों से जुड़ना बता रहे हैं, वहीं प्रशांत किशोर और अरविंद केजरीवाल अपने अभियानों को लेकर ज्यादा स्पष्ट लग रहे हैं. अरविंद केजरीवाल भारत को दुनिया में नंबर 1 बनाने के लिए यात्रा कर रहे हैं, जबकि प्रशांत किशोर बिहार में परिवर्तन लाने के लिए.

प्रशांत किशोर जितने स्पष्ट राजनीतिक दलों के कैंपेन के वक्त होते हैं, अपनी मुहिम को लेकर गोल गोल घुमा रहे हैं. समझने की कोशिश करें तो राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल की मंजिल जहां प्रधानमंत्री की कुर्सी है, प्रशांत किशोर ज्यादा से ज्यादा अभी बिहार सीएम बनने का सपना देख रहे लगते हैं.

मुख्यधारा की राजनीति में आने के लिए जैसे अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली का मैदान चुना, प्रशांत किशोर बिहार को लेकर आगे बढ़ने की कोशिश कर चुके हैं. प्रशांत किशोर के लिए बिहार में काम करना आसान सिर्फ इसीलिए नहीं है कि वो उनका गृह राज्य है, बल्कि इसलिए भी है क्योंकि 2015 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए एक सफल कैंपेन चला चुके हैं.

लेकिन अगर प्रशांत किशोर ये सोच रहे हैं कि जैसे अरविंद केजरीवाल ने आंदोलन का रास्ता अख्तियार कर दिल्ली में पैर जमा लिये, तो जरूरी नहीं कि बिहार की राजनीति में भी ये फॉर्मूला फिट ही हो जाये. दिल्ली का वोटर देश भर का प्रतिनिधित्व करता है, और काफी अलग है. बिहार में जातीय राजनीतिक का काफी बोलबाला है, तभी तो जातीय जनगणना के नाम पर मुहिम चला कर नीतीश कुमार ने फिर से लालू यादव से हाथ मिला लिया और एनडीए की जगह महागठबंधन के मुख्यमंत्री बन बैठे हैं.

पीके और केजरीवाल की मिलती जुलती पॉलिटिक्स

प्रशांत किशोर की राजनीतिक मंशा धीरे धीरे अरविंद केजरीवाल की ही तरह महसूस होने लगी है. फर्क बस इतना ही है कि अरविंद केजरीवाल आंदोलन के रास्ते राजनीति में आये थे और प्रशांत किशोर पदयात्रा के जरिये एंट्री लेने की कोशिश कर रहे हैं.

एक बड़ा फर्क ये है कि प्रशांत किशोर कुछ दिनों तक एक राजनीतिक दल में पदाधिकारी होने का अनुभव हासिल कर चुके हैं, लेकिन राजनीति में आने से पहले अरविंद केजरीवाल के पास ऐसा कोई अनुभव नहीं था.

रास्ते अलग जरूर हैं, लेकिन दोनों एक ही तरीके से अपनी अपनी मंजिल की तरफ बढ़ रहे हैं

प्रशासनिक कामकाज की तुलना करें तो अरविंद केजरीवाल नौकरशाही से राजनीति में आये, जबकि प्रशांत किशोर संयुक्त राष्ट्र के कुछ प्रोजेक्ट पर काम करने के बाद शुरुआत राजनीतिक दलों के लिए चुनाव रणनीतिकार के तौर पर भारत में काम करना शुरू किया. हालांकि, प्रशांत किशोर के अब तक के काम को राजनीति से ज्यादा बिजनेस के तौर पर देखा गया है.

दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सत्ता में वापसी कराने में भी प्रशांत किशोर का बड़ा रोल रहा. 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर और उनकी टीम ही अरविंद केजरीवाल के चुनाव कैंपेन की निगरानी कर रही थी - और जेडीयू के उपाध्यक्ष पद से प्रशांत किशोर की छुट्टी कराने में आम आदमी पार्टी के कैंपेन का भी थोड़ा बहुत योगदान जरूर रहा. केजरीवाल की चुनावी मुहिम को कामयाब बनाने के लिए तब प्रशांत किशोर काफी राजनीतिक बयानबाजी कर रहे थे, जो नीतीश कुमार को नागवार गुजरा और वो जेडीयू से बाहर का रास्ता दिखा दिये.

अरविंद केजरीवाल की जीत सुनिश्चित करने के फौरन बाद ही प्रशांत किशोर ने बिहार का रुख किया था. प्रशांत किशोर ने बिहार के युवाओं से संवाद के लिए बात बिहार की मुहिम शुरू की थी, लेकिन कोविड के चलते लॉकडाउन लग जाने पर प्रशांत किशोर को अपनी मुहिम रोक देनी पड़ी. हालांकि, उसके बाद भी सोशल मीडिया के जरिये वो काफी दिनों तक एक्टिव रहे.

