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अब शिवसेना को नज़रअंदाज़ करने का समय आ गया है

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 24 सितम्बर, 2017 04:27 PM
  • 24 सितम्बर, 2017 04:27 PM
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हरियाणा में शिवसैनिकों ने जो किया उसपर हमें ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए और उसे सिरे से इग्नोर कर देना चाहिए, यूं भी आजादी के दिन से लेकर अब तक हम रोजाना कई सारी चीजों और कई सारी बातों को नजरअंदाज करते चले आ रहे हैं.

बात आज सुबह की है. हुआ कुछ यूं कि, गूगल न्यूज पर खबरें ब्राउज करते हुए एक ऐसी खबर आंखों के सामने से गुजरी, जिसको पढ़कर गुस्सा नहीं आया, बल्कि हंसी आई. हंसी इसलिए भी आई कि, जिसे खबर कहा जा रहा है. उसमें खबर जैसा कुछ नहीं है और जिसको बताने का उद्देश्य केवल इतना है कि एक समुदाय, दूसरे समुदाय द्वारा की गयी इस हरकत से आहत हो और कुछ ऐसा कदम उठा ले जिससे आपसी सौहार्द बिगड़ जाए और हम फिर दशकों पीछे हो जाएं.

बात बहुत सीधी है, मगर सीधी बात समझने के लिए खबर समझना बहुत जरूरी है. खबर है कि, नवरात्र के मद्देनजर शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने गुरुग्राम में 600 चिकेन और मीट शॉप को बंद करा दिया है. बताया जा रहा है कि शिवसेना के कार्यकर्ता पालम विहार में इक्ट्ठा हुए जहां उन्होंने सूरत नगर, अशोक विहार, सेक्टर 5 और 9, पटौदी चौक, जैकबपुरा, सदर बाज़ार, कंडसा अनाज मंडी, बस स्टैंड डीएलएफ एरिया, सोहना और सेक्टर 14 मार्केट स्थित कई दुकानों को बंद करा दिया.

शिव सैनिकों ने जो किया उसे सस्ती लोकप्रियता मानकर हमें उसे इग्नोर कर देना चाहिए

खबर इतनी ही थी अब सीधी बात का रुख करते हैं. सबसे पहले तो ये कि हमें इस खबर या इस तरह की खबरों को नजरंदाज कर देना चाहिए, ऐसी खबरों को इग्नोर करने की सबसे बड़ी वजह ये भी है कि जहां एक तरफ ये एक राजनीतिक दल के लिए सस्ती लोकप्रियता पाकर मीडिया में बने रहने का माध्यम है तो वहीं दूसरी तरफ ये बात देश के हर उस नागरिक को प्रभावित कर सकती है जो अमन और सुकून से रहकर अपना जीवन यापन करना चाहता है.

व्यक्तिगत तौर पर मैं इस खबर को पढ़कर इसे दो तरीकों से देख रहा हूं पहला ये कि क्या शिवसैनिक संविधान और उस संविधान में लिखी बातों और अधिकारों को भूल गए हैं और एक ऐसी व्यवस्था चाहते हैं जिसमें सब कुछ उनकी मर्जी से चले और कुछ भी उनके खिलाफ न हो....

बात आज सुबह की है. हुआ कुछ यूं कि, गूगल न्यूज पर खबरें ब्राउज करते हुए एक ऐसी खबर आंखों के सामने से गुजरी, जिसको पढ़कर गुस्सा नहीं आया, बल्कि हंसी आई. हंसी इसलिए भी आई कि, जिसे खबर कहा जा रहा है. उसमें खबर जैसा कुछ नहीं है और जिसको बताने का उद्देश्य केवल इतना है कि एक समुदाय, दूसरे समुदाय द्वारा की गयी इस हरकत से आहत हो और कुछ ऐसा कदम उठा ले जिससे आपसी सौहार्द बिगड़ जाए और हम फिर दशकों पीछे हो जाएं.

बात बहुत सीधी है, मगर सीधी बात समझने के लिए खबर समझना बहुत जरूरी है. खबर है कि, नवरात्र के मद्देनजर शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने गुरुग्राम में 600 चिकेन और मीट शॉप को बंद करा दिया है. बताया जा रहा है कि शिवसेना के कार्यकर्ता पालम विहार में इक्ट्ठा हुए जहां उन्होंने सूरत नगर, अशोक विहार, सेक्टर 5 और 9, पटौदी चौक, जैकबपुरा, सदर बाज़ार, कंडसा अनाज मंडी, बस स्टैंड डीएलएफ एरिया, सोहना और सेक्टर 14 मार्केट स्थित कई दुकानों को बंद करा दिया.

