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मुजफ्फरपुर से देवरिया तक हुआ जुल्‍म सही में 'सरकार-प्रायोजित' लगता है

    • आईचौक
    • Updated: 07 अगस्त, 2018 08:55 PM
  • 07 अगस्त, 2018 08:55 PM
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जब देश में हर छह घंटे में रेप हों. सत्ता और विपक्ष राजनीति में उलझा हो. जिस मंत्री के विभाग में बलात्कार हो और वो ठीकरा विरोधियों पर फोड़े, फिर तो सुप्रीम कोर्ट ठीक ही कह रहा है - सब कुछ सरकार द्वारा प्रायोजित (State-sponsored) लगता है.

कहना मुश्किल है - बड़ा नर्क देवरिया में था या मुजफ्फरपुर में. सूबे दो हैं, सरकारें अलग हैं, जगहों के नाम भी अलग अलग हैं - लेकिन कहानी एक ही है. यहां तक कि घटनाओं के विवरण में से जगह का नाम मिटा दिया जाये तो समझना मुश्किल होगा कि कौन सी रिपोर्ट किस शेल्टर होम की है.

देवरिया और मुजफ्फरपुर दोनों ही घटनाएं संसद में गूंजी हैं. राजनीति अपनी जगह है, मगर जो पीड़ा सुप्रीम कोर्ट ने महसूस की है - हम सबका भी दर्द वही है और सवाल भी - ये हो क्या रहा है?

हर छह घंटे में बलात्कार

ये राहत की बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने मुजफ्फरनगर शेल्टर होम रेप कांड पर खुद ही संज्ञान लिया है, वरना गैर-राजनीतिक कार्यक्रमों की राजनीति तो पूरा देश देख ही रहा है.

सुप्रीम कोर्ट का भी वही सवाल है जो एक आम भारतीय का है - 'देशभर में यह क्या हो रहा है? लेफ्ट, राइट और सेंटर, सब जगह रेप हो रहा है.' मुजफ्फरपुर की घटना पर नीतीश कुमार अपने राजनीतिक विरोधियों को चाहे जो कह कर धिक्कारें, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को जमकर फटकार लगाई है. सुप्रीम कोर्ट देवरिया की घटना को लेकर भी उतना ही चिंतित है.

सच में जब देश में हर छह घंटे में एक बलात्कार की घटना हो रही हो तो स्थिति के बारे में क्या कहा जाये? NCRB यानी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि 2016 में पूरे देश में 38,947 महिलाएं बलात्कार की शिकार हुईं. इस बात का जिक्र भी सुप्रीम कोर्ट में ही हुआ.

सरकारी आंकड़े ही बताते हैं कि सबसे ज्यादा रेप मध्य प्रदेश में हो रहे हैं और दूसरा नंबर उत्तर प्रदेश का है. मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकारें हैं और मुजफ्फरपुर जो बिहार में हैं वहां नीतीश कुमार की सरकार है जिसमें बीजेपी भी साझीदार है.

नीतीश सरकार को फटकार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी रही, "राज्य सरकार 2004 से तमाम शेल्टर होम को पैसा दे रही है, लेकिन उन्हें पता ही नहीं है कि वहां क्या हो रहा है? उन्होंने कभी वहां निरीक्षण करने की भी आवश्यकता नहीं...

कहना मुश्किल है - बड़ा नर्क देवरिया में था या मुजफ्फरपुर में. सूबे दो हैं, सरकारें अलग हैं, जगहों के नाम भी अलग अलग हैं - लेकिन कहानी एक ही है. यहां तक कि घटनाओं के विवरण में से जगह का नाम मिटा दिया जाये तो समझना मुश्किल होगा कि कौन सी रिपोर्ट किस शेल्टर होम की है.

देवरिया और मुजफ्फरपुर दोनों ही घटनाएं संसद में गूंजी हैं. राजनीति अपनी जगह है, मगर जो पीड़ा सुप्रीम कोर्ट ने महसूस की है - हम सबका भी दर्द वही है और सवाल भी - ये हो क्या रहा है?

हर छह घंटे में बलात्कार

ये राहत की बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने मुजफ्फरनगर शेल्टर होम रेप कांड पर खुद ही संज्ञान लिया है, वरना गैर-राजनीतिक कार्यक्रमों की राजनीति तो पूरा देश देख ही रहा है.

