• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

बीजेपी के सदस्यता अभियान का फोकस वोटर नहीं, विपक्षी नेताओं पर!

    • आईचौक
    • Updated: 13 जुलाई, 2019 05:01 PM
  • 13 जुलाई, 2019 05:01 PM
offline
आम चुनाव से पहले बीजेपी ने संपर्क फॉर समर्थन मुहिम चलायी थी. फिलहाल बीजेपी का सदस्यता अभियान जोरों पर है - लेकिन ज्यादा असरदार तो वो लग रहा है जो गोवा और कर्नाटक में चल रहा है.

बीजेपी फिर से सदस्यता अभियान चला रही है. नया लक्ष्य सदस्यों की संख्या 20 करोड़ पहुंचाने की है. नवंबर, 2014 में बीजेपी ने इसके लिए 10 करोड़ का लक्ष्य रखा था और जुलाई, 2015 में बताया कि अप्रैल, 2015 तक सदस्यों की संख्या 11 करोड़ पार कर चुकी थी. सफर थमा नहीं, ठहरा भी नहीं. सफर चलता रहा.

बीजेपी ने जो 11 करोड़ सदस्य बनाये थे उनमें 1.38 करोड़ तो सिर्फ उत्तर प्रदेश से थे. जब सदस्यों का सत्यापन होने लगा तो मालूम हुआ 18 लाख सदस्यों का फर्जीवाड़ा हो गया है, लिहाजा ऐसे सदस्यों को हटाने के बाद यूपी से 1.20 सदस्य ही सही माने गये. ऐसे वाकये दोबारा न हों इसके लिए बीजेपी ने कई स्तर पर कुछ सेफगार्ड बनाये हुए है और सत्यापन को भी कड़ा किया गया है.

6 जुलाई, 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी से सदस्यता अभियान की शुरुआत की. दरअसल, 6 जुलाई को जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती होती है. 6 से 10 जुलाई तक सामान्य सदस्यता अभियान रहा और अब सक्रिय सदस्यता अभियान चल रहा है जो 30 अगस्त तक चलेगा. सक्रिय सदस्य वे होते हैं जो कम से कम 50 लोगों को पार्टी की सदस्यता दिलाते हैं. बीजेपी के संविधान के अनुसार सक्रिय सदस्य ही संगठन में किसी भी पद के लिए होने वाले चुनाव में हिस्सा ले सकते हैं.

बीजेपी भले ही औपचारिक तौर पर घोषणा करके सदस्यता अभियान चलाये, लेकिन लगता तो ऐसा है कि ये पूरे साल चलता रहता है. जैसे बीजेपी नेतृत्व और उसके चलते संगठन दोनों पूरे 12 महीने चुनावी मोड में रहते हैं - सदस्यता अभियान भी कभी होल्ड पर नहीं होता.

आखिर गोवा में हाल फिलहाल क्या हुआ है. वो भी तो सदस्यता अभियान ही है. सामान्य और सक्रिय कौन कहे, गोवा वाले तो अतिसक्रिय सदस्य हैं जिन्होंने बीजेपी में आते ही सूबे की सत्ता में उसकी सरकार को बहुमत में तब्दील कर दिया है. कर्नाटक में ये प्रक्रिया अभी धीरे धीरे रस्मो-रिवाज से गुजर रही है लेकिन अंतिम पड़ाव तो वही है.

गोवा में शुचिता के सवाल उठाने का अब क्या मतलब

जब...

बीजेपी फिर से सदस्यता अभियान चला रही है. नया लक्ष्य सदस्यों की संख्या 20 करोड़ पहुंचाने की है. नवंबर, 2014 में बीजेपी ने इसके लिए 10 करोड़ का लक्ष्य रखा था और जुलाई, 2015 में बताया कि अप्रैल, 2015 तक सदस्यों की संख्या 11 करोड़ पार कर चुकी थी. सफर थमा नहीं, ठहरा भी नहीं. सफर चलता रहा.

बीजेपी ने जो 11 करोड़ सदस्य बनाये थे उनमें 1.38 करोड़ तो सिर्फ उत्तर प्रदेश से थे. जब सदस्यों का सत्यापन होने लगा तो मालूम हुआ 18 लाख सदस्यों का फर्जीवाड़ा हो गया है, लिहाजा ऐसे सदस्यों को हटाने के बाद यूपी से 1.20 सदस्य ही सही माने गये. ऐसे वाकये दोबारा न हों इसके लिए बीजेपी ने कई स्तर पर कुछ सेफगार्ड बनाये हुए है और सत्यापन को भी कड़ा किया गया है.

6 जुलाई, 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी से सदस्यता अभियान की शुरुआत की. दरअसल, 6 जुलाई को जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती होती है. 6 से 10 जुलाई तक सामान्य सदस्यता अभियान रहा और अब सक्रिय सदस्यता अभियान चल रहा है जो 30 अगस्त तक चलेगा. सक्रिय सदस्य वे होते हैं जो कम से कम 50 लोगों को पार्टी की सदस्यता दिलाते हैं. बीजेपी के संविधान के अनुसार सक्रिय सदस्य ही संगठन में किसी भी पद के लिए होने वाले चुनाव में हिस्सा ले सकते हैं.

