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कर्नाटक के नए झंडे - नए धर्म के नीचे कांग्रेस की दोमुंही नीति उजागर

    • अमित अरोड़ा
    • Updated: 10 मार्च, 2018 06:31 PM
  • 10 मार्च, 2018 06:31 PM
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वर्षों से गैर कन्नड़ और हिन्दी भाषी लोगों को कर्नाटक के मूल निवासियों से रोज़गार छीनने वालों के रूप में प्रस्तुत किया गया है. अब कर्नाटक का नया झंडा बनाना और अलग धर्म की मांग भारत को और तोड़ देगी.

कांग्रेस पार्टी के लिए आगामी कर्नाटक विधानसभा चुनाव बहुत महत्वपूर्ण होने जा रहा है. वर्तमान में कांग्रेस पार्टी की सरकारें केवल कर्नाटक, पंजाब, पुडुच्चेरी और मिज़ोरम में ही बची है. पिछले 4 सालों में भाजपा ने 'कांग्रेस मुक्त भारत' का अभियान बहुत अच्छी तरह कार्यान्वित किया है. यदि यही हिसाब चलता रहा तो शीघ्र कांग्रेस के अस्तित्व पर सवाल खड़े हो जाएँगे. कांग्रेस पार्टी इस समस्या की गंभीरता को समझते हुए हर हाल में आगामी कर्नाटक विधान सभा चुनाव को जीतना चाहती है. साम, दाम, दंड, भेद की नीति को अपनाकर, किसी तरह भी कांग्रेस कर्नाटक को खोना नहीं चाहती है.

हाल में सिद्धारमैया सरकार ने कर्नाटक राज्य के अपने अलग ध्वज का अनावरण किया. कर्नाटक के लिए अलग ध्वज की कवायत के द्वारा कांग्रेस स्वयं को कन्नड़ अस्मिता के असली संरक्षक के रूप में प्रस्तुत करना चाहती है. कर्नाटक विशेषकर बेंगलूरु में, बाहरी बनाम कन्नड़ की कलह बहुत समय से चल रही है. वर्षों से गैर कन्नड़ और हिन्दी भाषी लोगों को कर्नाटक के मूल निवासियों से रोज़गार छीनने वालों के रूप में प्रस्तुत किया गया है. बेंगलूरु मेट्रो में हिन्दी भाषा के सूचना-पट्ट को हटाने का अभियान भी इसी मुहिम का हिस्सा था. कर्नाटक के लिए अलग ध्वज बनाकर सिद्धारमैया सरकार इस बहस को अपने पक्ष में करना चाहती है.

दूसरी ओर राज्य सरकार ने 'लिंगायत' समाज को अलग धर्म का दर्ज़ा देने के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था. इस समिति ने 'लिंगायत' समाज को पृथक धर्म की श्रेणी प्रदान करने की सिफारिश की है. लिंगायत समाज के कुछ लोगों की अलग धर्म की इच्छा को सिद्धारमैया सरकार ने अपनी राजनीतिक रणनीति में खूबसूरती से प्रयोग किया है. कर्नाटक में लिंगायत समाज मूलत: भाजपा को समर्थन करता रहा है. भाजपा के मुख्यमंत्री के दावेदार बी एस येदियुरप्पा स्वयं एक लिंगायत है....

कांग्रेस पार्टी के लिए आगामी कर्नाटक विधानसभा चुनाव बहुत महत्वपूर्ण होने जा रहा है. वर्तमान में कांग्रेस पार्टी की सरकारें केवल कर्नाटक, पंजाब, पुडुच्चेरी और मिज़ोरम में ही बची है. पिछले 4 सालों में भाजपा ने 'कांग्रेस मुक्त भारत' का अभियान बहुत अच्छी तरह कार्यान्वित किया है. यदि यही हिसाब चलता रहा तो शीघ्र कांग्रेस के अस्तित्व पर सवाल खड़े हो जाएँगे. कांग्रेस पार्टी इस समस्या की गंभीरता को समझते हुए हर हाल में आगामी कर्नाटक विधान सभा चुनाव को जीतना चाहती है. साम, दाम, दंड, भेद की नीति को अपनाकर, किसी तरह भी कांग्रेस कर्नाटक को खोना नहीं चाहती है.

हाल में सिद्धारमैया सरकार ने कर्नाटक राज्य के अपने अलग ध्वज का अनावरण किया. कर्नाटक के लिए अलग ध्वज की कवायत के द्वारा कांग्रेस स्वयं को कन्नड़ अस्मिता के असली संरक्षक के रूप में प्रस्तुत करना चाहती है. कर्नाटक विशेषकर बेंगलूरु में, बाहरी बनाम कन्नड़ की कलह बहुत समय से चल रही है. वर्षों से गैर कन्नड़ और हिन्दी भाषी लोगों को कर्नाटक के मूल निवासियों से रोज़गार छीनने वालों के रूप में प्रस्तुत किया गया है. बेंगलूरु मेट्रो में हिन्दी भाषा के सूचना-पट्ट को हटाने का अभियान भी इसी मुहिम का हिस्सा था. कर्नाटक के लिए अलग ध्वज बनाकर सिद्धारमैया सरकार इस बहस को अपने पक्ष में करना चाहती है.

दूसरी ओर राज्य सरकार ने 'लिंगायत' समाज को अलग धर्म का दर्ज़ा देने के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था. इस समिति ने 'लिंगायत' समाज को पृथक धर्म की श्रेणी प्रदान करने की सिफारिश की है. लिंगायत समाज के कुछ लोगों की अलग धर्म की इच्छा को सिद्धारमैया सरकार ने अपनी राजनीतिक रणनीति में खूबसूरती से प्रयोग किया है. कर्नाटक में लिंगायत समाज मूलत: भाजपा को समर्थन करता रहा है. भाजपा के मुख्यमंत्री के दावेदार बी एस येदियुरप्पा स्वयं एक लिंगायत है. भाजपा स्वयं को हिंदूत्व के रक्षक में प्रस्तुत करती आई है. उसकी राजनीति हिंदूत्व पर आधारित है. भाजपा जाति से उपर उठ कर संयुक्त हिंदू समाज की कामना करती है. यदि लिंगायत समाज एक अलग धर्म बन जाता है तो भाजपा की संयुक्त हिंदू समाज की रणनीति कमजोर पड़ती है.

कश्मीर की राह पर कर्नाटक..

नए धर्म और राज्य के अलग ध्वज की रणनीति से चाहे कांग्रेस को शणिक लाभ हो जाएँ परंतु यह देश और धर्म में बिखराव का कारण बन सकती है. एक तरफ देश भर में जम्मू-कश्मीर के अलग ध्वज को निरस्त करने की माँग उठ रही है, वहीं सिद्धारमैया सरकार अलग ध्वज बनाने पर आतुर है. अलग ध्वज का विचार ही भारत की एकता और अखंडता पर प्रहार है. भारत का तिरंगा देश को एक सूत्र में पिरोने का काम करता है. कर्नाटक राज्य का अलग झंडा इसके विपरीत काम करेगा. वहीं नए धर्म के विचार का सिद्धारमैया मंत्रिमंडल में ही विरोध हो रहा है. कई सामाजिक संगठन भी अलग धर्म की पहल का विरोध कर रहे हैं.

साफ़-साफ़ नज़र आ रहा है कि यह दोनों फ़ैसले राजनीतिक लाभ उठाने के लिए किए गए हैं. कांग्रेस ने चुनाव से पहले अपने फ़ायदे के लिए समाज विरोध रणनीति अपनाई है. यह रणनीति स्वयं कांग्रेस पर भी भारी पढ़ सकती है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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