सुप्रीम कोर्ट का भी वही सवाल है जो एक आम भारतीय का है - 'देशभर में यह क्या हो रहा है? लेफ्ट, राइट और सेंटर, सब जगह रेप हो रहा है.' मुजफ्फरपुर की घटना पर नीतीश कुमार अपने राजनीतिक विरोधियों को चाहे जो कह कर धिक्कारें, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को जमकर फटकार लगाई है. सुप्रीम कोर्ट देवरिया की घटना को लेकर भी उतना ही चिंतित है.

सच में जब देश में हर छह घंटे में एक बलात्कार की घटना हो रही हो तो स्थिति के बारे में क्या कहा जाये? NCRB यानी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि 2016 में पूरे देश में 38,947 महिलाएं बलात्कार की शिकार हुईं. इस बात का जिक्र भी सुप्रीम कोर्ट में ही हुआ.

सरकारी आंकड़े ही बताते हैं कि सबसे ज्यादा रेप मध्य प्रदेश में हो रहे हैं और दूसरा नंबर उत्तर प्रदेश का है. मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकारें हैं और मुजफ्फरपुर जो बिहार में हैं वहां नीतीश कुमार की सरकार है जिसमें बीजेपी भी साझीदार है.

नीतीश सरकार को फटकार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी रही, "राज्य सरकार 2004 से तमाम शेल्टर होम को पैसा दे रही है, लेकिन उन्हें पता ही नहीं है कि वहां क्या हो रहा है? उन्होंने कभी वहां निरीक्षण करने की भी आवश्यकता नहीं समझी."

इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है ये सारी गतिविधियों का प्रायोजक भी राज्य ही है जो सोचने का विषय है.

जैसे जुमला हो!

नक्सलवाद से लेकर आतंकवादियों का मामला हो या फिर कोई भी ऐसी घटना जिसमें गृह मंत्री राजनाथ सिंह की ओर से बयान अपेक्षित हो, कभी निराश नहीं होना पड़ता. राजनाथ सिंह पूरी गंभीरता के साथ मीडिया के सामने आते हैं और कहते हैं - 'दोषी बख्शे नहीं जाएंगे. कड़ी कार्रवाई होगी.' सोशल मीडिया पर ये बातें वैसे ही ली जा रही हैं जैसे किसी जमाने में नेताओं के 'विदेशी ताकतों का हाथ' वाले बयान लिये जाते रहे. वो दिन दूर नहीं जब ऐसी बातों पर लोग जुमला जितना भरोसा करने लगेंगे.

सब सरकारी महकमों के नाक के नीचे चलता रहा

देवरिया और मुजफ्फरपुर की घटनाओं पर विपक्षी दलों ने संसद में भी खूब हंगामा किया. जब हंगामा नहीं थम रहा था तो गृह मंत्री राजनाथ सिंह को सामने आना ही पड़ा - 'सरकार दोषियों को कड़ी सजा दिलवाएगी.' गृह मंत्री ने बताया भी कि किस तरह यूपी की योगी सरकार ने तुरंत कार्रवाई की. कार्रवाई तो हुई है. व्यवस्था ही ऐसी है कि जिम्मेदारी तो जिलाधिकारी की ही बनती है, लिहाजा हटा दिया गया है. बिहार का ही बाढ़ घोटाला याद कीजिए, फंसे तो गौतम गोस्वामी ही. सारे नेता साफ बच निकले क्योंकि दस्तावेजों में दस्तखत तो सिर्फ गौतम गोस्वामी के ही मिले थे.

...और राजनीति चालू आहे!

राजनाथ सिंह ने तो बस एक्शन का भरोसा दिलाया और अब तक हुई कार्रवाई का विवरण यूपी की महिला और बाल कल्याण मंत्री रीता बहुगुणा जोशी तो ठीकरा ही विरोधियों पर फोड़ दिया. मालूम नहीं वो क्यों भूल रही हैं कि योगी सरकार में मंत्री बनने से पहले वो भी उसी विरोधी खेमे का हिस्सा रहीं. तब भी जब सूबे में अखिलेश यादव की सरकार रही और उनके सीनियर मंत्री मोहम्मद आजम खां बलात्कार की हर घटना में बड़ी चालाकी से राजनीतिक ऐंगल खोज निकालते थे. एक बार तो आजम खां ने बलात्कार की घटनाओं को समाजवादी सरकार को बदनाम करने का टूल तक समझा डाला था. मामला इतना बढ़ा कि सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया.

