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बिहार की तरह बंगाल में भी तीसरा मोर्चा होगा?

    • आईचौक
    • Updated: 17 नवम्बर, 2020 02:44 PM
  • 17 नवम्बर, 2020 02:44 PM
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पश्चिम बंगाल (Bengal Election 2021) में भी बिहार चुनाव की तर्ज पर तीसरा मोर्चा (Third Front) गढ़ने की कवायद शुरू हो चुकी है - देखना होगा चुनाव की तारीख आने तक लड़ाई ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) बनाम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ही रहती है या तीसरा मोर्चा भी कोई भूमिका निभाने वाला है?

अब तक ही नहीं, आगे भी पश्चिम बंगाल चुनाव (Bengal Election 2021) में मुख्य लड़ाई ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की बीजेपी के बीच ही रहने वाली है. फिर तो ये भी मान कर चलना होगा कि जब ये दो ही लड़ेंगे तो मुख्य हिस्सेदारी भी इन दोनों की ही रहेगी - बाकी जो भी होंगे उनका हाल भी बिहार जैसा ही रहेगा. अभी के हिसाब से तो ऐसा ही लग रहा है. अगर बिहार चुनाव की तरह ही कुछ नया हो जाये, फिर तो सारे समीकरण बन और बिगड़ भी सकते हैं - एक तीसरा मोर्चा (Third Front) भी खड़ा हो सकता है.

तीसरे मोर्चे की संभावना भले हो, असर नहीं होने वाला

बिहार चुनाव और पश्चिम बंगाल की चुनावी रणनीतियों में एक फर्क ये भी है कि ममता बनर्जी के लिए प्रशांत किशोर आधिकारिक तौर पर चुनाव अभियान की निगरानी कर रहे हैं. ऐसे में CAA-NRC विरोध जैसी कोई नयी राजनीतिक लामबंदी से भी इंकार नहीं किया जा सकता है जैसा दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान देखने को मिल रहा था. दिल्ली में प्रशांत किशोर अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के लिए काम कर रहे थे और उसके लिए खुद भी ट्विटर और सोशल मीडिया के जरिये अलग से मुहिम चलाते रहे. आखिरकार कामयाब भी रहे.

पश्चिम बंगाल में लेफ्ट पार्टियों की अभी तक यही राय लगती रही कि कांग्रेस के साथ उनका सीटों का समझौता होगा और ममता बनर्जी के साथ साथ वे मिल कर बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे. ठीक ऐसा ही 2016 में भी हुआ था, बिहार चुनाव के नतीजों से उत्साहित एक धड़े का मानना है कि ममता बनर्जी की जगह वाम दलों को मिल कर बीजेपी के विरोध की तैयारी करनी चाहिये - दलीय ये है कि तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस लोक और तंत्र दोनों ही के लिए उतने बुरे नहीं हैं जितनी की बीजेपी.

पश्चिम बंगाल में भी बिहार...

अब तक ही नहीं, आगे भी पश्चिम बंगाल चुनाव (Bengal Election 2021) में मुख्य लड़ाई ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की बीजेपी के बीच ही रहने वाली है. फिर तो ये भी मान कर चलना होगा कि जब ये दो ही लड़ेंगे तो मुख्य हिस्सेदारी भी इन दोनों की ही रहेगी - बाकी जो भी होंगे उनका हाल भी बिहार जैसा ही रहेगा. अभी के हिसाब से तो ऐसा ही लग रहा है. अगर बिहार चुनाव की तरह ही कुछ नया हो जाये, फिर तो सारे समीकरण बन और बिगड़ भी सकते हैं - एक तीसरा मोर्चा (Third Front) भी खड़ा हो सकता है.

तीसरे मोर्चे की संभावना भले हो, असर नहीं होने वाला

बिहार चुनाव और पश्चिम बंगाल की चुनावी रणनीतियों में एक फर्क ये भी है कि ममता बनर्जी के लिए प्रशांत किशोर आधिकारिक तौर पर चुनाव अभियान की निगरानी कर रहे हैं. ऐसे में CAA-NRC विरोध जैसी कोई नयी राजनीतिक लामबंदी से भी इंकार नहीं किया जा सकता है जैसा दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान देखने को मिल रहा था. दिल्ली में प्रशांत किशोर अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के लिए काम कर रहे थे और उसके लिए खुद भी ट्विटर और सोशल मीडिया के जरिये अलग से मुहिम चलाते रहे. आखिरकार कामयाब भी रहे.

पश्चिम बंगाल में लेफ्ट पार्टियों की अभी तक यही राय लगती रही कि कांग्रेस के साथ उनका सीटों का समझौता होगा और ममता बनर्जी के साथ साथ वे मिल कर बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे. ठीक ऐसा ही 2016 में भी हुआ था, बिहार चुनाव के नतीजों से उत्साहित एक धड़े का मानना है कि ममता बनर्जी की जगह वाम दलों को मिल कर बीजेपी के विरोध की तैयारी करनी चाहिये - दलीय ये है कि तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस लोक और तंत्र दोनों ही के लिए उतने बुरे नहीं हैं जितनी की बीजेपी.

