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मेरी बच्चियां मुझे माफ़ करना!

    • निवेदिता शकील
    • Updated: 04 अगस्त, 2018 08:51 PM
  • 04 अगस्त, 2018 08:51 PM
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वे नींद की गोलियां देकर रात में तुम्हारी देह से गोश्त नोचते थे. कभी तुम नींद से लड़ते हुए विरोध करती थीं तो वे तुम्हें हंटर से पीटते सिगरेट से जलाते और गर्म लोहे से दागते. फिर भी नहीं मानतीं तो तुम्हारी हत्या कर देते.

मेरी बच्चियां मुझे माफ़ करना! हमसब तुम्हें बेरहम दुनिया में लेकर आये. तुम्हें बीमार, बर्बर और हिंसक समाज में लेकर आये. जहां हर रोज़ पूंजी का भयानक खेल खेला जा रहा है. इस दुनिया का क्या मतलब जिसने हमारी बच्चियों को योनी में बदल दिया. जहां हर रोज़ भेडिये उनकी देह से गोश्त नोच रहे थे. जहां रात डरावनी और दिन दुखों में डूबा हुआ हो. ये समय बर्बर विचारों और अश्लील पूंजी का समय है. हिंसक और मूल्यविहीन राजनीति के इस समय में हम तुम्हारे लिए न्याय का रास्ता नहीं तलाश पा रहे हैं.

ऐसी दुनिया लेकर हम क्या करेंगे मेरी बच्ची जहां तुम नहीं होगी, जहां तुम्हारी देह जिन्दा लाश होगी, जहां हजारों भेडिये होंगे तुम्हारी देह को नोचते रहेंगे. इस दुनिया को मर जाना चाहिए. क्योंकि आज हमें मरने से डर नहीं लगता. डर लगता है जीने से. इस तरह की तमाम हिंसा के पीछे भयानक विचार हैं. जो औरत को सिर्फ देह समझता है. बीमार और हिंसक विचार ने सोचने समझने के ढंग बदल दिये हैं.

मुझे मालूम है तुम जाने कितनी रातों से सोयी नहीं. वे नींद की गोलियां देकर रात में तुम्हारी देह से गोश्त नोचते थे. कभी तुम नींद से लड़ते हुए विरोध करती थीं तो वे तुम्हें हंटर से पीटते सिगरेट से जलाते और गर्म लोहे से दागते. फिर भी नहीं मानतीं तो तुम्हारी हत्या कर देते. ये बर्बर खेल 2013 से चल रहा था जिसमें सरकार, उसकी मिशनरी और ये बीमार समाज लगा हुआ था. ये सिर्फ बलात्कार नहीं है, ये भयानक विचार है जो बैठको में, बदबूदार बिस्तरों में जन्म लेता है.

अखबारों के लिए ये तबतक खबर नहीं थी जबतक तुम जीने के लिए लडती रहीं. अखबार और मीडिया के लिए मसाला नहीं थी तुम. जिसके माथे पर मां, बाप का साया नहीं हो, जो गरीब हो, अनाथ हो, जो रसूख वाले लोगों के मुहं का निवाला थी. उसपर भला अखबार क्यों लिखेगा. पर खबर तब बनी जब तुम्हारी देह से रक्त...

मेरी बच्चियां मुझे माफ़ करना! हमसब तुम्हें बेरहम दुनिया में लेकर आये. तुम्हें बीमार, बर्बर और हिंसक समाज में लेकर आये. जहां हर रोज़ पूंजी का भयानक खेल खेला जा रहा है. इस दुनिया का क्या मतलब जिसने हमारी बच्चियों को योनी में बदल दिया. जहां हर रोज़ भेडिये उनकी देह से गोश्त नोच रहे थे. जहां रात डरावनी और दिन दुखों में डूबा हुआ हो. ये समय बर्बर विचारों और अश्लील पूंजी का समय है. हिंसक और मूल्यविहीन राजनीति के इस समय में हम तुम्हारे लिए न्याय का रास्ता नहीं तलाश पा रहे हैं.

ऐसी दुनिया लेकर हम क्या करेंगे मेरी बच्ची जहां तुम नहीं होगी, जहां तुम्हारी देह जिन्दा लाश होगी, जहां हजारों भेडिये होंगे तुम्हारी देह को नोचते रहेंगे. इस दुनिया को मर जाना चाहिए. क्योंकि आज हमें मरने से डर नहीं लगता. डर लगता है जीने से. इस तरह की तमाम हिंसा के पीछे भयानक विचार हैं. जो औरत को सिर्फ देह समझता है. बीमार और हिंसक विचार ने सोचने समझने के ढंग बदल दिये हैं.

मुझे मालूम है तुम जाने कितनी रातों से सोयी नहीं. वे नींद की गोलियां देकर रात में तुम्हारी देह से गोश्त नोचते थे. कभी तुम नींद से लड़ते हुए विरोध करती थीं तो वे तुम्हें हंटर से पीटते सिगरेट से जलाते और गर्म लोहे से दागते. फिर भी नहीं मानतीं तो तुम्हारी हत्या कर देते. ये बर्बर खेल 2013 से चल रहा था जिसमें सरकार, उसकी मिशनरी और ये बीमार समाज लगा हुआ था. ये सिर्फ बलात्कार नहीं है, ये भयानक विचार है जो बैठको में, बदबूदार बिस्तरों में जन्म लेता है.

अखबारों के लिए ये तबतक खबर नहीं थी जबतक तुम जीने के लिए लडती रहीं. अखबार और मीडिया के लिए मसाला नहीं थी तुम. जिसके माथे पर मां, बाप का साया नहीं हो, जो गरीब हो, अनाथ हो, जो रसूख वाले लोगों के मुहं का निवाला थी. उसपर भला अखबार क्यों लिखेगा. पर खबर तब बनी जब तुम्हारी देह से रक्त की हर बूंद निचोड़ ली गई.

मुझे मालूम है तुम मर रही हो. हमारा देश फिर चल पड़ेगा. जैसे कुछ हुआ नहीं. अख़बार पढ़कर ये बताना मुश्किल होगा कि खबर तुमपर हुई बर्बर और शर्मनाक घटना की है या मर्दाना कमजोरी के जादुई इलाज़ वियाग्रा की. राजनीति एक दूसरे पर आरोप लगाएगी, सरकार सीबीआई को मामला सौंपकर निशचिंत है. सीबीआई दूसरे तमाम मामलों की तरह इसे भी कब्र में दफ़न कर देगी. मैं जानती हूं मेरी बच्ची, हमारा कोई देश नहीं, राष्ट्र नहीं, ध्वज नहीं. हम औरतें हैं, हम जिन्दा रहना चाहती हैं बराबरी और सम्मान के साथ. हमारा इतिहास सभ्यताओं के खून से लथपथ है. ये दुनिया हमारे सामने पूरी तरह नंगी खड़ी है.

मुझे मालूम है मेरी बच्ची तुम सालों से सोयी नहीं हो. तुम्हारे सिराहने नींद पड़ी रहती है पर आंखों में नहीं समाती. खून की धार फट पड़ी है. देखो पूरी दुनिया हमारी बच्चियों के खून से नहा गयी है. दुनिया की तमाम मांओं आओ ! अपनी बच्चियों के लिए आओ ! इन भेडियो के खिलाफ, एक बेहतर और सुन्दर दुनिया के लिए आओ !

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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