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कामरेड, समाजवादी, अम्बेडकरवादी, नेहरूवादियों का कॉकटेल तैयार करेगी भाजपा

    • नवेद शिकोह
    • Updated: 17 जुलाई, 2019 06:03 PM
  • 17 जुलाई, 2019 06:03 PM
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डॉक्टर राम मनोहर लोहिया की विरासत के वारिस कहे जाने वाले समाजवादी नेता और पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चंद्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर ने भी भाजपा का दामन थाम लिया. नीरज के भाजपा में जाने को अखिलेश यादव की एक बड़ी हार माना जा रहा है.

सबका साथ-सबका विकास, सबका विश्वास... भाजपा अपनी इस कथनी और करनी मे कोई फर्ख नहीं रखना चाहती. भाजपा के विशाल समुंद्र में विरोधी दलों की विचारधारा भी समायोजित होती दिख रही है. अम्बेडकरवादियों से लेकर नेहरुवादी, लोहियावादी यहां तक वामपंथी भी भाजपापंथी होते जा रहे हैं. पिछले कुछ वर्षों में भाजपा में विभिन्न दलों के इतने ज्यादा नेताओं का शामिल होना एक रिकार्ड है. पश्चिम बंगाल और यूपी जैसे सूबों के क्षेत्रीय दलों में इतनी टूटफूट दिखाई दे रही है कि लग रहा है ये दल किस्तों में भाजपा मे विलय न कर लें. राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस की पतली हालत तो जगजाहिर है लेकिन पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ टीएमसी और यूपी के विपक्षी दल समाजवादी पार्टी लगता है भाजपा के समुंद्र की लहरों में डगमगा रही है. डर है कहीं धीरे- धीरे ये गहरा समुंद्र एक एक करके सबको अपनी बाहों मे ना ले ले.

टीएमसी के विधायक भाजपाई हो ही रहे थे कि समाजवादी पार्टी का एक मजबूत स्तम्भ भगवाधारी हो गया. समाजवादी की कल्पना को साकार करने वाले डा. राम मनोहर लोहिया की विरासत के वारिस कहे जाने वाले समाजवादी नेता और पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चंद्रशेखर के वारिस (पुत्र) नीरज शेखर ने भी भाजपा का दामन थाम लिया. वो समाजवादी पार्टी के स्तम्भ थे. सपा ने उन्हें राज्यसभा भेजा था. राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफा देकर वो भाजपा मे शामिल हो गए. सपा को इस बात का ही बड़ा झटका नहीं लगा है बल्कि पार्टी को इस बात का ज्यादा खतरा बना हुआ है कि नीरज शेखर के नक्शेकदम पर चलने के लिए समाजवादियों में होड़ लगी है.

नीरज शेखर के भाजपा में जाने से समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव को एक बड़ा झटका लगा है

स्वर्गीय चंद्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर खाटी समाजवादी और जनाधार वाले नेता हैं. उन्होंने 2007 के उपचुनाव मे बलिया के...

सबका साथ-सबका विकास, सबका विश्वास... भाजपा अपनी इस कथनी और करनी मे कोई फर्ख नहीं रखना चाहती. भाजपा के विशाल समुंद्र में विरोधी दलों की विचारधारा भी समायोजित होती दिख रही है. अम्बेडकरवादियों से लेकर नेहरुवादी, लोहियावादी यहां तक वामपंथी भी भाजपापंथी होते जा रहे हैं. पिछले कुछ वर्षों में भाजपा में विभिन्न दलों के इतने ज्यादा नेताओं का शामिल होना एक रिकार्ड है. पश्चिम बंगाल और यूपी जैसे सूबों के क्षेत्रीय दलों में इतनी टूटफूट दिखाई दे रही है कि लग रहा है ये दल किस्तों में भाजपा मे विलय न कर लें. राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस की पतली हालत तो जगजाहिर है लेकिन पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ टीएमसी और यूपी के विपक्षी दल समाजवादी पार्टी लगता है भाजपा के समुंद्र की लहरों में डगमगा रही है. डर है कहीं धीरे- धीरे ये गहरा समुंद्र एक एक करके सबको अपनी बाहों मे ना ले ले.

टीएमसी के विधायक भाजपाई हो ही रहे थे कि समाजवादी पार्टी का एक मजबूत स्तम्भ भगवाधारी हो गया. समाजवादी की कल्पना को साकार करने वाले डा. राम मनोहर लोहिया की विरासत के वारिस कहे जाने वाले समाजवादी नेता और पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चंद्रशेखर के वारिस (पुत्र) नीरज शेखर ने भी भाजपा का दामन थाम लिया. वो समाजवादी पार्टी के स्तम्भ थे. सपा ने उन्हें राज्यसभा भेजा था. राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफा देकर वो भाजपा मे शामिल हो गए. सपा को इस बात का ही बड़ा झटका नहीं लगा है बल्कि पार्टी को इस बात का ज्यादा खतरा बना हुआ है कि नीरज शेखर के नक्शेकदम पर चलने के लिए समाजवादियों में होड़ लगी है.