शिव सैनिकों ने जो किया उसे सस्ती लोकप्रियता मानकर हमें उसे इग्नोर कर देना चाहिए

खबर इतनी ही थी अब सीधी बात का रुख करते हैं. सबसे पहले तो ये कि हमें इस खबर या इस तरह की खबरों को नजरंदाज कर देना चाहिए, ऐसी खबरों को इग्नोर करने की सबसे बड़ी वजह ये भी है कि जहां एक तरफ ये एक राजनीतिक दल के लिए सस्ती लोकप्रियता पाकर मीडिया में बने रहने का माध्यम है तो वहीं दूसरी तरफ ये बात देश के हर उस नागरिक को प्रभावित कर सकती है जो अमन और सुकून से रहकर अपना जीवन यापन करना चाहता है.

व्यक्तिगत तौर पर मैं इस खबर को पढ़कर इसे दो तरीकों से देख रहा हूं पहला ये कि क्या शिवसैनिक संविधान और उस संविधान में लिखी बातों और अधिकारों को भूल गए हैं और एक ऐसी व्यवस्था चाहते हैं जिसमें सब कुछ उनकी मर्जी से चले और कुछ भी उनके खिलाफ न हो. दूसरा ये कि वो दुकानदार जिनकी दुकानें जबरन बंद कराई गयी हैं उन्होंने आपसी सहमती बनाते हुए अपनी मर्जी से दुकान क्यों बंद नहीं कर दी. उन दुकानदारों को खुद ये सोचना था कि यूं भी इस दौरान धंधा डाउन रहता है इससे बेहतर वो छुट्टी पर चले जाते और वापस आने के बाद जब वो दुकान खोलते तो चिकेन मटन बेचने से पहले सबका आधार कार्ड चेक करते.'

हरियाणा में जो हुआ उसको देखकर एक बात साफ है कि शायद शिव सैनिकों ने संविधान नहीं पढ़ा है

कहा जा सकता है कि समस्या न तो चिकेन, मटन में है न ही नवरात्र और रमजान में. समस्या लोगों की सोच में हैं आज सोशल मीडिया के इस युग में लोगों के पास स्मार्ट फोन और स्मार्ट वॉच तो आ गए मगर बदकिस्मती ये कि वो अपनी सोच स्मार्ट नहीं कर पाए. कह ये भी सकते हैं कि इंडिया से न्यू इंडिया की तरफ बढ़ रहे हम लोग खाने पीने और पहनने ओढ़ने से ऊपर उठ ही नाही पाए हैं या शायद हम इससे ऊपर उठाना ही नहीं चाहते.

आप शायद मानें नहीं मगर कभी भी जब फुर्सत के क्षणों में हों तो इस बात पर गौर करियेगा कि क्या ऐसे कृत्यों से हम विकास के मार्ग पर चल पाएंगे न्यू इंडिया की तरफ बढ़ पाएंगे तो शायद जवाब न में आए.

बहरहाल, मैं आपका नहीं जानता अपनी कहता हूं मैंने इस खबर को पढ़ा और पढ़ के इग्नोर कर दिया. मीट की दुकानें बंद हों या खुली इससे मुझे फर्क नहीं पड़ता. हां मगर इससे फर्क जरूर पड़ता है जब ऐसी हरकतें हों और सबको साथ लेकर चलने वाले मेरे इस देश का नाम इस तरह खराब हो और लोग चेहरे पर एक बेशर्म हंसी लिए हुए बस उसे देखते रहें.

अंत में अपनी बात खत्म करते हुए मैं बस इतना ही कहना चाहूंगा कि यदि आप वाकई अपने देश का हित चाहते हों और उसे विकासशील से विकसित होते देखने के सपने अपनी आंखों में संजोए हों तो ऐसी खबरों और ऐसीखबरों को अंजाम देकर मीडिया में जगह पाने वाले लोगों से बचिए. यकीन मानिए समाज के लिए सबसे बड़ा खतरा और कुछ नहीं बस ऐसी विकृत मानसिकता वाले लोग हैं. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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