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विपक्ष के लिए टेनी जितना बड़ा मुद्दा हों - बीजेपी के लिए तो बस टाइमपास लगते हैं

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 19 दिसम्बर, 2021 03:05 PM
  • 19 दिसम्बर, 2021 03:05 PM
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अजय मिश्रा टेनी (Ajay Mishra Teni) को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) कभी दिल से माफ नहीं करने वाले. केंद्रीय मंत्री के इस्तीफे की मांग पर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) अड़े जरूर हैं, लेकिन बीजेपी नेतृत्व अभी इसे टाइमपास से ज्यादा तवज्जो देने के मूड में नहीं है.

अजय मिश्रा टेनी (Ajay Mishra Teni) पर विपक्ष का जोरदार हंगामा जारी है. हंगामा दिल्ली और लखनऊ दोनों जगह हो रहा है. संसद में भी और यूपी विधानसभा में भी. फिर भी बीजेपी नेतृत्व ऐसे पेश आ रहा है जैसे वो बिलकुल निश्चिंत भाव में हो. जैसे ये सब कुछ खास नहीं, बल्कि टाइमपास हो.

संसद में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) फौरन हटाये जाने की मांग कर रहे हैं. यूपी विधानसभा में वही मांग समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के विधायक दोहरा रहे हैं. लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा की घटना के बाद से ही राहुल के साथ साथ उनकी बहन और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा न्याय दिलाने की लड़ाई लड़ रहे हैं.

पहले तो अजय मिश्रा टेनी को मोदी कैबिनेट से हटाये जाने की मांग हो रही थी. प्रियंका गांधी भी कांग्रेस की प्रतिज्ञा यात्रा के तहत यूपी में जहां जहां जा रही थीं, अजय मिश्रा को केंद्रीय मंत्रिमंडल से बर्खास्त किये जाने की मांग कर रही थीं - लेकिन अब राहुल गांधी बर्खास्त करने के साथ ही गिरफ्तार किये जाने की भी मांग कर रहे हैं.

लखीमपुर खीरी हिंसा मामले की जांच कर रही SIT की रिपोर्ट आने के बाद से बवाल बढ़ गया है. कोर्ट में दाखिल रिपोर्ट में एसआईटी ने माना है कि ये कोई लापरवाही का मामला नहीं है, बल्कि जानबूझ कर साजिशन अंजाम दिया गया आपराधिक कार्य है - विपक्ष को ये नया मसाला लग रहा है.

वोटर तक संदेश तो पहुंच ही रहा है: अजय मिश्रा को लेकर बीजेपी के भीतर थोड़ा कंफ्यूजन तो शुरू से ही देखने को मिल रहा है. विपक्ष को भी शायद इसीलिए मुद्दा बनाने का मौका मिल जाता है. ये तो सबको मालूम है कि बतौर गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा सारे सरकारी कामकाज निबटा रहे हैं. महत्वपूर्ण बैठकों में हिस्सा लेते हैं.

लेकिन बवाल तब शुरू होता है जब वो केंद्रीय मंत्रियों के...

अजय मिश्रा टेनी (Ajay Mishra Teni) पर विपक्ष का जोरदार हंगामा जारी है. हंगामा दिल्ली और लखनऊ दोनों जगह हो रहा है. संसद में भी और यूपी विधानसभा में भी. फिर भी बीजेपी नेतृत्व ऐसे पेश आ रहा है जैसे वो बिलकुल निश्चिंत भाव में हो. जैसे ये सब कुछ खास नहीं, बल्कि टाइमपास हो.

संसद में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) फौरन हटाये जाने की मांग कर रहे हैं. यूपी विधानसभा में वही मांग समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के विधायक दोहरा रहे हैं. लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा की घटना के बाद से ही राहुल के साथ साथ उनकी बहन और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा न्याय दिलाने की लड़ाई लड़ रहे हैं.

पहले तो अजय मिश्रा टेनी को मोदी कैबिनेट से हटाये जाने की मांग हो रही थी. प्रियंका गांधी भी कांग्रेस की प्रतिज्ञा यात्रा के तहत यूपी में जहां जहां जा रही थीं, अजय मिश्रा को केंद्रीय मंत्रिमंडल से बर्खास्त किये जाने की मांग कर रही थीं - लेकिन अब राहुल गांधी बर्खास्त करने के साथ ही गिरफ्तार किये जाने की भी मांग कर रहे हैं.

लखीमपुर खीरी हिंसा मामले की जांच कर रही SIT की रिपोर्ट आने के बाद से बवाल बढ़ गया है. कोर्ट में दाखिल रिपोर्ट में एसआईटी ने माना है कि ये कोई लापरवाही का मामला नहीं है, बल्कि जानबूझ कर साजिशन अंजाम दिया गया आपराधिक कार्य है - विपक्ष को ये नया मसाला लग रहा है.

