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क्या अजय मिश्रा टेनी पर 2002 दंगे से बड़ा आरोप है, तो वो ऐसे बौखलाए क्यों?

    • धीरेंद्र राय
    • Updated: 16 दिसम्बर, 2021 08:54 PM
  • 16 दिसम्बर, 2021 08:35 PM
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गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी यदि नरेंद्र मोदी और अमित शाह से सबक नहीं ले सकते, तो उन्हें उनकी टीम का हिस्सा होने का कोई हक नहीं है.

अजय मिश्रा टेनी ने SIT रिपोर्ट के बारे में सवाल पूछने वाले पत्रकार का कॉलर पकड़कर बता दिया कि वे गृह राज्यमंत्री बाद में हैं, पहले 'टेनी महाराज' हैं. अजय मिश्रा को उखड़ने की जरूरत क्या है? उनसे ज्यादा दबाव तो नरेंद्र मोदी पर 2002 दंगों के आरोप का था, लेकिन मजाल है जो उन्होंने कभी संयम खोया हो. टेनी को SIT ने पूछताछ के लिए बुलाया भी नहीं, जबकि मोदी को सीएम रहते गुजरात दंगों की जांच कर रही एजेंसियां 9-9 घंटे पूछताछ के नाम पर बैठाए रहती थीं. टेनी तो लखीमपुर केस के बाद भी अपने क्षेत्र में निर्भीक आ-जा रहे हैं, जबकि गृह मंत्रालय में उन्हीं के बॉस अमित शाह तो सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस में न सिर्फ हिरासत में लिए गए, बल्कि एक साल तक गुजरात से निर्वासित भी रहे. लेकिन, मजाल है जो उन्होंने अपना आपा खोया हो. जब टेनी इतने मनमाने हैं तो वे मोदी सरकार का हिस्सा कैसे हैं? या पूछा जाना चाहिए कि कब तक रहेंगे?

टेनी जिस इलाके से चुनकर आते हैं, वहां उनकी छवि दबंगई करने वाले नेता की ही है. लेकिन, जिस तरह के आरोप से वे जूझ रहे हैं, अच्छी तरह जानते हैं कि मामला लोकल नहीं है. फिर भी वे धीरज नहीं रख पाते. तो ऐसा होने की वजह उनका उग्र स्वभाव है या सोची समझी रणनीति का नतीजा? लखीमपुर में किसानों को रौंदने वाली घटना के बाद अजय मिश्रा पर दबाव चरम पर है. ऐसे में उनका आपा खो देना- सवाल खड़े करता है, और कई संकेत भी देता है.

अजय मिश्रा में घटना से पहले और बाद कोई अंतर क्यों नहीं आया?

अजय मिश्रा टेनी का एक वीडियो खूब वायरल हुआ था, जिसमें वे कहते दिखाई दे रहे थे कि 'ये जो लोग यहां बैठे हैं, उन्हें अच्छी तरह जानता हूं. दो मिनट लगेंगे, सबको ठीक कर दूंगा...'. अजय मिश्रा के विरोधी इसे किसानों को धमकी के रूप में बता रहे थे, जबकि समर्थक इससे इनकार कर रहे थे. लेकिन, जिस बात पर दोनों सहमत थे, वो ये कि वे अल्टीमेटम ही दे रहे थे. एक गृह राज्यमंत्री के मुंह से इस तरह की भाषा आपत्तिजनक तो है ही, हैरान करने वाली भी है. लेकिन, बेनिफिट ऑफ डाउट दिया गया कि वो शायद...

अजय मिश्रा टेनी ने SIT रिपोर्ट के बारे में सवाल पूछने वाले पत्रकार का कॉलर पकड़कर बता दिया कि वे गृह राज्यमंत्री बाद में हैं, पहले 'टेनी महाराज' हैं. अजय मिश्रा को उखड़ने की जरूरत क्या है? उनसे ज्यादा दबाव तो नरेंद्र मोदी पर 2002 दंगों के आरोप का था, लेकिन मजाल है जो उन्होंने कभी संयम खोया हो. टेनी को SIT ने पूछताछ के लिए बुलाया भी नहीं, जबकि मोदी को सीएम रहते गुजरात दंगों की जांच कर रही एजेंसियां 9-9 घंटे पूछताछ के नाम पर बैठाए रहती थीं. टेनी तो लखीमपुर केस के बाद भी अपने क्षेत्र में निर्भीक आ-जा रहे हैं, जबकि गृह मंत्रालय में उन्हीं के बॉस अमित शाह तो सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस में न सिर्फ हिरासत में लिए गए, बल्कि एक साल तक गुजरात से निर्वासित भी रहे. लेकिन, मजाल है जो उन्होंने अपना आपा खोया हो. जब टेनी इतने मनमाने हैं तो वे मोदी सरकार का हिस्सा कैसे हैं? या पूछा जाना चाहिए कि कब तक रहेंगे?

टेनी जिस इलाके से चुनकर आते हैं, वहां उनकी छवि दबंगई करने वाले नेता की ही है. लेकिन, जिस तरह के आरोप से वे जूझ रहे हैं, अच्छी तरह जानते हैं कि मामला लोकल नहीं है. फिर भी वे धीरज नहीं रख पाते. तो ऐसा होने की वजह उनका उग्र स्वभाव है या सोची समझी रणनीति का नतीजा? लखीमपुर में किसानों को रौंदने वाली घटना के बाद अजय मिश्रा पर दबाव चरम पर है. ऐसे में उनका आपा खो देना- सवाल खड़े करता है, और कई संकेत भी देता है.

अजय मिश्रा में घटना से पहले और बाद कोई अंतर क्यों नहीं आया?