2021 के पश्चिम बंगाल चुनाव में प्रशांत किशोर ने अरविंद केजरीवाल की ही तरह ममता बनर्जी की चुनावी जीत भी सुनिश्चित कर दी. खास बात ये रही कि दोनों ही चुनावों में शिकस्त झेलने वाली पार्टी बीजेपी ही रही - और मोर्चे पर लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह जमे हुए थे.

बंगाल कैपेन के खत्म होते ही प्रशांत किशोर ने साफ तौर पर बोल दिया था कि आगे से वो चुनाव रणनीति तैयार करने और मुहिम चलाने का काम नहीं करेंगे. कहने को तो चैलेंज के तौर पर ऐसा वो पहले ही कह चुके थे, लेकिन तस्वीर ज्यादा साफ बंगाल के नतीजे आने के बाद ही हो पायी.

बिहार में जन सुराज मुहिम का फैसला भी तो लगता है प्रशांत किशोर ने थक हार कर ही किया होगा. ठीक पहले उनकी कांग्रेस नेतृत्व के साथ बातचीत चल रही थी. सोनिया गांधी, राहुल गांधी और उनके करीबी कांग्रेस नेताओं के सामने प्रशांत किशोर ने काफी लंबा चौड़ा प्रजेंटेशन भी दिया था, लेकिन बात नहीं बन सकी. दोनों पक्षों के अपने रिजर्वेशन थे - और ऐसे ही कुछ मसले आड़े आ गये.

बातचीत को प्रशांत किशोर और कांग्रेस ने एक अच्छे मोड़ पर खत्म करने की कोशिश भी की थी. अपनी तरफ से कांग्रेस ने ये भी कहा था कि प्रशांत किशोर के कुछ सुझावों को पार्टी अमल में भी लाना चाहेगी. जब उदयपुर में चिंतन शिविर आयोजित हुआ तो ऐसे मुद्दों पर बात भी हुई थी - और भारत जोड़ो यात्रा की कल्पना को अप्रूव भी वहीं किया गया.

माना तो यही जाता रहा है कि भारत जोड़ो यात्रा जैसे आयोजन की सलाह भी प्रशांत किशोर की रही, लेकिन प्रशांत किशोर के इंडियन एक्स्प्रेस को दिये इंटरव्यू से लगता है कि राहुल गांधी उनके हिसाब से नहीं चल रहे हैं. वैसे तो वो इनकार भी नहीं करते लेकिन ये जरूर समझाते हैं कि अगर उनको सुझाव देना होता तो वो गुजरात से ऐसा कार्यक्रम शुरू करने की सलाह देते. ताकि चुनावों में उसका फायदा उठाया जा सके. पीके के मुताबिक केरल में ऐसी यात्रा करने का कोई मतलब नहीं बनता.

पीके की पदयात्रा

प्रशांत किशोर ने अपने जनसुराज अभियान की शुरुआत वैशाली से की थी. उन्होंने यात्रा शुरू करने से पहले कहा था कि नई राजनीतिक व्यवस्था के आंदोलन के लिए लोकतंत्र की भूमि वैशाली से बेहतर कोई जगह नहीं है. आज गांधी जयंती के मौके पर उन्होंने ट्वीट किया है.

प्रशांत किशोर ने ट्वीट कर लिखा, 'देश के सबसे गरीब और पिछड़े राज्य #बिहार में व्यवस्था परिवर्तन का दृढ़ संकल्प. पहला महत्वपूर्ण कदम - समाज की मदद से एक नयी और बेहतर राजनीतिक व्यवस्था बनाने के लिए अगले 12-15 महीनों में बिहार के शहरों, गांवों और कस्बों में 3500KM की पदयात्रा. बेहतर और विकसित बिहार के लिए #जनसुराज.'

जनसुराज यात्रा की शुरुआत करने से पहले पीके ने कहा था कि इस यात्रा में समाज के अलग-अलग लोगों से मिलने का मिशन है. इस दौरान बिहार को सुधारने के लिए अगले 15 साल का ब्लू प्रिंट तैयार कर जनता के सामने रखा जाएगा. इसके साथ ही नया राजनीतिक विकल्प तैयार किया जाएगा.

जैसे कह रहे हों सब मिले हुए हैं जी!

प्रशांत किशोर के जेडीयू में रहते एक बयान पर खासा बवाल मचा था. बिहार के युवाओं से संवाद करते हुए प्रशांत किशोर ने बोल दिया था कि अगर वो नेताओं के प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री बना सकते हैं तो क्या उनको मुखिया और सरपंच नहीं बना सकते? आम लोगों के बीच तो बस इस बात की थोड़ी बहुत चर्चा ही रही, जेडीयू के नेताओं ने तो पार्टी में ही खूब बवाल किया. तब प्रशांत किशोर को लेकर कहा जाने लगा कि वो अहंकार से भर गये हैं.

