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महाराष्‍ट्र किसान आंदोलन का आइडिया एमपी से मिला है !

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 13 मार्च, 2018 02:05 PM
  • 13 मार्च, 2018 02:00 PM
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सवाल ये है कि आखिर हर बार किसान आंदोलन ( Farmer Protest) करते क्यों हैं? और जवाब भी एक सवाल ही है कि आंदोलन नहीं करें तो क्या करें? आखिर दूसरे राज्य खुद ही आइडिया सुझाने का काम जो कर रहे हैं.

भले ही महाराष्‍ट्र की देवेंद्र फडणवीस सरकार को लग रहा हो कि उन्होंने किसानों के लिए बहुत कुछ किया है, लेकिन उनके दावों को खोखला साबित करते हुए किसानों का एक समूह नासिक से चलकर 180 किलोमीटर दूर मुंबई जा पहुंचा. किसानों की संख्या इतनी अधिक थी कि सड़कें तो लाल हो ही गईं, दक्षिण मुंबई का आजाद मैदान भी लाल सागर में तब्दील हो गया. हाथों में लाल झंडे लिए इन किसानों का इतनी दूर आना ही यह बताने के लिए काफी है कि किसान फडणवीस सरकार से खुश नहीं हैं. लेकिन आखिर आंदोलन कर रहे इन किसानों (Maharashtra Farmer Protest) की मांगें थीं क्या?

शांतिपूर्ण विरोध यात्रा के जरिए किसान कर्ज माफी के साथ-साथ फसलों पर गुलाबी कीड़ों के हमले और ओलावृष्टि से हुए नुकसान का मुआवजा मांग रहे थे. किसानों की योजना तो यहां तक थी कि विधानसभा का घेराव किया जाएगा, लेकिन इससे पहले ही मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने उनकी मांगें पूरी करने का आश्वासन दे दिया. जिस तरह इतनी जल्दी मांगों को पूरा करने का आश्वासन देवेंद्र फडणवीस ने दिया है, उससे यह तो साफ है कि वह आगामी चुनावों के मद्देनजर कोई भी जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं. अगले साल सितंबर-अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और अगर किसान ही नाराज हो गए तो सरकार कैसे बनेगी? ऐसा नहीं है कि सिर्फ महाराष्ट्र में किसानों को खुश करने का चुनावी पैंतरा चल रहा है. जिन राज्यों में इसी साल चुनाव होने वाले हैं, उन्होंने तो बजट में ही किसानों को सौगातें दे दी हैं.

मध्य प्रदेश से मिला आइडिया

अगर कहा जाए कि महाराष्ट्र में किसानों के प्रदर्शन का आइडिया मध्य प्रदेश से मिला है, तो ये गलत नहीं होगा. मध्य प्रदेश में तो शिवराज सिंह चौहान ने इस बार प्रति क्विंटल गेहूं पर 200 रुपए बोनस देने का ऐलान किया है. इतना ही नहीं, 2000 रुपए प्रति क्विंटल...

भले ही महाराष्‍ट्र की देवेंद्र फडणवीस सरकार को लग रहा हो कि उन्होंने किसानों के लिए बहुत कुछ किया है, लेकिन उनके दावों को खोखला साबित करते हुए किसानों का एक समूह नासिक से चलकर 180 किलोमीटर दूर मुंबई जा पहुंचा. किसानों की संख्या इतनी अधिक थी कि सड़कें तो लाल हो ही गईं, दक्षिण मुंबई का आजाद मैदान भी लाल सागर में तब्दील हो गया. हाथों में लाल झंडे लिए इन किसानों का इतनी दूर आना ही यह बताने के लिए काफी है कि किसान फडणवीस सरकार से खुश नहीं हैं. लेकिन आखिर आंदोलन कर रहे इन किसानों (Maharashtra Farmer Protest) की मांगें थीं क्या?

शांतिपूर्ण विरोध यात्रा के जरिए किसान कर्ज माफी के साथ-साथ फसलों पर गुलाबी कीड़ों के हमले और ओलावृष्टि से हुए नुकसान का मुआवजा मांग रहे थे. किसानों की योजना तो यहां तक थी कि विधानसभा का घेराव किया जाएगा, लेकिन इससे पहले ही मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने उनकी मांगें पूरी करने का आश्वासन दे दिया. जिस तरह इतनी जल्दी मांगों को पूरा करने का आश्वासन देवेंद्र फडणवीस ने दिया है, उससे यह तो साफ है कि वह आगामी चुनावों के मद्देनजर कोई भी जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं. अगले साल सितंबर-अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और अगर किसान ही नाराज हो गए तो सरकार कैसे बनेगी? ऐसा नहीं है कि सिर्फ महाराष्ट्र में किसानों को खुश करने का चुनावी पैंतरा चल रहा है. जिन राज्यों में इसी साल चुनाव होने वाले हैं, उन्होंने तो बजट में ही किसानों को सौगातें दे दी हैं.

