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फडणवीस को फिर से CM बनाने में बड़ी भूमिका Sharad Pawar की है, अजित पवार की नहीं

    • आईचौक
    • Updated: 23 नवम्बर, 2019 03:52 PM
  • 23 नवम्बर, 2019 03:52 PM
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देवेंद्र फडणवीस की नयी पारी में डिप्टी CM बने अजित पवार को शरद पवार ने कठघरे में खड़ा कर दिया है. शरद पवार का कहना है कि बीजेपी सरकार सा सपोर्ट NCP का फैसला नहीं है - लेकिन शरद पवार ने अभी किसी तरह के एक्शन की घोषणा नहीं की है.

महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस फिर से 'नायक' बन गये हैं, लेकिन उनके नये साथी अजीत पवार को फिलहाल 'खलनायक' के तौर पर पेश किया जा रहा है. देवेंद्र फडणवीस ने 23 नवंबर को सुबह-सुबह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और NCP नेता अजित पवार को डिप्टी CM बन गये.

अगर महाराष्ट्र की इस ताजा उलटफेर के मुख्य किरदार अजित पवार ही हैं, तो शरद पवार की भूमिका क्या और कहां तक है - ये समझना जरूरी हो जाता है.

क्या अजित पवार ने ये सब बिलकुल अपने मन से किया या फिर शरद पवार की सहमति से?

शरद पवार की बेटी और एनसीपी नेता सुप्रिया सुले का तो कहना है कि परिवार और पार्टी दोनों टूट गये हैं - लेकिन रामदास अठावले का बयान तो अलग ही इशारा करता है.

शरद पवार या अजित पवार - असली खेल किसका है?

महाराष्ट्र की राजनीति में बेहद नाटकीय घटनाक्रम के बीच एनसीपी नेता सुप्रिया सुले के व्हाट्सऐप अपडेट के जरिये परिवार और पार्टी को लेकर खबर आई. कुछ देर बाद सुप्रिया सुले खुद भी मीडिया के सामने आयीं - और एनसीपी कार्यकर्ता उनके गाड़ी में बैठते ही अजित पवार के खिलाफ नारेबाजी करने लगे. अब चर्चा इस बात पर भी होने लगी है कि अजित पवार के खिलाफ एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार कोई एक्शन भी लेंगे क्या?

शरद पवार के मन की बात अपनी जगह है, माना तो वही जाएगा जो वो खुद कैमरे पर या किसी बयान में कोई बात कहते हैं. देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार के शपद लेने से करीब 12 घंटे पहले ही शरद पवार ने कहा था कि मुख्यमंत्री के रूप में उद्धव ठाकरे के नाम पर सहमति बन चुकी है. उससे पहले वो यही कहते आ रहे थे कि जनादेश के साथ जाएंगे और सरकार नहीं बनाएंगे. शिवसेना के साथ सरकार बनाने को लेकर परदे के पीछे चल रही बातचीत पर भी शरद पवार ने सवालिया निशान लगा दिया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात को भी शरद पवार ने किसानों की समस्याओं से जुड़ा बताया था.

महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस फिर से 'नायक' बन गये हैं, लेकिन उनके नये साथी अजीत पवार को फिलहाल 'खलनायक' के तौर पर पेश किया जा रहा है. देवेंद्र फडणवीस ने 23 नवंबर को सुबह-सुबह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और NCP नेता अजित पवार को डिप्टी CM बन गये.

अगर महाराष्ट्र की इस ताजा उलटफेर के मुख्य किरदार अजित पवार ही हैं, तो शरद पवार की भूमिका क्या और कहां तक है - ये समझना जरूरी हो जाता है.

क्या अजित पवार ने ये सब बिलकुल अपने मन से किया या फिर शरद पवार की सहमति से?

शरद पवार की बेटी और एनसीपी नेता सुप्रिया सुले का तो कहना है कि परिवार और पार्टी दोनों टूट गये हैं - लेकिन रामदास अठावले का बयान तो अलग ही इशारा करता है.

शरद पवार या अजित पवार - असली खेल किसका है?