बीजेपी भले ही औपचारिक तौर पर घोषणा करके सदस्यता अभियान चलाये, लेकिन लगता तो ऐसा है कि ये पूरे साल चलता रहता है. जैसे बीजेपी नेतृत्व और उसके चलते संगठन दोनों पूरे 12 महीने चुनावी मोड में रहते हैं - सदस्यता अभियान भी कभी होल्ड पर नहीं होता.

आखिर गोवा में हाल फिलहाल क्या हुआ है. वो भी तो सदस्यता अभियान ही है. सामान्य और सक्रिय कौन कहे, गोवा वाले तो अतिसक्रिय सदस्य हैं जिन्होंने बीजेपी में आते ही सूबे की सत्ता में उसकी सरकार को बहुमत में तब्दील कर दिया है. कर्नाटक में ये प्रक्रिया अभी धीरे धीरे रस्मो-रिवाज से गुजर रही है लेकिन अंतिम पड़ाव तो वही है.

गोवा में शुचिता के सवाल उठाने का अब क्या मतलब

जब सत्ता की सियासत करनी हो तो आदर्श और मूल्यों की राजनीति के लिए जगह कम पड़ती है. कभी कभी तो ऐसी बातें राह का रोड़ा भी बनने लगती हैं. जब कामयाबी हासिल करनी हो तो रोड़े को तो हटा ही दिया जाएगा. बीजेपी के अघोषित सदस्यता अभियान जो अभी अभी गोवा में पूरा हुआ है, उसकी यही खासियत सामने आ रही है. गोवा में भी बीजेपी ने कांग्रेस के दागी नेताओं के पाप धोने जैसा ही काम किया है और अपने ही स्थानीय नेताओं की नाराजगी झेलनी पड़ रही है.

गोवा में बीजेपी की सरकार बहुमत में बदल तो गयी, लेकिन सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है. गोवा विधानसभा के पूर्व स्पीकर और मनोहर पर्रिकर सरकार में मंत्री रहे राजेन्द्र आर्लेकर खुल कर इसके विरोध में आ गये हैं. दरअसल, आर्लेकर को कांग्रेस विधायकों को बीजेपी में लाने से नहीं, लेकिन दो नामों पर कड़ा ऐतराज है - अतांसियो बाबुश मोनसेराते और चंद्रकांत कावलेकर.

आर्लेकर की ही तरह मनोहर पर्रिकर के बेटे उत्पल पर्रिकर ने भी बीजेपी नेतृत्व के इस फैसले पर आपत्ति जतायी है. उत्पल पर्रिकर का कहना है कि जिन राजनीतिक मानदंडों की स्थापना उनके पिता ने की, गोवा में अब उसका अंत हो गया है. आर्लेकर को आपत्ति इस बात से भी है कि कांग्रेस विधायकों को बीजेपी में शामिल करने को लेकर कोर कमेटी में भी कोई विचार नहीं हुआ. मीडिया रिपोर्टों से मालूम होता है कि बीजेपी नेता एक संगठन मंत्री पर उंगली उठा रहे हैं और पार्टी नेतृत्व को गुमराह करने का आरोप लगा रहे हैं. रिपोर्ट ये भी है कि गोवा बीजेपी के कई नेता दलबदल के इस खेल में पैसे के रोल का भी शक जता रहे हैं.

1. कौन हैं अतांसियो मोनसेराते : 2016 के एक मामले में बाबुश मोनसेराते पर 50 लाख रुपये में गोवा की एक नाबालिग लड़की को खरीद कर कई दिनों तक बलात्कार और बंदी बनाये रखने का आरोप है. बवाल बढ़ा तो बाबुश मोनसेराते को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया जहां उन्हें हफ्ते भर बिताने पड़े थे. पॉक्सो एक्ट के तहत चल रहा ये मामला अभी खत्म नहीं हुआ है.

अब तो बाबुश मोनसेराते से गोवा के लोगों को कोई समस्या नहीं होनी चाहिये, है कि नहीं?

मनोहर पर्रिकर के निधन के बाद बीजेपी ने उनके बेटे को टिकट न देकर सिद्धार्थ कुनकोलियेकर को उम्मीदवार बनाया था. जिस पणजी सीट को 25 साल तक मनोहर पर्रिकर ने बीजेपी के नाम कर रखा था, बाबुश मोनसेराते ने कांग्रेस के नाम कर दिया. मजे की बात तो ये कि बीजेपी ने बलात्कार के आरोपी से गोवा को बचाओ मुहिम भी जोर शोर से चलायी थी और मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत का बयान तो और भी गंभीर रहा. प्रमोद सावंत का इल्जाम रहा, मोनसेराते अगर चुनाव जीते तो गोवा में कोई लड़की सुरक्षित नहीं रहेगी.