नीरज शेखर के भाजपा में जाने से समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव को एक बड़ा झटका लगा है

स्वर्गीय चंद्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर खाटी समाजवादी और जनाधार वाले नेता हैं. उन्होंने 2007 के उपचुनाव मे बलिया के निवर्तमान सांसद विरेन्द्र सिंह को हराया. 2009 मे मनोज सिन्हा को हराया. इसके बाद वो चुनाव हारे भी. जिसके फलस्वरूप समाजवादी पार्टी ने इन्हें राज्यसभा भेजा. सपा का साथ छोड़कर भाजपा का दामन थामने वाले नीरज शेखर के बाद कई समाजवादी, अम्बेडकरवादी और नेहरूवादियों की अंतरआत्मा  जागने का एलान कभी भी हो सकता है. सपा के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक पार्टी के कई और दिग्गज ही नहीं बल्कि मुलायम परिवार के जाने-पहचाने चेहरे भी भगवा रंग धारण करने के लिए बेक़रार हैं.

सपा संरक्षण मुलायम सिंह यादव की छोटी बहु अर्पणा यादव अपने कुंबे के साथ भाजपा का दामन थाम सकती हैं. बताया जाता है कि अपर्णा ने लखनऊ की कैंट सीट से चुनाव लड़ने की खाहिश ज़ाहिर की है. उनकी एंट्री के लिए भाजपा शीर्ष नेतृत्व में विचार चल रहा है. ज्ञात हो कि लखनऊ के कैंट सीट की विधायक रही रीता बहुगुणा  इलाहाबाद से लोकसभा चुनाव जीतने के बाद सांसद हो गयी हैं इसलिए लखनऊ की कैंट विधानसभा सीट के लिए चुनाव होना है.

पिछले विधानसभा चुनाव में अपर्णा यादव कैंट सीट से पूरे दमखम के साथ सपा उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ीं थी. किंतु भाजपा की रीता बहुगुणा ने इन्हें पराजित कर दिया था.पार्टी सूत्र बताते हैं कि अपर्णा यादव के अतिरिक्त सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और प्रसपा अध्यक्ष शिवपाल यादव के खेमो के बहुत सारे पिछड़ी जातियों के नेता भाजपा मे जाने की जुगत मे हैं.

चर्चाएं हैं कि भाजपा का दरवाजा बहुत सारे लोग खटखटा रहे हैं, लेकिन कुछ ख़ास लोगों के लिए ही खोला जा रहा है. उगते सूरज को सलाम करने वालों कतार लगी है. विभिन्न विपक्षी दलों के तमाम नेता पर्दे के पीछे से भाजपा को सलाम कर रहे हैं. सलाम मतलब- सलामती की दुआ. वो खुशकिस्मत हैं जिनको भाजपा सलामअलैकुम का जवाब देते हुए कह रही है- 'वाअलैकुम अस्सलाम'. यानी हम भी आपकी सलामती की दुआ चाहते हैं. फिलहाल मौजूदा वक्त के सियासी हालात तो यही कहते हैं कि किसी भी नेता के राजनीतिक करियर को भाजपा ही सलामत रख सकती है.

ठंडे और कमजोर विपक्षी खेमों में मायूस बैठे तमाम विपक्षी नेता अपना अंधकारमय भविष्य देखकर पाला बदलने की फिराक़ मे हैं. किंतु भाजपा हर किसी के राजनैतिक करियर की सलामती के लिए वाअलैकुम अस्सलाम नहीं कह सकती. कहां किसकी जरूरत है. कहा कौन उपयोगी है. ये सब देखकर ही भाजपा किसी को गेट पास देगी. सत्तारूढ़ भाजपा से रिश्ता जोड़ने की तमन्ना लिये कई पार्टी के नेता स्वयंवर प्रतियोगिता में सेहरे से मुंह छिपाये खड़े हैं.

जो खरा उतरता है उसी का चेहरा सामने आयेगा और भाजपा से रिश्ता क़ायम कर सकेगा. इस सियासी स्वयंवर में विजयी होने के लिए कुछ विशेष खूबियों का होना ज़रूरी है. विशाल जनसमर्थन को कायम रखने के लिए भाजपा को सबका साथ और हर विचारधारा के मजबूत नेता का इंतजार है. पश्चिम बंगाल के अधिकांश कामरेड पहले ही भाजपाई हो गये थे. अब टीएमसी के विधायकों को भी राष्ट्रवाद से महकते कमल ने आकर्षित कर दिया. समता मूलक विचारधारा वाले अम्बेडकरवादियों से लेकर समाजवादियों और यहां तक कि नेहरुवादियों को भी सत्ता के सेज पर बैठी भाजपा आकर्षित कर रही है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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