वोटर तक संदेश तो पहुंच ही रहा है: अजय मिश्रा को लेकर बीजेपी के भीतर थोड़ा कंफ्यूजन तो शुरू से ही देखने को मिल रहा है. विपक्ष को भी शायद इसीलिए मुद्दा बनाने का मौका मिल जाता है. ये तो सबको मालूम है कि बतौर गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा सारे सरकारी कामकाज निबटा रहे हैं. महत्वपूर्ण बैठकों में हिस्सा लेते हैं.

लेकिन बवाल तब शुरू होता है जब वो केंद्रीय मंत्रियों के साथ किसी सार्वजनिक मंच पर नजर आ जाते हैं. ऐसा एक बार केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की लखनऊ रैली में देखने को मिला. फिर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ यूपी के सीतापुर में बीजेपी के बूथ सम्मेलन में भी मंच शेयर करते देखे गये.

रहस्य तब और भी गहरा होने लगता है जब अजय मिश्रा की बस झलक दिखायी देती है. बाकी के कार्यक्रम में उनको आगे से हटा कर पीछे भेज दिया जाता है. विपक्ष बीजेपी के भीतर ये कंफ्यूजन देखता है और ज्यादा शोर मचाया जाने लगता है.

हो सकता है ऐसा करके बीजेपी नेतृत्व अपने उस वोट बैंक को भरोसा दिलाने की कोशिश कर रहा हो, जो अजय मिश्रा के मोदी कैबिनेट में बने रहने के लिए ढाल साबित हो रहा है - जो मैसेज श्मशान और कब्रिस्तान की बहस के जरिये वोटर तक पहुंचायी जाती है, अजय मिश्रा की अमित शाह और राजनाथ सिंह के साथ एक झलक भी वैसी ही असरदार हो सकती है.

ये तो मान कर चलना होगा कि अजय मिश्रा टेनी को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) कभी दिल से माफ नहीं करने वाले. जैसा वो साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के मामले में कहे भी थे. हां, दबाव बढ़ने या बुरी तरह घिर जाने पर अजय मिश्रा टेनी अगर माफीनामे के तौर पर चुपचाप इस्तीफा सौंप देते हैं तो बात और है!

गुनाह क्या है - हत्या के आरोपी का पिता होना?

संसद में कांग्रेस नेता राहुल गांधी केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा को क्रिमिनल करार दे चुके हैं, लेकिन सत्ता पक्ष को कोई फर्क पड़ा हो, ऐसा नहीं लगा है. लखीमपुर खीरी हिंसा का मामला कोर्ट में होने और जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में होने की बात कह पल्ला झाड़ने की कोशिश हो रही है.

वैसे अजय मिश्रा का अपराध क्या है? जानने के लिए पहले ये समझना होगा कि कानून के हिसाब से या राजनीतिक नजरिये से?

लखीमपुर केस में नाम तो है नहीं: कानून के हिसाब से तो SIT की जांच जारी है और जांच से पहले किसी नतीजे पर भला कैसे पहुंचा जा सकता है? सिर्फ जांच ही क्यों - जब तक जांच पड़ताल पर अदालती मुहर नहीं लग जाती और कोर्ट दोषी नहीं करार देता तब तक जांच टीम के हवाले से सिर्फ ये कहा जाना कि ये मामला लापरवाही का नहीं, आपराधिक साजिश का है - क्या मायने रखता है?

अब तक अजय मिश्रा टेनी को लखीमपुर हिंसा से दो बातें जोड़ती हैं. एक किसानों को संबोधित उनका धमकी भरा बयान. दूसरा हिंसा से जुड़े कुछ वीडियो जिनमें गाड़ियों को वहां से गुजरते देखा गया है. वीडियो की सच्चाई भी फोरेंसिक जांच के बाद ही मालूम हो सकती है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नजर में अजय मिश्रा टेनी का सबसे बड़ा अपराध पत्रकारों को गाली देना ही लगता होगा - और ऐसी चीजों के लिए एनडीए में इस्तीफे थोड़े ही होते हैं!

लखीमपुर हिंसा से कुछ ही दिन पहले किसानों को धमकाते हुए अजय मिश्रा टेनी ने कहा था, ‘सुधर जाओ नहीं तो हम सुधार देंगे... केवल दो मिनट लगेंगे... मैं केवल मंत्री, सांसद, विधायक नहीं हूं... जो लोग मेरे मंत्री बनने से पहले के बारे में जानते हैं उनसे पूछ लो कि मैं किसी चुनौती से भागता नहीं... जिस दिन ये चुनौती मैं स्वीकार कर लूंगा तो तुम लोगों को पलियां ही नही बल्कि लखीमपुर तक छोड़ना पड़ जाएगा.’

