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महाराष्ट्र में जो हुआ, बहुत अच्छा हुआ! यही होना था...

    • नवेद शिकोह
    • Updated: 23 नवम्बर, 2019 09:43 PM
  • 23 नवम्बर, 2019 09:43 PM
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Maharashtra में Government Formation के बाद कई भ्रम दूर हो गए हैं और कहीं न कहीं जनता को भी इस बात का एहसास हो गया कि जो हुआ अच्छा हुआ कम से कम इससे अलग अलग दलों का असली चाल चरित्र और चेहरा तो सामने आया.

महाराष्ट्र में सरकार (Government Formation In Maharashtra) बनाने की रस्साकशी में दो एक से दोस्ती हार गयी और सियासी बेवफाई जीत गई. यानी दो दोस्तों की जोड़ी टूटी और एक नई जोड़ी दोस्ती का रिश्ता क़ायम हो गया. लेकिन जो भी हुआ अच्छा हुआ. सबके लिए अच्छा हुआ. लोकतंत्र के लिए भी अच्छा हुआ. महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव (Maharashtra Assembly Election) में दो-दो राजनीतिक दलों के दो गठबंधन मजबूती से चुनाव लड़े थे. एक भाजपा और शिवसेना (BJP and Shiv Sena). और एक कांग्रेस और एनसीपी (Congress and NCP). जनता ने भाजपा/शिवसेना के गठबंधन को बहुमति दिया था. लेकिन शिवसेना और भाजपा के अलगाव के बाद जिस तरह पिछले दिनों कांग्रेस-एनसीपी ने शिवसेना के साथ सरकार बनाने के प्रयास किए थे यदि ये प्रयास सफल हो जाते तो सबसे अधिक सीटें पाने वाली भाजपा का विपक्ष में बैठना जनाधार का अपमान होता.

महाराष्ट्र में जो कुछ भी हुआ उसे अच्छा इसलिए भी माना जा सकता है क्योंकि कई भ्रम दूर हो गए हैं

भाजपा के लिए सरकार बनाना इसलिए जरूरी था क्योंकि महाराष्ट्र के चुनावी नतीज़ों में वो सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. भाजपा के जय-वीरू कहे जाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ना सिर्फ जनादेश में नंबर वन बने हुए है बल्कि कम सीटों में भी सरकार बनाने के मैनेजमेंट का विजय रथ महाराष्ट्र में रुकता दिखाई दे रहा था. इसलिए भी मोदी-अमित यहां भी हारी बाज़ी जीतने में भी शाह साबित हुए. इसलिए महाराष्ट्र में भाजपा का सरकार बनाना सम्पूर्ण जनता के लिए तो नहीं लेकिन भाजपा और भाजपा समर्थक जनता के लिए बेहद अच्छा हुआ.

कांग्रेस के लिए भी बहुत अच्छा हुआ-

बाबरी मस्जिद तोड़ने का ढांचा तोड़ने का दावा करने वाली शिवसेना के साथ कांग्रेस दोस्ताना रिश्ता निभाना ही नहीं...

महाराष्ट्र में सरकार (Government Formation In Maharashtra) बनाने की रस्साकशी में दो एक से दोस्ती हार गयी और सियासी बेवफाई जीत गई. यानी दो दोस्तों की जोड़ी टूटी और एक नई जोड़ी दोस्ती का रिश्ता क़ायम हो गया. लेकिन जो भी हुआ अच्छा हुआ. सबके लिए अच्छा हुआ. लोकतंत्र के लिए भी अच्छा हुआ. महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव (Maharashtra Assembly Election) में दो-दो राजनीतिक दलों के दो गठबंधन मजबूती से चुनाव लड़े थे. एक भाजपा और शिवसेना (BJP and Shiv Sena). और एक कांग्रेस और एनसीपी (Congress and NCP). जनता ने भाजपा/शिवसेना के गठबंधन को बहुमति दिया था. लेकिन शिवसेना और भाजपा के अलगाव के बाद जिस तरह पिछले दिनों कांग्रेस-एनसीपी ने शिवसेना के साथ सरकार बनाने के प्रयास किए थे यदि ये प्रयास सफल हो जाते तो सबसे अधिक सीटें पाने वाली भाजपा का विपक्ष में बैठना जनाधार का अपमान होता.

महाराष्ट्र में जो कुछ भी हुआ उसे अच्छा इसलिए भी माना जा सकता है क्योंकि कई भ्रम दूर हो गए हैं

भाजपा के लिए सरकार बनाना इसलिए जरूरी था क्योंकि महाराष्ट्र के चुनावी नतीज़ों में वो सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. भाजपा के जय-वीरू कहे जाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ना सिर्फ जनादेश में नंबर वन बने हुए है बल्कि कम सीटों में भी सरकार बनाने के मैनेजमेंट का विजय रथ महाराष्ट्र में रुकता दिखाई दे रहा था. इसलिए भी मोदी-अमित यहां भी हारी बाज़ी जीतने में भी शाह साबित हुए. इसलिए महाराष्ट्र में भाजपा का सरकार बनाना सम्पूर्ण जनता के लिए तो नहीं लेकिन भाजपा और भाजपा समर्थक जनता के लिए बेहद अच्छा हुआ.