महाराष्ट्र की राजनीति में बेहद नाटकीय घटनाक्रम के बीच एनसीपी नेता सुप्रिया सुले के व्हाट्सऐप अपडेट के जरिये परिवार और पार्टी को लेकर खबर आई. कुछ देर बाद सुप्रिया सुले खुद भी मीडिया के सामने आयीं - और एनसीपी कार्यकर्ता उनके गाड़ी में बैठते ही अजित पवार के खिलाफ नारेबाजी करने लगे. अब चर्चा इस बात पर भी होने लगी है कि अजित पवार के खिलाफ एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार कोई एक्शन भी लेंगे क्या?

शरद पवार के मन की बात अपनी जगह है, माना तो वही जाएगा जो वो खुद कैमरे पर या किसी बयान में कोई बात कहते हैं. देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार के शपद लेने से करीब 12 घंटे पहले ही शरद पवार ने कहा था कि मुख्यमंत्री के रूप में उद्धव ठाकरे के नाम पर सहमति बन चुकी है. उससे पहले वो यही कहते आ रहे थे कि जनादेश के साथ जाएंगे और सरकार नहीं बनाएंगे. शिवसेना के साथ सरकार बनाने को लेकर परदे के पीछे चल रही बातचीत पर भी शरद पवार ने सवालिया निशान लगा दिया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात को भी शरद पवार ने किसानों की समस्याओं से जुड़ा बताया था.

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अब अगर अजित पवार को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, तो सिर्फ शरद पवार ही क्यों उद्धव ठाकरे और सोनिया गांधी को भी शक होना चाहिये था कि आखिर बीजेपी विपक्ष में बैठने को तैयार क्यों दिख रही है - बीजेपी की आदत तो यही रही है कि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सरकार बनाने का फॉर्मूला खोज लेती है.

अव्वल तो 23 नवंबर को महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को भी दिल्ली में होना था - राज्यपालों की कांफ्रेंस में शामिल होने के लिए, लेकिन आखिरी वक्त में उनका दौरा रद्द हो गया. कायदे से बीजेपी विरोधी महागठबंधन के नेताओं को राज्यपाल का दौरा रद्द होते ही शक होना चाहिये था - लेकिन अतिआत्मविश्वास भी तो कोई चीज होती है.

अजित पवार ने देवेंद्र फडणवीस के करीब 8 बजे शपथग्रहण किया - और खबर ये भी आ रही है कि ठीक 12 घंटे पहले ही राज्यपाल से मिल कर देवेंद्र फडणवीस ने सरकार बनाने का दावा पेश किया था - और अजित पवार ने एनसीपी विधायकों के समर्थन की चिट्ठी भी. उसी बीच 5.47 बजे सुबह राष्ट्रपति शासन हटा लिया गया.

बनते बनते रह गये महागठबंधन के नेता मुहूर्त से पहले ही जश्न के माहौल में आ चुके थे - और किसी को अपने खिलाफ खड़े हो रहे नये राजनीतिक समीकरण की भनक तक न लग सकी.

एनसीपी नेतृत्व की तरफ से मैसेज तो यही दिया जा रहा है कि अजित पवार ने ही पूरी बाजी बीजेपी के पक्ष में पलट दी है - लेकिन अगर सुप्रिया सुले आने वाले दिनों में मोदी कैबिनेट में शामिल हो जाती हैं तो वो क्या कहेंगे?

आरपीआई नेता और केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले की बातों से तो ऐसा लगता है कि अजित पवार के एहसानों के बदले में सुप्रिया सुले मंत्री बन सकती हैं. आरपीआई नेता ने तो शरद पवार और प्रफुल्ल पटेल के भी मंत्री बनने की संभावना जगा दी है.

लेकिन इसी बीच न्यूज एजेंसी ANI ने सुप्रिया सुले के व्हाट्सऐप स्टेटस के हवाले से खबर दी है कि एनसीपी नेता ने माना है कि पार्टी और परिवार दोनों टूट गये हैं - और ये बात उनके ऑफिस ने कंफर्म किया है.

मान लेते हैं कि शरद पवार ने महाराष्ट्र में उत्तर प्रदेश के मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी जैसा खेल नहीं किया है - तो अजित पवार ने ऐसा क्यों किया?