पश्चिम बंगाल में भी बिहार की तरह ही तीसरे मोर्चे को कुछ नहीं मिलने वाला - मुकाबला ममता बनर्जी बनाम नरेंद्र मोदी ही होने वाला है

सीपीआई-एमएल नेता ने पहल की है कि सिर्फ पश्चिम बंगाल ही नहीं बल्कि असम में भी वाम दलों को एकजुट होकर बीजेपी के विरोध में चुनाव मैदान में उतरने पर विचार करना चाहिये. दरअसल, बिहार चुनाव में सीपीआई एमएल को 19 में से 12 सीटें मिल जाने से जोश सातवें आसमान पर पहुंच गया है. वैसे सीपीआई और सीपीएम का भी बिहार में प्रदर्शन अच्छा ही रहा है. कांग्रेस के मुकाबले तो काफी अच्छा माना जाएगा.

दीपंकर भट्टाचार्य के प्रस्ताव का तृणमूल कांग्रेस ने तो स्वागत किया है, लेकिन वाम मोर्चा इसे पूरी तरह खारिज कर रहा है. पश्चिम बंगाल के नेताओं का मानना है कि बिहार और पश्चिम बंगाल की राजनीति बिलकुल अलग तरीके की है और एक मॉडल दूसरे जगह नहीं चल सकता है. ममता बनर्जी ने वाम मोर्चे के खिलाफ परिवर्तन का नारा देकर ही सत्ता में आ पायीं और पिछले चुनाव तक लेफ्ट शासन को ठीक वैसे ही प्रोजेक्ट करती रहीं जैसे बिहार में नीतीश कुमार और बीजेपी लालू-राबड़ी शासन को जंगलराज के रूप में समझा कर चुनाव जीतते चले आ रहे हैं.

ममता बनर्जी के कुछ साथी नेताओं की हरकतें तृणमूल कांग्रेस में तोड़फोड़ होने की तरफ इशारे कर रही हैं. पश्चिम बंगाल सरकार में परिवहन मंत्री शुभेंदु अधिकारी सहित कुछ तृणमूल नेताओं के बागी तेवर ममता बनर्जी के साथ साथ प्रशांत किशोर को भी परेशान कर रहे हैं. मुकुल रॉय को झटकने के बाद बीजेपी नेतृत्व की नजर टीएमसी के ऐसे नेताओं पर है जो भविष्य को लेकर छटपटा रहे हैं. बीजेपी ने तो शुभेंदु अधिकारी को खुला ऑफर दे रखा है. आम चुनाव के दौरान भी टीएमसी के कई नेताओं को बीजेपी ने झटक ही लिया था. बिहार में तो ये काम नीतीश कुमार कर रहे थे, लेकिन महाराष्ट्र और यूपी जैसे राज्यों में तो बीजेपी पहले से ही ये काम करती आयी है.

लेफ्ट पार्टियों के अलावा असदुद्दीन ओवैसी भी जोश से लबालब देखे जा रहे हैं. बिहार की तरह असदुद्दीन ओवैसी पश्चिम बंगाल में भी चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. हैदराबाद से बिहार पहुंच कर विधानसभा की 5 सीटें जीतने के बाद ओवैसी अब ममता बनर्जी के इलाके में धावा बोलने वाले हैं - अगर पश्चिम बंगाल में भी ओवैसी के हाथ कुछ लगता है तो समझ लेना होगा कि मुस्लिम समुदाय अब सिर्फ बीजेपी विरोधी नहीं रहा - वो अपने लिए नये विकल्प तलाशने लगा है.

बाकी बातों के अलावा मान कर चलना होगा कि पश्चिम बंगाल चुनाव में भी जम्मू-कश्मीर, धारा 370 और आतंकवाद का मुद्दा तो उठेगा ही. वैसे भी श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नाम पर बीजेपी नेतृत्व जम्मू-कश्मीर को पश्चिम बंगाल से सीधे सीधे जोड़ तो देता ही है.

बीजेपी अब ममता के परिवर्तन के नारे को उनके खिलाफ इस्तेमाल कर रही है. अम्फान तूफान के दौरान कोलकाता पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजा राममोहन रॉय को याद करते हुए ध्यान दिलाये कि उनके सामाजिक परिवर्तन का सपना अभी अधूरा है और बीजेपी इसे पूरा करने की कोशिश करेगी. अमित शाह के हाल के कोलकाता दौरे के बाद पश्चिम बंगाल की राजनीति में अलग ही हलचल मची हुई है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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