2. कौन हैं चंद्रकांत कावलेकर : कांग्रेस विधायक चंद्रकांत बाबू कावलेकर बीजेपी में आने से पहले गोवा विधानसभा में विपक्ष के नेता हुआ करते थे. खास बात ये है कि गोवा की सियासत में चंद्रकांत कावलेकर को 'मटका किंग' के नाम से जाना जाता है. दो साल पहले पुलिस की छापेमारी में उनके घर से जुए के कूपन भी बरामद हुए थे.

चंद्रकांत कावलेकर की आपराधिक पृष्ठभूमि तो बीजेपी के आरोप ही बताते हैं. बीजेपी कावलेकर पर जमीन हड़पने और दूसरे राज्यों में भी अवैध संपत्ति अर्जित करने का आरोप लगाती रही है.

वैसे इन बातों का अब तो कोई मतलब रहा नहीं. ये दोनों ही नेता अब बीजेपी के विधायक हैं क्योंकि कांग्रेस से दो तिहाई टूट कर आये हैं. चंद्रकांत कावलेकर के अब गोवा के डिप्टी सीएम बनने की भी चर्चा है.

एक गंगा की मौज बाकी जमुना की धारा

बीजेपी भारतीय राजनीति की वो गंगा बन चुकी है जिसमें एक बार डुबकी लगाने से तो नहीं - लेकिन बार बार के संकल्प से कोई भी नेता पवित्र हो जाता है. वो किसी भी दल का क्यों न हो, उस पर कितने भी लांछन क्यों न लगे हों - भगवा ओढ़ते ही उसके सारे पूर्व कर्म ड्रायवॉश की तरह ऑटोवॉश हो जाते हैं.

3 फरवरी, 2019 टॉम वडक्कन ने एक ट्वीट में यही बात कही थी. ये बात उस दौर की है जब टॉम वडक्कन केरल में कांग्रेस के बड़े नेता हुआ करते थे. महीना भर नहीं बीता और आम चुनाव की सरगरमियां शुरू होते ही टॉम वडक्कन भी भगवा धारण कर चुके थे. हालांकि, बड़े नेता होने को लेकर राहुल गांधी ने कह दिया था कि वो कोई बड़े नेता नहीं थे.

...और एक दिन टॉम वडक्कन ने भी वैसा ही किया

टॉम वडक्कन ने जब बीजेपी ज्वाइन किया उसके आगे पीछे तमाम दलों से नेताओं ने बीजेपी का रूख किया और हाथों हाथ लिये गये. उस वक्त भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर था और युद्ध जैसे हालात बन चुके थे. ये सब बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद की बातें हैं. तब एक और भी खास चीज देखने को मिली थी, जैसे ही कोई नेता बीजेपी ज्वाइन करता, कहता - एयर स्ट्राइक को लेकर अपने पुराने नेता के रूख से उसे भारी दुख पहुंचा और मजबूरन उसे बीजेपी ज्वाइन करने का फैसला लेना पड़ा.

मुकुल रॉय कभी ममता बनर्जी के करीबी हुआ करते थे, लेकिन केंद्रीय जांच एजेंसियों के फेर में ऐसे बुरे फंसे कि पाल धुलवाने के लिए आखिरी रास्ता अपनाना पड़ा - और बीजेपी ज्वाइन कर लिया. पश्चिम बंगाल की आईपीएस अफसर भारती घोष के सामने भी ऐसी ही मजबूरी रही और वो भी मुकुल रॉय के बताये रास्ते पर ही चल पड़ीं - मंजिल तो पा लिया लेकिन मुश्किलें खत्म नहीं हो पायी हैं. वैसे मंजिलें और मुश्किलें तो जैसे सगी बहने हों, कोई कर भी क्या सकता है - धारा के साथ साथ चलते रहना है.

कीर्तिमान स्थापित करने के लिए अक्सर, कभी आदर्श रहे मानदंड़ों को भी नजरअंदाज कर पीछे छोड़ना पड़ता है. फिर तो लक्ष्य को हासिल करने के लिए सिद्धांतों से समझौते करने की मजबूरी हो जाती है. बीजेपी भी ऐसा ही तो कर रही है. कभी पार्टी विद डिफरेंस कहलाने वाली बीजेपी 'चाल, चरित्र और चेहरा' पर जोर दिया करती थी - गुजरते वक्त के साथ ये बातें इतना पीछे छूट चुकी हैं कि मुड़ के देखने पर भी नेतृत्व को शायद ही नजर आयें.

इन्हें भी पढ़ें :

मोदी ने मिशन-2022 से चुनाव-2024 का अभियान शुरू कर दिया है

BJP की 'पब्लिसिटी' पदयात्रा का सीधा फायदा 3 राज्यों को

राहुल गांधी के देखते-देखते MP-राजस्थान भी हो जाएंगे कांग्रेस-मुक्त



इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