अजय मिश्रा का ये बयान जांच में उपयोगी साबित हो सकता है. हो सकता है क्रोनोलॉजी जोड़ने में एसआईटी के भी काम आये. ये भी हो सकता है कि एसआईटी ने साजिश की बात वाले नतीजे पर पहुंचने में इस बयान का भी संज्ञान लिया हो.

क्रिमिनल कैसे कह सकते हैं: क्या किसी एफआईआर में अजय मिश्रा का भी नाम दर्ज है? पुराने मामले नहीं, लखीमपुर खीरी हिंसा के मामले में कहीं उनके खिलाफ कोई केस दर्ज है क्या?

पुराने मामले इसलिए नहीं क्योंकि अजय मिश्रा टेनी की क्रिमिनल हिस्ट्री से कोई अनजान तो है नहीं. जब अजय मिश्रा केंद्रीय मंत्री के तौर पर शपथ ले रहे थे तब तो किसी ने आपत्ति जतायी नहीं. जहां तक राजनीतिक गतिविधियों को सवाल है, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव तो सजायाफ्ता होकर भी जमानत पर रिहा होने के बाद चुनाव प्रचार कर रहे हैं. आपत्ति तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से भी जतायी जाती है, लेकिन नाम तक नहीं लिया जाता. फिर क्या कहा जाये?

हाल के बिहार में हुए उपचुनावों की बात छोड़ दें तो राहुल गांधी आरजेडी के साथ गठबंधन कर चुनाव भी लड़ा था - अजय मिश्रा टेनी को संसद में क्रिमिनल बोलने से पहले क्या राहुल गांधी को लालू यादव का ध्यान नहीं होना चाहिये था. ये ठीक है कि दागी नेताओं को बचाने वाले अपनी ही सरकार के ऑर्डिनेंस की कॉपी राहुल गांधी ने फाड़ डाली थी - लेकिन क्या उतने भर से ही कर्तव्यों की इतिश्री समझ ली जाएगी.

देश के कानून के मुताबिक सजायाफ्ता अपराधी होने के चलते सदस्यता गंवा चुके लालू यादव की राजनीतिक गतिविधियों पर अगर राहुल गांधी को ऐतराज नहीं है, तो अजय मिश्रा टेनी पर महज आरोपों के आधार पर वो भरी संसद में क्रिमिनल कैसे कह सकते हैं.

अजय मिश्रा टेनी के विपक्ष के टारगेट पर होने की सबसे बड़ी वजह क्या है? लखीमपुर खीरी हिंसा में हत्या के आरोपी आशीष मिश्रा का पिता होना? या अपने इलाके में किसानों को सरेआम धमकी भर देना?

टेनी महाराज की सबसे बड़ी गलती: अगर अजय मिश्रा टेनी की तरफ से कोई गलती हुई है तो वो है पत्रकारों के साथ उनका दुर्व्यवहार है - सुना है इस गलती के लिए उनको डांट भी पिलायी जा चुकी है - और बीजेपी नेतृत्व के लिए ये इतना बड़ा अपराध तो नहीं है कि कैबिनेट से हटाने के बारे में विचार करने लगे.

ये जरूर है कि पत्रकारों को गाली देने के बाद अजय मिश्रा की मुसीबत बढ़ी जरूर है - और नॉर्थ ब्लॉक के दफ्तर उनको पीछे के गेट से जाना पड़ रहा है. फिर भी वो दफ्तर जाते हैं, अधिकारियों से मुलाकात होती है और कामकाज जारी रहता है.

राहुल गांधी आरोप लगाते रहे, टेनी महाराज काम करते रहे

संसद में जो चल रहा है, वो तो टाइमपास ही लगता है. ऐसा लगता है जैसे विपक्ष को भी हंगामा करने के लिए एक मुद्दा मिल गया है. ऐसा मुद्दा जिस पर लगातार तीन दिन तक हंगामे को विपक्ष ने सफलतापूर्वक अंजाम दिया है.

कोई डाल डाल, कोई पात पात: सत्ता पक्ष के लिए हंगामे का नुकसान बस इतना ही है कि बिजनेस प्रभावित हो रहा है. कामकाज जो होते ठप रहे हैं, लेकिन सबसे बड़ी राहत ये है कि जिन चीजों को लेकर जवाब देते रहना पड़ता, निश्चिंतता है. चाहे वो महंगाई का मुद्दा हो, सदाबहार बेरोजगारी का मुद्दा हो - या फिर कोरोना काल में योगी आदित्यनाथ सरकार के काम पर उठते सवाल हों, बीजेपी को निजात मिली हुई है.