कांग्रेस के लिए भी बहुत अच्छा हुआ-

बाबरी मस्जिद तोड़ने का ढांचा तोड़ने का दावा करने वाली शिवसेना के साथ कांग्रेस दोस्ताना रिश्ता निभाना ही नहीं चाहती थी. देश में बीस फीसद आबादी वाले कांग्रेस के सबसे बड़े वोट बैंक मुस्लिम समाज को नाराज करके महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ सत्ता की भागीदारी कांग्रेस के लिए बहुत मंहगी पड़ती.

ये जानकर ही कांग्रेस सिर्फ शिवसेना के साथ सरकार बनाने की बातचीत का ड्रामा करके इस कोशिश में लगी रही कि भाजपा और शिवसेना में समझौते का समय और गुंजायश नहीं बचे.

अब जब भाजपा और एनसीपी सरकार बना लेगी तो अगले लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की जनता का विश्वास किसी भी गठबन्धन से उठ चुका होगा. कांग्रेस अकेले अपनी विचारधारा पर तटस्थ रहेगी. बिना गठबन्धन वाले इकलौते राष्ट्रीय दल के तौर पर कांग्रेस एंटी इनकमबैंसी का लाभ भी अकेले ले सकेगी.

एसीपी के लिए भी अच्छा हुआ-

बतौर क्षेत्रीय दल एनसीपी लम्बे अर्से से महाराष्ट्र की सत्ता से बेदखल है. देशभर में भाजपा और मोदी की जबरदस्त लहर अभी थमने का नाम नहीं ले रही है. फिलहाल अभी काफी समय तक महाराष्ट्र में अकेले दम पर सत्ता बनाना पाना एनसीपी के लिए मुश्किल था. एनसीपी चीफ शरद पवार इस समय देश के सबसे वरिष्ठ नेताओं में सबसे सक्रिय नेता हैं. उनकी काफी उम्र हो चुकी है.

बहुत भंयकर और जानलेवा बीमारी से वो जूझ चुके हैं. लम्बे समय तक सत्ता से दूर रहने से किसी भी पार्टी के विधायक/काडर/संगठन/कार्यकर्ता टूट जाते हैं. बिखरने लगते हैं. ऐसे में शरद पवार के लिए समझौते का ये विकल्प चुनना बेहतर था. क्योंकि अंदर का सच ये था कि कांग्रेस शिवसेना के साथ सरकार बनाना ही नहीं चाहती थी.

वो सिर्फ शिवसेना को उलझा कर उसका समय नष्ट करना चाहती थी ताकि भाजपा के साथ शिवसेना का समझौता ना हो सके. ताकि आगे महाराष्ट्र में हिंदुत्व का वोट बैंक बंट जाये. शिवसेना अगले चुनावों में भाजपा के जनाधार को कतर दे.

शिवसेना के लिए भाजपा-एनसीपी की सरकार बनना क्यों बेहतर है -

शिवसेना की ताकत और.उसका सौंदर्य उसकी आक्रामकता है. उनका हिंदुत्व का एजेंडा जिसपर भाजपा ने महाराष्ट्र में भी कब्जा जमाने में सफलता हासिल करना शुरु कर दी है. अब शिवसेना बतौर विपक्षी दल हिन्दुत्व की रक्षा को लेकर आक्रामक हो सकेगी.

क्षेत्रीयता, मराठा शान-आन और हिन्दुत्व के मुद्दों के साथ विपक्षी भूमिका में केंद्रीय और महाराष्ट्र की सरकार के खिलाफ आक्रामक होकर शिवसेना को एक नयी ऊर्जा मिलेगी. और यदि कांग्रेस और एनसीपी के साथ शिवसेना सरकार बना लेती तो पार्टी की विचारधारा के साथ ये पार्टी भी बेहद कमजोर हो जाती.

महाराष्ट्र में जो हुआ वो राष्ट्रीय दलों के लिए भी बेहतर हुआ. क्षेत्रीय दलों के दबाव को बैकफुट पर लाने के लिए भाजपा और कांग्रेस ने देश के सबसे तेजतर्रार क्षेत्रीय दल को चित करके सभी क्षेत्रीय दलों को बड़ा संदेश दे दिया.गोयाकि ये बता दिया कि बाप-बाप ही होता है और बेटा-बेटा ही.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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