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अगर बीजेपी को ब्लैकमेल नहीं कर रहे तो आदित्य ठाकरे किस बूते उछल रहे हैं?

    • आईचौक
    • Updated: 30 दिसम्बर, 2017 12:01 PM
  • 30 दिसम्बर, 2017 12:01 PM
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आदित्य ठाकरे अब मध्य प्रदेश और राजस्थान में चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं, बेहतर तो ये होता पहले महाराष्ट्र में शिवसेना को मजबूत कर लेते.

शिवसेना और बीजेपी का झगड़ा सास-बहू या फिर मियां-बीवी की नोक-झोंक से ज्यादा नहीं लगता. खास बात ये है कि बार बार तकरार के बावजूद दोनों तलाक की नौबत नहीं आने देते. मुंबई में कमला मिल की आग में 15 लोगों की मौत पर भी संसद में दोनों दलों के नेता भिड़ गये और फिर बाद में किसी न किसी के सिर पर ठीकरा फोड़ जिम्मेदारियों की इतिश्री कर लिये.

मामला इस बार इसलिए गंभीर लगता है कि दोनों के अलग हो जाने की एक डेडलाइन सामने आई है - और इस बार ये उद्धव ठाकरे या किसी अन्य शिवसैनिक नहीं, बल्कि, आदित्य ठाकरे की ओर से आया है. सवाल अब भी वही है, ये भी गिदड़भभकी ही है या फिर वाकई युवा ठाकरे ने कुछ नया करने की ठान ली है?

साल भर की डेडलाइन

केंद्र और महाराष्ट्र की सत्ता में साझेदारी के बावजूद शिवसेना के बीजेपी के साथ रिश्तों में कड़वाहट हमेशा बनी रही है. शिवसेना कई बार पहले भी एनडीए सरकार से बाहर होने की धमकी दे चुकी है.

बरसेंगे भी या सिर्फ गरजते रहेंगे?

राष्ट्रपति चुनाव और उपराष्ट्रपति चुनाव से लेकर नोटबंदी और गुजरात चुनाव शायद ही कोई मसला बचा होगा जब शिवसेना, बीजेपी पर न बरसी हो. राष्ट्रपति चुनाव में तो इस बार भी ऐसा लग रहा था कि पिछली बार की तरह एनडीए उम्मीदवार के खिलाफ वोट देगी - लेकिन आखिर तक मान गयी. गुजरात चुनाव के दौरान भी शिवसेना ने मोदी पर हमला बोलते हुए थका हुआ बताया और राहुल गांधी को पीएम मैटीरियल बताया था.

अब तक इस तरह की बातें हमेशा शिवसेना के मुखपत्र सामना के जरिये, अक्सर पार्टी प्रवक्ता संजय राउत और कभी कभार शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के मुहं से भी सुनने को मिलती रही हैं, लेकिन इस बार मामला अलग लग रहा है. ताजातरीन मोर्चा संभाला है - ठाकरे परिवार की तीसरी पीढ़ी के युवा जोश आदित्य ठाकरे...

शिवसेना और बीजेपी का झगड़ा सास-बहू या फिर मियां-बीवी की नोक-झोंक से ज्यादा नहीं लगता. खास बात ये है कि बार बार तकरार के बावजूद दोनों तलाक की नौबत नहीं आने देते. मुंबई में कमला मिल की आग में 15 लोगों की मौत पर भी संसद में दोनों दलों के नेता भिड़ गये और फिर बाद में किसी न किसी के सिर पर ठीकरा फोड़ जिम्मेदारियों की इतिश्री कर लिये.

मामला इस बार इसलिए गंभीर लगता है कि दोनों के अलग हो जाने की एक डेडलाइन सामने आई है - और इस बार ये उद्धव ठाकरे या किसी अन्य शिवसैनिक नहीं, बल्कि, आदित्य ठाकरे की ओर से आया है. सवाल अब भी वही है, ये भी गिदड़भभकी ही है या फिर वाकई युवा ठाकरे ने कुछ नया करने की ठान ली है?

साल भर की डेडलाइन

केंद्र और महाराष्ट्र की सत्ता में साझेदारी के बावजूद शिवसेना के बीजेपी के साथ रिश्तों में कड़वाहट हमेशा बनी रही है. शिवसेना कई बार पहले भी एनडीए सरकार से बाहर होने की धमकी दे चुकी है.

बरसेंगे भी या सिर्फ गरजते रहेंगे?

राष्ट्रपति चुनाव और उपराष्ट्रपति चुनाव से लेकर नोटबंदी और गुजरात चुनाव शायद ही कोई मसला बचा होगा जब शिवसेना, बीजेपी पर न बरसी हो. राष्ट्रपति चुनाव में तो इस बार भी ऐसा लग रहा था कि पिछली बार की तरह एनडीए उम्मीदवार के खिलाफ वोट देगी - लेकिन आखिर तक मान गयी. गुजरात चुनाव के दौरान भी शिवसेना ने मोदी पर हमला बोलते हुए थका हुआ बताया और राहुल गांधी को पीएम मैटीरियल बताया था.