एक तरफ राहुल गांधी विपक्ष की तरफ से हंगामे का नेतृत्व करते नजर आते हैं, दूसरी तरफ अजय मिश्रा टेनी बेफिक्र होकर गृह मंत्रालय में बैठ कर अपना काम निपटा रहे होते हैं. सवाल होता है तो रेडीमेड जवाब भी पेश कर दिया जाता है.

संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी कह रहे हैं पूरा मामला कोर्ट में है - और सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच चल रही है. बात भी सही है. भला और क्या चाहिये. ये भी सलाह देते हैं कि विपक्ष को जांच पूरी होने का इंतजार करना चाहिये. ठीक ही तो कहते हैं, हम सुप्रीम कोर्ट के काम में दखल देकर संसदीय नियमों को नहीं तोड़ना चाहते.

सुप्रीम कोर्ट का नाम भी तभी तक लिया जाता है, जब तक सब मनमाफिक चलता है. सरकार कोई भी हो, किसी भी पार्टी की हो - व्यवहार मिलता जुलता ही रहता है. वरना, ये तो अमित शाह का ही कहना रहा है कि सुप्रीम कोर्ट को ऐसा फैसला सुनाना चाहिये जिसका पालन किया जा सके. वरना, शाहबानो केस और मोदी सरकार में SC/ST एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सरकार का रुख याद कर लेना चाहिये.

अभी तो कोई एक्शन होने से रहा: प्रह्लाद जोशी से पहले केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने भी अजय मिश्रा टेनी का करीब करीब ऐसे ही बचाव किया था - और ऐसा भी नहीं कि एमजे अकबर के इस्तीफे के बाद राजनाथ सिंह के उस बयान को खारिज कर दिया जाये कि एनडीए में इस्तीफे नहीं होते. एमजे अकबर अपवाद रहे हैं.

पहले पीयूष गोयल, फिर प्रह्लाद जोशी के बयान के बाद लगता तो नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र अपने कैबिनेट साथी अजय मिश्रा टेनी के खिलाफ तात्कालिक तौर पर कोई एक्शन लेने के मूड में हैं. कृषि कानूनों को लेकर किसान आंदोलन की बात और थी, लेकिन अपने स्वभाव के खिलाफ बार बार सरकार तो जाने से रही. टेनी के खिलाफ मोदी सरकार के एक्शन का एक मैसेज ये तो जाएगा ही कि वो दबाव में झुकने लगी है.

कई मीडिया रिपोर्ट सूत्रों के हवाले से बता रही हैं, बीजेपी नेतृत्व का मानना है कि बेटे की करतूतों की सजा पिता को नहीं दी जा सकती. साथ ही, सरकार और संगठन दोनों ही एसआईटी की अब तक आई रिपोर्ट को अंतिम सच नहीं मान कर चल रहे हैं.

ब्राह्मण फैक्टर बना सुरक्षा कवच: एक बात ये भी देखने को मिली है कि ब्राह्मण फैक्टर अजय मिश्रा टेनी के लिए लाइफ गार्ड बन चुका है. भला इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि यूपी में ब्राह्मण फैक्टर के दो ही किरदार नजर आ रहे हैं - एक अजय मिश्रा टेनी और दूसरा गैंगस्टर विकास दुबे.

जिस तरीके से मायावती और अखिलेश यादव चुनाव से पहले से ही ब्राह्मण वोट को लेकर तत्परता दिखा रहे हैं, बीजेपी के लिए ये सब नजरअंदाज करना मुश्किल तो है ही. लखीमपुर खीरी और आस पास के इलाके में अजय मिश्रा टेनी का प्रभाव ही मोदी कैबिनेट का हिस्सा बनने का आधार भी बना था - और वही बीजेपी के लिए सबसे बड़ा राजनीतिक संकोच बन चुका है.

अजय मिश्रा टेनी के मामले में भी बीजेपी का अब तक का स्टैंड एमजे अकबर जैसा ही देखने को मिला है. मीटू मुहिम के दौरान अकबर पर इल्जाम लगने के बाद बीजेपी ने खामोशी सी अख्तियार कर ली थी. किसी ने आगे बढ़ कर बचाव भी नहीं किया, जो कुछ भी थोड़ा बहुत बीजेपी की तरफ से औपचारिक या अनौपचारिक तौर पर कहा गया, ऐसा लगा जैसे एमजे अकबर को बोल दिया गया हो - अपनी सुरक्षा स्वयं करें.

आने वाले दिनों में कोई संकेत देख कर, नेतृत्व के मन की बात समझ कर या किसी दिन सुबह सुबह बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के फोन कॉल के बाद अचानक अजय मिश्रा टेनी इस्तीफा दे दें तो बात अलग है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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