अब जरा देवरिया शेल्टर होम रेप कांड पर रीता बहुगुणा जोशी के उत्तम विचार भी जान लीजिए, 'वे राजनीतिक दल इसे राजनीति का मुद्दा बना रहे हैं, जिनके संरक्षण में यह बालिका गृह चलता रहा.'

रीता बहुगुणा जोशी जरा समझाएंगी कि अगर बालिका गृह किसी राजनीतिक दल के नेता के संरक्षण में चल रहा था तो उनका अपना महकमा क्या कर रहा था? क्या रीता बहुगुणा जोशी इंतजार कर रही थीं कि अगर कुछ ऐसा वैसा हुआ तो वो किसी राजनीतिक दल या नेता पर दोष मढ़ अपना पल्ला झाड़ लेंगी. रीता बहुगुणा जोशी का ये बयान बेहद गैरजिम्मेदाराना समझा जाएगा?

विरोधियों के कंधे पर बंदूक रख अपनी राजनीति कब तक

जिस मंत्री के विभाग में ऐसी अमानवीय घटना होती है वो किसी राजनीतिक दल या नेता पर दोष लगाकर खुद के पाक साफ होने का दावा कैसे कर सकता है? उन्नाव रेप केस मिसाल है कि किस तरह आरोपियों को बचाने की आखिरी दम तक कोशिश की गयी. अगर हाई कोर्ट का चाबुक नहीं पड़ता तो आरोपों को अब तक झुठलाया जाता रहता और पुलिस अफसर माननीय से नीचे बात नहीं करते.

दिल्ली में आरजेडी, समाजवादी पार्टी और सीपीआई सांसदों ने संसद परिसर में तख्तियां लेकर प्रदर्शन किया - और बीजेपी सरकार पर जबानी हमले किये. अभी 5 अगस्त को ही तेजस्वी यादव की पहल पर विपक्षी नेता जंतर मंतर पर जुटे थे और मुजफ्फरपुर की घटना को लेकर हाथों में कैंडल लेकर विरोध जताया.

दिल्ली में ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी 'महिला अधिकार सम्मेलन' में हिस्सा ले रहे थे जहां मोदी सरकार पर हमले के लिए बलात्कार की घटनाओं का सहारा लिया. राहुल ने कहा, "प्रधानमंत्री रेप की घटनाओं पर कुछ नहीं बोलते... बीते चार साल में महिलाओं के साथ जो हुआ है वो पिछले 70 साल में नहीं हुआ..."

"समझ नहीं आया बेटी किससे बचानी थी?"

राहुल गांधी ने महिला आरक्षण से लेकर महिलाओं के मुद्दे पर आरएसएस को भी घेरा, "बीजेपी और आरएसएस की विचारधारा है कि केवल पुरुष देश को चलाएंगे और जहां किसी महिला के जुड़े होने की बात होती है, ये पीछे हट जाते हैं..."

महिला सम्मेलन भी राहुल गांधी ने एक बार फिर अपना आरोपयुक्त तंज कसा, "वे कहते हैं बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, हमें समझ नहीं आया बेटी किससे बचानी थी?"

गौरक्षक सड़क पर कहर ढाये पड़े हैं और गौशालों में गायें सामूहिक मौत मर रही हैं. किसानों की खुदकुशी थमने का नाम नहीं ले रही, दिल्ली तक का हाल ये है कि छोटी छोटी बच्चियां भूख की वजह से दम तोड़ रही हैं. जिन बच्चियों को सबसे ज्यादा सहारे की जरूरत रही, उनकी इज्जत के सौदे का ठेका दे दिया गया - और ठेका चलता रहे इसके लिए लगातार फंड भी दिये जाते रहे - क्या सरकार का काम यही सुनिश्चित करना है? एक जगह की बात होती तो कोई बात नहीं हर तरफ एक जैसी ही अंधेरगर्दी मची है. हर बात के लिए सुप्रीम कोर्ट को ही पहल करनी पड़ेगी तो वास्तव में सरकारों की जरूरत ही क्या है?

इन्हें भी पढ़ें :

मुज़फ्फरपुर बालिका गृह वाली अंधेरगर्दी कहीं और भी जारी है...

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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