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गोरखपुर उपचुनाव में कम मतदान होना क्या संदेश देता है !

    • अरविंद मिश्रा
    • Updated: 12 मार्च, 2018 12:42 PM
  • 12 मार्च, 2018 12:42 PM
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इस बार गोरखपुर उप चुनाव में मात्र 47.45 प्रतिशत मतदान हुआ जहां 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान 54.67 प्रतिशत मतदान हुआ था. वहीं फूलपुर में 37.40 प्रतिशत मतदान हुआ जहां 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान 50.20 प्रतिशत मतदान हुआ था.

उत्तर प्रदेश के दो प्रमुख एवं बहुचर्चित लोकसभा सीटों पर उप-चुनाव में 2014 के चुनावों के मुकाबले काफी कम मतदान हुआ. गोरखपुर से यहां के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के और फूलपुर से उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफा देकर विधान परिषद के लिए चुने जाने के कारण इन दोनों सीटों पर चुनाव हुए थे. लोकसभा उप चुनाव बहुचर्चित इस लिए क्योंकि गोरखपुर से प्रदेश के मुख्यमंत्री चुनाव जीतते थे और फूलपुर से वहां के उप मुख्यमंत्री चुनाव जीते थे. इस बार गोरखपुर उप चुनाव में मात्र 47.45 प्रतिशत मतदान हुआ जहां 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान 54.67 प्रतिशत मतदान हुआ था. यानि इस बार करीब 7 प्रतिशत कम. वहीं फूलपुर में 37.40 प्रतिशत मतदान हुआ जहां 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान 50.20 प्रतिशत मतदान हुआ था. यानि इस बार करीब 13 प्रतिशत कम.

तो अहम सवाल ये कि आखिर इस उप चुनावों में इतना कम मतदान क्यों हुआ? जबकि ये दोनों सीटें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या द्वारा जीती गई थीं. आखिर समाजवादी पार्टी को मायावती ने भी समर्थन दिया था. आखिर ऐसा क्या हुआ जिससे पिछले चुनाव के मुकाबले 12 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज हुई हो गई. ऐसे में भी कम मतदान होना क्या संकेत देता है? आखिर जनता का रुझान किस की तरफ है? सपा और बसपा के एक साथ आने से भाजपा को मुश्किल तो नहीं होगी? या फिर भाजपा को सत्ता विरोधी रुझान का सामना करना पड़ सकता है?

भाजपा को शहरी क्षेत्रों में कम वोट मिलना इसके लिए खतरे की घंटी हो सकती है क्योंकि शहरी मतदाताओं में ही भाजपा की पकड़ मज़बूत मानी जाती है. अगर हम फूलपुर लोकसभा की बात करें तो यहां के दो शहरी विधानसभा क्षेत्रों में सबसे कम मतदान हुआ. मसलन इलाहाबाद पश्चिमी में 31 प्रतिशत और इलाहाबाद उत्तर में 21.65 प्रतिशत ही मतदान हो पाया. इलाहाबाद उत्तर...

उत्तर प्रदेश के दो प्रमुख एवं बहुचर्चित लोकसभा सीटों पर उप-चुनाव में 2014 के चुनावों के मुकाबले काफी कम मतदान हुआ. गोरखपुर से यहां के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के और फूलपुर से उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफा देकर विधान परिषद के लिए चुने जाने के कारण इन दोनों सीटों पर चुनाव हुए थे. लोकसभा उप चुनाव बहुचर्चित इस लिए क्योंकि गोरखपुर से प्रदेश के मुख्यमंत्री चुनाव जीतते थे और फूलपुर से वहां के उप मुख्यमंत्री चुनाव जीते थे. इस बार गोरखपुर उप चुनाव में मात्र 47.45 प्रतिशत मतदान हुआ जहां 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान 54.67 प्रतिशत मतदान हुआ था. यानि इस बार करीब 7 प्रतिशत कम. वहीं फूलपुर में 37.40 प्रतिशत मतदान हुआ जहां 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान 50.20 प्रतिशत मतदान हुआ था. यानि इस बार करीब 13 प्रतिशत कम.

तो अहम सवाल ये कि आखिर इस उप चुनावों में इतना कम मतदान क्यों हुआ? जबकि ये दोनों सीटें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या द्वारा जीती गई थीं. आखिर समाजवादी पार्टी को मायावती ने भी समर्थन दिया था. आखिर ऐसा क्या हुआ जिससे पिछले चुनाव के मुकाबले 12 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज हुई हो गई. ऐसे में भी कम मतदान होना क्या संकेत देता है? आखिर जनता का रुझान किस की तरफ है? सपा और बसपा के एक साथ आने से भाजपा को मुश्किल तो नहीं होगी? या फिर भाजपा को सत्ता विरोधी रुझान का सामना करना पड़ सकता है?

भाजपा को शहरी क्षेत्रों में कम वोट मिलना इसके लिए खतरे की घंटी हो सकती है क्योंकि शहरी मतदाताओं में ही भाजपा की पकड़ मज़बूत मानी जाती है. अगर हम फूलपुर लोकसभा की बात करें तो यहां के दो शहरी विधानसभा क्षेत्रों में सबसे कम मतदान हुआ. मसलन इलाहाबाद पश्चिमी में 31 प्रतिशत और इलाहाबाद उत्तर में 21.65 प्रतिशत ही मतदान हो पाया. इलाहाबाद उत्तर विधानसभा में ही इलाहाबाद यूनिवर्सिटी भी स्थित है जिसके युवा मतदाता 2014 में बढ़-चढ़कर भाजपा के लिए मतदान किया था. वैसे भी 2014 के लोकसभा को छोड़कर यहां समाजवादी पार्टी और बसपा का ही बर्चस्व रहा है. इसलिए यहां भाजपा को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है और इसका सीधा लाभ समाजवादी पार्टी को मिल सकता है.

अगर बात गोरखपुर की करें तो यहां भी भाजपा के लिए शहरी इलाकों के मतदाताओं में उत्साह कम रहा यानि गोरखपुर शहर में मात्र 37.76 प्रतिशत मतदान ही हो पाया. कहीं ऐसा तो नहीं कि गोरखपुर से योगी आदित्यनाथ के उम्मीदवार न होने के कारण से यहां के मतदाताओं में उत्साह नहीं रहा? अगर ऐसा होता है तो 29 साल बाद इस गोरखपुर संसदीय क्षेत्र की कमान गोरक्ष पीठ से बाहर की हो जायेगी.

वैसे तो भारतीय चुनावों में मतदाताओं का मूड जानना थोड़ा कठिन है इसलिए ये भविष्यवाणी करना भी उतना ही कठिन है कि इन दोनों सीटों के उप- चुनाव में कौन जीतेगा. और इसकी सटीक जानकारी 14 मार्च को ही मिल पायेगी, जब इनके नतीजों का ऐलान होगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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