मध्य प्रदेश से मिला आइडिया

अगर कहा जाए कि महाराष्ट्र में किसानों के प्रदर्शन का आइडिया मध्य प्रदेश से मिला है, तो ये गलत नहीं होगा. मध्य प्रदेश में तो शिवराज सिंह चौहान ने इस बार प्रति क्विंटल गेहूं पर 200 रुपए बोनस देने का ऐलान किया है. इतना ही नहीं, 2000 रुपए प्रति क्विंटल की दर से गेंहू खरीदने का वादा भी किया है. आपको बता दें कि केंद्र की न्यूनतम समर्थन मूल्य भी इससे कम है जो 1735 रुपए प्रति क्विंटल है. सिर्फ कृषि के क्षेत्र के लिए ही सरकार ने कुल 37,498 करोड़ रुपए का आवंटन किया है. ऐसा नहीं है कि सरकार ने सिर्फ घोषणा भर की है, बल्कि इन पैसों से होने वाले फायदे को किसानों तक पहुंचाया भी जा रहा है. अब जरा सोचिए, अगर भाजपा शासित एक राज्य वहां के किसानों के लिए इतनी घोषणाएं करेगा, तो क्या बाकी राज्यों के किसानों को उन फायदों की उम्मीद नहीं होनी चाहिए? माना कि मध्य प्रदेश में चुनाव होने वाले हैं, तो क्या बाकी राज्यों में अब कभी चुनाव नहीं होंगे? बस यही वजह है कि किसान अपनी मांगों को लेकर सड़क पर उतर आते हैं. मध्य प्रदेश के अलावा तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और राजस्थान ने भी किसानों पर खूब मेहरबानी दिखाई है.

- तेलंगाना में चंद्रशेखर राव ने किसानों के लिए 'किसान निवेश यहायता योजना' शुरू की है, जिसके तहत प्रति एकड़ फसल पर हर साल 4000 रुपए की गारंटी मिलती है. माना जा रहा है कि इसके तहत राज्य के 70 लाख किसानों को करीब 12,000 करोड़ रुपए का भुगतान किया जाएगा.

- आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू ने 15 लाख पुराने पंप सेट बदलकर कम बिजली की खपत वाली मोटरें लगाने का वादा किया है, जिसकी कुल लागत करीब 6000 करोड़ रुपए होगी.

- उपचुनाव में करारी शिकस्त के बाद राजस्थान की वसुंधरा राजे ने भी सहकारी बैंकों के कर्जों में फंसे किसानों के लिए 50,000 रुपए तक की राहत देने की योजना बना ली है. इससे राज्य के करीब 70 फीसदी किसानों को फायदा होगा.

किसान क्यों न करें आंदोलन?

किसानों के अधिकतर आंदोलन कर्जमाफी जैसे मुद्दे को लेकर ही होते हैं. सरकार चाहे भाजपा की हो, कांग्रेस की हो या किसी और की हो, सभी कर्जमाफी का झुनझुना किसानों के हाथों में थमा भी देते हैं. अधिकतर किसान भी अब यही मानकर कर्ज लेते हैं कि अगर किसी कारणवश वह अपना कर्ज नहीं चुका सके तो उनका कर्ज कोई न कोई सरकार तो माफ कर ही देगी. और जिस तरह से इन राज्यों की सरकारों ने चुनाव को ध्यान में रखते हुए किसानों पर अपनी अतिरिक्त दयादृष्टि दिखाई है, उससे किसानों का कर्जमाफी का यकीन और भी तगड़ा होता जाता है. जब भी कर्ज चुकाने की बारी आती है तो किसान कर्जमाफी के लिए सड़कों पर उतर आते हैं.

सवाल ये है कि आखिर हर बार किसान आंदोलन करते क्यों हैं? और जवाब भी एक सवाल ही है कि आंदोलन नहीं करें तो क्या करें? जब पता ही है कि हर बार सरकार कर्ज माफ करेगी, तो फिर आंदोलन करने में हर्ज ही क्या है? और सरकार के लिए भी कर्जमाफी एक सियासी हथियार जैसा हो गया है. किसानों को उनकी फसल का मूल्य सही मिलता नहीं, नुकसान होने पर मुआवजे की सही व्यवस्था नहीं, अंत में होता यही है कि फसल के लिए जो कर्ज लिया होता है, वो वापस नहीं दे पाते और भी कर्जमाफी के लिए सड़कों पर उतरना पड़ता है. सरकार को ये समझना होगा कि कर्जमाफी किसानों की समस्या का हल नहीं है, बल्कि अगर देखा जाए तो कर्जमाफी का फायदा उन किसानों को होता है, जिन्होंने अपना कर्ज नहीं चुकाया, लेकिन उनका क्या जिन्होंने अपने कर्ज की हर किस्त समय से दी और पूरा कर्ज चुकता किया? जरूरत है किसानों की समस्याओं को समझने की, ना कि कर्जमाफी को एक सियासी हथियार की तरह इस्तेमाल करने की.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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