हालांकि, बाद में ऐसे सवालों के जवाब में वो बड़ी ही विनम्रता से जवाब देते रहे हैं. मसलन, मैं कौन होता हूं या मैं बहुत छोटा आदमी हूं. यूपी में कांग्रेस के कैंपने को छोड़ दें तो प्रशांत किशोर अब तक बहुत सारे चुनाव कैंपेन पूरा कर चुके हैं, जिनमें - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 2014 में आम चुनाव की मुहिम के अलावा नीतीश कुमार, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, कैप्टन अमरिंदर सिंह, जगनमोहन रेड्डी के अलग अलग समय पर मुख्यमंत्री बनने में प्रशांत किशोर की बड़ी भूमिका रही है.

हाल ही में प्रशांत किशोर और नीतीश कुमार की एक सीक्रेट मुलाकात कापी चर्चित रही, जिसे लेकर उनका कहना था कि कोई देर शाम मुलाकात नहीं हुई थी, शाम साढ़े चार बजे वो पवन वर्मा के साथ नीतीश कुमार से मिलने गये थे. मुलाकात को लेकर अलग अलग कयास भी लगाये जाने लगे थे, लेकिन दोनों ही पक्षों ने अपनी तरफ से खारिज करने की कोशिशें की.

बिहार पहुंचने से पहले से ही प्रशांत किशोर का तेवर नीतीश कुमार के प्रति हमलाव रहा है. पहले प्रशांत किशोर, लालू यादव को समाजिक न्याय का मसीहा और नीतीश के विकास मॉडल की सराहना जरूर करते रहे लेकिन अब पैंतरा बदल दिया लगता है.

अब तो ऐसा लगता है जैसे वो एक ही लाठी से अरविंद केजरीवाल की तरह सभी भैंसें हांकने लगे हों - जैसे कह रहे हों, 'सब मिले हुए हैं जी.'

इंडियन एक्सप्रेस के साथ इंटरव्यू में प्रशांत किशोर से अब तक 25 राज्यों के भ्रमण के उनकी उनकी राय पूछी जाती है तो वो नीतीश कुमार पर बरस पड़ते हैं. बताते हैं कि लोग ऊब चुके हैं. कहते हैं कि 2015 तक नीतीश कुमार को कोई भला बुरा नहीं कहता रहा, लेकिन अब तो जैसे लोग गाली ही देने लगे हैं.

नीतीश कुमार के साथ पुरानी मुलाकातों का जिक्र करते हुए प्रशांत किशोर बताते हैं, तब वो कहा करते थे ज्यादा से ज्यादा हार जाएंगे, लेकिन हमने इज्जत कमाई है, लोग गाली नहीं देंगे - लेकिन अब तो प्रशांत किशोर का दावा है कि बिहार अब वो सब होने लगा है जिसकी नीतीश कुमार कल्पना नहीं किये होंगे.

बातचीत में जो महत्वपूर्ण आकलन प्रशांत किशोर पेश करते हैं, उनकी राजनीतिक मंशा भी साफ झलक उठती है. कहते हैं, मेरे हिसाब से नीतीश कुमार का दौर खत्म हो चुका है. लोगों का कहना है कि लालू यादव और नीतीश कुमार एक जैसे हैं. निचले स्तर पर सरकारी मुलाजिमों का भ्रष्टाचार, कामकाज को टालने और लापरवाही भरा रवैया चरम पर है.

पहले भी जब नीतीश कुमार एनडीए के मुख्यमंत्री हुआ करते थे, प्रशांत किशोर के निशाने पर बीजेपी भी हुआ करती थी. कभी वैक्सीनेशन को लेकर तो कभी किसी और बात को लेकर बिहार के मामले में प्रशांत किशोर की तरफ से ऐसी ही मिलती जुलती बातें सुनने को मिल रही थीं - मतलब तो यही हुआ कि जो भी राजनीतिक दल हैं सब के सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं.

मतलब, अब बिहार को नये राजनीतिक दल और नेता की जरूरत है - और वो तो अरविंद केजरीवाल की तरह ये सब प्रशांत किशोर ही दे सकते हैं. सब कुछ एक ही दिशा में बढ़ रहा है. पहले प्रशांत किशोर राजनीतिक पार्टी बनाये जाने को लेकर कहा करते थे कि वो तो ये काम छह महीने में कर देंगे.

राजनीति में आने से पहले अरविंद केजरीवाल स्वराज की बात किया करते थे. एक किताब भी इस पर लिख चुके हैं. हाल ही में अन्ना हजारे भी केजरीवाल को उसकी याद दिला रहे थे. प्रशांत किशोर ने थोड़ा मॉडिफाई करते हुए स्वराज को सुराज कर दिया है - और जनलोकपाल की तरह उसमें जन जोड़ कर जनसुराज कर दिया है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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