अब तक इस तरह की बातें हमेशा शिवसेना के मुखपत्र सामना के जरिये, अक्सर पार्टी प्रवक्ता संजय राउत और कभी कभार शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के मुहं से भी सुनने को मिलती रही हैं, लेकिन इस बार मामला अलग लग रहा है. ताजातरीन मोर्चा संभाला है - ठाकरे परिवार की तीसरी पीढ़ी के युवा जोश आदित्य ठाकरे ने.

मुंबई से करीब ढाई सौ किलोमीटर दूर अहमदनगर में एक रैली में आदित्य ठाकरे बीजेपी से अलग होने की डेडलाइन दी - और फिर अपने बूते सत्ता में लौटने का दावा भी किया. आदित्य ठाकरे ने कहा, ''शिवसेना एक साल के अंदर सरकार से बाहर हो जाएगी और फिर अपने बलबूते पावर में लौटेगी.'' हालांकि, ये सब कब और कैसे होगा इस बारे में, उन्होंने बताया, फैसला शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ही लेंगे.

राहुल गांधी की तारीफों के अलावा शिवसेना के बीजेपी से दूर जाने का एक संकेत तब भी मिला जब उद्धव और आदित्य ठाकरे ने ममता बनर्जी से उनके होटल पहुंच कर मुलाकात की.

शिवसेना नेताओं की ममता से मुलाकात के बाद दोनों ही पक्षों से कोई बयान तो नहीं आया, लेकिन अंदर ही अंदर कोई खिचड़ी पकने के कयास तो जरूर लगाये गये. शिवसेना द्वारा राहुल गांधी की तारीफ कांग्रेस का कहना है कि इसे इस तरह समझा जाना चाहिये कि नये कांग्रेस अध्यक्ष के सकारात्मक नेतृत्व को महसूस किया जाने लगा है.

सवाल ये है कि क्या शिवसेना भी उस गठबंधन का हिस्सा हो सकती है जिसमें कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस होंगे. कांग्रेस की तरफ से तो सॉफ्ट हिंदुत्व वाली हरकते तो नजर आने लगी हैं, लेकिन ममता बनर्जी ने तो ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है. तो क्या शिवसेना अपने हार्डकोर्र हिंदू एजेंडा को छोड़ने पर विचार कर रही है.

महाराष्ट्र से बाहर बोले तो!

आदित्य की बातों पर गौर करें तो लगता है कि शिवसेना अपनी रीजनल पार्टी की छवि से उबरना चाहती है - और उसे राष्ट्रीय स्वरूप देने की कोशिश में है. हालांकि, शिवसेना के अब तक के तेवर को देखते हुए एकबारगी किसी को भी यकीन करना मुश्किल हो सकता है.

कितनी पकी मुलाकात के बाद खिचड़ी...

महाराष्ट्र से बाहर पैर पसारने के बारे में आदित्य ठाकरे कहते हैं कि जिस तरह शिवसेना ने गोवा में चुनाव लड़ा उसी तरह मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी लड़ सकते हैं. केरल को लेकर भी उनकी करीब करीब यही राय है. वैसे ये सुन कर थोड़ा अजीब लगता है कि लेफ्ट के गढ़ में बीजेपी को नाको चने चबाने पड़ रहे हैं - और केरल का मामला दिल्ली तक उठाना पड़ रहा है, ऐसे में शिवसेना इस तरह की बातें किस दम पर कर रही है. आदित्य ठाकरे का ये भी कहना है कि उनकी पार्टी को यूपी, बिहार और जम्मू कश्मीर में भी अच्छे वोट मिले हैं - और उनके पास विस्तार की कारगर योजनाएं हैं.

मालूम नहीं आदित्य ठाकरे किस बूते ऐसे दावे कर रहे हैं? या फिर शिवसैनिकों हवाई किले दिखाकर उनकी हौसलाअफजाई कर रहे हैं. हकीकत तो ये है कि बीजेपी ने महाराष्ट्र में ही शिवसेना को ठिकाने लगा दिया है. पहले विधानसभा में फिर बीएमसी और निकायों में भी.

शिवसेना की बीजेपी छोड़ने की धमकियों का माखौल उड़ाते हुए कांग्रेस विधायक नितेश राणे ने गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड को एक पत्र भी लिखा था - और बार बार धमकी देकर भी बीजेपी न छोड़ने को लेकर शिवसेना का नाम दर्ज करने को कहा था.

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तो इसलिए अहम है "नवाजुद्दीन" का "ठाकरे" बन जाना..

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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