अजय मिश्रा टेनी का एक वीडियो खूब वायरल हुआ था, जिसमें वे कहते दिखाई दे रहे थे कि 'ये जो लोग यहां बैठे हैं, उन्हें अच्छी तरह जानता हूं. दो मिनट लगेंगे, सबको ठीक कर दूंगा...'. अजय मिश्रा के विरोधी इसे किसानों को धमकी के रूप में बता रहे थे, जबकि समर्थक इससे इनकार कर रहे थे. लेकिन, जिस बात पर दोनों सहमत थे, वो ये कि वे अल्टीमेटम ही दे रहे थे. एक गृह राज्यमंत्री के मुंह से इस तरह की भाषा आपत्तिजनक तो है ही, हैरान करने वाली भी है. लेकिन, बेनिफिट ऑफ डाउट दिया गया कि वो शायद 'टेनी महाराज' वाली तासीर है जो इस तरह की बात कह गए. लेकिन, लखीमपुर हादसे के बाद टेनी का अपनी तासीर पर बने रहना खतरनाक बन गया. बेटे की गिरफ्तारी के बाद भी उनकी अकड़ नहीं गई. जबकि, वो जानते हैं कि इससे उनका, उनके बेटे का और उनकी पार्टी का नुकसान होगा. तो फिर आखिर क्या वजह है जो टेनी ने तुर्रा बरकरार रखा हुआ?

गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी ने पत्रकारों से झूमाझटकी करके मोदी सरकार को कार्रवाई करने का मौका तो दे ही दिया है.

टेनी की बौखलाहट के पीछे SIT के बजाए पार्टी अल्टीमेटम तो नहीं?

किसान आंदोलन और आंदोलनकारियों को लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र के नाम संदेश से अपना रुख साफ कर दिया है. उन्होंने इस मामले में नीतिगत और राजनैतिक, दोनों तरह से यू-टर्न लिया है. आमतौर पर अपने स्टैंड को लेकर सख्त रहने वाले मोदी ने एक नरमपंथी नेता का रवैया अपनाया, और पूरे टकराव को ठंडा करने की कोशिश की. अब सिर्फ टेनी हैं जिनके रवैये में आक्रोश कायम है. हो भी क्यों नहीं- बेटा जेल में है और उसके लिए हालात पेंचीदा होते जा रहे हैं. तो क्या टेनी का आक्रोश सिर्फ परिस्थितिजन्य है? या बात कुछ और है. लखीमपुर केस की जांच कर रही SIT ने किसानों को रौंदने की घटना को दुर्घटना नहीं, साजिश बताया है. तो क्या SIT रिपोर्ट के बाद टेनी को पार्टी की तरफ से कोई इशारा मिल गया है? सीधे शब्दों में कहें तो क्या उन्हें इस्तीफा देने का इशारा हुआ है? या, उन्हें मंत्रिपरिषद से हटाए जाने का संदेश मिला है? टेनी खुद मंत्री पद छोड़ें या हटाए जाएं, ये तय है कि अब वे भाजपा और मोदी सरकार दोनों के लिए बोझ बन गए हैं. खासतौर पर यूपी चुनाव के मद्देनजर जब सब कुछ भाजपा के लिए ठीक जाता दिख रहा है, तो सिर्फ बौखलाए टेनी ही विपक्ष को ऊपर आने का मौका देते दिख रहे हैं. ऐसे में अंदेशा तो यह भी है कि टेनी बौखलाहट भी कहीं सुनियोजित तो नहीं है? ठाकुर बनाम ब्राह्मण वाली डिबेट में टेनी कहीं ये जताने की कोशिश तो नहीं कर रहे हैं कि भाजपा के राज में एक ब्राह्मण नेता को टारगेट किया जा रहा है? या, SIT के जरिए एक ब्राह्मण नेता को घेरने की कोशिश हो रही है?

यदि भाजपा के पक्ष से देखा जाए तो टेनी की बौखलाहट और उनका पत्रकारों से झूमा झटकी करना राहत देने वाला ही है. SIT की रिपोर्ट के बाद लखीमपुर केस में टेनी कुनबा हल्का हो गया. लेकिन, टेनी को मंत्रिपरिषद से हटाए जाने में अब भी ब्राह्मणों को नाराज करने का रिस्क था. लेकिन टेनी ने जिस तरह से पत्रकार से झूमा झटकी की, उससे बीजेपी नेतृत्व का काम आसान हो गया है. टेनी का रवैया तो शायद यूपी के ब्राह्मण वोटरों को भी खास आकर्षक नहीं लगा होगा. यदि टेनी की लोकप्रियता का ग्राफ इतना गिर गया है, तो सिर्फ लखीमपुर खिरी के आसपास की कुछ सीटों और शायद थोड़ी-मोड़ी फंडिंग की गरज से भाजपा विपक्ष को मुखर होने का मौका नहीं देना चाहेगी.

किसान आंदोलन खत्म हो गया है, बस लखीमपुर केस की आखिरी बाधा ही बची है. टेनी जानते हैं कि भाजपा नेतृत्व इस बाधा को पार करने के लिए उन्हीं की तरफ देख रहा है. कि टेनी कोई शुभ मुहूर्त देखकर मंत्रिपद छोड़ दें. भले कोई पोस्ट-इलेक्शन आश्वासन लेकर. लेकिन, जिस तरह से टेनी का बर्ताव है, वो बर्खास्त किए जाने की प्रतीक्षा करेंगे. कुल मिलाकर बॉल अब प्रधानमंत्री मोदी के पाले में है. टेनी के लिए अब उलटी गिनती शुरू हो गई है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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