अजित पवार ने ऐसा क्यों किया होगा?

शरद पवार ने प्रेस कांफ्रेंस कर बीजेपी सरकार को एनसीपी के समर्थन से पल्ला झाड़ लिया है. शरद पवार ने साफ साफ कह दिया है कि ये फैसला सिर्फ और सिर्फ अजित पवार का है.

शरद पवार ने अजित पवार को एंटी डिफेक्शन लॉ की याद दिलायी है और एनसीपी की तरफ से एक्शन लेने की भी बात कही है. शरद पवार ने ये भी कहा कि विधायकों को भी कानून मालूम होगा ही. हालांकि, ध्यान देने वाली बात ये भी है कि अजित पवार एनसीपी विधायक दल के चुने हुए नेता हैं - और विधायकों के समर्थन वाली वही चिट्ठी एनसीपी नेता ने राज्यपाल को सौंपी है. एनसीपी की तरफ से पहले से ही बताया जा रहा है कि अजित पवार ने विधायकों की दस्तखत वाले पत्र का दुरूपयोग किया है.

शरद पवार के उद्धव ठाकरे के मीडिया के जरिये महाराष्ट्र के लोगों के सामने आने से पहले ही, अजित पवार की तरफ से कहा गया कि वो शरद पवार को सबकुछ बता चुके थे. अजित पवार का कहना है कि वो स्थायी सरकार देना चाहते थे और ये फैसला भी इसीलिए लिया.

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही सबसे ज्यादा बयान देने वाले संजय राउत का दावा है कि मीटिंग में शामिल अजित पवार बाकियों से नजर नहीं मिला पा रहे थे. कमाल है, फिर भी संजय राउत अजित पवार को नहीं समझ पाये. वो तो शरद पवार के बारे में कह रहे थे कि एनसीपी नेता को समझने में सौ साल लगेंगे.

सबसे बड़ा सवाल ये है कि अजित पवार ने अगर खुद ये फैसला लिया है तो उसकी खास वजह क्या रही होगी? महागठबंधन की सरकार बनती तब भी उनका डिप्टी सीएम बनना तकरीबन पक्का था.

शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत के बयान में इस सवाल का कुछ कुछ जवाब मिलता है. संजय राउत का कहना है कि अजित पवार बीजेपी से डर गये और ED की जांच के डर से वो रात के अंधेरे में ही सरकार बनाने की बीजेपी की साजिश में शामिल हो गये. संजय राउत का कहना है कि अजित पवार ने शरद पवार ही नहीं पूरे महाराष्ट्र के लोगों को धोखा दिया है.

संजय राउत के बयान की पुष्टि बीजेपी के ही एक नेता ने कर दी है. बीजेपी नेता गिरीश महाजन ने कहा है कि संजय राउत को जुबानी डायरिया हो गया है - और सबसे बड़ी बात, 'अजित पवार ने कोई भ्रष्टाचार नहीं किया और ना ही उनके खिलाफ करप्शन के सबूत हैं.'

सच तो ये है कि ED ने शरद पवार और अजित पवार सहित कई नेताओं के खिलाफ एक बैंक घोटाले में FIR दर्ज किया है. विधानसभा चुनाव के दौरान शरद पवार ने इसे बड़ा मुद्दा बना दिया - और राजनीतिक चाल चलते हुए खुद ही पूछताछ के लिए प्रवर्तन निदेशालय के दफ्तर जाने की घोषणा कर दी. तब एनसीपी कार्यकर्ता सड़क पर उतर आये थे और ED को कहना पड़ा कि शरद पवार के साथ पूछताछ का कोई इरादा नहीं है.

जहां तक फडणनवीस के दोबारा मुख्यमंत्री बनने में मुख्य किरदार की बात है तो वो अजित पवार तो नहीं लगते. शरद पवार के प्रेस कांफ्रेंस में बयान से तो यही लगता है कि सब कुछ उनके मनमाफिक ही हुआ है - अगर शरद पवार वाकई अजित पवार के कदम से नाराज होते तो क्या पार्टी विरोधी गतिविधि के लिए वहीं पर NCP से बाहर करने की घोषणा नहीं कर देते?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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